Sunday 28 June 2020

सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला सोलह सोमवार व्रत कथा, विधी एवं विधान Sixteen Mondays fasting, fulfilling all wishes, stories and legislation

सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला सोलह सोमवार व्रत कथा, विधी एवं विधान 
Sixteen Mondays fasting, fulfilling all wishes, stories and legislation

नमस्कार दोस्तों मनुष्य सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए अनेकों व्रत,उपवास,जप,तप करता है ,लेकिन सही व सटीक जानकारी न मिलने पर उसे सौभाग्य प्राप्त नही हो पाता है। आज हम आपको ऐसा चमत्कारी व्रत बताएँगे जिसको करने से आपकी सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाएगी, और वह व्रत है सोलह सोमवार व्रत जो शिव को समर्पित है,और मान्यता है कि इस व्रत को पार्वती जी ने भी किया था जिससे कार्तिकेय जैसा आज्ञाकारी पुत्र प्राप्त हुआ।
सोमवार का व्रत श्रावण, चैत्र, वैसाख, कार्तिक और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू किया जाता है. कहते हैं इस व्रत को 16 सोमवार तक श्रद्धापूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सोलह सोमवार व्रत विधि

सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक ही होता है,इस व्रत मे फलाहार का कोई विशेष नियह नहीँ है, यह शक्तिशाली व्रत है जितना कष्ट सहोगे और शिव की भक्ति करोगे इच्छाओं की पूर्ति जल्दी होगी, इस व्रत में संध्या काल में उठकर स्नानादी करके शिव की पूजा करनी चाहिए और आटे के तीन रोट बनाने चाहिए,  एक शिव को समर्पित करना चाहिए और वही प्रसाद के रूप मे ग्रहण भी करना चाहिए। 

व्रतधारी को सूर्योदय से पहले उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए . भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है, परंतु विशेष अवसर व विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की विधि प्रचिलत है। आपको पूरे दिन शिव को समर्पित करना चाहिए और दान पुण्य करना चाहिए जिससे व्रत का प्रभाव अधिक बलवान होगा।

मंत्र जाप एवं पूजा

यह दिन शिव को समर्पित है तो शिव की ही आराधना करना चाहिए, इस दिन इन मन्त्रों का जाप करें---
1- महामृत्युंजय मंत्र  108 बार या यथा सामर्थ्य अनुसार करें। 
2- ॐ नमः शिवायः आप मन ही मन बिना माला के भी दिन भर जप सकते है।
3- शिव चालीसा या शिव उपासना मंत्र 
4- रूद्रष्टाध्यायी का पाठ।
5- रुद्राभिषेक
मान्यता है कि अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है, फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो, गायत्री मंत्र हो या फिर भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा करें। आरती करने के बाद भोग लगाएं और घर परिवार में बांटने के बाद स्वयं ग्रहण करें. दिन में केवल एक समय नमक रहित भोजन ग्रहण करें। या उस दिन नमक का परित्याग करें।

सोलह सोमवार व्रत कथा 

एक बार शंकरजी पार्वतीजी के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती आये । वहाँ राजा ने सुन्दर शिव मंदिर बनवाया । शंकरजी वहीं रहने लगे । एक दिन पार्वतीजी शिवजी से बोली कि आज चौसर खेलें।खेल प्रारम्भ हुआ । उसी समय पुजारी जी पूजन करने आये । पार्वती जी ने पुजारी से पूछा कि जीत किसकी होगी बताइये ? उन्होंने शंकरजी की जीत बतलाई । अंत में जीत पार्वतीजी की हुई । पार्वतीजी ने मिथ्या अपराध के कारण पुजारी को कोढ़ी होने का श्राप दिया । पुजारी जी इस श्राप से कोढ़ी हो गये । कुछ समय बाद अप्सरायें पूजन के लिए आईं , पुजारी जी को कोढ़ी देख , उनसे उसका कारण पूछा ।

पुजारी जी ने सारी बातें बता दी । अप्सरायें पुजारी जी से बोलीं कि तुम सोलह सोमवार का व्रत करो । शंकरजी तुम्हारे सभी कष्ट दूर कर देंगे । पुजारी जी ने प्रसन्न होकर व्रत की विधि पूछी । अप्सरा बोलीं कि सोमवार को व्रत करें सन्ध्या के पूर्व आधा किलो गेहूँ के आटे के तीन रोट बनावें तथा घी , गुड़ दीप नैवेद्य , बेल पत्रादि पूजन सामग्री को लेकर प्रदोष काल में विधि पूर्वक पूजन करें । बाद में एक रोट शंकरजी को अर्पण करें । शेष रोटी को प्रसाद समझ वितरित कर प्रसाद ग्रहण करें । इस विधि पूर्वक सोलह सोमवार तक व्रत करें । सत्रहवें सोमवार को २५० ग्राम गेहूँ के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर भोग लगाकर वितरित करें । फिर सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें ।

इस प्रकार करने से शंकरजी तुम्हारी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे । यह सुनकर अप्सरा स्वर्ग को चली गई । पुजारी जी विधिपूर्वक व्रत करके रोग मुक्त हुए और पूजन करने लगे ।

 कुछ दिन बाद शंकर पार्वती आये पुजारी को देख पार्वतीजी ने रोग मुक्त का कारण पूछा । पुजारी के कहे अनुसार पार्वती ने व्रत किया । फलस्वरूप अप्रसन्न कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए ।

 कार्तिकेयजी ने भी पार्वती जी से पूछा कि क्या कारण है कि मेरा मन आपके चरणों में लगा । पार्वती ने व्रत के बारे में पूरी विधि बतलाई , कार्तिकेयजी ने भी व्रत किया । इसके फलस्वरूप उन्हें अपना बिछड़ा हुआ मित्र मिला । मित्र ने भी कारण पूछा । मित्र ने भी विवाह की इच्छा के साथ व्रत किया । फलतः वह विदेश गया वहाँ राजा की कन्या का स्वयंवर था । राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि हथिनी जिसको माला पहनायेगी उसी के साथ उसकी कन्या का विवाह होगा । यह बाह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से एक ओर जा बैठा । हथिनी ने माला इसी के गले में पहनाई।धूमधाम से इसका विवाह हुआ । सुन्दर कन्या पाकर वह सुखपूर्वक रहने लगा । एक दिन राजकन्या ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा कौन सा पुण्य किया जिससे राजकुमारों को छोड़कर हथिनी ने आपको वरण किया ।

रानी पर आयी घोर विपदा
ब्राह्मण ने सोलह सोमवार का व्रत विधि पूर्वक बताया ।राजकन्या ने भी पुत्र प्राप्ति के लिये सविधि व्रत किया और सर्वगुण संपन्न पुत्र प्राप्त किया । पुत्र ने बड़ा होने पर अपनी माँ से पूछा कि आपको मेरी प्राप्ति किस पुण्य से हुई । राजकन्या ने विधिपूर्वक व्रत बतलाया । पुत्र ने राज्य कामना से व्रत किया । उसी समय राजा के दूतों ने आकर उसे राजकन्या के लिये वरण किया।आनन्द पूर्वक विवाह संपन्न हुआ । राजा के दैवलोक सिधारने पर ब्राह्मण बालक को गद्दी मिली लेकिन वह इस व्रत को करता रहा । एक दिन उसने अपनी पत्नी से पूजन सामग्री शिव । मंदिर में ले चलने को कहा लेकिन उसने दासियों द्वारा भिजवादी , स्वयं नहीं गई ।

जब राजा ने पूजन समाप्त किया तो आकाशवाणी हुई कि इस पत्नी को निकाल दे नहीं तो वह तेरा सर्वनाश कर देगी । आकाशवाणी को सही मान उसने रानी को निकाल दिया । रानी भाग्य को कोसती हुई एक नगर में बुढ़िया के पास गई । बुढ़िया ने इसकी दीन दशा देख इसके सिर पर सूत की पोटली रखकर बाजार भेजी । लेकिन रास्ते में आँधी के कारण पोटली उड़ गई । बुढ़िया ने उसको फटकार कर भगा दिया । वह वहाँ से तेली के यहाँ पहुँची तो उसके सब माँट चटक गये , उसने भी वहाँ से भगा दिया । पानी पीने नदी पर पहुँची तो नदी सूख गई । सरोवर पर पहुँची तो हाथ लगाते ही जल में कीड़े पड़ गये । लेकिन वह उसीजल को पीकर आराम करने जिस पेड़ के पास जाती , वही पेड सरख जाता । वन और सरोवर की दशा देखकर ग्वाले डसको पकड गसाई के पास ले गये । इसे देखकर गुसाईंजी समझ गये वह कुलीन अवला आपत्ति की मारी हुई है । गुसाईं धैर्य बँधाते हुए बोले कि बेटी तू मेरे यहाँ रह । किसी बात की फिक्र मत कर ।

रानी आश्रम में रहने लगी लेकिन जिस वस्तु से इसका हाथ लग जाये उसी में कीड़े पड़ जावें । गुसाईंजी ने दुःखी होकर पूछा कि बेटी किस देव के अपराध से तेरी यह दशा हुई है । रानी ने कहा कि मैं पति की आज्ञा का उल्लघंन कर महादेवजी के पूजन को नहीं गई । गुसाईं ने शंकरजी से प्रार्थना की । गुसाईं जी बोले तुम्हें सोलह सोमवार का व्रत करना पड़ेगा । रानी ने विधिपूर्वक पूरे व्रत किये । व्रत के प्रभाव से राजा को रानी की याद आई और उसने दूतों को रानी की खोज के लिये भेजा । आश्रम में रानी को देखकर दूतों ने जाकर राजा को पता बतलाया । राजा ने जाकर गुसाईं जी से कहा कि महाराज यह मेरी पत्नी है ।

 शंकरजी के नाराज होने से मैंने इसको त्याग दिया था । अब उन्हीं की कृपा से इसे लेने आया हूँ । कृपया इसे ले जाने की आज्ञा दें । गुसाईंजी ने आज्ञा दे दी । राजा - रानी नगर में आये । नगर निवासियों ने पूरे नगर को सजाया व्रत कर के रानी के साथ आनन्द से रहने लगे । इस प्रकार जो व्यक्ति भक्ति सहित विधि पूर्वक सोलह सोमवार व्रत करता है तथा कथा सुनते हैं उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं तथा शिवलोक को प्राप्त होते हैं ।

अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---

0 comments: