Thursday 20 January 2022

Budhwar Vrat Katha बुधवार की व्रत कथा ,विधि विधान, महत्व, नियम एवं उद्यापन करने की विधि

Budhwar Vrat दोस्तों हिंदू धर्म में अनेकों मान्यताओं का प्रचलन है,हर दिन कुछ खास महत्व रखता है। इसलिए प्रत्येक वार अलग अलग देवी देवताओं को समर्पित हैं।लोग इस उस देवता के निमित उपवास रखते है।वारों मे बुधवार (Wednesday) गणेश भगवान (God Ganesha) को समर्पित है। और गणेश जी विघ्नों को हरने वाले माने जाते है। इनको शास्त्रों में सर्वप्रथम पूज्य माना गया है।मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने वाले जातक के जीवन में सुख, शांति और यश बना रहता है। साथ ही उसके यहां अन्न धन के भंडार कभी खाली नहीं होते हैं। 

Budhwar Vrat Katha बुधवार की व्रत कथा ,विधि विधान, महत्व, नियम एवं उद्यापन करने की विधि 

बुधवार व्रत का विधि-विधान 

यद्यपि किसी भी मास के किसी भी बुधवार से यह व्रत प्रारम्भ किया जा सकता है , परन्तु विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार से व्रत प्रारम्भ करना सर्वश्रेष्ठ रहता है । बुध ग्रह की दशा खराब होने अथवा अन्य किसी विशेष प्रयोजन की आपूर्ति हेतु तो बुधवार को बुध देवता के निमित्त व्रत किया ही जाता है , सामान्य काल में भी विभिन्न कामनाओं की आपूर्ति करने वाला और मोक्ष प्रदायक माना गया है इस व्रत को । बुध देवता इतने कृपालु हैं कि सात अथवा सत्ताइस बुधवारों को व्रत करने से ही साधक की सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं । 

यदि बुध की ग्रहदशा बहुत खराब चल रही हो तब एक सौ अट्ठाइस बुधवारों तक यह व्रत किया जाता है । आप बुधदेव की सामान्य प्रतिमा अथवा यन्त्र भी पूजन कर सकते हैं । स्नान के पश्चात् पूजा स्थल को स्वच्छ एवं पवित्र करने के बाद वहाँ सफेद चावलों से अष्टदल कमल बनाकर उस पर जल से भरा घड़ा अथवा लोटा रखें । जल के इस पात्र पर काँसे का कटोरा रखकर उस कटोरे में बुध देवता की प्रतिमा रखकर उन्हें दो सफेद वस्त्र अर्पित करें | बुध देव की चन्दन , चावल , धूप , दीप पुष्प आदि से पूजा करके गुड़ , दही और भात भोग लगाने के विधान है । मन में बुध देवता का ध्यान करके और कहानी पढ़ - सुनकर ही पूजा की इतिश्री कर ली जाती है । 

बुधवार व्रत की उद्यापन-विधि 

व्रत का समापन करने वाले बुधवार को एक सौ आठ अपामार्ग की समिधाओं से हवन करने का विधान है । इस हेतु अपामार्ग की एक सौ आठ छोटी - छोटी लकड़ियाँ लेकर और उन्हें दही मिश्रित घी में डुबो - डुबोकर बुध देवता का मन्त्र पढ़ते हुए हवन की अग्नि में डाला जाता है । इसी प्रकार उद्यापन वाले दिन सत्ताइस ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथायोग्य दक्षिणा देने और पूजा में प्रयुक्त मूर्ति एवं सभी पात्र व सामग्री मुख्य पुरोहित को देने का शास्त्रीय विधान है । बुध पूजन यन्त्र बुधदेव के निमित्त हवन करते समय तो स्वाहा लगाकर उनके किसी मन्त्र का स्तवन आप करेंगे ही , प्रतिदिन उनके किसी भी मन्त्र की एक अथवा अधिक मालाओं का जप आपकी साधना में विशेष सिद्धि ला देता है । बुध देवता के ये तीन विशिष्ट मन्त्र हैं --

१- ॐ बुं बुधाय नमः 

२- ॐ श्रीं श्रीं बुधाय नमः 

३- ॐ ब्रीं ग्रीं ग्रौं सः बुधाय नमः ।

 बुध देव के मन्त्रों को जप करते समय यदि ताम्रपत्र पर अंकित यह यन्त्र सम्मुख रखकर और इस पर दृष्टि जमाकर मन्त्र का जप किया जाए तब प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है । पूजा करते समय मूर्ति के स्थान पर यह यन्त्र रखकर यन्त्र की पूजा भी की जा सकती है । यहाँ विशेष ध्यान रखने की बात यह है कि केवल ताम्रपत्र पर अंकित यन्त्रों के प्रयोग की ही शास्त्र आज्ञा देते हैं ।

बुधवार व्रत की कथा 

बहुत समय पहले की बात है । एक व्यक्ति अपनी पत्नी को लेने के लिए अपने ससुराल गया । दूसरे दिन अपने सास - ससुर से कहा कि वे उसे और उसकी पत्नी को विदा कर दें । उसके ससुर और अन्य सभी व्यक्तियों ने कहा कि बुधवार को तो कहीं गमन नहीं करते और लड़की का मायके अथवा ससुराल जाना पूर्णतः वर्जित है । परन्तु वह व्यक्ति बहुत जिद्दी था । उसने किसी की न मानी और अपनी जिद पर अड़ा रहा कि वह तो आज ही अपनी पत्नी को लेकर अपने घर जाएगा । विवश होकर उसके सास - ससुर ने न चाहते हुए भी अपनी पुत्री को दामाद के साथ विदा कर दिया । 

एक रथ में बैठकर जिसे वह व्यक्ति लाया था , वे दोनों अपने घर के लिए चल पड़े । राह के लिए रथ में भोजन और पानी से भरा घड़ा रखा हुआ था । परन्तु एक स्थान पर झटका लगने से घड़ा उलट गया और सारा पानी बह गया । कुछ समय व्यतीत होने पर उसकी पत्नी को प्यास लगी । तब उस स्त्री ने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत से प्यास लगी है । रथ को एक वृक्ष के नीचे खड़ा करके वह लोटा लेकर रथ से उतरकर जोर जल लेने चला गया । जैसे ही वह पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह देखकर आश्चर्य से चकित रह गया कि ठीक अपनी ही जैसी सूरत तथा वैसी ही वेश - भूषा में एक व्यक्ति उसकी पत्नी के पास रथ में बैठा हुआ है । 

उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ और साथ ही क्रोध भी आया । क्रोध में भरकर उस स्त्री के वास्तविक पति ने रथ में बैठे हुए व्यक्ति का हाथ पकड़ लिया और चिल्लाकर बोला - तू कौन है ? तेरी यह हिम्मत कैसे हुई जो तू मेरी पत्नी के निकट बैठ गया । रथ में बैठा पुरुष हाथ झटककर बोला - शोर न कर । तू मेरी पत्नी और मेरे रथ को क्यों अपना बता रहा है । यह तो मेरी पत्नी है , जिसे मैं अभी - अभी अपनी ससुराल से विदा कराकर ला रहा हूँ । दोनों ही उस स्त्री को अपनी पत्नी बतला रहे थे और इस प्रकार उनका झगड़ा काफी बढ़ गया । दोनों ही एक दूसरे को मरने- मारने पर उद्यत होने लगे । इतने में उस राज्य के कुछ सिपाही वहाँ आ गये और उनसे झगड़े का कारण पूछा । 

दोनों की बातें सुनकर सिपाही भी चक्कर में पड़ गए । सिपाहियों ने उस स्त्री से पूछा कि वही पहचान कर बताए कि उसका पति उन दोनों में से कौन है ? स्त्री बेचारी कोई उत्तर नहीं दे सकी । वे दोनों ही बिलकुल एक जैसे थे , अतः वह स्वयं ये फैसला नहीं कर पा रही थी कि इनमें कौन - सा उसका पति है और कौन झूठ बोल रहा है । विवश होकर सिपाही उन तीनों को रथ सहित न्याय के लिए राजा के पास ले जाने लगे । 

अब तो स्त्री का पति बहुत पछताने लगा । वह बारम्बार अपनी गलती के लिए भगवान् से क्षमा माँगने लगा और अपने अपराध को माफ कर देने की प्रार्थना करने लगा । उसी समय आकाशवाणी हुई - हे मूर्ख ! तूने अपनी जिद के आगे किसी की न मानकर बुध देवता को नाराज कर दिया है । बुधवार को तो सामान्य रूप से भी कहीं गमन नहीं करना चाहिए । स्त्री को तो अपने मायके अथवा ससुराल बुधवार के दिन कभी जाना ही नहीं चाहिए । यह दूसरा व्यक्ति और कोई नहीं स्वयं बुध देवता हैं जो तेरा रूप बनाकर तेरी पत्नी के पास बैठे हुए हैं । अब तो उस व्यक्ति ने भगवान् बुध देवता के पाँव पकड़ लिए और उनसे अपने किए की क्षमा माँगकर आगे कभी गलती न करने का वायदा किया । तब बुध देवता अन्तर्ध्यान हो गये और वह बुधवार को बुध देवता की पूजा , व्रत और कथा कहने सुनने लगे। जो भी इस व्रत कथा को पढता,सुनता या कहता है बुद्ध देव उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते है।

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