मनुस्मृति के 31 शिक्षाप्रद श्लोक एवं सफलता के लिए प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक सुभाषितानी
31 educative verses of Manusmriti and inspiring Sanskrit verses for success Subhashitani
दोस्तों भारतीय संस्कृति में श्लोकों का बहुत महत्त्व है। यही हमें सुसाध्य और संस्कारित जीवन प्रदान करते है। sanskrit shlok in hindi हमारे वेद-पुराणों, शास्त्रों,व असंख्य धार्मिक ग्रंथों में ऋषि-मुनियों व प्रभुद्ध व्यक्तियों ने ढेरों ज्ञान की बातें संस्कृत श्लोकों, सुभाषितानी पाठ, सुभाषितानी श्लोक, ध्येयवाक्यानि, सुविचार,अनमोलवचन आदि के रूप में लिखी हैं। Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानी, सफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।gyansadhna.comsanskrit shlok in hindi आइये आज हम ज्ञान के उस अथाह सागर में से कुछ अनमोल रत्नों को देखते हैं। This solution contains questions, answers, images, explanations of the complete सुभाषितानी of Sanskrit taught in hindi If you are avri student of using NCERT Textbook to study Sanskrit, then you must come across chapter
विद्यार्थी विशेष रूप से इन श्लोकों को कंठस्त कर सकते हैं और उन्हें अपने जीवन में उतार कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं, विना ज्ञान के मनुष्य पशु है लेकिन विना संस्कारवान शिक्षा के मनुष्य का जीवन शून्य है।sanskrit shlok in hindi
Sanskrit verses for success in hindi
1- श्लोकअकामस्य किया काचिद् दृश्यते नेह कहिंचित् ।
यद्यद्धि कुरुते किञ्चितत्तत्तत्कामस्य चेष्टितम्।।
अर्थात - इस जगत् में कभी भी बिना इच्छा के कोई भी जया या कर्म सम्पन्न होता दिखाई नहीं देता है , क्योंकि मनुष्य जो जो कर्म करता है , वह कर्म उसकी इच्छा की ही चेष्टा का परिणाम है - ऐसा मानना चाहिये ।
2-श्लोक
वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विराम् ।
आचारश्चैव साधूनामात्मस्तुष्टिरेव च ।।
अर्थात - सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय , वेदज्ञाताओं मनु आदि के स्मृति ग्रन्थ तथा उनका शिष्ट व्यवहार , महापुरुषों के सत्याचरण , अपने मन की प्रसन्नता - ये सभी धर्म के प्रमाण रूप में ग्रहण करने चाहिए ।
3-श्लोक
यः कश्चित्कस्यचिद्धर्मो मनुना परिकीर्तितः ।
स सर्वोऽभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः।।
अर्थात - मनु ने जिन सम्पूर्ण चारों वर्गों के गुणस्वभावादि धर्मों का उल्लेख किया है। वे सब वेदों में कहे गये है, क्योंकि भगवान मनु समस्त वेदों के अर्थ ज्ञाता है ।
Sanskrit verses for success in hindi
4-श्लोकश्रुतिस्मृत्युदितं धर्ममनुतिठन् हि मानवः ।
इह कीर्तिमवाप्नोति प्रेत्य चानुत्तमं सुखम।।
अर्थात -मनुष्य वेदों व स्मृतियों में कहे गये धर्म का सेवन करते हुए संसार में निर्मल कीर्ति प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्चात् परलोक में परमानन्द को अधिगत कर लेता है ।
5-श्लोक
योऽवमन्येत ते मूले हेतुशास्त्राश्रयाद् द्विजः ।
स साधुभिर्बहिष्कार्यो नास्तिको वेदनिन्दकः।।
अर्थात - जो कोई विद्वान द्विज धर्म की मूलाधार श्रुतियों एवं स्मृतियों की निन्दा या अपमान करे तो सत्पुरुषों को उस वेद निन्दक अधम व्यक्ति को समस्त श्रेष्ठ कर्मों से अलग कर देना चाहिए ।
6-श्लोक
एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः ।
स्वं स्त्रं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ।।
अर्थात - ऋषि संसार के मनुष्यों को सम्बोधित करते हैं कि भूतल के सम्पूर्ण मनुष्यों की ब्रह्मावर्त देश में उत्पन्न ज्ञान साधनारत ब्राह्मण के चरित्र से अपने चरित्र की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ।
7-श्लोक
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात् । तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्त्त विदुर्बुधाः ।।
अर्थात - पूर्वी समुद्र से लेकर पश्चिमी समुद्र तक हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य में जो प्रदेश ( भू - भाग ) विराजमान है , उसे विद्वान् पुरुष ' आर्यावर्त ' नाम से जानते हैं ।
Sanskrit verses for success in hindi
8-श्लोकवैदिकेः कर्मभिः पुण्यैर्निषेकादिद्विजन्मनाम् ।
कार्यः शरीरसंस्कार : पावनः प्रेत्य चेह च ।।
अर्थात - भृगु ऋषि निर्देश देते हैं कि ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य वर्गों के पवित्र वैदिक मन्त्रों द्वारा इस लोक में तथा मृत्यु पश्चात् सम्पूर्ण शारीरिक गर्भाधानादि संस्कार अवश्य करने चाहिए ।
9- श्लोक
प्राड्नाभिवर्धनात्पुंसो जातकर्म विधीयते ।
मन्त्रवत्प्राशनं चास्य हिरभ्यमधुसर्पिषाम ।।
अर्थात - इस श्लोक में नवजात बालकों का जातकर्म संस्कार का विधान बताया जाता है । यथा नाल काटने से पूर्व नवजात शिशु का जातकर्म संस्कार सम्पन्न होता है । इस समय स्वर्ण को सलाई से घृत , मधुमिश्रित प्राशन किया जाता है । अर्थात् बालक का पिता मन्त्र - उच्चारण पूर्वक बच्चे को मधु और घी चटाता है और बच्चे की जीभ पर ' ओउम् ' लिखता है ।
10-श्लोक
माडुल्य ब्राह्मणस्य त्र्याक्षत्रियस्य बलान्वितम् ।
वैश्यस्य धनसंयुक्तं शूद्रस्य तु जुगुप्सितम् ।।
अर्थात - ब्राह्मण शिशु का नाम मांगलिक , क्षत्रिय शिशु का नाम बल युक्त , वैश्य के बालक का नाम समृद्धि सूचक तथा शुद्ध के बच्चे का नाम निन्दनीय होना चाहिये ।
Sanskrit verses for success in hindi
11-श्लोकचतुर्थे मासि कर्त्तव्यं शिशोर्निष्कमणं गृहात् ।
षष्ठेऽन्नप्राशनं मासि यद्वेष्टं मलं कुले ।।
अर्थात - चतुर्थ मास में बालकों को घर से बाहर निकालना चाहिये । छठेमास में दाल - भात आदि सुपाच्य आहार देना चाहिये । अथवा कुल के अनुसार मांगलिक सभी आचार सम्पादित करने चाहिये ।
12-श्लोक
गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वोत ब्राह्मणस्योपनायनम् ।
गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भात्तुं द्वादशे विशः ।।
अर्थात - ब्राह्मण बालक का उपनयन संस्कार गर्भ से आठवें वर्ष में , क्षत्रिय का गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में और वैश्य के शिशु का गर्भ से बारहवें वर्ष में सम्पन्न कराना चाहिये ।
13-श्लोक
अत ऊर्ध्वं त्रयोऽप्येते यथाकालमसंस्कृताः ।
सावित्रीपतिताः व्रत्या भवन्त्यार्यविगर्हिताः ।।
अर्थात - पूर्वोक्त समय के बाद ये तीनों ब्राह्मण - क्षत्रिय वैश्य वर्ण समुचित समय में जिनका उपनयन संस्कार सम्पादित नहीं हुआ है गायत्री मन्त्र के अधिकार से वंचित अतः पतित एवं शिष्टों द्वारा निन्दनीय शूद्रत्व के प्राप्त कर लेते हैं ।
14- श्लोक
कार्ष्णंरौरववास्तानि चर्माणि ब्रह्मचारिणः ।
वसीरन्नानुपूर्वेण शाणक्षौमाविकानि च ।।
अर्थात - यहाँ भृगुऋषि तीनों वर्गों के ब्रह्मचारियों के लिए धारणा करने योग्य वस्त्रों का विधान बतलाते हैं । ब्राह्मण आदि वर्गों के ब्रह्मचारी क्रमशः कृष्णमृग , रूरूमृग तथा बकरे के चमड़े की धोती एवं कौपीन के स्थान पर धारण करें , और सन , रेशम और भेड़ के बाल अर्थात् ऊन से बने हुए वस्त्रों को धारण करें ।
