Friday 28 August 2020

उत्तराखंड के 19 लोकप्रिय तीर्थ एवं पर्यटक स्थल /19 popular pilgrimage and tourist places of Uttarakhand सबसे अच्छी जगहें,धरती का स्वर्ग /Best places, heaven on earth

उत्तराखंड के 19 लोकप्रिय तीर्थ एवं पर्यटक स्थल /19 popular pilgrimage and tourist places of Uttarakhand सबसे अच्छी जगहें,धरती का स्वर्ग /Best places, heaven on earth

चंपावत, जागेश्वर, तेजम, दूनगिरी, मीलम, रानीखेत, लोहाघाट, सोमेश्वर, ऊटाधुरा, कफकोट, गंगोलीहाट, द्वारहाट, पिथोरागढ, मुनस्यारी, गुप्तकाशी, त्रिजुगीनारायण, लैंसडाउन, भैरोंघाटी, गोमुख Champawat, Jageshwar, Tejam, Doonagiri, Meelam, Ranikhet, Lohaghat, Someshwar, Ootadhura, Kafkot, Gangolihat, Dwarahat, Pithoragarh, Munsiyari, Guptkashi, Trijuginarayan, Lansdowne, Bhaironghati, Gomukh,tourist places of Uttarakhand in hindi,Best places, heaven on earth in hindi

दोस्तों पूरा भारत एक ऐसा स्थान है जहाँ अनेकों रहस्य, तथ्य एवं तीर्थ स्थल है जो विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है है। और उससे भी महत्वपूर्ण स्थान है,tourist places of Uttarakhand in hindi उत्तराखंड राज्य जो धरती का स्वर्ग भी माना जाता है।उत्तराखंड भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय स्थल है जहां हिल स्टेशन के साथ-साथ कई सारे तीर्थ स्थल भी हैं, और इसी राज्य से हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र और पावन मानी जाने वाली नदियों में से दो नदियां गंगा और यमुना का उद्गम स्थल भी है। Best places, heaven on earth in hindi उत्तराखंड में अनेकों पर्यटक स्थल भी है, जो सबका मन मोह लेता है, उत्तराखंड की धरती को देव भूमी भी कहा जाता है,क्योंकि यहाँ पग-पग पर देवी-देवता निवास करते है।tourist places of Uttarakhand in hindi यहां हर साल अलग-अलग जगहों से बहुत सारे पर्याटक घूमने आते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता अति लोकप्रिय है जो अपनी मासूमियत को दर्शाता है।

Best places, heaven on earth in hindi तो आइए आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड की उन 19 जगहों के बारे में उन तीर्थ स्थलों के बारे मे,उन पर्यटक स्थलों के बारे मे, उन प्राकृतिक सौन्दर्य के बारे में बताएंगे, जहां आप घूमने जा सकते हैं। tourist places of Uttarakhand in hindi और अपने परिवार के साथ खुशी के पलों को कैद कर सकते है।

1- चम्पावत (Champawat

ऊंचायी ५५४६ फुट , २ ९ ०.२० ' , ११ " x ८० ' ७८४ है । काली कुमांऊ परगने में अल्मोडा से ५४ मील दक्षिण - पूर्व चन्द राजाओं की यह पुरानी राजधानी थी । बाजार से नीचे पुराना किला ( कौटोलगढ ) अब भी कुछ अंश में मौजूद है किन्तु पुराने राजमहल ध्वस्त प्रायः यहां का वालेश्वर मन्दिर तथा वावडी भी दर्शनीय है । 

2- जागेश्वर (Jageshwar)

यह अल्मोडा , पिथोरागढ की सड़क पर अल्मोडा से १६ मील उत्तर की ओर है । कहावत है कि , “ देवता देखण जागेश्वर , गंगा नाणी वागेश्वर । ” यह कुमाऊं के उन तीर्थ स्थानों में है , जिनको मूर्तीभंजकों के हाथों से कम क्षति पहुंची । जागेश्वर कत्यूरी राजाओं के समय में भी प्रसिध्द था । जागेश्वर , मृत्युन्जय , दण्डेश्वर यहां के प्रसिध्द मन्दिर है । 

3- तेजम (Tejam)

अल्मोडा से ९ ८ मील पर जोहार परगने ( भोटान्त ) में यह गांव रामगंगा ( पूर्वी ) के बायें तट पर अवस्थित है । थल - पूर्वी रामगंगा के बायें तट पर अवस्थित यह गांव अपने अप्रैल के बड़े व्यापारी मेले के लिए प्रसिध्द है । जिसमें हजारों आदमी दूर से आतें है । यहां वालेश्वर का मन्दिर बहुत प्राचीन व प्रसिध्द है । 

4- दूनागिरी (Doonagiri)

द्वारहाट से ४-५ मील उत्तर - पूर्व यह एक उच्च पर्वत है । यहां द्वारहाट से लाया १०२ ९ ई . का एक शिलालेख है । यहां की देवी बडी प्रतिष्ठित मानी जाती है । यहां से लोहबा , बदरीनाथ और श्रीनगर के रास्ते जाते है ।

5- मीलम (Mealam)

११४०० फुट , ३००.२६ x ८००.९ ' भोटान्त के भोहार परगने का यह प्रधान ग्राम गौरी और गुनका नदियों के संगम पर बसा है । गांव और नदी के बीच खेतों की उर्वर - भूमि है । 

6- रानीखेत (Ranikhet)

५ ९ ८३ फुट , २ ९ ° , २ ९ ०.५० " x ७ ९ ° .२६ ' अल्मोडा की भांति रानीखेत भी पहाड की रीढ तथा उसकी अगल - बगल में बसा है । पहाड सारा बेज और चीड के वृक्षों से ढका पडा है । ६००० फुट की ऊंचायी तथा ५०.५२ इन्च वार्षिक वर्षा यहां के जलवायु को बहुत स्वास्थ्यकर और आनन्दप्रद बना देती है । 

7- लोहाघाट (Lohaghat)

५५१० फुट , २ ९ ०.४२ ' , २ ” x ८०० , ७'.८३ ” अल्मोडा से ३५ मील , पूर्व नेपाल सीमा से १५ मील तथा चम्पावत से ६ मील उत्तर यह पुराना गांव है । जो पहले सैनिक छावनी रह चुका है । इसके पास लोहावती नदी है । 

8- सोमेश्वर (Someshwar)

४७५२ फुट , २ ९ ०.४६ ' , ४० " x ७ ९ ० , ३८.५५ ” अल्मोडा से वागेश्वर जानेवाली मोटर रोड पर यह एक अच्छा बाजार है । यहां से एक रास्ता द्वारघाट ( माझखाती ) को दूसरा वागेश्वर तीसरा गणनाथ और तुकला होते हुए अल्मोडा गया है । यहां का मन्दिर काफी प्रतिष्ठित है ।

9- ऊटाधुरा (Scrumptious)

ऊचायी १७६०० फुट , ३० ° , ३५ x ८० ° .११ है । यह तिब्बत जाने का घाटा ( जोत ) अल्मोडा से १२० मील पर ( मिलम से उत्तर - पूर्व ) १७६०० फुट ऊंचा है । 1 जिस पर्वत रीढ पर यह जोत है वह गढवाल ( मल्ला - पैनखण्डा पट्टी ) की सीमा है । इसके एक ओर का पानी अलकनन्दा होकर बनारस की गंगा में जाता है और दूसरी ओर का काली या शारदा होकर अयोध्या की शरयू में जाता है । 

10- कपकोट (Cupcoat)

यह गांव अल्मोडा से ४० मील तथा वागेश्वर से १४ मील पर पिंडारी हिमानी के रास्ते में है । यहां डाक बंगला व दुकाने है । कपकोट से थोड़ी दूर पर खखगाड में तेजम और मुनस्यारी के रास्ते अलग है । 

11- गंगोलीहाट (Gangolihat)

ऊंचायी ५५८० फुट , अल्मोडा से ३४ उत्तर - पूर्व तथा पिथोरागढ से १८ मील पर यह गांव अवस्थित है । स्थानीय लोग इसे हाट ( नगरी ) कहतें है । रामगंगा ( पूर्वी ) उपत्यका के दोनों ओर के पहाड यहां देवदार के घने जंगलों से ढके है । यहां डाक बंगले के पास प्रसिध्द काली मन्दिर है । गंगोली इलाका पहले नागों के उपद्रव के लिए बहुत कुख्यात था ।

12- द्वारहाट (Dwarahat)

५०३१ फुट २० ° , ४६ ' x ४५ ” x ७ ९ .२६.८ ” अल्मोडा से २६ और रानीखेत से १४ मील की दूरी पर अवस्थित यह एक ऐतिहासिक और पुरातत्विक महत्व का स्थान है । लखनपुर और भाटकोटवाले कत्यूरी राजाओं की यह भी राजधानी रही थी । बदरीनाथ से जल्दी मोटर पक़डने वाले यात्री इसी रास्ते रानीखेत आतें है । यहां गुजर देव का मन्दिर १२ वी शताब्दी का है । इसका निम्न भाग ही अब बचा हुआ है , जिस पर बडी बारीकी से पाषाण मूर्तियां उत्कीर्ण है । 

13- पिथोरागढ़ (Pithoragarh)

५४६४ फुट , २ ९ ०.३५ ' x ८०'.१५ ' अल्मोडा से ५२ मील पूर्व शोर परगने में यह गांव अवस्थित है । यहां से १४ मील पूर्व की ओर काली नदी पर झूला पुल है । जहां से काली नदी पार कर नेपाल पहुंचा जाता है । किसी समय इसका सैनिक महत्व जिसके परिचायक लौहधाट छावनी , फोर्टलन्दन और बिल्कीगढ के दुर्ग अब भी उपेक्षित रूप में उपस्थित है । 

14- मुन्सियारी (Municiary)

जोहार परगने ( भोटान्त ) का एक गांव है । जहां से अल्मोडा ७५ मील की दूरी पर है । यहां की जलवायू नरम और स्वास्थ्यप्रद है । मीलम और मानसरोवर का मार्ग यहां से जाता है ।

15- गुप्तकाशी (Guptkashi)

गुप्तकाशी काफी बडी चटटी है और इसकी बडी मान्यता है । केदारनाथ पण्डे यहीं पर मिलतें है । यहां का शिव का मन्दिर यात्रियों के लिए बड़ा ही आकर्षण का केन्द्र है । उसमें विश्वनाथ का शिवलिंग है , दूसरे में पांडवों की मूर्तियां है , उसी प्रांगड में अर्द्धनारीश्वर का मन्दिर है । जिसकी मूर्ति बडी सुन्दर और भावपूर्ण है । यहां के मन्दिर केदारनाथ के रावल के अधीन है । केदारखण्ड में इस स्थान का नाम गूद्य वाराणसी है । शिव मन्दिर के सामने मणिकार्णिका नामक कुण्ड है । जिसमें गोमुखी में होकर दो जल धारायें निकलती है । लोगों का कहना है कि ये दोनों गंगा - यमुना की धारा है । जो सीधी गंगोत्री - यमनोत्री से आती है । समुद्रतल से गुप्तकाशी की ऊंचायी ४८५० फीट है । 

16- त्रिजुगीनारायण (Trijuginarayan)

यह स्थान बहुत बडा तीर्थ माना जाता है और हजारों यात्री यहां आतें है । लेकिन मेरी दृष्टि से इस स्थान का महत्व इसलिए है कि ९ ००० फीट की ऊंचायी पर होने के कारण वहां से चारों ओर बडे ही भव्य दृश्य दिखायी देते है । पौराणिक कथा है कि यहां शिव का विवाह हिमालय की कन्या पार्वती के साथ हुआ था । यहां छोटे - छोटे चार कुण्ड है । ब्रह्मकुण्ड , विष्णुकुण्ड , रूद्रकुण्ड और सरस्वती कुण्ड । इन कुण्डों में किसी में स्नान किया जाता है तो किसी का आचमन किया जाता है । कुण्डो में यात्रियों के स्नान करने से यहां पर काफी गन्दगी होती है । लोग बतातें है कि शंकर और पार्वती के विवाह के समय जो अग्नि प्रज्वलित की गयी थी , वही आज तक चालू रखी गयी है । धर्मपरायण भोले - भोले यात्रियों में यह कथा सुनकर बडी भक्ति भावना उत्पन्न होती है । मन्दिर के बाहर छोटे से प्रांगड में कई मन्दिर है । कुछ खण्डित मूर्तियां इधर - उधर रखी गयी है । इनमें कई मूर्तियां ग्यारहवीं - बारहवीं शताब्दी से भी ज्यादा पुरानी है । 

