Friday 21 January 2022

Brihaspativar Vrat kath वृहस्पतिवार व्रत कथा, विधि विधान, नियम एवं उद्यापन करने की विधि

Brihaspativar Vrat दोस्तों हमारे हिंदू धर्म में पती को परमेश्वर माना जाता है और महिलाएं उनकी लम्बी आयु के लिए वृहस्पतिवार का व्रत करती है। बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु और देवताओं के गुरू बृहस्पति देव को समर्पित है। बृहस्पतिवार के व्रत और पूजन के शास्त्र सम्मत कुछ नियम हैं उनके अनुसार व्रत रखना विशेष फलदायी होता है। यह व्रत बल बुद्धि और विद्या को देने वाला भी कहा गया है ।

Brihaspativar Vrat  kath वृहस्पतिवार व्रत कथा, विधि विधान, नियम एवं उद्यापन करने की विधि 

महत्त्व - बृहस्पति देव की पूजा से कुशाग्र बुद्धि , मेधा , चतुरता एवं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता मिलती है । 

बृहस्पतिवार व्रत का विधि-विधान

 आचार्य बृहस्पति देव परम कृपालु और शान्त प्रकृति के देवता हैं अतः सामान्य रूप से उनका व्रत करने , कथा सुनने और पीली गऊ को भीगी हुई चने की दाल खिलाने मात्र से ही वह आपके व्रत को पूर्ण मानकर आपकी सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं । जहाँ तक शास्त्रीय विधान का प्रश्न है मध्याह्न में श्री बृहस्पति देव की पूर्ण भक्ति भाव से पूजा आराधना करने और उनके मन्त्र की कम - से - कम एक माला जपने के बाद गऊ को दाल खिलाएँ और भक्तों में बाँट दें । 

उसके बाद तीसरे पहर एक समय भोजन करें । सन्ध्या के समय तुलसी पर दीपक जलाने से इस व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्य फलों में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है । बृहस्पति देव को पीले रंग की वस्तुएँ परम प्रिय हैं । अतः पूजा में पीले फूलों , पीले रंग के फलों और नैवेद्य के रूप में बेसन के लड्डुओं का प्रयोग होता है , चावल भी हल्दी में रंग कर प्रयोग किये जाते हैं । आप बृहस्पति देव को पीले रंग के चंदन का तिलक लगाएँ और मूर्ति को पीले रेशमी वस्त्र ही पहनाएँ । 

बृहस्पति देव के चित्र का अथवा यन्त्र का पूजन किया जाता है । पूजन में ' ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः ' इस मन्त्र का एक माला जप किया जाता है । 

बृहस्पतिवार के व्रत में भी नमक का प्रयोग वर्जित है , अतः नमकरहित भोजन ही किया जाता है । बृहस्पति देव को पीली वस्तुएँ प्रिय हैं अतः आपकी पूजा में चने की भीगी हुई दाल का प्रयोग तो अनिवार्य रूप से होता ही है , व्रत धारणकर्ता भी चने की दाल के आटे अर्थात् बेसन के बने भोज्य पदार्थों का प्रयोग करता है । प्रायः व्रती व्यक्ति बेसन के हलवे , बेसन के नमक रहित चीलों और पकौड़े का भोजन करते हैं और बेसन के लड्डू प्रसाद के रूप में बाँटते हैं । 

बृहस्पति पूजन यन्त्र बृहस्पति देव के निमित्त दान आदि किसी विद्वान ब्राह्मण को दिया जाता है और वह भी सन्ध्या के समय | पीले वस्त्र , चने की दाल , गेहूँ और अन्य पीले अनाज , गुड़ अथवा शक्कर , नमक और हल्दी के साथ पीले पुष्प एवं दक्षिणा रखकर बृहस्पति देव के निमित्त दान करने का शास्त्रीय विधान है । सामर्थ्य होने पर स्वर्ण अर्थात् सोना , पुखराज , पीली गऊ और घोड़ा भी देवगुरु के निमित्त दान किया जाए । 

वृहस्पतिवार व्रत का उद्यापन - 

जहाँ तक इस व्रत की समय सीमा का प्रश्न है प्रायः व्रतधारक जीवन भर करते रहते हैं । अन्य व्रतों के समान ही बृहस्पति देवजी के इस व्रत का उद्यापन भी विशेष पूजा आराधना , हवन और ब्रह्मभोज द्वारा होता है । 

बृहस्पतिवार व्रत कथा 

किसी गाँव में एक साहूकार रहता था । उसके घर में अन्न , वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नहीं थी । परन्तु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी । किसी भिक्षुक को कुछ नहीं देती , सारे दिन घर के काम - काज में लगी रहती । एक समय एक साधु - महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वार पर आए और भिक्षा की याचना की । स्त्री उस समय घर का आँगन लीप रही थी , इसी कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मैं लीप रही हूँ आपको कुछ नहीं दे सकती , फिर किसी दिन अवकाश के समय आना । साधु महात्मा खाली हाथ चले गए । कुछ दिन के पश्चात् वही साधु महाराज आए और उसी तरह भिक्षा माँगी । साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी । कहने लगी - महाराज ! मैं क्या करूँ अवकाश नहीं है , इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती । 

तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह टालना चाहा , परन्तु महात्माजी कहने लगे कि यदि तुमको बिलकुल ही अवकाश हो जाए तो मुझको भिक्षा दोगी ? साहूकारनी । कहने लगी- हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बहुत कृपा होगी । साधु - महात्माजी कहने लगे कि अच्छा मैं एक उपाय बताता हूँ । तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़ने पर उठो और सारे घर में झाडू लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा कर दो । घर में चौका इत्यादि मत लगाओ ।

 फिर स्नान आदि करके घर वालों से कह दो कि उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाएँ । रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो , सामने कभी न रखो । सायंकाल को अन्धेरा होने के बाद दीपक जलाया करो तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो , न पीले रंग की चीजों का भोजन करो । यदि ऐसा करोगी तो तुमको घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा । साहूकारनी ने ऐसा ही किया । बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठी , झाडू लगाकर कूड़े को घर में जमा कर दिया । पुरुषों ने हजामत बनवाई । भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रखा । वह कई बृहस्पतिवारों को ऐसा ही करती रही । अब कुछ काल बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा । थोड़े दिनों बाद वही महात्मा फिर आए और भिक्षा माँगी । परन्तु सेठानी ने कहा कि महाराज मेरे घर में खाने को अन्न ही नहीं , आपको क्या दे सकती हूँ । 

तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थीं । अब पूरा - पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो , तुम क्या चाहती हो वह कहो ? तब सेठानी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन - धान्य हो जाए । अब मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि जैसा आप कहेंगे वैसा ही अवश्यमेव करूँगी । तब महात्माजी ने कहा - बृहस्पतिवार को प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत हो घर को गऊ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवायें । भूखों को अन्न - वस्त्र देती रहा करो । ठीक सायंकाल दीपक जलाओ । यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएँ भगवान् बृहस्पतिजी की कृपा से पूर्ण होंगी । 

सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन - धान्य वैसा ही हो गया जैसा कि पहले था । इस प्रकार भगवान् बृहस्पति देव की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित रही । बृहस्पति देव जो जिस भावना से व्रत करता है उसकी वैसी मनोकामना शीघ्र पूर्ण कर देते हैं ।

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