Sunday 16 January 2022

Shattila Ekadashi षटतिला एकादशी की विधि, महत्व,माहात्म्य एवं व्रत कथा

जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम Shattila Ekadashi fast in hindi षटतिला एकादशी जो माघ माह (जनवरी) में पढती है,और माघ माह को भगवान विष्णु का महीना माना जाता है। हिंदू पंचांग तथा शास्त्रों के अनुसार, माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं। एकादशी का व्रत सभी कामनाओं की पूर्ति के लिए तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु,कृष्ण, श्रीराम यानी तीनों स्वरूपों की सच्चे मन से उपासना और व्रत करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू होकर तीन दिन अर्थात द्वादशी को सम्पन्न होता है। इस दिन तिल के दान का भी विशेष महत्व होता है। इस आर्टिकल में हम आपको षटतिला एकादशी का सम्पूर्ण विधि विधान और महत्व बताएंगे।

Shattila Ekadashi षटतिला एकादशी की विधि, महत्व,माहात्म्य एवं व्रत कथा

एकादशी व्रत की विधि एवं माहात्म्य

 दालभ्य ऋषि बोले कि मनुष्य लोक में आकर लोग ब्रह्महत्यादि अनेक पाप करते हैं , पराये धन को चुराते हैं। दूसरों को कष्ट देते हैं । ऐसा करने पर भी वे नरक में न जायें । हे ब्रह्मन् ! ऐसा उपाय कहिये ।जिससे मनुष्य के सभी पाप तर जाए, अल्पदान करने से अनायास पाप दूर हो जाँय उसे केहिये । पुलस्त्य मुनि बोले - हे महाभाग ! तुमने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है । जिसको ब्रह्मा , विष्णु और इन्द्रादि देवताओं ने किसी से नहीं कहा । तुम्हारे पूछने पर उस गुप्त बात को तुमसे कहूँगा । माघ मास के आरम्भ में ही शुद्धता से स्नान करके इन्द्रियों को वश में करे ।

 काम, क्रोध, घमण्ड, ईर्ष्या, लोभ,दुराचार और चुगली इनसे मन को हटाकर जल से हाथ पैर धोकर भगवान् का स्मरण करे । ऐसा गोबर ले जो पृथ्वी पर न गिरा हो । उसमें तिल और कपास मिलाकर पिंड बना ले । उनके १०८ पिंड बनावे । यदि माघ के महीने में पूर्वाषाढ़ व मूल नक्षत्र में एकादशी आ जाय तो उसमें नियम ले या कृष्ण पक्ष की एकादशी को नियम ले । उसका पुण्य फल देने वाला विधान मुझसे सुनो । स्नान करके पवित्र होकर कीर्तन करते हुए एकादशी का उपवास करे । रात्रि में जागरण करे और गोबर के बने हुए १०८ पिंडों से हवन करे । शंखचक्र गदाधारी भगवान् का पूजन करे । चन्दन , अगर , कपूर चढ़ावे । बूरा मिला हुआ नैवेद्य चढ़ाकर बारम्बार कृष्ण का नाम स्मरण करे । हे विप्रेन्द्र ! पेठा , बिजौरा और नारियल आदि से पूजा करे । यदि इन सबका अभाव हो तो सुपारी ही श्रेष्ठ है । फिर अर्घ्य देकर जनार्दन का पूजन करके प्रार्थना करे । हे कृष्ण ! आप दयालु तथा पापियों को मोक्ष देने वाले हो । हे परमेश्वर ! संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों पर आप प्रसन्न हों । हे पुण्डरीकाक्ष ! हे विश्वभावन ! आपको नमस्कार है ।

 हे सुब्रह्मण्य ! हे जगत्पते ! मेरे दिये हुए अर्घ्य को लक्ष्मी समेत स्वीकार करिये । फिर छत्र , उपानह और वस्त्र ब्राह्मणों को देकर पूजन करे , जल से भरा हुआ कलश दे और कहे कि श्रीकृष्ण भगवान् मेरे ऊपर प्रसन्न हों । हे के द्विजोत्तम ! काली गो और तिलपात्र अपनी शक्ति • अनुसार उत्तम ब्राह्मण को देना चाहिये । हे मुने ! स्नान और भोजन में सफेद और काले तिल उत्तम हैं इसलिये यथा शक्ति ब्राह्मणों को भी देने चाहिये । तिल - स्नान उबटना , होम , तर्पण , भोजन और दान करे ये छः प्रकार की विधि पापों का नाश करती है । इसी से इस एकादशी का नाम षट्तिला है । नारदजी बोलें हे कृष्ण ! हे भक्तभावन ! षट्तिला एकादशी से क्या फल मिलता है ? यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो -- - इतिहास समेत मुझसे कहिये । श्रीकृष्ण बोले -- ब्रह्मन् जैसा वृत्तान्त मैंने देखा है , वह तुमसे कहता हूँ । 

षटतिला एकादशी व्रत कथा

एक ब्राह्मणी मनुष्यलोक में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती हुई देवताओं का पूजन करती थी । वह पूरे मास उपवास करती हुई पूजा में लगी रहती थी । द्विजोत्तम ! नित्य व्रत करने से उसका शरीर दुर्बल हो गया । गरीब ब्राह्मण और कुमारी कन्याओं को भक्ति से वह अपना घर तक दान करके सदा व्रत करने लगी । जिससे वह बहुत दुर्बल हो गई । उसने अन्न दान करके ब्राह्मण और देवताओं को तृप्त नहीं किया । फिर बहुत दिनों के बाद मैंने मन में विचार किया कि कठिन व्रतों के करने से इसका शरीर शुद्ध हो गया है । 

शरीर को सुखाकर इसने स्वर्ग जाने के योग्य अपना देह बना लिया है । किन्तु इसने अन्न का दान नहीं किया जिससे कि सबकी तृप्ती होती है । हे ! उसकी जाँच करने को मैं मनुष्य लोक में ब्रह्मन् गया । भिक्षुक का रूप धारण करके भिक्षा पात्र लेकर ब्राह्मणी से भीख माँगने लगा । तब ब्राह्मणी बोली - हे ब्रह्मन् ! तुम कैसे से आये सो मुझसे सत्य कहो । फिर मैंने कहा- हे सुन्दरि ! भिक्षा दो । तब उसने क्रोध में भरकर मिट्टी का डेला मेरे भिक्षा पात्र में डाल दिया । महा व्रत करने वाली वह तपस्विनी व्रत के प्रभाव से देह समेत स्वर्ग में पहुँच गई और मिट्टी के पिंड दान करने से उसको एक सुन्दर घर भी मिल गया । परन्तु उस घर में अन्न और धन नहीं था । हे विप्रर्षे ! जो उसने घर में प्रवेश किया तो वहाँ कुछ भी नहीं देखा । हे द्विज ! तब घर से निकल वह मेरे पास आई और बहुत कुपित होकर बोली कि सब लोकों को रचने वाले भगवान का मैंने बड़े कठिन व्रत उपवास और पूजा से आराधन किया है । परन्तु हे जनार्दन ! मेरे घर में अन्न , धन कुछ भी नहीं है । तब मैंने उससे कहा कि तू जैसे आई है , उसी तरह अपने घर चली जा।  

षटतिला एकादशी का माहात्मय बिना पूछे देवताओं की स्त्रियाँ कौतूहल के वश तुझको देखने दरवाजा मत खोलना । ऐसा सुनकर वह मनुष्य लक को चली गई । हे नारद ! तब देवताओं की स्त्रियाँ उसे , देखने आयीं और कहा कि हम तुम्हारे दर्शन के लिये आई हैं । तुम दरवाजा खोलो । मानुषी बोली -यदि तुम मुझे देखना ही चाहती हो तो दरवाजा खोलने से पहले षट्तिला का व्रत पुण्य और माहात्म्य कहना होगा । उनमें से एक ने माहात्म्य सुना दिया और कहा कि हे मानुषी ! अब दरवाजा खोल दो , तुमको देखना आवश्यक है । उसने दरवाजा खोल दिया । उन सबने मांनुषी को देख लिया । हे द्विज श्रेष्ठ ! वह न तो देवी है , न गन्धर्वी है , न आसुरी है , न नागिन है , जैसी स्त्री पहिले उन्होंने देखी थी , वैसी ही वह भी थी । देवियों के उपदेश से सत्य पर चलने वाली उस मानुषी ने भुक्ति और मुक्ति को देने वाली षट्तिला का व्रत किया । 

तब वह मानुषी क्षण भर में रूपवती और कान्तियुक्त हो गई । और उसके यहाँ धन , धान्य , वस्त्र , सुवर्ण , चाँदी ये सब हो गया । षटतिला के प्रभाव से सब घर धन धान्य से पूर्ण हो गया । लोभ के वश होकर बहुत तृष्णा नहीं करनी चाहिये । अपने धन के अनुसार तिल , वस्त्र आदि का जरूर दान करे । इससे जन्मान्तर में आरोग्यता होती है । हे द्विज श्रेष्ठ ! षटतिला का उपवास करने से दरिद्रता , मन्द भाग्य और अनेक प्रकार के कष्ट नहीं होते । विधि पूर्वक किया हुआ दान सब पापों का नाश करता है । हे मूनि सत्तम ! इससे शरीर में थकावट , अनर्थ अथवा कष्ट नहीं होता ।

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2 comments:

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