Saturday 18 July 2020

श्रीमद्भगवद्गीता के पञ्चम अध्याय का माहात्म्य, अर्थ, उपदेश व सार // The significance, meaning, teachings and essence of the fifth chapter of Srimad Bhagavad Gita

श्रीमद्भगवद्गीता के पञ्चम अध्याय का माहात्म्य, अर्थ, उपदेश व सार
The significance, meaning, teachings and essence of the fifth chapter of Srimad Bhagavad Gita

Bhagwat geeta Mahatm in hindi, geeta Quotes Images, photos and wallpapers to download and share with your friends to inspire others. Bhagwat geetaQuotes in Hindi, Hindi Quotes on geeta, geeta thoughts in hindi, geeta par Suvichar, geeta ka Mahatm Anmol Vachan, Target Slogan in Hindi, 
> महाभारत कथा का संक्षिप्त परिचय 
> श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
> श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
> श्रीमद्भगवद्गीता के  तृतीय अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
> श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
> श्रीकृष्ण का जीवन परिचय व सुवचार
> श्रीमद्भगवद्गीता के 30 सुविचार एवं अनमोल वचन 

दोस्तों श्रीमद्भागवत गीता के माहात्म्य का बहुत ही बडा महत्व है, इस माहात्म्य में अनेकों संदेश छिपे हुए है ,अनेकों रहस्य छुपे हुए है,  जिसका अध्ययन करके हम अपने जीव के सार को समझ सकते है। श्रीमद्भागवत  गीता स्वयं श्रीकृष्ण के मुख से निकले हुए वचन है,जो असत्य नही हो सकते है, और मनुष्य के लिए गीता के माहात्म्य, गीता के अर्थ को जानना बहुत ही आवश्यक है।  गीता शास्त्रमिंद पुण्यं य: पठेत् प्रायत: पुमान्-यदि कोई भगवद्गीताके उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुखों तथा चिन्ताओं से मुक्त हो सकता है,भय शोकादिवर्जित:। वह इस जीवन में सारे भय से मुक्त हो जाएगा ओर उसका अगला जीवन आध्यात्मिक होगा (गीता माहात्म्य  प्रथम अध्याय )।

इससे पहले हमने श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय ,द्वितीय अध्याय , तृृतीय ,चतुर्थ अध्याय 
अर्थ, माहात्म्य, उपदेश, सुविचार तथा सार
 बताया है।
आइए हम आपके लिए गीता के अध्याय एक का माहात्म्य, अर्थ व सार लेकर आए है,जिसका आधार ग्रंथ स्वयं गीता ही है।आशा है आप इसके महत्व को अच्छी तरह समझने का प्रयास करेंगे।

श्रीमद्भगवद्गीता के पाँचवें अध्यायका माहात्म्य 
The greatness of the fifth chapter of Shrimad Bhagavad Gita

श्रीभगवान् कहते हैं - 
देवि ! अब सब लोगोंद्वारा सम्मानित पाँचवें अध्यायका माहात्म्य संक्षेपसे बतलाता हूँ , सावधान होकर सुनो । मद्रदेशमें पुरुकुत्सपुर नामक एक नगर है । उसमें पिङ्गल नामक एक ब्राह्मण रहता था । वह वेदपाठी ब्राह्मणोंके विख्यात वंशमें , जो सर्वथा निष्कलङ्क था , उत्पन्न हुआ था , किंतु अपने कुलके लिये उचित वेद शास्त्रोंके स्वाध्यायको छोड़कर ढोल आदि बजाते हुए उसने नाच - गानमें मन लगाया । गीत , नृत्य और बाजा बजानेकी कलामें परिश्रम करके पिङ्गलने बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली और उसीसे उसका राजभवनमें भी प्रवेश हो गया । अब वह राजाके साथ रहने लगा और परायी स्त्रियोंको बुला - बुलाकर उनका उपभोग करने लगा । स्त्रियोंके सिवा और कहीं उसका मन नहीं लगता था ।

 धीरे - धीरे अभिमान बढ़ जानेसे उच्छृङ्खल होकर वह एकान्तमें राजासे दूसरोंके दोष बतलाने लगा । पिङ्गलकी एक स्वी थी , जिसका नाम था अरुणा । वह नीच कुलमें उत्पन्न हुई थी और कामी पुरुषोंके साथ विहार करनेकी इच्छासे सदा उन्हींकी खोजमें धूमा करती थी । उसने पतिको अपने मार्गका कण्टक समझकर एक दिन आधी रातमें घरके भीतर ही उसका सिर काटकर मार डाला और उसकी लाशको जमीनमें गाड़ दिया । इस प्रकार प्राणोंसे वियुक्त होनेपर वह यमलोकमें पहुँचा और भीषण नरकोंका उपभोग करके निर्जन वनमें गिद्ध हुआ ।

अरुणा भी भगन्दर रोगसे अपने सुन्दर शरीरको त्यागकर घोर नरक भोगनेके पश्चात् उसी वनमें शुकी हुई । एक दिन वह दाना चुगनेकी इच्छासे इधर - उधर फुदक रही थी , इतने में ही उस गिद्धने पूर्व जन्मके वैरका स्मरण करके उसे अपने तीखे नखोंसे फाड़ डाला । शुकी घायल होकर पानीसे भरी हुई मनुष्यकी खोपड़ीमें गिरी । गिद्ध पुन : उसकी ओर झपटा ।

 इतने में ही जाल फैलानेवाले बहेलियोंने उसे भी बाणोंका निशाना बनाया । उसकी पूर्वजन्मकी पत्नी शुकी उस खोपड़ीके जलमें डूबकर प्राण त्याग चुकी थी । फिर वह क्रूर पक्षी भी उसीमें गिरकर डूब गया । तब यमराजके दूत उन दोनोंको यमराजके लोकमें ले गये । वहाँ अपने पूर्वकृत पापकर्मको याद करके दोनों ही भयभीत हो रहे थे । तदनन्तर यमराजने जब उनके घृणित कर्मोंपर दृष्टिपात किया , तब उन्हें मालूम हुआ कि मृत्युके समय अकस्मात् खोपड़ीके जलमें स्नान करनेसे इन दोनोंका पाप नष्ट हो चुका है । तब उन्होंने उन दोनोंको मनोवाञ्छित लोकमें जानेकी आज्ञा दी । यह सुनकर अपने पापको याद करते हुए वे दोनों बड़े विस्मयमें पड़े और पास जाकर धर्मराजके चरणों में प्रणाम करके पूछने लगे - ' भगवन् ! हम दोनोंने पूर्वजन्ममें अत्यन्त घृणित पापका संचय किया है । फिर हमें मनोवाञ्छित लोकोंमें भेजनेका क्या कारण है ? बताइये । '

यमराजने कहा –
गङ्गाके किनारे वट नामक एक उत्तम ब्रह्मज्ञानी रहते थे । वे एकान्तसेवी , ममतारहित , शान्त , विरक्त और किसीसे भी द्वेष न रखनेवाले थे । प्रतिदिन गीताके पाँचवें अध्यायका जप करना उनका सदाका नियम था । पाँचवें अध्यायको श्रवण कर लेनेपर महापापी पुरुष भी सनातन ब्रह्मका ज्ञान प्राप्त कर लेता है । उसी पुण्यके प्रभावसे शुद्धचित्त होकर उन्होंने अपने शरीरका परित्याग किया था । गीताके पाठसे जिनका शरीर निर्मल हो गया था , जो आत्मज्ञान प्राप्त कर चुके थे , उन्हीं महात्माकी खोपड़ीका जल पाकर तुम दोनों पवित्र हो गये हो । अतः अब तुम दोनों मनोवाञ्छित लोकोंको जाओ ; क्योंकि गीताके पाँचवें अध्यायके माहात्म्यसे तुम दोनों शुद्ध हो गये हो ।

श्रीभगवान् कहते हैं -
सबके प्रति समान भाव रखनेवाले धर्मराजके द्वारा इस प्रकार समझाये जानेपर वे दोनों बहुत प्रसन्न हुए और विमानपर बैठकर वैकुण्ठधामको चले गये ।


अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---


0 comments: