Friday 4 September 2020

International Senior Citizen's Day in hindi /बुजुर्गों के साथ बडता भेदभाव /Elder discrimination with the elderly आखिर क्यों बिगड रही है माँ-बाप व बुजुर्गों दशा/After all, why is the condition of parents and elders deteriorating

International Senior Citizen's Day in hindi /बुजुर्गों के साथ बडता भेदभाव /Elder discrimination with the elderly आखिर क्यों बिगड रही है माँ-बाप व बुजुर्गों दशा/After all, why is the condition of parents and elders deteriorating

विषय सूची 

1-बुजुर्गों के प्रति हमारी मानसिकता

Our mentality towards the elderly in hindi 

2- शास्त्रों के अनुसार /According to the scriptures in hindi 

3-किन कारणों से टूट रहै खून के रिश्ते /What causes blood relations to break down in hindi 

दोस्तों आज हम बुजुर्गों पर लेख लेकर आए है अंतराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस पर जो कि वरिष्ठ नागरिकों (बुजुर्गों) के हित व अहित को देखते हुए बनायी है। आज दुनिया की स्थिति इतनी खराब हो गयी है ,आज भावनाओं में इतना बदलाव आ गया है कि, हम अपने पूर्वजों, बुजुर्गों, वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान नही कर रहे है। International Senior Citizen's Day in hindi और यह कार्य शुरू हो रहा है घर से,क्योंकि आज बुजुर्ग अपने ही घर में अपने बच्चों के साथ खुश नही है,सुरक्षित नहीं है। आजकल के बच्चे अपने माता-पिता को मानसिक, शारीरिक व भावात्मक रूप से कमजोर बनाता जा रहै। 

अगर बात करे भारत की तो हेल्पेज इन्टरनेशनल नेटवर्क ऑफ चैरिटी Helpage International Network of Charity in hindi के द्वारा तैयार किया गया ग्लोब एण्ड वाॅच इंडेक्स Globe and watch index in hindi 2015 में 96 देशों बुजुर्गों की स्थिति में भारत 71 वें स्थान पर है।  हम कहते है की भारत भावात्मक रूप से सशक्त है, क्योंकि यहाँ भावनाओं की कद्र की जाती है ,लेकिन सर्वेक्षण विभाग के अनुसार भारत बुजुर्गों के प्रति सबसे खराब और कमजोर देश है। 

बुजुर्गों के प्रति हमारी मानसिकता/ Our mentality towards the elderly

क्या यही हमारी मानसिकता रह गयी है, क्या हम अपने माता-पिता के कष्टों को भूल गये है?क्या हमें यह मालूम नही है कि हमे भी ये दिन देखने पढ सकते है।  अगर पता है तो फिर हम अपनी ढपली क्यों बजाते फिरते है कि (मातृ देवो भवः , पितृ देवो भवः) क्या ये वाक्य सिर्फ दीवारों पर चिपकाने के लिए बने है, या फिर ये वाक्य इतने महान है कि इन्हें वास्तविक जीवन में उतारने की इजाजत नहीं है।   क्या आज मानव इतना स्वाथी हो गया है कि अब उसे माता-पिता की आवश्यकता नहीं है, क्या उन बच्चों की अपने बूढे माता-पिता के प्रति कोई जिम्मेदारी नही है। क्या हम (वसुधैव कुटुंबकम्) की भावना को भूल गये है। क्या हम दूसरे देशों के रीती रिवाजों को अपनाने के लिए मजबर हो गये है।

शास्त्रों के अनुसार /According to the scriptures

जीवन का आधार है कि मनुष्य पर जो भी उपकार करे , उसके प्रति कृतज्ञ होना उसका परम कर्तव्य है । वैसे तो जीवन में हम पर अनेक लोग उपकार करते हैं,क्योंकि हम सामाजिक प्राणी है। परन्तु सबसे अधिक उपकार माता - पिता करते हैं इस विषय में हिन्दू धर्मशास्त्र ( मनुस्मृति ) का वचन है -- 

' यन्मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम् । 

न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुवर्षशतैरपि ।। 

यानी बालक को जन्म देने में जो क्लेश,दुख,कष्ट माता - पिता सहते हैं , उसका बदला माता - पिता के प्रति सौ वर्ष तक उपकार करने से भी नहीं हो सकता। यानी बेटा हमेशा माँ-बाप के एहसानमंद होकर भी उन्हें दर-बदर की ठोकरे खाने को मजबूर करते है। सचमुच जन्म के समय तथा बाद में सनतान का लालन - पालन करने में माता - पिता बहुत कष्ट उठाते हैं। अपनी इच्छाओं को दबाना पढता है,खुद भूखा रहना पढता है, वे लोग अपने सुख की तनिक भी चिन्ता नहीं करते सन्तान को हर प्रकार से सुखी रखते हैं। यदि माता - पिता इतनी देखभाल न करें तो बालक का जीवित रहना असम्भव हो जाय । इसलिए माता - पिता का इतना भारी उपकार है कि यदि सौ वर्ष तक उनकी खूब सेवा की जाय , तो भी उसका बदला नहीं हो सकता ।

किन कारणों से टूट रहै खून के रिश्ते /What causes blood relations to break down

मानव ने अपना जीवन इसकदर बना लिया है कि,मानो वह आदमी नही मशीन हो,और मनीन में न भाव होते है और न ही संवेदनशीलता । जीवन की भागदौड़ में बुजुर्गों की उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है। भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था का चरमराना बुजुर्गों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। आज हम पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे है,हम मदर्स डे-फादर्स-डे डे मना रहे है,जो हमारे लिए नही है। वो प्रचलन तो विदेशो में चलता है जां बच्चों को बडा होते ही अलग-अलग कर दिया जाता था। और फिर साल में वे मदर्स डे-फादर्स-डे पर मिलने आते थे। लेकिन हमारे यहाँ तो पारिवारिक रिवाज है सब साथ रहते है। हर समय माता पिता से बात होती है, फिर भी हम उनकी ही संस्कृति को अपना रहे है,और नतीजा की हम अपनी ही संस्कृति को भूल चुके है। 

जब बात बुजुर्गों के हक की आयी तो एक सर्वे में शामिल 64 फीसदी बुजुर्गों का मानना है कि उम्र या सुस्त होने की वजह से लोग उनसे रुखेपन से बात करते हैं, मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला का कहना है कि बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार के मुख्य कारणों में समय का अभाव और एकल परिवार है। जिससे अब न तो बच्चे बूढो में intrest ले पा रहे है और ना ही उनकी पत्नियां। सर्वेक्षण रिपोर्ट 'भारतीय समाज अपने बुजुर्गों के साथ कैसे व्यवहार करता है', को जारी करने के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा कि भावनात्मक कमी को पूरा करने युवा समय नहीं निकालते,हम उनकी भावनाओं को समझ ही नही पा रहे है। वे दुख का घूंट अन्दर ही अन्दर पिये जा रहे है।


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