Tuesday 7 July 2020

22 संस्कृत सुभाषितानी, श्लोक, सुविचार व अनमोल वचन 

भारतीय शास्रों का सार

22 Sanskrit Subhashitani, Shloka, Suvichar and Priceless Words

Essence of Indian Scripture

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दोस्तों संस्कृत भाषा भारत ही नहीं  विश्व की प्राचीनतम भाषा होने के साथ ही सभी भाषाओं की जननी है।Sanskrit sloks with meaning in hindi  संस्कृत भाषा में पग-पग पर विश्व कल्याण और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले श्रेष्ठ वाक्यांश समाहित है। व्यक्ति के मार्गदर्शन के लिए तथा सभी पक्षों के विकस के लिए (संस्कृत श्लोक,संस्कृत में सूक्तियां, संस्कृत में सुविचार,सुभाषितानी) आदि कयी ऐसे महान विचार हमारे ग्रंथों से लिये गये है। अत: इसी प्रकार संस्कृत श्लोक ज्ञानवर्धक और शिक्षा प्रद कथनों को इस "संस्कृत सुभाषितानि" में हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं। भारत ने दुनिया को सभी तरह का ज्ञान दिया और आज उस ज्ञान के कारण पश्‍चिम और चीन जगत के लोग अपना जीवनस्तर सुधारने में लगे हैं।
सुविचार,अनमोलवचन आदि के रूप में लिखी हैं। Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।gyansadhna.com

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक- 1
उभाभ्यामेव पक्षाभ्यां यथा खे पक्षिणां गतिः ।
तथैव ज्ञानकर्माभ्यां जायते परमं पदम् ।।

अर्थात - जैसे पक्षी आकाश में दोनों से उडते हैं,  ऐसे ही ज्ञान और कर्म - दोनोआके योग के योग से ही परम पद की प्राप्ति होती है।

श्लोक - २ 
पिपीलिकार्जितं धान्यं मक्षिकासंचितं मधु ।
लुब्धेन संचितं द्रव्यं समूलं च विनश्यति ।।

अर्थात- चींटी का संगृहीत अन्न, मक्खी का संचित शहद और कृपण का संचित धन उनको छोड सबके काम आता है। अतः धन का सदुपयोग उसके सार्थक कार्यों में निवेश से है, निरर्थक संग्रह से नहीं।

श्लोक-3
सत्त्वपुरुषयोः शुद्धिसाम्ये कैवल्यम् ।।

अर्थात - बुद्धि एवं पुरुष की अथवा चित्त एवं पुरुष की समान शुद्धि होने पर कैवल्य होता है।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक- 4
नानृतात्पातकं किञ्तचित् न सत्यात्सुकृतं परम् ।
विवेकान्त परो बन्धुरिति वेदविदो विदुः ।।

अर्थात - झूठ से बडकर कोई पाप नहीँ और सत्य से बढकर कोई सुकृत नहीं है।
विवेक से बढकर कोई बंधु नही है, ऐसा वेदज्ञ विद्वानों द्वारा बताया गया है।

श्लोक - 5
द्वाविमौ पुरूषौ लोके स्वर्ग स्थोपरि तिष्ठतः ।
प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ।।

अर्थात - जो मनुष्य समर्थ होकर क्षमा करना जानता हो अथवा दरिद्र होकर दानवीर हो, वह स्वर्ग के ऊपर के लोकों में जाने का अधिकारी है।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक - 6
शास्त्रार्थ गुरुमन्त्रादि तथा नीत्तरक्षणमम् ।
यथैता स्नेहशालिन्यो भतृणां कुलयोषितः ।।

अर्थात - शास्त्र , गुरू, मंत्र आदि सभी साधन मिलकर भी उस मोहसागर से पार कराने में इतने समर्थ नहीं है, जितनी कि स्नेह से भरी हुयी फुलवारियां ।
इसीलिए स्त्रियों को कभी भी निरादर की दृष्टि से नहीँ देखना चाहिए।

श्लोक -7
न त्वहं कामये राज्यं न सौख्यं न पुनर्भवम् ।
कामये दुखतप्तानां प्राणिनां आर्तिनाशनम् ।।

अर्थात  - हम राज्य का क्या करेंगे,  या स्वर्ग का क्या करोगे, संसार में जितने भी दुखी प्राणी है, पिछडे हुए लोग है, उन्हें ऊंचा उठाने ,आगे बढाने के लिए , सेवा करने की जो वृत्ति है, वह स्वर्ग नहीँ है क्या।

श्लोक -8 
वनानि दहतो वह्नेः सखा भवति मारुतः ।
स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदम् ।।
अर्थात - जो वायुववन को जलाने में अग्नि की सहायता करती है, वही वायु दीपक को बुझाने में संकोच नहीं करती ।
यानी - निराबल का कोई सहायक नहीँ होता।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक -9 
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथः तत् कवयो वदन्ति ।।
अर्थात  - अध्यात्म का मार्ग बडा ही दुस्तर है, वैसा ही जिस प्रकार छुरे की धार पर चलना । वह भी तुरंत तेज की हुई । हर लोकसेवी को इसका ध्यान रखना पढता है।

श्लोक -10 
शुभाभानुपस्सि विहरन्तं इन्द्रियेसु असुंवुतं ।
भोजनम्हि अमत्तञ्जुं कुसीतं हीन वीरियं ।
तंववे पसहति मारो वातो रुक्खं व दुब्बलं ।।

अर्थात  - विषय रस में  सुख देखते हुए विहार करने वाले, आलसी और अनुद्युमी व्यक्ति के व्यक्तित्व को मार वैसे ही गिरा देता है, जैसे आंधी दुर्बल वृक्ष को गिरा देती है।

श्लोक -11 
यस्य नास्ति विवेकस्तु केवलं यो बहुश्रुतः ।
स न जानाति शास्त्रार्थान्दवीं  पाकरसानिव ।।

अर्थात  - जिसने बहुत पढकर भी विवेक से काम न लिया हो, वह शास्त्रों को नही जानता ।
जिस प्रकार  -- चमचा खाने का स्वाद नहीं पहचान सकता ।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक -12 
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति ।।

अर्थात - जो पुरूष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है, वही यथार्थ देखता है।

श्लोक -13 
तद्वैराग्यादपि दोषबीजक्षये कैवल्यम्। ।

अर्थात  - वैराग्य के परम शिखर पर समस्त दोषों के बीज क्षीण हो जाते हैं और कैवल्य की प्राप्ति होती है।

श्लोक -14 
केवलं ज्ञानमाश्रित्य निरीश्वर परा नराः ।
निरयम् ते च गच्छन्ति कल्पकोटिशतानी च ।।

अर्थात  - जो मात्र बुद्धि का सहारा लेकर ईश्वर विरूद्ध कार्य करते है, वे कल्पों पर्यंत नरक को प्राप्त होते है।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक -15 
नेति नेतीति नेतीति शेषितं यत्परं पदं ।
निराकर्त्तुमशक्यत्वात्तदस्यीति सुखी भव ।।

अर्थात  - यह नहीं है, वह भी नहीं है, ऐसा समझकर सब छोड देने पर जो शेष रह जाता है, वही परमात्मा है । यह जानकर तू सुखी हो जा ।

श्लोक -16 
अहं कर्तेत्यहंमान महाकृष्णाहि दंशितः ।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखी भव ।।

अर्थात  - मै कर्त्ता हूं  , ऐसे अहंकार रूपी अत्यंत काले सर्प से दंशित हुआ नहीं हूँ,  ऐसे विश्वासरूपी अमृत को पीकर सुखी हो।

श्लोक -17 
त्रयो धर्मस्कंधा यज्ञोध्ययनं दानमिति ।

अर्थात - धर्म के यज्ञ
          - अध्ययन
          - दान
                    ये तीन आधार है।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक -18 
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।

अर्थात  - जिस दैवीय शक्ति ने इस विशाल घुलोक को , पृथ्वी को, स्वर्ग और आकाश को अपने स्वरूप में स्थिर कर रखा है ,और जो अतरिक्ष में  भी व्याप्त है----- उस ईश्वर को छोडकर हम किसी अन्य देव की स्तुती और उपासना कैसे कर सकते है ।

श्लोक -19 
अत्यन्तविमुखे दैव व्यर्थे यत्ने च पौरुषे ।।

अर्थात - जब भाग्य सर्वथा प्रतिकूल हो तो यत्न और पुरुषार्थ,  दोनों व्यर्थ हो जाते है।

श्लोक -20 
क्षणतत्क्रमयोः संयमाद्विवेकजं ज्ञानम् ।।

अर्थात - क्षण और उसके क्रम में संयम करने से योग साधक में  विवेक जनित ज्ञान उत्पन्न होता है।

22 Sanskrit Subhashitani in hindi 

श्लोक -21 
यः कुलाभिजनाचारैरतिशुद्धः प्रतापवान ।
धार्मिको नीतिकुशलः स स्वामी युज्यते भुवी ।।

अर्थात - जो आचरण में शुद्ध , प्रतापी , धर्मनिष्ठ एवं नीतिकुशल हो, वही अधिकारी बनने योग्य है।


श्लोक -22 
चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणं ।
मातासमं नास्ति शरीर पोषणम् ।।

अर्थात - चिंता के समान शरीर को सुखाने वाला दूसरा कुछ नहीँ है और माता के सम्न शरीर का पोषण करने वेला दूसरा कोई नहीं है ।


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