Tuesday 1 September 2020

in Uttrakhand G.K /उत्तराखंड के प्रसिद्ध पञ्चकेदार जो है मान्यताओं एवं आस्था का केन्द्र /Famous Panch Kedar of Uttarakhand which is the center of beliefs and faith

in Uttrakhand G.K /उत्तराखंड के प्रसिद्ध पञ्चकेदार जो है मान्यताओं एवं आस्था का केन्द्र /Famous Panch Kedar of Uttarakhand which is the center of beliefs and faith

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दोस्तों उत्तराखंड देव भूमि मानी गयी है। और यहाँ जगह-जगह पर देवी देवताओं का वास है। यहां  बसते है पंच केदार जहाँ भगवान शिव से सम्बन्धित पाँच प्रसिद्ध मन्दिरों को कहा जाता है। Panch Kedar Tungnath in hindi इन मन्दिरों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। शिव ही सृष्टि के कर्ता धर्ता माने गये है। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित ‘पंच-केदार’ भगवान शिव को समर्पित पाँच पवित्र जगहें हैं। Panch Kedar Badrinath in hindi इन तीर्थ स्थलों में केदारनाथ 3,583 मीटर ऊँचा है, तुंगनाथ 3,680 मीटर ऊँचा है, रूद्रनाथ 2,286 मीटर ऊँचा है, मदमहेश्वर 3,490 मीटर ऊँचा है, और कल्पेश्वर 2,200 मीटर ऊँचा शामिल है।Panch Kedar Madmaheshwar in hindi

उत्तराखंड के गढ़वाल में प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है जो अलौकिक सुन्दरता को अपने गर्भ में छिपाए हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले और अडिग विश्वास के प्रतीक Panch Kedar Kalpeshwar in hindi केदारनाथ और अन्य चार पीठों को 'पंच केदार' के नाम से जाना जाता है। सभी भक्त एवं श्रद्धालु यहाँ अपनी मुरादें पूरी करने के लिए आते है। यहां तक की विदेशी सैलानियों का भी उत्तराखंड दर्शन का प्रमुख केन्द्र रहा है।Panch Kedar Rudranath in hindi 

1- तुंगनाथ - Tungnath

३७५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मन्दिर चंद्रशिला शिखर पर है । यहां से नन्दादेवी , नीलकण्ठ , केदार नाथ और बन्दर पुंछ वगैरा की ऊंची पर्वतमालाओं का दृश्य दिखाई देता है । शिवलिंग श्याम - पाषाण का है । तुंगनाथ के विषय में धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि अपने जीवनकाल में जो व्यक्ति एक बार भी तुंगनाथ के दर्शन करता है , मृत्युपरांत वह अच्छी गति को प्राप्त होता है । सप्त ऋषियों ने उच्च पद की प्राप्ति के लिए आदि काल में यहां घोर तपस्या की थी । सत्यभाव से गणों द्वारा आराधना करने से इस पर्वत को सत्यतारा भी कहा जाता है । शिव ने अपने गणों पर प्रसन्न होकर उन्हें तुंग पद दिया । जिस लिंग की उन्होंने आराधना की उसे तुंगनाथ कहा गया । 

एक अन्य प्रसंग के अनुसार महाविद्वान धर्मदत्त - ब्राह्मण का पुत्र कर्मशर्मा जब गलत संगत में पड कर धर्म विरूध्द आचरण करने लगा तो उसके पिता और ग्रामवासियों ने उसे गांव से निष्कासित कर दिया । निर्जन स्थान पर निवास करते हुए उसे एक दिन बाघ ने अपना शिकार बना लिया । जब उसके कंकाल से एक कौआ मांसयुक्त हड्डी लेकर गया , तो वह हड्डी तुंग क्षेत्र में गिर गयी । उधर कर्मशर्मा की आत्मा को यमपुरी ले जा रहे यमदूतों से शिवगणों ने छीन लिया , जिस कारण उसकी आत्मा शिवधाम पहुंच गयी कहते है कि दूसरे जन्म में यही कर्मशर्मा धर्मचारी राजा बनें । 

