Friday 24 July 2020

Family poem in hindi / मनुष्य की लाचारी पर कविता Poem on man's helplessness

Family poem in hindi / मनुष्य की लाचारी पर कविता
Poem on man's helplessness

दोस्तों कोई भी मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करता है । अपनी सभी इच्छाओं को मारकर वह न चाहते हुए भी नौकरी करता है , सिर्फ़ अपने परिवार के खातिर कि उन्हें कोई तकलीफ न हो, फिर चाहे वह अपनों से बहुत दूर ही क्यों न चले जाए, अपनों की खातिर हंसता है लेकिन अन्दर कयी दुखों को समेटे हुए रहता है।
आज मै अरूण सेमवाल मनुष्य की लाचारी, बेबसी, और  आपसे अपनी दिल की हसरत बयां कर रहा हूँ, ऐसे ही और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें gyansadhna.com

      कविता लाचारी की

ये रोटियां भी हमें कितना मजबूर करती है,
जो हमें अपनो से दूर बहुत दूर करती है ।
सच है मगर चाह कर भी झुठलाना पढता है,
डर है मगर डरकर भी काम करना पढता है।
मेरी ही अस्मिता मेरे जिस्म का सौदा करती है,
मेरी लाचारी ही मुझे अपनो से दूर करती है।
ये रोटियां--------------------दूर करती है ।।1।।

खुदगर्जियों का एक सुनसान बाजार है  दुनियां,
जहाँ कीमत सिर्फ आपकी मेहनत की होती है ।
मिटा देंगें वो तमाम काफिले ,
जो तुम्हारी यादों से जुडे होंगे,
छोडकर बेसहारा जब तुम अपनों को जाओगे।
ये रोटियां--------------------दूर करती है ।।2।।

खुद को ही मै कितना बेबस कर रहा हूं,
हकीकत से डर कर सपनों को झकझोर रहा हूँ। 
तुम्हारी लाचारी कहीँ तुम्हारी बेबसी न बन जाए,
जिन्दगी रही तो रोटियों की तलाश फिर से होगी,
कुछ पल अपनों की खुशी में खुश होलो,
क्या पता कल ओ खुशी फिर से नसीब न हो।
ये रोटियां------------------------दूर करती है ।। 3।।

तकदीर के आईने में मै कहीँ गुम हो गया हूँ, 
मानो सो गयी हो हमेशा के लिए मेरी रूह।
कौन सी हसरत पाने के लिए मै लडता रहा,
क्योंकि आज मै आदमी नहीं मशीन बन गया हूँ।   
ये रोटियां भी हमें कितना मजबूर करती है,
जो हमें अपनों से दूर बहुत दूर करती है ।।4।।


अरूण सेमवाल 

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