Thursday 23 July 2020

संपूर्ण श्रीमद्भगवतगीता /complete shrimad bhagwat in hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता के 18-अध्यायों का वर्णन Description of the complete 18-chapters of Srimad Bhagavad Gita

संपूर्ण श्रीमद्भगवतगीता /complete shrimad bhagwat in hindi
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता के 18-अध्यायों का वर्णन Description of the complete 18-chapters of Srimad Bhagavad Gita

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नमस्कार दोस्तों हम बात कर रहे है, श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। complete shrimad bhagwat in hindi और यह सम्पूर्ण गीता उपदेश पर आधारित है,जिसमें मनुष्य के लिए अथाह ज्ञान भरा हुआ है, यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है।18-chapters of Srimad Bhagavad Gita in hindi महाभारत के भीष्म पर्व के २५ से ४२ अध्याय की भगवद्गीता ७०० श्लोकों में पुनर्न है, समूचा ग्रन्थ अष्टादश अध्यायों में रचित है, प्रत्येक अध्याय एक एक योग है,याद रखिए आपके जीवन में कितना भी कोलाहल हो,या कष्ट क्यों न हो,या कितना भी संघर्ष हो - यह ज्ञान वंहा काम में आने के लिए है बहुत ही महत्वपूर्ण है। भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। complete shrimad bhagwat in hindi आपके लिए हम संक्षिप्त में सम्पूर्ण (18-अध्याय) का वर्णन कर रहें है।

👉इससे पहले हमने सम्पूर्ण गीता का अर्थ व सार सरल एवं भावप्रद शब्दों में लिखा है👎👎

श्रीमद्भगवद्गीता  प्रथम ,द्वितीय , तृृतीय ,चतुर्थ ,पञ्चम,षष्ठ,सप्तम् , अष्टम , नवम ,  दशम  एकादश ,द्वादश  , त्रयोदश,  चतुर्दश पञ्चदश , षोडष , सप्तदश ,अष्टादश अध्याय अर्थ, माहात्म्य, उपदेश, सुविचार तथा सार
 बताया है।
प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक (slokam) मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्राणी मात्र के लिए हैं,जो कि जीवन का आधार माना हैं। बिना ज्ञान और विद्या अर्जन के मानव जीवन दिशाहीन और भ्रमित जैसा लगता हैं।gyansadhna.com

आइए हम आपके लिए गीता के अध्याय एक का माहात्म्य, अर्थ व सार लेकर आए है,जिसका आधार ग्रंथ स्वयं गीता ही है।आशा है आप इसके महत्व को अच्छी तरह समझने का प्रयास करेंगे।


complete shrimad bhagwat in hindi

प्रथम अध्याय (First chapter)

अर्जुन-विषाद योग
इस अध्याय में कुल 47 श्लोकों द्वारा श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन की मन: स्थिति का वर्णन किया गया है, कि किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से डरते हैं,वे अपनों से द्वंद नही करना चाहते है, वह चाहते हैं कि किसी तरह से आपसी सन्धि हो सके,लेकिन भगवान कृष्ण उन्हें बार-बार समझाते हैं, यह कर्म भूमि है, मनुष्य का वास्तविक घर तो परम धाम है,यह संसार तो उसके लिए पल भर का खेल है, सब अपने यहीं छूट जाते है,लेकिन जो धर्म के अनुसार कर्म करता है वही उस मानव के साथ जाता है।लेकिन श्रीकृष्ण कहते है कि क्षेत्रीय का पर धर्म युद्ध ही है,छूप कर बैठना या अपनों के लिए शोक मनाना नहीं।

👉गीता के अध्याय-1 का माहात्म्य, अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

द्वितीय अध्याय (Chapter II)
सांख्य-योग
इस अध्याय मे कुल 72 श्लोक हैं, इस अध्याय में अर्जुन श्रीकृष्ण से अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करते हुए कहता है, कि मै उन पर बाणों की वर्षा कैसे करूं जो कि मेरे पूजनीय है,मेरे सगे सम्बन्धी है,आखिर लोग क्या कहेंगे कि राज-पाठ की लालसा से अपनों को ही आघात पहुंचाया। फिर श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, बुद्धि योग और आत्म का ज्ञान देते हैं। आखिर आत्मा को कौन मार सकता है,फिर यह शरीर तो नश्वर है,और यहाँ के मानव कुछ पल के साथी है। इसीलिए तुम्हारे लिए युद्ध करना ही उचित होगा, वास्तव में  यह अध्याय पूरी गीता का सारांश भी बताया गया है। इसे बेहद महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा दायक है।

👉 गीता के अध्याय-2 का माहात्म्य, अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

तृतीय अध्याय (Third chapter)
कर्मयोग
इस अध्याय को कर्मयोग माना गया है,जहाँ अर्जुन को कर्म करने के लिए उद्धत किया जाता है। इसमें 43 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि रणभूमी में परिणाम की चिंता तो कायर करते है,योद्धा कभी फल की कामना नहीं करते ,तुम तो एक माध्यम हो,करने वाला तो ईश्वर ही है। इसीलिए हमें सिर्फ कर्म करते रहना चाहिए।

👉 गीता के अध्याय -3 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

चतुर्थ अध्याय (Chapter four)
ज्ञान कर्म संन्यास योग
इस अध्याय में  है,कुल 42 श्लोक हैं।इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते है कि इस जगत में ज्ञान की ही पराकाष्ठा है और ज्ञान ही श्रेष्ठ है,और उससे भी अधिक गुरु की पराकाष्ठा है जो हमें प्रकाशमय करता है। अर्जुन को इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्मपारायण के संरक्षण और अधर्मी के विनाश के लिए गुरु का अत्यधिक महत्व है।अर्थात गुरू के बताए मार्ग का अनुसरण करना भी शिष्य का परम कर्तव्य है, इसीलिए तुम युद्ध के लिए तैयार हो जाओ ।

👉 गीता के अध्याय-4 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

पंचम अध्याय (Fifth chapter)
कर्म संन्यास योग
इस अध्याय में 29 श्लोक हैं। अर्जुन इसमें श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि कर्मयोग और ज्ञान योग दोनों में से उनके लिए कौन-सा उत्तम है।मन की भाव अभिव्यक्ति मनुष्य को बन्धन में बांध देती है,लेकिन उसका सच्चा ज्ञान ही उसका मार्गदर्शक होता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दोनों का लक्ष्य एक है परन्तु कर्म योग बेहतर है।क्योंकि कर्म करने से ही उसे सच्चे ज्ञान का अनुभव हो पाएगा।

👉 गीता के अध्याय -5 का माहात्म्य, अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

षष्ठ अध्याय (Sixth chapter)
आत्मसंयम योग
इस अध्याय में 47 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को अष्टांग योग के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं कि किस प्रकार मन की दुविधा को दूर किया जा सकता है।मन को एकाग्र कैसे किया जाता है,अन्तःकरण की शुद्धि से ही मन के द्वंद्व दूर होते है और हम कर्म के लिए उद्धत होते है, इसलिए लिए हे अर्जुन आप अपने विचलित मन को स्थिरता देने के लिए योग की सरण में जाओ जहाँ तुम्हारे हर सवालों का जवाब है।

👉 गीता के अध्याय -6 का माहात्म्य, अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

सप्तम अध्याय (Seventh chapter)
ज्ञानविज्ञान योग
इस अध्याय में 30 श्लोक हैं। इसमें कहा गया है कि यह संसार शाश्वत नहीं है,यहाँ कुछ भी अमर नहीँ है एक दिन सब नष्ट हो जाना है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निरपेक्ष वास्तविकता और उसके भ्रामक ऊर्जा +माया+ के बारे में बताते हुए कहते हैं,कि तुम किस चीज की चिंता करते हो यहाँ कोई किसी का नहीँ है।

👉 गीता के अध्याय -7 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

अष्टम अध्याय (Eighth chapter)
अक्षरब्रह्मयोग
इस अध्याय में 28 श्लोक हैं। इसमें  कहा गया है कि अक्षर ही ब्रह्म है,उसकी शक्ति से ही सब कुछ चलता है,इसलिए तू उस परमात्मा का चिंतन कर, इस पाठ में स्वर्ग और नरक का सिद्धांत शामिल भी कहा है। इसमें मृत्यु से पहले व्यक्ति को सोच, आध्यात्मिक संसार तथा नरक और स्वर्ग को जाने की राह के बारे में  बताया गया है।

👉 गीता के अध्याय -8 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

नवम अध्याय (Ninth chapter)
राजविद्याराजगुह्य योग
इस अध्याय में 34 श्लोक हैं। इसमें अर्जुन से कहा गया है कि तुम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानों और बताया है कि श्रीकृष्ण की आंतरिक ऊर्जा सृष्टि को व्याप्त बनाती है उसका सृजन करती है और पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देती है। जो कि आत्मा को मेरे में एकीभाव करके मेरे को ही प्राप्त होगा।

👉 गीता के अध्याय -9 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

दशम अध्याय (Tenth chapter)
विभूति योग
इस अध्याय में 42 श्लोक हैं। कृष्ण अर्जुन से कहते है कि मै ही इस सम्पूर्ण जगत माया को योगमाया के एक अंशमात्र से धारण करके स्थित हूँ, इसीलिए मेरे को ही तत्व से जानना चाहिए। श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि किस प्रकार सभी तत्वों और आध्यात्मिक अस्तित्व के अंत का कारण बनते हैं।जो कि उस परमात्मा से चिंन्हित है।

👉 गीता के अध्याय -10 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

एकादश अध्याय (XI chapter)
विश्वस्वरूपदर्शन योग
इस अध्याय में 55 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण कहथे है कि मुझमें  ही समस्त संसार समाहित है, अर्जुन के आग्रह पर ही श्रीकृष्ण अपना विश्वरूप धारण करते हैं। जिसे देख अर्जुन आश्चर्यचकित हो उठते है।

👉 गीता के अध्याय -11 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

द्वादश अध्याय (Chapter twelve)
भक्ति योग
इस अध्याय में 20 श्लोक हैं।श्रीकृष्ण कहते है कि भक्ति ही मुक्ति का एकमात्र द्वार है,और भगवद् भक्ति मे ही अथाह शक्ति समाहित है। इसके साथ ही वह भक्ति योग का वर्णन अर्जुन को सुनाते हैं।
👉 गीता के अध्याय -12 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

त्रयोदश अध्याय (Thirteen chapter)
क्षेत्र क्षत्रज्ञ विभाग योग
इस अध्याय में 34 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा विकार सहित प्रकृति से छूटने के उपाय को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, वे महात्माजन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते है।इस अध्याय मे श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान के बारे में तथा सत्व, रज और तम गुणों द्वारा अच्छी योनि में जन्म लेने का उपाय बताते हैं। जो समस्त प्राणियों के लिए मार्गदर्शक है।

👉 गीता के अध्याय -13 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

चतुर्दश अध्याय (Chapter fourteen)
गणत्रय विभाग योग
इस अध्याय में 27 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण कहते है कि उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत तथा नित्य धर्म का और अखण्ड एकरस आनन्द का मैं ही आश्रय हूँ,  इसमें श्रीकृष्ण सत्व, रज और तम गुणों का तथा मनुष्य की उत्तम, मध्यम अन्य गतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। अर्थात ब्रह्म, अमृत अव्यय और शाश्वत धर्म तथा एकान्तिक सुख ,यह सब मेरे ही नाम है, अंत में इन गुणों को पाने का उपाय और इसका फल बताया गया है। अर्थात इन सबका मै ही आश्रय हूं ।

👉 गीता के अध्याय -14 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

पञ्चदश अध्याय (Panchdash Chapter)
पुरुषोत्तम योग
इस अध्याय में 20 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष सर्व प्रकार से मेरा भजन करते हैं तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष मेरा उपहास करते हैं।

👉 गीता के अध्याय -15 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन 

षष्टदश अध्याय (Chapter sixteen)
दैवासुरसंपद्विभाग योग
इस अध्याय में 24 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को सम्बोधित करते हुए कहते है कि कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्थाओं में शास्त्र ही परमाण है,ऐसा तू शास्त्र विधि से नियत किये हुए कर्म को ही करने के योग्य है,तथा श्रीकृष्ण स्वाभाविक रीति से ही दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष के लक्षण के बारे में अर्जुन को बताते हैं।

👉 गीता के अध्याय -16  का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

सप्तदश अध्याय  (Seventeen chapter)
श्रद्धात्रय विभाग योग
इस अध्याय में 28 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि जो शास्त्र विधि का ज्ञान न होने से तथा अन्य कारणों से शास्त्र विधि छोडऩे पर भी यज्ञ, पूजा आदि शुभ कर्म तो श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें किस प्रयोजन अथवा नियोजन से कार्य करना उचित होगा अर्थात उनकी स्थिति क्या होती है। इसके बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है।

👉 गीता के अध्याय -17 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन

अष्टादश अध्याय (Eighteen Chapter)
मोक्ष-संन्यास योग
इस अध्याय में 78 श्लोक हैं। और यही अध्याय गीता का सार भी कहा गया है, क्योंकि श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण भगलान हैं और जहाँ गाण्डीव धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय ,विभूति और अचल नीति है। इसमें अर्जुन, श्रीकृष्ण से न्यास यानी ज्ञानयोग का और त्याग अर्थात फलासक्ति रहित कर्मयोग का तत्व जानने की इच्छा प्रकट करते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस रहस्य युक्त, कल्याणकारक और अद्भुत संवाद को सर्वयोगिक माना गया है जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा दायक है।

👉 गीता के अध्याय -18 का माहात्म्य,अर्थ एवं सार का विस्तृत वर्णन


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