17- लैन्सडौंन (Lansdowne)

लैन्सडौन सन् १८८७ ई . में कालोकाडांडा नामक पर्वत पर जो परगना तल्ला सलाण पट्टी सीला में है । भारतवर्ष के बडे लाट लार्ड लैन्सडौंन के नाम से यह छावनी बसाई गयी थी । इसकी ऊंचाई समुद्रतट से ५,५०० फीट से ६,००० फीट तक है । इसका घिराव लगभग तीन मील से अधिक है । लैन्सडौन , कोटद्वार रेलवे स्टेशन से २५ मील दूर गाडी की सड़क पर है । नजीवाबाद कोटद्वार रेलवे लाइन इसको देश से मिलाती है । इसमें चीड और बांज का जंगल है । पूर्व दक्षिण की ओर बैरकें और परेड खेत है । उत्तर पश्चिम की ओर बाजार और फौजी दफ्तर और गिरजाघर है । पर्वत के सिरों पर आफीसरों के बंगले है । सदर बाजार दक्षिण की तरफ है । उसी की तरफ डिप्टी कलेक्टर का मकान व कचहरी है । यह लैन्सडौन के दक्षिणी सब डिविजनल आफिसर का मुख्यालय है । उसके ऊपर क्लब घर , डाक - बंगला , महकमा तामीर का बंगला है । जंगलात के गंगा डिविजन के डिप्टी कन्सरवेटर का मुख्यालय भी लैन्सडौन में है । यहां गढवाली और गोर्खाओं की अलग -अलग पलटनें रहती है । अर्थात एक पलटन गोरखा , तीन पलटन गढवाली रहती है । यहां से हिमालय का अच्छा दृश्य दिखाई देता है ।

18- भैरोंघाटी (Bhaironghati)

जांगला से लगभग ४ कीलोमीटर की दूरी पर यह घाटी है । यहां भैरव का मन्दिर और कालीकमली का धर्मशाला है । गढवाल - मण्डल विकास निगम का ८ शय्याओं वाला पर्यटक विश्राम गृह है । भैरोघाटी समुद्रतल से ९ ५०० फीट की ऊंचायी पर है । यहां का दृश्य भयंकर व रोमांचकारी है । यहां पर एशिया का सबसे ऊंची खाई पर बना पुल है । यह घाटि बहुत ही शंकरी है । भैरोघाटी से ४ कीलोमीटर का रास्ता तय करके पुण्य धाम गंगोत्री के दर्शन होतें है । 

19- गोमुख (Gomukh

गोमुख अर्थात गंगाजी का उद्गम स्थल है । गंगोत्री से गोमुख की दूरी गढवाल मण्डल विकास निगम के एक मानचित्र में २२ कीमी दिखायी गयी है , जबकि सर्वे ऑफ इन्डिया के एक नक्शे में इसकी दूरी १७ कीलोमीटर दिखायी गयी है । जो भी हो यह काफी कठीन यात्रा है । अधिकतर यात्री गंगोत्री में ही स्थान कर वापस लौट जातें है । गोमुख कोई विरला यात्री ही जा पाता है । गंगोत्री से गंगाजी को पार कर बायें तट से होकर गोमुख जाना पडता है । गंगोत्री गोमुख क्षेत्र ७८२-५५ ' से ७ ९०-१० पूर्वी देशान्तर से ३००-५० से ३१०-१ ' उत्तरी अक्षांस पर स्थित है ।


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