Wednesday 22 July 2020

श्रीमद्भगवद्गीता के षोडष अध्याय का माहात्म्य, अर्थ एवं सार // The significance, meaning and essence of Shrimad Bhagavad Gita's Shodesh chapter

श्रीमद्भगवद्गीता के षोडष अध्याय का माहात्म्य, अर्थ एवं सार
The significance, meaning and essence of Shrimad Bhagavad Gita's Shodesh chapter

Bhagwat geeta Mahatm in hindi, geeta Quotes Images, photos and wallpapers to download and share with your friends to inspire others. Bhagwat geetaQuotes in Hindi, Hindi Quotes on geeta, geeta thoughts in hindi, geeta par Suvichar, geeta ka Mahatm Anmol Vachan, Target Slogan in Hindi, 

इससे पहले हमने श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम ,द्वितीय , तृृतीय ,चतुर्थ ,पञ्चम,षष्ठ,सप्तम् , अष्टम , नवम ,  दशम  एकादश ,द्वादश  , त्रयोदश,  चतुर्दश 
पञ्चदश , अध्याय अर्थ, माहात्म्य, उपदेश, सुविचार तथा सार
 बताया है।
आइए हम आपके लिए गीता के अध्याय एक का माहात्म्य, अर्थ व सार लेकर आए है,जिसका आधार ग्रंथ स्वयं गीता ही है।आशा है आप इसके महत्व को अच्छी तरह समझने का प्रयास करेंगे।

श्रीमद्भगवद्गीताके सोलहवें अध्यायका माहात्म्य 
The greatness of the sixteenth chapter of Srimad Bhagavad Gita

श्रीमहादेवजी कहते हैं - 
पार्वती । अब मैं गीताके सोलहवें अध्यायका माहात्म्य बताऊँगा , सुनो । गुजरातमें सौराष्ट्र नामक एक नगर है । वहाँ खड्गबाहु नामके राजा राज्य करते थे , जो दूसरे इन्द्रके समान प्रतापी थे । उनके एक हाथी था , जो मद बहाया करता और सदा मदसे उन्मत्त रहता था । उस हाथीका नाम अरिमर्दन था । एक दिन रातमें वह हठात् साँकलों और लोहेके खम्भोंको तोड़ - फोड़कर बाहर निकला । हाथीवान् उसके दोनों ओर अङ्कुश लेकर डरा रहे थे । किंतु क्रोधवश उन सबकी अवहेलना करके उसने अपने रहनेके स्थान - हथिसारको ढहा दिया । उसपर चारों ओरसे भालोंकी मार पड़ रही थी ; फिर भी हाथीवान् ही डरे हुए थे , हाथीको तनिक भी भय नहीं होता था । इस कौतूहलपूर्ण घटनाको सुनकर राजा स्वयं हाथीको मनानेकी कलामें निपुण राजकुमारोंके साथ वहाँ आये ।

आकर उन्होंने उस बलवान् दंतैले हाथीको देखा । नगरके निवासी अन्य काम - धंधोंकी चिन्ता छोड़ अपने बालकोंको भयसे बचाते हुए बहुत दूर खड़े होकर उस महाभयंकर गजराजको देखते रहे । इसी समय कोई ब्राह्मण तालाबसे नहाकर उसी मार्गसे लौटे । वे गीताके सोलहवें अध्यायके ' अभयम् ' आदि कुछ श्लोकोंका जप कर रहे थे । पुरवासियों और पीलवानों ( महावतों ) -ने उन्हें बहुत मना किया , किंतु उन्होंने किसीकी न मानी । उन्हें हाथीसे भय नहीं था , इसीलिये वे विचलित नहीं हुए । उधर हाथी अपने फूत्कारसे चारों दिशाओंको व्याप्त करता हुआ लोगोंको कुचल रहा था । वे ब्राह्मण उसके बहते हुए मदको हाथसे छूकर कुशलपूर्वक ( निर्भयता ) -से निकल गये । इससे वहाँ राजा तथा देखनेवाले पुरवासियोंके मनमें इतना विस्मय हुआ कि उसका वर्णन नहीं हो सकता ।

राजाके कमलनेत्र चकित हो उठे थे । उन्होंने ब्राह्मणको बुला सवारीसे उतरकर उन्हें प्रणाम किया और पूछा - ' ब्रह्मन् ! आज आपने यह महान् अलौकिक कार्य किया है ; क्योंकि इस कालके समान भयंकर गजराजके सामनेसे आप सकुशल लौट आये हैं । प्रभो ! आप किस देवताका पूजन तथा किस मन्त्रका जप करते हैं ? बताइये , आपने कौन - सी सिद्धि प्राप्त की है ?

ब्राह्मणने कहा - 
राजन् ! मैं प्रतिदिन गीताके सोलहवें अध्यायके कुछ श्लोकोंका जप किया करता हूँ , इसीसे ये सारी सिद्धियाँ प्राप्त हुई हैं ।

श्रीमहादेवजी कहते हैं -
तब हाथीका कौतूहल देखनेकी इच्छा छोड़कर राजा ब्राह्मण देवताको साथ ले अपने महलमें आये । वहाँ शुभ मुहूर्त देखकर एक लाख स्वर्णमुद्राओंकी दक्षिणा दे उन्होंने ब्राह्मणको संतुष्ट किया और उनसे गीता - मन्त्रकी दीक्षा ली । गीताके सोलहवें अध्यायके अभयम् ' आदि कुछ श्लोकोंका अभ्यास कर लेनेके बाद उनके मनमें हाथीको छोड़कर उसके कौतुक देखनेकी इच्छा जाग्रत् हुई । फिर तो एक दिन सैनिकोंके साथ बाहर निकलकर राजाने हाथीवानोंसे उसी मत्त गजराजका बन्धन खुलवाया । वे निर्भय हो गये । राज्यके सुख विलासके प्रति आदरका भाव नहीं रहा । वे अपना जीवन तृणवत् समझकर हाथीके सामने चले गये । साहसी मनुष्योंमें अग्रगण्य राजा खड्गबाहु मन्त्रपर विश्वास करके हाथीके समीप गये और मदकी अनवरत धारा बहते हुए उसके गण्डस्थलको हाथसे छूकर सकुशल लौट आये । कालके मुखसे धार्मिक और खलके मुखसे साधु पुरुषकी भाँति राजा उस गजराजके मुखसे बचकर निकल आये । नगरमें आनेपर उन्होंने अपने राजकुमारको राज्यपर अभिषिक्त कर दिया तथा स्वयं गीताके सोलहवें अध्यायका पाठ करके परमगति प्राप्त की ।


अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---

0 comments: