Wednesday 2 June 2021

Shiv Daridry Dahan stotr with meaning in hindi दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र अर्थ सहित | घर की दरिद्रता को दूर करने का महा मंत्र

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र अर्थ सहित | घर की दरिद्रता को दूर करने का महा मंत्र 

नमस्कार दोस्तों आज हम बात कर रहे है शिव के महा शक्ति शाली एवं महाकाल को भी चुनौती देने वाला दारिद्रदहन शिव स्तोत्र जो सभी कामनाओं को पूरा करने वाला है। हमारे शास्त्रों में अनेक अनुष्ठान और स्तोत्र ऐसे बताये गए है,जिनके प्रभाव से व्यक्ति के सभी रास्ते खुल जाते है। शास्त्रों के नियमानुसार पाठ कराने से दरिद्रता दूर हो जाती है। शिव का यह महा स्तोत्र जो बल,बुद्धि, धन,यश,कांती,सौभाग्य तथा आरोग्य देने वाला है।इस मंत्र जाप का महत्व श्रावण मास (Shravan Month) में अधिक बताया गया है। इस मास भगवान शिव का अभिषेक करने व साथ में ‘दारिद्रय दहन स्तोत्र’ (Daridrya Dahan Stotra) का पाठ करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।काल गति में गया प्राणि भी बच जाता है। क्योंकि आज इंसान जिस चीज के लिए सबसे ज्यादा परेशान और चिंतित है वो है पैसा और आरोग्य जिसे पाने के लिए व्यक्ति जीतोड़ मेहनत करता है, संघर्ष करता है। दोस्तों ये हम नहीं कह रहे अगर ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन ग्रंथों और किताबों कि माने तो धन अथवा पैसा उसी को मिलता है जिसकी किस्मत में ये लिखा होता है और जो परीश्रम और कर्म पर विश्वास करता है। इसीलिए शिव के इस महामंत्र का आप श्रद्धा और विश्वास के साथ जप करने तथा रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव सबकुछ देने वाले है।

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श्लोक - १
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय, 
कणामृताय शशिशेखरधारणाय
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो सकल विश्व के स्वामी है। जो नरक रूपी संसार सागर से पार कराने वाले है। जो कानों के श्रवण करने में अमृत के समान है। जो अपने माथे पर चंद्रमा को श्रृंगार रूप में धारण करने वाले हो, जो कर्पूर की कांति के समान धवल वर्ण वाले जटाधारी है। ऐसे दारिद्र रूप दुख नाशक शिव को मेरा बारम्बार प्रणाम है।

श्लोक -२
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय ,
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय
गंगाधराय गजराजविमर्दनाय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो माता गौरी की अति प्रिय है। जो चन्द्रमा की कला को धारण करने वाले है। जो काल को भी वश मे करने वाले यम रूप है। जो नागराज महाराज को कंकड़ रूप में धारण करने वाले है। जो अपनी जटाओं में मां गंगा को स्थापित करने वाले है। ऐसे दारिद्र रूपी दुख नाशक शिव को बारम्बार मेरा प्रणाम है। 

श्लोक - ३
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय, 
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो भक्ति प्रिय संसार रूपी रोग एवं भय का नाश करने वाले है।जो संहार क,ते समय उग्र रूप धारण करने वाले है। जो इस प्रकाट्य रूपी भवसागर से पार कराने वाले है। जो ज्योति स्वरूप अपने गुण,स्वभाव और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले है।ऐसे दारिद्र रूपी दुख नाशक शिव को बारम्बार मेरा प्रणाम है।
 
श्लोक - ४
चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय, 
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय
मंझीरपादयुगलाय जटाधराय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो बाघ की खाल को धारण करने वाले है। जो चिता भस्म को अपने शरीर पर लेपने वाले है। जिन्होने माथे पर तीसरा नेत्र धारण कर रखा है। जिन्होने कानों में मणियों के कुण्डल सुशोभित कर रखे है। जो अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले हैं।  ऐसे दारिद्र रूपी दुख नाशक शिव को बारम्बार मेरा प्रणाम है।

श्लोक - ५
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय, 
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ –
जो पाँच मुखवाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित है। जो सोने के समान वस्त्रवाले है,तथा तीनों लोकों में पूजित है। जो आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करनेवाले है। जो संसा के संहार के लिए तमोगुण धारण करने वाले है। ऐसे दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

श्लोक - ६
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय, 
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो सूर्य को अत्यन्त प्रिय तथा भवसागर से उद्धार करनेवाले है। जो काल के लिये भी महाकाल स्वरूप, ब्रह्मा से पूजित है। जो तीन नेत्रों को धारण करनेवाले, शुभ लक्षणों से युक्त है। ऐसे दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

श्लोक - ७
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय, 
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को बहुत प्रिय है। जो रघुनाथ को वर देनेवालेहै। जो सर्पों के अतिप्रिय है। जो भवसागर रूपी नरक से तारनेवाले है। जो पुण्यवानों में  परिपूर्ण पुण्यवाले है। जो समस्त देवताओं से सुपूजित है।ऐसे दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

श्लोक - ८
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय, 
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय
मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय, 
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो मुक्तजनों के स्वामिरूप तथा चारों पुरुषार्थ के फल देनेवाले है। जो प्रमथादि गणों के स्वामी है। जो स्तुतिप्रिय है। जो नन्दीवाहन है। जो गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करनेवाले है। ऐसे दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

श्लोक - ९
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं, 
सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्

त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ,
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय

भावार्थ -
जो समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करनेवाले है। जो पुत्र –पौत्रादि वंश परम्परा को बढ़ानेवाले है। जो भी भका इस वसिष्ठ द्वारा निर्मित  स्तोत्र का  नित्य तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।तथा सांसारिक समस्त सुख प्राप्त होते है।

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