Ganesh janmotsav and poojan vidhi in hindi गणेश जन्मोत्सव कैसे और कब मनाये? गणेशजी की मूर्ति स्थापना एवं पूजन विधि
दोस्तों विघ्न-विनाशक गणपति बाबा जी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र का जन्म हुआ था।पूरे भारत और भारत के अनुयायी इस त्यौहार को बहुत धुमधाम से मनाते है। इस दिन बप्पा के भक्त भगवान गणेश को घर लाकर उनकी पूजा करते हैं और उनका पसंदीदा भोग लगाते हैं।गणेश मूर्ती की स्थापना करते है। जो भक्ति भाव से गणेशजी की भी प्रार्थना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विघ्नविनाशक भगवान गणेश जी प्रथम पूज्य देवता है । स्मार्तों के पंचदेवताओं में गणेश जी का प्रमुख स्थान है । समस्त शुभ कर्मो में गणेशजी की स्तुति का महत्व माना गया है । किसी भी प्रकार में पूजा गणेशजी की पूजा से पहले किसी अन्य देवता का पूजन करना निष्फल होता है क्योंकि सभी देवताओं ने उन्हें सर्वप्रथम पूज्य होने का अधिकार दिया है ।
गणेश जी का व्यक्तित्व
गणेश जी विघ्नों को दूर करने वाले देवता हैं । उनका मुख हाथी का , पेट लम्बा व सम्पर्ण शरीर मनुष्यों के समान है । गणेशजी का अनोखा व्यक्तित्व सभी को आर्कषित करता है । कहा जाता है कि उनका प्रत्येक अंग एक शिक्षा का सूचक है । उनके बड़े कान श्रेष्ठ श्रोता बनने की प्रेरणा देते हैं , उनकी लम्बी नाक सूंघ - सूंघकर सोच विचार कर आगे कदम बढ़ाने की प्रेरणा देते है । उनका बड़ा पेट श्रेष्ठ सहिष्णुता अर्थात सब बातों को झेलने की प्रेरणा देता है । वे बुद्धि के देवता हैं ।
गणेश स्थापना एवं पूजन विधि --
मोदक उन्हें विशेष प्रिय है , सभी कार्यो में सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक भक्त को गणेशजी की कृपा प्राप्त करने हेतु इस दिन यथाशक्ति पूजन - जप आदि करना चाहिये । भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी की प्रतिमा में ध्यान पूजन करें । (ऊँ गं गणपतये नमः) से यथाविधि पूजन कर नैवद्य - दक्षिणा अर्पित कर गणेशजी को नमस्कार करें ।
● गणेश चतुर्थी के दिन सुबह गणपति बप्पा के व्रत का संकल्प लें।
●शुभ मुहूर्त में किसी पाटे, चौकी लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
●गंगाजल का छिड़काव करें और गणपति जी को प्रणाम करें।
● गणेश जी को सिंदूर अर्पित करें और धूप-दीप जलाएं।
● गणेश भगवान को मोदक, लड्डू, पुष्प, सिंदूर, जनेऊ और 21 दूर्वा अर्पित करें।
● उनकी मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाये ।
● पूजा के अवसर पर दूर्वादल के द्वारा सहस्त्रार्चन आदि भी किया जाता है ।
गणेशजी के 10 नाम
सामान्य रुप से निम्न दस नामों से दो - दो दूर्वा क्रमशः चढ़ायें -
ॐ गणाधिपाय नमः ,
ॐ उमापुत्राय नमः ,
ऊँ विघ्ननाशनाय नमः ,
ऊँ विनाकाय नमः ,
ऊँ ईशपुत्राय नमः ,
ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ,
ऊँ एकदन्ताय नमः ,
ऊँ इभवक्त्राय नमः ,
ऊँ मूषकवाहनाय नमः ,
ॐ कुमारगुरवे नमः
इन दस नामों से दो - दो दूर्वा चढ़ाने के बाद सभी नामों का एक साथ उच्चारण कर एक दूब और चढ़ायें , इसी प्रकार लड्डू आदि से भी गणपति का पूजन किया जाता है । यह पूजन मध्यान्ह में करें , ब्राह्मण भोजन कराकर दक्षिणा दें और स्वयं भोजन करें । इस व्रत से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं । गणेशजी की कृपा से बुद्धि , विद्या , रिद्धि - सिद्धि की प्राप्ति होती है ।
सावधानियां --
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रदर्शन निषेध है । अतः इस चतुर्थी को चन्द्र - दर्शन का निषेध किया गया है । अतः सावधानी रखनी चाहिये कि चन्द्र - दर्शन न हो । यदि चन्द्रदर्शन हो जाये तो इस दोष शमन के लिये श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्द में वर्णित स्यमन्तकमणि के प्रसंग को पढ़ना या सुनना चाहिये या निम्न मंत्र का पाठ करना चाहिये -
(सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येषस्यमन्तकः।।)
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---
0 comments: