Sunday 6 September 2020

festivals of Uttarakhand /उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार व मेले/Major festivals and fairs of Uttarakhand उत्तराखंड के पारम्पारिक मेलों का महत्व /Importance of traditional fairs of Uttarakhand

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दोस्तों हम ही नही पूरा विश्व भारत की तारीफ करता है और उसे अपनी संस्कृति मे ढालने की कोशिश करता है। festivals of Uttarakhand in hindi और उसी देश का अहम हिस्सा है उत्तराखंड जहाँ की संस्कृति और सभ्यता अतलनीय है, जो यहाँ की संस्कृति यहाँ के मेलों में समाहित है। धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण इस अंचल में मनाये जाने वाले उत्सवों का स्वरुप बेहद कलात्मक होता है। जिसमें प्रेम,सौहार्द, ममता,अपनत्व, देखने को मिलता है। traditional fairs of Uttarakhand in hindi यहाँ छोटे-बड़े सभी पर्वों,का आयोजनों और मेलों पर शिल्प की किसी न किसी विद्या का दर्शन अवश्य होता है। यह उत्तराखंड देवभूमी है और यहाँ  कुछ मेले देवताओं के सम्मान में आयोजित होते हैं, और कुछ व्यापारिक दृष्टि से अपना महत्व रखते हुए भी धार्मिक पक्ष को पुष्ट अवश्य करते है। उत्तराखंड की संस्कृति अनेकों परम्पराओं की घोतक है, जिनमें यहाँ का लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत, लोक वाद्य यंत्र, महत्वपूर्ण आभूषण,  एवं परम्पराओं की भागीदारी सुनिश्चित होती है। festivals of Uttarakhand in hindi लोग उत्तराखंड की संस्कृति और प्रकृति को देखने के लिए दूर-दूर से आते है, क्योंकि यहा पग-पग पर पेरेम भसता है और ईश्वर हर रूप में उसमें निवास करते है।traditional fairs of Uttarakhand in hindi 

तो आइये हम श्रद्धा और विश्वास के साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति का मंथन करते है,और यहाँ होने वाले प्रमुख मेलों का आनंद लेते है।

उत्तराखंड के पारम्पारिक मेलों का महत्व /Importance of traditional fairs of Uttarakhand

सांस्कृतिक एवं आध्यामिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड समस्त विश्व का आदिकाल से ज्ञान गुरु रहा है । पावन माँ गंगा और यमुना के तट पर वेदो की ऋचाओं का गुंजन इसी धरती पर हुआ , इसलिए यहाँ के जीवन में धार्मिक भावना का बड़ा महत्व है , यहाँ की धार्मिक आस्था व सांस्कृतिक वातावरण के कारण संस्कृति का स्वरूप भी अपनी अलग अलग पहचान रखता है । इस दृष्टि से यहाँ के मेलों का भी अपना एक अलग सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्व है , भारतीय संस्कृति के मूल में अंतर्निहित आदर्शों तथा परम्परागत जीवन मूल्यों की झलक इन मेलों में देखने को मिलती है , उत्तराँचल में प्राय : अधिकांश पर्वत शिखरों पर देवी के मंदिरों और गहरी घाटियों में शिवालय स्थापित है , इन स्थानों पर पवित्र तिथियों को पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं । और मेले लगते हैं । उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय कुल देवता भी हैं , जिनके मन्दिर ( चौंरी ) गाँवों में ही स्थापित हैं । विभिन्न धार्मिक पर्व व त्यौहारों के दिन भी इन मन्दिरों में मेले लगते हैं । किन्तु जो मेले वृहत रूप से मनाये जाते हैं और जो सांस्कृतिक , धार्मिक व व्यापारिक दृष्टि से भी प्रमुख है।

कुछ मुख्य मेले इस प्रकार -

1- श्रावण मेला -जागेश्वर/Shravan Mela -Jageshwar

 उत्तराखंड राज्य के अल्मोडा जिले से ३८ किमी . की दूरी पर स्थित जागेश्वर खूबसूरत जटगंगा वैली में आता है । यह भारत की बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है , यहाँ पर एक सौ चौबीस मन्दिरों का समूह है , जागेश्वर में स्वयंभू लिंग है । जिसे नागेश कहा जाता है । यहाँ पर शिवरात्री के दिन और सावन के महीने में ( जुलाई , अगस्त ) धार्मिक महत्व का विशाल मेला लगता है । 

2- उत्तरायणी मेला-वागेश्वर/Uttarayani Mela-Vageshwar

 उत्तराखंड के वागेश्वर जिले के वागेश्वर धाम उत्तराखंड का काशी भी माना गया है । प्रत्येक वर्ष उत्तरायणी के पर्व पर यहाँ पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्रों से असंख्य श्रद्धालु व भक्तगण पधारते हैं , हर्षोल्लाष के साथ सभी अपनी मनतें पूरी करने के लिए यहाँ आते है। जिला वागेश्वर के शिव मन्दिर में लगने वाला उत्तरायणी मेला उत्तराखंड के महाकुंभ के समान है । जो एक आस्था व परम्परा का पर्व माना जाता है।

3- नंदा देवी मेला-नैनीताल /Nanda Devi Fair-Nainital

उत्तराखंड का प्रसिद्ध मेला माता नन्दा देवी का मेला पर्वतीय क्षेत्र में भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है । यह मेला मल्लीताल , नैनीताल में नन्दा देवी के मन्दिर में हर साल सितम्बर मास में मनाया जाता है , इस वर्ष नन्दा देवी की सौ वीं जन्म शताब्दी मनाई गयी और भारी संख्या में धार्मिक महत्व के इस मेले में लोगों ने हिस्सा लिया और मेले के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये । 

4- झण्डा मेला-देहरादून /Flag Fair - Dehradun

 यह बहुप्रसिद्ध मेला देहरादून के झण्डा मोहल्ले में लगता है इसी मेले के कारण यहाँ का नाम झण्डावाला मोहल्ला पडा है । इस मेले में देश - विदेश के प्रकृति प्रेमी जो उत्तराँचल भ्रमण पर आते हैं , अपने आने का कार्यक्रम बनाते हैं और इसका भरपूर आनन्द उठाते हैं । यह जग प्रसिद्ध मेला प्रतिवर्ष झण्डारोहण व मेला गुरुरामराय के देहरादून आगमन को स्मृति में लगता है । गुरु के जन्म दिन चैत्रपदि पंचमी ( होली के पाँचवे दिन ) से मेला प्रारम्भ होकर लगभग १५ दिनों तक चलता है । 

5-  नागराजा मेला- सेम-मुखेम/Nagaraja Fair - Sem-Mukhem

 सेम-मुखेम उत्तराखंड का पांचवां धाम भी माना जाता है। यह टिहरी गढ़वाल के रमोली पट्टी में सेम गांव के नजदीक है। यह मुख्य बाजार लम्बगांव से 30 कीमी आगे है। यहाँ हर साल प्रसिद्ध मेला यानी इसे जात भी कहते हैं मनाया जाता है । यह ज्ञात नहीं है कि इसकी शुरुआत कब से हुई है। सेम गांव से थोड़ी दूर पर शतरंज नामक स्थान पर नागराजा का मंदिर है जो टकनौरी (सैलाणी) आते हैं। तो सबसे पहले वे शतरंजू में देवता के दर्शन करते हुए जाते हैं और उसके बाद वह नीचे मडबागी नामक स्थान पर आते हैं। जहां पर बहुत बड़ा तप्पड़ यानि (मैदान) है वहीं पर बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं और अपने चिर परिचित लोगों से मिलते हैं जो कि मेले के रूप में परिवर्तित हो जाता है नागराजा के पुजारी रमोला जाति के ही लोग होते हैं और इसका अवतार्य भी मुखेम के रमोला जाति के लोग ही होते हैं।

6- वसन्त मेला-ऋषिकेश/Vasant Mela-Rishikesh

भरत मन्दिर ऋषिकेश में वसन्त पंचमी को यह मेला आयोजित होता है । इस मेले में भरत जी की डोली निकाली जाती है , वसंत मेला माडू सिद्ध में भी आयोजित होता है ।

7-  दशहरा मेला /Dussehra Fair

वैसे तो विश्व में ऐसी कोई सभ्यता नहीं जहाँ पर पर्वो की परम्परा न रही हो , लेकिन भारत वर्ष में अनुष्ठानों को जीवन की निरन्तरता से जोड़ कर देखा जाता है , तथा उत्सवों को जिन्दगी का अभिन्न अंग माना जाता है , देव - भूमि उत्तराँचल में मनाये जाने वाले प्रत्येक पर्व की पृष्ठभूमि से कोई न कोई पौराणिक तथ्य या कथा जुडी हुई है । जिस प्रकार ‘ दीपावली ' सम्पन्नता और प्रकाश का , “ शिवरात्री ' परमात्मा के अवतरण का प्रतीक है , ' रक्षाबन्धन ' सम्बन्धों में पवित्रता के सम्बन्ध में देखा जाता है , ठीक इसी प्रकार ‘ दशहरा ' सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक माना जाता है । दशहरा मेला देहरादून के परेड ग्राऊण्ड में तथा ऋषिकेश में त्रिवेणीघाट में आयोजित होता है , मेले में रावण एवं कुम्भकर्ण के पुतले भी फूंके जाते हैं ।

