लोभ-लालच पर सोने के कौवे की प्रेरणादायक कहानी ? लोभ ही सभी दुखों का कारण है इससे कैसे बचा जाए।
नमस्कार दोस्तों आज हम एक महत्वपूर्ण विषय लेकर आया हूं जिससे लगभग सभी लोग दुखी है, क्योंकि मनुष्य के सभी दुखों का कारण लोभ-लालच ही होता है। जिस कारण वह पाप करता है,और बुरे कर्म करने लगता है।इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि हम जीवन में आवश्यकताओं को जितना सीमित करेंगे उतना ही सुखी रहेंगे।क्योंक दुख का कारण ही उपभोग है,अधिकतर देखा गया है कि आज व्यक्ति की उम्र कम हो गई है और आवश्यकताएं बढ़ गई है। हर कोई दूसरे की खुशी देखकर दुखी है। आज हम आपको लोभ और लालच पर ऐसी कहानी बताएँगे जो आपके जीवन को बदल सकता है।और आप सुखी जीवन व्यतीत कर सकते है। इसीलिए कहा गया पहला सुख निरोगी काया।अगर व्यक्ति का शरीर स्वस्थ है तो सबकुछ ठीक हो जाता है,लेकिन शरीर रोगों से कैसा घिरता है,जब हम पाप कर्म अधिक करते है।उस अन्न में वह पाप प्रवेश करके हमारे शरीर में समाहित हो जाता है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है ---''लोभा पापस्य कारणम्''
अर्थात - लोभ ही पाप का कारण है और लोभ ही हमे पाप करने को मजबूर करता है। लोभ ही अज्ञान का कारण भी होता है।अगर आप भी जीवन में सफलता पाने चाहते है तो लोभ-लालच को छोड दीजिए क्योंकि जबतक यह आपके अंदर है समझो अंधेरा का वास है।
👉आइए इस छोटी सी सोने का कौआ प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से हम लोभ के दुष्प्रभावों के बारे में जान सकेंगे।
किसी गांव के नजदीक एक गरीब स्त्री रहती थी उसकी पुत्री थी जो बहुत ही सुंदर और सुशील थी। एक समय उसकी माता ने उसे चावलों को सुखाने के लिए देती है। वह बालिका चावलों को सूर्य की किरणों से तपाती है,और पक्षियों से भी उसकी रक्षा करती है। कुछ समय बाद एक अनोखा पक्षी कौवा वहां आता है, इससे पहले उसने कभी ऐसा पक्षी नही देखा था। यह सोने के पंखों वाला तथा चांदी की चोंच वाला दिखाई दे रहा था वह चावला को खाने लगा और हंस रहा था। लड़की उसको चावल खाते देख कर रोने लगी और उससे बिनती करने लगी की चावलों को मत खाओ और कहने लगी कि मेरी माता बहुत गरीब है। उस सोने के कौवे ने कहा तुम चिंता मत करो सूर्योदय से पहले तुम गांव के बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे आ जाना मैं तुम्हे वहां तुम्हारे चावलों के दाम दे दूंगा। बालिका खुश हुई और रात को नींद भी नहीं आई ।
सूर्योदय से पहले वह लड़की वहां पहुंच जाती है, और वृक्ष के ऊपर देखते ही वह आश्चर्यचकित हो जाती है। क्योंकि वृक्ष के ऊपर सोने का महल दिखाई देता है जहां कौवा सो रखा है और उस महल की सुन्दरता देखते ही बन रही थी। वह आवाज लगाती है कि मैं आ गई हूं कौवा कहता है। तुम आ गई हो मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी भेजता हूं बताओ कौन सी सीढ़ी से ऊपर आओगी। सोने की सीढ़ी से या चांदी की सीढ़ी से या तांबे की सीढ़ी से लड़की कहती है मैं बहुत गरीब घर की लड़की हूं इसलिए मुझे तांबे की सीढ़ी से ऊपर आना है। कौवा उसकी दया भाव देख कर के प्रसन्न होता है और उसके लिए सोने की सीढ़ी भेजता है। वह जैसे ही सोने के महल में प्रवेश करती है वहां देखती है की सभी वस्तुएं सोने से बनी हुई है। कौवा उसको पानी के लिए पूछता है और कहता है कि सोने के या चांदी के या तांबे के गिलास पर पानी पियोगे ।
लड़की कहती है मुझे तांबे के गिलास पर पानी पीना है लेकिन वह कौआ सोने के गिलास पर उसके लिए पानी लाता है। कुछ देर बाद वह उसे खाने के लिए पूछता है। बताओ खाने में क्या खाओगी उसने कहा मेरे लिए तो सूखी रोटी और नमक ही काफी है। कौआ ने कहा कौन सी थाली पर खाओगी सोने चांदी या तांबे की उसने कहा मैं तांबे की थाली पर खाऊंगी तो कौआ उसके लिए सोने की थाली पर छप्पन भोग ला देता है जिसे खाकर वहां बहुत प्रसन्न होती है। कुछ दे वही आराम करती है और कौवा कहता है, कि तुम मेरे ही पास रहो लेकिन तुम्हारा जाना भी बहुत जरूरी है। क्योंकि तुम्हारी मां बहुत गरीब है जाओ अंदर मैंने तुम्हारे चावलों के दाम रखे हैं। एक संदूक सोने का है। एक चांदी का है। और एक तांबा का है। किसी एक को उठा लेना जिसमें तुम्हारे चावलों के दाम है। लड़की अंदर जाती है और सबसे छोटा यानी तांबे का संदूक उठाती है। और खुश होकर घर जाती है मां लड़की को देखकर प्रसन्न होती है। और जब वह संदूको खोलती है तो उस संदूक में बहुत सारा धन जेवरात होता है। यह सब उस लड़की को उसकी उदारता। उसकी सत्यता। उसकी मेहनत। और उसकी दयाद्र भाव से मिलता है।वह माता और पुत्री दोनों अमीर हो जाते हैं दोनों अच्छा सा घर बनाते है और खुशी से रहते है।
उन्हीं के बगल में एक स्त्री रहती है। जो उससे बहुत जल्ती थी और सोचती थी कि इनके पास इतना सारा धन कहां से आया कुछ दिनों बाद वहां पता लगा देती है। कि इसकी पुत्री ने सोने के कौआ से वरदान मांगा है। उस स्त्री की भी एक पुत्री होती है वह बहुत दुष्ट और गंदे स्वभाव की थी। उसकी मां ने उसको आदेश दिया। कि तू भी चावलों को धूप में सुखा जैसे ही सोने का कौवा आएगा उससे खुश सारा धन मांगना । लड़की दूसरे दिन वैसा ही करती है और जैसे ही कौवा आता है। वह घमंडी स्वभाव से कहती है ए कव्वे तूने मेरे चावलों को खाया है, मुझे बहुत सारा धन दे कौवा समझ जाता है कि यह लोभी स्त्री है। उसे भी वही कहता है कि सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ के नीचे आ जाना वहां वहां आती है। कौआ वही कहता है कि कौन से सीढ़ी से आना है वह कहती है कि सोनी की सीडी भेजो। लेकिन उसके हुआ उसके लिए तांबे की सीढ़ी भेजता है। और खाने के लिए कहता है कि कौन सा खाना खाओगी वह कहती कि मुझे छप्पन भोग खाना है। लेकिन उसे नमक रोटी दी जाती है। कौआ ने उसे कहा जाओ अंदर तुम्हारे चावलों के नाम रखे हैं। एक सोने का एक चांदी का एक तांबे का तीनों में तुम्हारे दाम है। जो मर्जी तुम उठा लो लड़की अंदर जाती है और सबसे बड़ा संदूक यानी सोने का संदूक ले जाती है। उसकी मां बहुत प्रसन्न होती है जैसे ही वह संदूक होते हैं उससे सांप निकल कर बाहर आते हैं और दोनों को खा जाते हैं।
अतः इस कहानी से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए और कभी भी अपनी गरीबी पर नहीं रोना चाहिए हमें ईश्वर ने जो भी दे रखा है उसी में प्रसन्न होना है तभी ईश्वर हमारी मदद करेंगे अन्यथा लोग में आकर के हम अपना सर्वनाश कर देंगे।
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