तुंगनाथ में भगवान शंकर की भुजाओं की पूजा होती है । मन्दिर का पट बन्द होने पर तुंगनाथ की पूजा मक्कूमठ में की जाती है । कहा जाता है कि जो भक्तिपूर्वक तुंगनाथ का पूजन कर दक्षिणा देता है , वह हजारों वर्षों तक दरिद्र नहीं होता और वह करोड कल्पों तक शिवलोक में वास करता है । जो कोई मानव तुंगनाथ क्षेत्र में भक्ति से प्राणों का त्याग करता है । उसकी हड्डियां जितने दिनों तक उस क्षेत्र में रहती है , उतने हजार युगों तक वह शिवलोक में पूजित होता है ।

2- केदारनाथ - kedarnath

केदारनाथ ज्योर्तिलिंगों में से एक है यह गढवाल जिले के पट्टी मल्ला कालीकाट में मध्य हिमालय में समुद्रतल से ११७५२ फीट की ऊंचाई पर व पृथ्वी के अक्षांस ३० ° ४४ ' - १५ " देशान्तर ७ ९०-६ ' - ३३ " पर भगवान शिव ग्यारहवें ज्योतिलिंग केदार नाथ धाम चारों ओर हिमावृत पर्वतों के मध्ये में थोडी समतल भूमि पर यह बडा रमणीक स्थान है।

3- मदमहेश्वर/Madmaheshwar

पंचकेदारों में मदमहेश्वर को द्वितीय केदार माना जाता है । यह समुद्रतट से ३२८ ९ मीटर की ऊंचाई पर है । पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस पवित्र तीर्थ में पिण्ड दान करता है , अपने पित्तरों की नई पीढियों का तारण कर देता है । कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां अपनी मधुचन्द्र रात्री मनाई थी । यहां शिव की नाभि की आकृति का शिवलिंग स्थापित है । इसकी पूजा मदमहेश्वर में होती है । मन्दिर के पुजारी की नियुक्ति केदार नाथ का रावल करता है । इस पावन तीर्थ के निकट सरस्वती का उद्गम स्थल भी बताया गया है । 

सरस्वती कुंण्ड में स्नान - तर्पण और गोदान का बडा महत्व है । मदमहेश्वर के धार्मिक महत्व का उल्लेख स्कन्द पुराण के ४७ व ४८ वें अध्याय में मिलता है , जिसमें कहा गया है कि - 

“ अध्यमेश्वर क्षेत्राहिं गोपितं भुवन त्रय । 

तस्य वै दर्शनान्यौँ नाम पृष्टि बसवत्सदा ।। " 

नि : सन्तान दम्पत्ति अगर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए सच्ची भावना से नियमपूर्वक मदमहेश्वर में रात्री जागरण कर शिव की आराधना करते है तो उन्हें निश्चित रूप से सन्तान की प्राप्ति होती है । यहां से लगभग आधा कीलोमीटर की दूरी पर बृध्द मदमहेश्वर का पौराणिक मन्दिर है । मदमहेश्वर मन्दिर से दो कीलोमीटर की दूरी पर स्थित घौला क्षेत्रपाल नामक गुफा में भी श्रध्दालु पूजा - अर्चना के लिए जाते है ।

4- कल्पेश्वर / Kalpeshwar

२१३४ मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मन्दिर में वर्ष भर भगवान शिव की पूजा होती है । यहां देवराज इन्द्र ने दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना की और कल्पतरू प्राप्त किया था । परिणामत : वह पुन : श्रीयुक्त हुऐ । तभी से शिव इस स्थान पर कल्पेश्वर नाम से विख्यात हुऐ । यहां भगवान शिव की जटाओं की पूजा होती है । जो व्यक्ति यहां भगवान भोलेनाथ की विधिपूर्वक पूजा - अर्चना करतें है , उसे जन्म - जन्मान्तरों के पापों से मुक्ति मिल जाती है ।

5- रूद्रनाथ - Rudranath

अंधक नामक दैत्य ने सभी लोकपाल और देवराज इन्द्र को भी पराजित कर जब अमरावती को भी जीत लिया था , तो देवता पृथ्वी पर भटकने लगे , देवताओं ने यहां भगवान शिव की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया । रूद्रनाथ का मन्दिर गुफा रूप में है । कहा जाता है कि भगवान शिव अन्धकासुर का वध करने के उपरांत पार्वतीजी सहित यहीं निवास करते थे । रुद्रनाथ मन्दिर में भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। पूजा यहाँ ग्रीष्म काल में होती है। नवम्बर से मई जून तक मूर्ति गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मन्दिर में रहती है।


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