8- बिखौंती मेला-द्वारहाट /Bachhanti Mela-Dwarahat

 चैत्रमास की समाप्ति तथा वैशाख मास का प्रारम्भ जिस दिन से होता है , उसी संक्रान्ति से त्यौहार शुरु होता है । यह पर्व चार दिन तक बडे धूमधाम से मनाया जाता है , विखौती पर्व पर उत्तराँचल में अनेक स्थानों पर मेलों का आयोजन होता है , इन सभी मेलों में द्वारहाट में होने वाले साल्दे बिखौती मेला बडे महत्व का है , कुमाऊं में इस महीने को भिटोली का महीना भी कहा जाता है ।

9- देवीधूरा मेला-चंपावत/  Devidhura Mela-Champawat

यह मेला हर साल रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा में बाराही मन्दिर में मनाया जाता है , इस मेले की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें दो गुट मन्दिर के सामने एक - दूसरे पर पत्थर से प्रहार करते है । इस दौरान वे अपने को एक ढाल से बचाने का प्रयास करते हैं । हजारों दर्शक इस दृश्य को देखते हैं । पुजारी के आगमन पर ही दोनों गुट लडाई बन्द कर देते है और एक दूसरे को सान्त्वना देते हैं । यह स्थान पिथौरागढ से ७६ किमी . की दूरी पर स्थित है ।

10- विस्सू मेला-चकराता /vissoo mela-chakaraata

जिला देहरादून के चकराता ब्लाक में यह मेला जौनसारी रीति - रिवाजों को दर्शाता है । जिस दिन से चैत्र मास की सम्पत्ति तथा वैसाख मास का समाप्ति होता है , उसी संक्रान्ति से विस्सू त्यौहार शुरु होता है । यह पर्व चार दिनों तक बडी धूम - धाम से मनाया जाता है , जिसमें सभी लोग दूरस्थ क्षेत्रों में कार्य करने वाले इस त्यौहार को अपने परिवार के साथ में मनाते हैं ।

11- कैंलापीर मेला - बूढाकेदार /kainlaapeer mela- boodhaakedaar

यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक की दीवाली के ठीक एक महीने बाद मार्गशीर्ष शुक्ली प्रतिपदा को लगता है , दो दिन पहले चतुर्दशी और आमावस्य को दीपावली ( रिख बग्वाल ) मनाकर प्रतिपदा के दिन गुरु कैलापीर देवता का नेजा ( झण्डी ) बाहर निकाला जाता है और यह मेला तीन दिनों तक चलता है , जिसमें बहुत दूर - दूर से लोग आते हैं । इसके बारे में कहा जाता है कि जब माधो सिंह भण्डारी युद्ध क्षेत्र में थे तो क्षेत्र की जनता कार्तिक की दिवाली नहीं मना पाये ठीक एक माह बाद युद्ध क्षेत्र से विजयी होकर लौटे भण्डारी ने इस दीपावली व मेले का आयोजन किया , तभी से यह मेला प्रारम्भ हो गया , किन्तु आज मेला अपने पौराणिक स्वरूप को खोता जा रहा है । क्योंकि क्षेत्र के बुद्धिजीवी व नौजवान अपनी इस मेले संस्कृति को स्वीकारने में कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं । जबकि इसको आधुनिक स्वरुप दिया जाये बहुत लोग इससे लाभान्वित भी हो सकते हैं और अपनी इस संस्कृति को बचाया भी तो जा सकता है ।

12- सुरकण्डा देवी मेला- टिहरी /Surkanda Devi Fair - Tehri

यह मेला गंगा दशहरा के दिन मनाया जाता है , स्थान पर्यटन नगरी मसूरी से ३३ कि.मी. की दूरी पर है , यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है । देवी माँ की पूजा यहाँ का मुख्य आकर्षण है , मेले के समय यहाँ पर लोकगीत , लोकनृत्य व पारम्पारिक हस्तशिल्प भी प्रदर्शित किये जाते हैं ।


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