Wednesday 9 September 2020

दीपावली एवं महालक्ष्मी की कथा पूजन विधि तथा विधान /Story of Diwali and Mahalakshmi Pujan Law and Legislation

दीपावली एवं महालक्ष्मी की कथा   पूजन विधि तथा विधान /Story of Diwali and Mahalakshmi Pujan Law and Legislation

दोस्तों भारत पर्वों तथा त्यौहारों का देश कहा जाता है ,यहाँ हर त्यौहार का अपना महत्व है,और लोग हर त्यौहार को बडे धूमधाम से मनाते है लेकिन उनमें दीपावली Deepawali pooja in hindi का अपना महत्व है, यह लगभग पूरे देश व इसके अनुयायी जो भी हैं उनका प्रमुख त्यौहार है।पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसारा इस दिन भगवान शिव शंकर धरती पर आए थे, मान्‍यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima in hindi) के दिन ही महादेव ने त्रिपुरा (Tripura) नामक राक्षस का वध अर उसके अत्‍याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाई थी,इसीलिए दीपावली मनायी जाती है।दीपावली पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है,इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि मनाए जाते हैं, लोग कयी दिन पहले से घरों की साफ-सफाई में जुट जाते है,क्योंकि यह त्यौहार बुराई का नाश करने वाला बताया गया है। इस दिन लोग विशेषकर लक्ष्मी पूजन laxmi poojan in hindi  भी करते है।साथ ही दीपावली के दिन से पहले ही पटाखे फोड़ना शुरू कर देते हैं,लोग आपस में मिठाइयां बांटते हैं,क्योंकि यह खुशियों को बांटने वाला त्यौहार है।

इस त्यौहार की विशेषता यह है की इससे मानो पूरे भारत में नयी उमंग आ जाती है।बाजार नये-नये सामानों से सज जाते हैं, बाजारों में रोनक तो देखते ही बनती है,लोग खूब खरीदारी करते है दीपावली की रात्रि को महानिशीथ के नाम से जाना जाता है,इस रात्रि में कई प्रकार के तंत्र-मंत्र से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर पूरे साल के लिए सुख-समृद्धि और धन लाभ की कामना की जाती है। तो आप भी घर में सुख समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी की उपासना अवश्य करें। 

पूजन सामग्री एवं विधि-विधान/Worshiping materials and legislation

दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक सामग्री लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चाँदी का सिक्का,एक थाल में नवग्रह बनाएं सभी महेश आदी देवता स्थापित करें, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद पोंछने के लिए एक बड़ी व दो छोटी तौलिया। बहीखाते, सिक्कों की थैली, लेखनी, काली स्याही से भरी दवात, तीन थालियाँ, एक साफ कपड़ा, धूप, अगरबत्ती, घी का दीपक जला करके पूजन आरम्भ करें। 

दीपावली एवं महालक्ष्मी जी की कथा/Story of Deepawali and Mahalaxmi

एक दिन शौनकादि ऋषियों ने सत्यकुमार से पूछा - हे भगवन् ! दीपमालिकोत्सव ( दीपावली ) के अवसर पर श्री लक्ष्मी जी के साथ - साथ अन्य देवी देवताओं का पूजन क्यों किया जाता है ? जब कि दीपावली का पर्व विशेषतः लक्ष्मी पूजन का है ? 

ऋषियों की इस शंका को सुन कर सत्यकुमार जी कहने लगे हे ऋषियों ! समय पाकर जब दैत्य राज बलि ने अपने भुजबल से अनेक देवताओं को बन्दी बना लिया तो कार्तिक अमावस्या के दिन स्वयं विष्णु भगवान् ने वामन रूप धारण कर उसे बांध लिया और समस्त बन्दी बनाये गए देवताओं को कारागृह से मुक्त कर दिया । कारागृह से मुक्ति पाकर सभी प्रमुख देवों ने क्षीर सागर में लक्ष्मी सहित विश्राम किया । इसी कारण दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ - साथ देवताओं के पूजन तथा शयन की भी व्यवस्था करनी चाहिए । ऐसा करने से लक्ष्मी अन्य देवताओं के साथ वहीं विश्राम करेगी । लक्ष्मी जी तथा देवताओं के शयन के लिए शय्या बिछानी चाहिए जिसको कि किसी प्राणी के लिए प्रयोग न किया गया हो , उस पर सुन्दर नये वस्त्र व चादर बिछा कर तकिया तथा रजाई आदि लगा दें । 

तत्पश्चात् सुगन्धित कमल पुष्य भी शय्या पर बिछायें , क्योंकि लक्ष्मी जी का निवास प्राय : कमल में रहता है । हे ऋषियों ! इस प्रकार विधिपूर्वक श्रद्धायुक्त हो देवताओं व भगवती लक्ष्मी के पूजन से वो स्थाई निवास करती हैं , उनके भोग के लिए गाय का खोया ( मावा ) बना उसमें मिश्री , लौंग , कपूर एवं इलायची आदि मिला कर मोदक ( लड्डू ) बनाने चाहिएँ । ऋषियों ने पुनः प्रश्न किया - हे ऋषियों ! राजा बलि ने लक्ष्मी जी अथवा देवताओं को अपने वश में कर लिया तो फिर लक्ष्मी ने उसका त्याग क्यों किया ? सत्यकुमार जी ने उत्तर दिया - हे ऋषियों ! एक बार जब देवराज इन्द्र से भयभीत हो कर राजा बलि कहीं जा छिपा तो इन्द्र ने उसे ढूँढने का यत्न किया । तब इन्द्र ने देखा कि बलि एक खाली घर में गधे का रूप बना कर समय व्यतीत कर रहा है । इन्द्र के वहां पहुंचने पर बलि से उसकी बातचीत होने लगी । बलि को तत्त्व ज्ञान का उपदेश देते हुए काल ( समय ) की महत्ता समझाई । 

देवराज इन्द्र और दैत्यराज बलि में बातचीत चल रही थी कि उस समय दैत्यराज के शरीर से अत्यन्त दिव्य रूप वाली स्त्री निकली , उसे देख इन्द्र ने पूछा - हे दैत्यराज ! तुम्हारे शरीर से निकलने वाली यह आभा - युक्त स्त्री दैवी है , या आसुरी या मानवी ? राजा बलि ने उत्तर दिया - हे देवराज ! न यह देवी है , न आसुरी और न ही मानवी है । यदि तुम इसके सम्बन्ध में अधिक जानना चाहते हो तो फिर उसी से पूछो । इतना सुन इन्द्र ने हाथ जोड़ कर पूछा हे देवी ! तुम कौन हो और दैत्यों का परित्याग करके मेरी तरफ क्यों चली आ रही हो ? मन्द - मन्द मुस्कराती हुई वह शक्तिरूपी स्त्री बोली हे देवेन्द्र ! मुझे न तो दैत्यराज प्रहलाद के पुत्र विरोचन ही जानते हैं और न उनके पुत्र यह बलि ही , शास्त्रवेत्ता मुझे दुस्सहा , भूति और लक्ष्मी के नामों से पुकारते हैं , परन्तु आप तथा अन्य देवगण मुझे भली प्रकार से नहीं पहचानते । 

इन्द्र ने प्रश्न किया हे देवी ! जब इतने दीर्घकाल तक आपने दैत्यराज के पास वास किया तो फिर अब इनमें कौन सा दोष उत्पन्न हो गया जिससे इनका परित्याग कर रही हो , साथ ही यह भी बताने की कृपा करो कि आपने मुझ में कौन - सा ऐसा गुण देखा है जो आप मेरी ओर अग्रसर हो रही हो ? लक्ष्मी जी ने उत्तर दिया - हे आर्य ! मैं जिस स्थान पर निवास कर रही हूँ वहाँ से मुझे धाता विधाता कोई नहीं हटा सकता ,क्योंकि मैं सदैव समय के प्रभाव से ही एक को त्याग कर दूसरे के पास जाती रही हूँ इसलिये मेरा तुमसे कहना है कि तुम बलि का अनादर न करते हुए आदर की दृष्टि से उसका सम्मान करो । इन्द्र ने पूछा - हे देवी ! कृपा कर यह बताएं कि अब आप असुरों के पास क्यों नहीं रहना चाहतीं । 

लक्ष्मी जी बोली मैं उसी स्थान पर रहती हूँ जहाँ सत्य , दान , व्रत , तप , पराक्रम तथा धर्म रहते हैं । इस समय असुर इससे विमुख हो गए हैं । पूर्वकाल में ये सत्यवादी , जितेन्द्रिय तथा ब्राह्मणों के हितैषी थे । परन्तु अब ये ब्राह्मणों से द्वेष करने लगे हैं , झूठे हाथों घृत छूते हैं और अभक्ष्य भोजन करते हैं , साथ ही धर्म की मर्यादा तोड़ कर विभिन्न प्रकार के मनमाने आचरण करते हैं । पहले ये उपवास एवं तप करते थे , प्रतिदिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले जागते थे और यथासमय सोते थे , परन्तु अब ये देर से जागते तथा आधी रात के बाद सोते हैं । पूर्वकाल में ये दिन में शयन नहीं करते थे । दीन दुखियों , अनाथ , बृद्ध रोगी तथा शक्तिहीनों को नहीं सताते थे और उनकी अन्न आदि से हर प्रकार से सहायता करते थे । पहले ये गुरुजनों के आज्ञाकारी तथा सब काम समय पर किया करते थे । उत्तम भोजन बना कर केवल अकेले ही नहीं , बल्कि दूसरों को खिला कर बाद में स्वयं खाते थे । 

प्राणी - मात्र को समान समझते हुए सरलता , चतुरता , सौहार्द , उत्साह , निरहंकार , सत्य , क्षमा , दया , दान तप एवं वाणी में सरलता आदि सभी गुण विद्यमान थे । मित्रों से प्रेम - पूर्वक व्यवहार करते थे परन्तु अब इनमें क्रोध की मात्रा अधिक बढ़ गई हैं , साथ ही आलस्य , निद्रा , अप्रसन्नता , असन्तोष , कामुकता तथा विवेकहीनता आदि दुर्गुणों की एकता बढ़ गई है । अब इनकी सब बातें नियम के विरुद्ध होने लगी हैं , बड़े बूढ़े का सम्मान व आज्ञा पालन न कर उनका अनादर करते हैं , गुरुजनों के आने पर आसन छोड़ कर खड़े नहीं होते , सन्तान का शास्त्रोक्त विधि से पालन पोषण नहीं करते । इन सभी कारणों से शरीर एवं चेहरे की कान्ति क्षीण हो रही है , परस्त्री गमन और परस्त्री हरण , जुआ , शराब , चोरी आदि दुर्गुण अधिक आ जाने के कारण इनकी धार्मिक आस्था कम हो गई है । अतः हे देवराज ! मैंने निश्चय किया है कि अब इनके घर में वास नहीं करूंगी । इसी कारण दैत्यों का परित्याग करके मैं तुम्हारी ओर आ रही हूँ इसलिए तुम प्रसन्नतापूर्वक मुझे अंगीकार करो । जहां पर मेरा वास होगा वहाँ पर आशा , श्रद्धा , धृति , शांति जय , क्षमा और विजित संगीत यह आठ देवियां भी निवास करेंगी । 


अब समस्त देवताओं के अन्दर धार्मिक भावना अधिक बढ़ गई है इसलिए अब मैं तुम्हारे यहां ही निवास करूंगी । यह सुनकर इन्द्र ने शक्ति रूप लक्ष्मी का हार्दिक स्वागत किया और उसी समय अन्य देवतागण भी उनके दर्शनार्थ आकर उपस्थित हुए और विविध प्रकार से स्तुति करने लगे तथा बाजे गाजे के साथ उन्हें स्वर्ग में ले गये । सत्यकुमार जी कहते हैं कि हे ऋषियों बस उसी समय से संसार में धर्म तथा सुख , शान्ति की भावना देवी भगवती की कृपा से जाग्रत हो गई है ।


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