Tuesday 27 April 2021

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जानें पूजा विधि,मुहूर्त,कृष्ण श्रृंगार, महत्व आदि सम्पूर्ण जानकारी information about Shri Krishna Janmashtami Puja method, Muhurta, Krishna makeup, importance

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जानें पूजा विधि,मुहूर्त,कृष्ण श्रृंगार, महत्व आदि सम्पूर्ण जानकारी  information about Shri Krishna Janmashtami Puja method, Muhurta, Krishna makeup, importance 
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव सभी धर्माम्वलम्बियों में एक पर्व के रुप में मनाया जाता रहा है । पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को अर्द्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में वृष राशि व वृष लग्न में हुआ था । साधारणतया इस व्रत के विषय में दो मत हैं- स्मार्त अर्थात गृहस्थ लोग । अर्द्धरात्रि में अष्टमी हो चाहे वह सप्तमी विद्धा ही हो या रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो यह व्रत करते हैं किन्तु वैष्णव लोग सप्तमी का किंचित मात्र स्पर्श होने पर दूसरे दिन ही उपवास करते हैं , अर्थात वैष्णवों के अतिरिक्त शेष चाहे वे शैव , शाक्त , गाणपत्य और सौर सम्प्रदाय के अनुयायी हों जिन्हें स्मार्त कहते हैं , अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी में व्रत करते हैं चाहे उदय काल में सप्तमी तिथि क्यों न हो । 

(शैवः सौरा गाणपत्याः शाक्ताश्चान्योपसेवकाः । पूर्वविद्धानि व्रतानि कुर्वन्ति कारयन्ति च ।) 

लेकिन वैष्णव सप्तमी से जुड़ी अष्टमी को त्याग कर दूसरे दिन उदय तिथि में अष्टमी के दिन व्रत करते हैं , भले ही वह नवमी से युक्त हो।

(पूर्वविद्धाष्टमी या तु उदये नवमी दिने । मुहूर्तमपि संयुक्ता सम्पूर्णा साऽष्टमी भवेत ॥ कलाकाष्ठामुहूर्ताऽपि यदा कृष्णाष्टमी तिथिः । नवम्यां सैव ग्राहृया स्यात् सप्तमी संयुता नहि ।)

माधव का मत है कि अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी दूसरी जयन्ती । अर्द्धरात्रि में केवल अष्टमी तिथि मिले तो वह जन्माष्टमी होती है और यदि अष्टमी के साथ मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र भी प्राप्त हो जाये यह जयन्ती कही जाती है । 

जन्माष्टमी व्रत का महत्व 

अग्निपुराण का मत है कि जन्माष्टमी में एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो जयन्ती कही जाती है।दोस्तों हमारे शास्त्रों से लेकर खुद गीता को कृष्ण का ही रूप माना जाता है, श्रीकृष्ण ही एक ऐसे देवता है जो अपने भक्तों के थोडी सी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा फल देते है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का देशभर में विशेष महत्व है।और सभी इस व्रत को विशेष महत्व देते है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण को हरि विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है।भगवान विष्णु के कई अवतार हुए है,लेकिन सबसे लोकप्रिय और संसार को ज्ञान देने वाले माने गये है। इस त्यौहार का भाव सबके मन में एक ही होता है,भले ही हम किसी भी स्थान से क्यों न हो। इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं,बच्चे कृष्ण के रूप में सजते है।ऐसा प्रतीत होता है मानो इस दिन भारत में अनेकों कृष्ण आए हों।यहां सभी कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं। वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं।घरों को सजाया जाता है,लोग सात्विक भाव के साथ भक्ति में लीन हो जाते है।

श्रीकृष्णजन्माष्टमी अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी का चन्द्रोदय के समय रोहिणी से योग होने पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को श्रीकृष्णजयंती योग के नाम से भी पुकारा जाता है ।  

(स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या , निष्काम वनस्थेविधवाभिः वैष्णवैश्च परै वा पोष्या । वैष्णववास्तु अर्धरात्रिव्यापिनीमपि रोहिणीयुतामपि सप्तमी विद्धां अष्टमी परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्या ॥ " )

व्रत पूजा की विधि

जन्माष्टमी व्रत की सर्वोत्तम विधि है कि आप सबसे पहले मन से पवित्र हो जाए। फिर तन को पवित्र करें, और उसके बाद घर को पवित्र करें। अगर आपके घर में लड्डू गोपाल जी है,तो उनका स्नान आदि करा करके,भोग आदि लगाकर ,श्रृंगार आदि से निवृत हो करके भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूजा करने से पहले भगवान को पंचामृत और गंगाजल से स्नान जरूर करवाएं. स्नान के बाद भगवान को वस्त्र पहनाएं. ध्यान रहें कि वस्त्र नए हो। इसके बाद उनका श्रृंगार करें. भगवान को फिर भोग लगाएं कृष्ण को मिश्री और माखन का भोग अति प्रिय है, और इसके बाद कृष्ण के भजन,गीत संगीत व आरती करनी चाहिए ।

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