Sanskrit verses for success in hindi
15-श्लोककेशान्तिको ब्राह्मणस्य दण्डः कार्यः प्रमाणत ।
ललाटसम्मितो राज्ञः स्यात्तु नासान्तिको विशः ।।
अर्थात -अब ऋषि ब्रहाचारियों के धारण योग्य दण्ड का मान बताते हैं । धर्मशास्त्र के प्रमाणानुसार ब्राहाण अपने सिर के केशों तक , क्षत्रिय मस्तक पर्यन्त और वैश्य नाक पर्यन्त परिमाण अनुवाद ( लम्बाई ) वाले दण्ड को धारण करे ।
16-श्लोक
प्रतिगृह्येप्सितं दण्डमुपस्थाय च भास्करम् ।
प्रदक्षिणं परीत्याग्नि चरेद् भैक्षं यथाविधि ।।
अर्थात - ब्राह्मणादि वर्गों के ब्रह्मचारियों को शास्त्र के नियमानुसार अपने इष्ट दण्ड को ग्रहण कर सूर्य का उपस्थान कर , अग्नि को प्रदक्षिणा कर भिक्षाचरण करना चाहिए ।
17-श्लोक
मातरं वा स्वसारं वा मातुर्वा भगिनी निजाम् ।
भिक्षेत भिक्षां प्रथमं या चैनं नावमानयेत् ।।
अर्थात – ब्रह्मचारी को सबसे पहले अपनी माता , अपनी बहिन , तथा मौसी से भिक्षा की याचना करनी चाहिए और उन्हें भी किसी प्रकार ब्रह्मचारी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए ।
18-श्लोक
उपस्पृश्य द्विजो नित्यमन्नमद्यात्समाहितः ।
भुक्त्वा चोपस्पृशेत्सम्यगद्भिः खानि च संस्पृशेत ।।
अर्थात – ब्रह्मचारी तथा गृहस्थद्विज भी एकाग्रचित हो आचमन कर जल से आचमन करे तथा इन्द्रियों , आँख , नाक तथा कानों के छिन्द्रो को भी जल स्पर्श करे ।
Sanskrit verses for success in hindi
19-श्लोकनोच्छिप्टं कस्यचिद्दद्यान्नद्याच्चैव तथाऽन्तरा ।
न चैवात्यशनं कुर्यान्न चोच्छिप्टः क्वचित् व्रजेत् ।।
अर्थात - किसी को जूठा भोजन नहीं देना चाहिए । प्रातः और सायंकाल के भोजन के अतिरिक्त बीच में भोजन नहीं करना चाहिए अत्यधिक भोजन नहीं लेना चाहिए । कहीं भी जूठे मुँह नहीं जाना चाहिए ।
20-श्लोक
ब्राह्मण विप्रस्तीर्थेन नित्यकालमुपस्पृशेत् । कायत्रैदशिकाभ्यां वा न पित्र्येण कदाचन।।
अर्थात - विप्र को सदा ब्राह्म नामक तीर्थ से अथवा प्राजापत्य और दैवतीर्थों से आचमन करना चाहिए , पितृतीर्थ द्वारा तो कभी भी आजमन नहीं करना चाहिए ।
21-श्लोक
अष्ठमूलस्य तले बाह्य तीर्थ प्रचक्षते ।
कायम लिमूलेऽगे दैवं पियं तयोरधः ।।
अर्थात - हाथ के अंगूठे के पास ब्राह्म तीर्थ , कनिष्ठिका अंगुली के मूल के पास ' प्रजापति ' तीर्थ , अंगुलियों के आगे ' दैवतीर्थ ' और अंगूठे तथा प्रदेशिनी ( तर्जनी ) अंगुली के मध्य पितृतीर्थ होता है ।
22-श्लोक
मेखलामजिनं दण्डमुपवीतं कमण्डलुम् ।
अप्सु प्रास्य विनष्टानि गृह्णीतान्यानि मन्त्रवत् ।।
अर्थात - ब्रह्मचारी के यदि मेखला , मृग चर्म , पालाशादि से बना हुआ दण्ड , यज्ञोपवीत , कमण्डलु - ये नष्ट हो गये हों तो इन्हें जल में फेंककर अन्य नवीन मन्त्रपाठपूर्वक ग्रहण कर लेने चाहिए ।
Sanskrit verses for success in hindi
23-श्लोकवैवाहिको विधि : स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृत ।
पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोऽग्निपरिक्रिया ।।
अर्थात - नारियों का पाणि - ग्रहण संस्कार ही गृहम सूत्रों में कहा गया संस्कार है । निष्ठापूर्वक पतिसेवा ही गुरूकूल में निवास है । गृहकार्य को कुशलता से करना ही यज्ञ का अनुष्ठान है।
24-श्लोक
अध्येष्यमाणस्त्वाचान्तो यथाशास्त्रमुदङ्मुखः । ब्रह्माञ्जलिकृतोऽध्याप्यो लधुवासा जितेन्द्रियः ।।
अर्थात - विद्याध्यन के लिये उद्यत , आचमन किया हुआ , ब्रह्मान्जलि से युक्त , अल्प और हलके वस्त्र धारण करने वाला , इन्द्रियजयी शिष्य ही शास्त्रानुसार अध्यापन के योग्य है ।
25-श्लोक
ब्रह्मणः प्रणवं कुर्यादादावन्ते च सर्वदा ।
स्रवत्यनोड्कृतं पूर्वं पुरस्ताच्चविशीर्यति ।।
अर्थात - वेद - विधा के अध्ययन की विधि बतलाई जाती है । ब्रह्मचारी को सदा अपने गुरूचरणों में वेदाध्ययन के पूर्व और अवसान में ' ओमकार ' का उच्चारण करना चाहिए क्योंकि ' ओऽम ' इस मंत्र के उच्चारण से विहीन वेदाध्ययन शनैः शनैः नष्ट हो जाता है विस्मृत हो जाता है ।
26-श्लोक
एतयर्चा विसंयुक्तः काले न कियया स्वया ।
ब्रह्मक्षत्रियविड्योनिर्गर्हणां जाति साधुषु ।।
अर्थात - इस गायत्री महामन्त्र के जप से और अपने सदाचारादि कर्तव्यों से विरहित हुआ ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य सज्जनों में निन्दा को प्राप्त करता है ।
Sanskrit verses for success in hindi
27-श्लोकयोऽधीतेऽहन्यहन्येतांस्त्रीणि वर्षाण्यतन्द्रितः ।
स ब्रह्म परमभ्येति वायुभूत खमूर्तिमान् ।।
अर्थात - जो द्विज आलस्य छोड़कर प्रतिदिन प्रणय और व्यहतियों के साथ गायत्री - महामन्त्र का तीन वर्षपर्यन्त जप करता है , वह इस मन्त्र के प्रभाव से अपना गायत्री मन्त्रमय परमात्मा के अनुग्रह से आकाशरूप होकर सच्चिदानन्दस्वरूप पर ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है ।
28- श्लोक
एकादशं मनोज्ञयं स्वगुणेनोभयात्मकम् ।
यस्मिजिते जितावेतौ भवतः पञ्चकौ गणौ।।
अर्थात - मन अपने गुणों के प्रभाव से ग्यारहवीं उभयात्मक ( दोनों ही ) अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय भी है । इसीलिए मन के जीत लेने पर ये दोनों ज्ञान व कर्मेन्द्रियाँ स्वमेव विजित हो जाती है।
29-श्लोक
वेदास्त्यागश्च यज्ञाश्च नियमाश्च तपांसि च ।
न विप्रदुष्टभावस्य सिद्धिं गच्छन्ति कहिंचित्।।
अर्थात - दूषित हृदय वाले व्यक्ति का वेदाध्ययन , त्याग , यज्ञादि का अनुष्ठान , यम - नियमों का पालन , अभ्यास ये कभी सिद्धि प्राप्त नहीं करते हैं ।
Sanskrit verses for success in hindi
30-श्लोकआचार्यपुत्रः शुश्रूषुर्ज्ञानदो धार्मिकः शुचिः ।
आप्त : शक्तोऽर्थदः साधुः स्वोऽध्याप्या दश धर्मत ।।
अर्थात -कौन - कौन शिक्षा देने योग्य हैं ? इस सम्बन्ध में कहते हैं कि आचार्य का पुत्रः सेवापरायण , अन्य विषय की शिक्षा या गुरू को व्यवहार के सम्बन्ध में परामर्श देने वाला , धर्मतत्पर , पवित्र मन वाला , श्रेष्ठ , सत्यवादी , पाठ को धारण करने में समर्थ , धन देने वाला , सज्जन और स्वजातीय में दश ही गुरू के द्वारा धर्मानुसार अध्यापन योग्य हैं ।
31-श्लोक
नापृष्टः कस्यचिद् ब्रू यान्न चान्यायेन पृच्छतः ।
जानन्नपि हि मेधावी जडवल्लोक आचरेत्।।
अर्थात - बुद्धिमान मनुष्य को यह उचित है कि वह श्रद्धापूवक प्रश्न न करने वाले को अथवा अन्याय के साथ पूछने वाले को उत्तर न दे । वह जानकार होते हुए भी जड़ या मूर्ख की भाँति आचरण करें ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य----
- संस्कृत सुभाषितानी, संस्कृत सुविचार
- समय के सदुपयोग पर सुविचार
- 12 प्रेरणादायक कहानियाँ
- सफलता एवं जीत पर सुविचार
- क्रोध पर सुविचार
- आत्मविश्वास कैसे बढाये
- कम समय में कैसे करें परीक्षा की तैयारी
- आपका सबसे बडा दुश्मन आलस्य
- सफलता पाने के सूत्र, कामयाबी निश्चित होंगी
- अपने लक्ष्य को कैसें पहचानें
- सफलता का रहस्य
- आपका सबसे बडा दुश्मन आलस्य
- सफलता पाने के सूत्र, कामयाबी निश्चित होंगी
- अपने लक्ष्य को कैसें पहचानें
कुछ तो मन्त्र त्रुटि पूर्ण है तथा कुछ के अर्थ सही नही है,
ReplyDeleteमनुस्मृति में शुद्र और नारी को गलत नही बताया गया है ।