Thursday 22 April 2021

Bhagwatgeeta sar in hindi भगवद् गीता श्लोक , सार के 13 रहस्यमय, ज्ञानवर्धक, श्लोक जो जीवन को नयी दिशा दे।

Bhagwatgeeta sar in hindi भगवद् गीता श्लोक , सार के 13 रहस्यमय, ज्ञानवर्धक, श्लोक जो जीवन को नयी दिशा दे। 

नमस्कार दोस्तों आज हम श्रीमद्भागवत गीता के विश्व प्रसिद्ध और अलौकिक ज्ञान तथा सार को लेकर आए है।जो भगवान कृष्ण के द्वारा रण भूमि में अर्जुन को उपदेश दिए गए हैं।geeta ka sarans hindi me,गीता का सार संस्कृत श्लोक एवं अर्थ सहित,  geeta ka sat in hindi,गीता का फार श्लोक, गीता की कडवी बातें,  गीता का सच, geeta rahasy in hindi,गीता रहस्य श्लोक,  कृष्ण भगवान के श्लोक लेकर आए हैं।   गीता की बातें मनुष्य को सही तरह से जीवन जीने का रास्ता दिखाती हैं।ऐस अलौकिक तथा वास्तविक शिक्षा ज्ञान शायद ही अन्य ग्रंथों में देखने को मिले।  गीता के उपदेश हमें धर्म के मार्ग पर चलते हुए अच्छे कर्म करने की शिक्षा देते हैं।हमारे जीवन को सन्मार्ग पर ले जाती है। महाभारत में युद्ध भूमि में खड़े अर्जुन और कृष्ण के बीच के संवाद से हर मनुष्य को प्रेरणा लेनी चाहिए। तो आज हम इन तेरह (13) गीता के श्लोकों से प्रेरणा लेकर के अपने जीवन को धन्य करते है। तो चलिए जानते है गीता सार के रहस्यमय व ज्ञानवर्धक 13 श्लोक। 

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -1

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्  

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।  

भावार्थ - अपने द्वारा अपना संसार - समुद्र से उद्वार करे और अपने को अधोगति में न डाले क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शुत्र है।


श्लोक -2

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।

भावार्थ - भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करना तेरा अधिकार हैं। उसके फलों के बारे में मत सोच। इसलिए तू कर्मों के फल का मत हो। और कर्म न करने के बारे में भी तू अनुरोध मत कर।

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -3

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः  

शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।

भावार्थ - सरदी - गरमी और सुख - दुःखदि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्तःकरण की वृत्तियाँ भलीभांति शांत हैं , ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरूष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा सम्यक् प्रकार में स्थित हैं अर्थात उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।

> श्रीमद्भगवद्गीता के  तृतीय अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
> श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय का माहात्म्य व अर्थ 
>श्रीमद्भगवद्गीता के पञ्चम अध्याय का माहात्म्य व अर्थ
> श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय का माहात्म्य व अर्थ  
> श्रीकृष्ण का जीवन परिचय व सुविचार

श्लोक -4

युक्ताहारविहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु । 

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु : खहा ।।

भावार्थ - दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार - विहार करने वाले का , कर्मों में यथा योग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -5

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् । 

ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ।।

भावार्थ - यह स्थिर न रहने वाला और चंचल मन जिस - जिस शब्दादि विषय के निमित से संसार में विचरता है , उस - उस विषय से रोककर यानी हटाकर इसे बार - बार परमात्मा में ही निरूद्ध करे।


श्लोक -6

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्

भावार्थ - हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की ग्लानि-हानि यानी उसका क्षय होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं श्रीकृष्ण धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -7

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि  

ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।

भावार्थ - सर्वव्यापी अनंत चेतन में एकीभाव में स्थिति रूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है।


श्लोक -8

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति  

तस्याहंन प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ।।

भावार्थ - जो पुरूष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत देखता है , उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -9

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः  

लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा

भावार्थ - जो पुरूष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्यागकर कर्म करता है , वह पुरूष जल से कमल के पत्ते की भांति पाप से लिप्त नहीं होता है ।


श्लोक -10

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि । 

योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।।

भावार्थ - कर्मयोगी ममत्व बुद्धि रहित केवल इन्द्रिय , मन , बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्याग कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।

Bhagwatgeeta sar in hindi 

श्लोक -11

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे

भावार्थ श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ ।


श्लोक -12

विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि  

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।।

भावार्थ - वे ज्ञानी जन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण में तथा गौ , हाथी , कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।।


श्लोक - 13

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्  

स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ।।

भावार्थ - जो पुरूष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न न हो , वह स्थिर बुद्धि , संशयरहित , ब्रह्मवेत्ता पुरूष सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है।।

अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---

0 comments: