Tuesday 25 January 2022

Shukravar vrat katha शुक्रवार व्रत कथा, विधि विधान, नियम, महत्व एवं उद्यापन कैसे करें

जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम Shukravar vrat kath के बारे में विस्तृत वर्णन करेंगे। शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत के बारे में जानकारी दे रहे हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। संतोषी माता को संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है। यह व्रत घर में सुख समृद्धि भी लाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं। संतोषी मां हमें संतोष दिलाती है और हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं।Personality traits of person born on Friday,  Friday born people nature love Career Personality and happy life,  shukrvar ko janmen logo kyon khas hote hai, friend born nature Personality to astrology,

Shukravar vrat katha शुक्रवार व्रत कथा, विधि विधान, नियम, महत्व एवं उद्यापन कैसे करें 

शुक्रवार व्रत का विधान शुक्रवार को अधिकांश महिलाएँ सन्तोषी माता का व्रत रखती हैं और गुड़ तथा चने हाथ में लेकर सन्तोषी माता की कथा सुनती हैं । इस रूप में यह सन्तोषी माता का व्रत होता है । शुक्रग्रह के अधि पति देव दैत्यगुरु शुक्राचार्य के निमित्त भी शुक्रवार को व्रत रखा जाता है , परन्तु उसका विधान इस व्रत से एकदम अलग है । 

नवग्रहों और सत्ताइस नक्षत्रों में भगवान् भास्कर और चन्द्रदेव के बाद हमारे क्रिया - कलापों को सबसे अधिक प्रभावित करता है शुक्रग्रह । सूर्य और चन्द्रमा के समान ही शुक्रग्रह से भी प्रकाश की रश्मियाँ पृथ्वी पर आती हैं , क्योंकि यह आकाश मण्डल का सबसे प्रदीप्त ग्रह है । जहाँ तक शुक्रग्रह के अधिपति गुरु शुक्राचार्य का प्रश्न है आप देवगुरु बृहस्पति से भी अधिक प्रभावशाली हैं अतः प्रत्येक स्त्री - पुरुष को यह व्रत करना चाहिए । किसी भी शुक्रवार से आप यह व्रत प्रारम्भ कर सकते हैं वैसे जब शुक्र उदित हो ( शुक्र डूबा हुआ न हो ) यह व्रत प्रारम्भ करना चाहिए । शास्त्रीय विधान प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में पूर्व दिशा की ओर मुँह करके शुक्रदेव की पूजा - आराधना करने का है । 

लकड़ी के पटरे पर नवीन श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर शुक्रदेव की प्रतिमा अथवा यन्त्र रखकर श्वेत वस्तुओं से की जाती है विधिवत् पूजा - सेवा । पूजा के बाद नीचे दिए गए तीन मन्त्रों में से किसी भी एक कम - से - कम एक माला जपने का शास्त्रीय विधान है । - 

१- ॐ शुं शुक्राय नमः । 

२- ॐ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः । 

३- ॐ द्रां द्रों द्रौं शुक्राय नमः । 

महत्व - शुक्र देव को समृद्धि , सुन्दरता , काम - शक्ति , सौभाग्य और तेजस्विता का अधिपति देव माना जाता है । शुक्रवार का यह व्रत यौन रोगों के निदान , बुद्धिवर्द्धन एवं राजसुख प्राप्ति का अमोघ अस्त्र है । शुक्रग्रह की अनुकूलता व्यक्ति को सफल उद्योगपति , राजनेता , कुशल वक्ता और विद्वान बनाती है तो इसकी प्रतिकूलता व्यक्ति को लम्पट एवं व्यभिचारी भी बना सकती है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि पूर्ण विधि - विधान से शुक्र देव की आराधना करें अथवा सामान्य रूप से व्रत , थोड़ी सी पूजा सेवा से ही प्रसन्न हो जाते हैं शुक्र देव महाराज आपकी सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं।   

शुक्रवार व्रत कथा  Sukrwar vrat katha

एक समय कायस्थ , ब्राह्मण और वैश्य इन तीनों लड़कों में परस्पर गहरी मित्रता थी । उन तीनों का विवाह हो गया था । ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गौना भी हो गया था , परन्तु सेठ के लड़के का नहीं हुआ था । एक दिन कायस्थ के लड़के ने कहा - हे मित्र ! तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते ? स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है । यह बात वैश्य के लड़के को जँच गई । कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा करा लाता हूँ । ब्राह्मण के लड़के ने कहा कि अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र अस्त हो रहा है , जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना । 

परन्तु सेठ के लड़के को ऐसी जिद हो गई कि किसी प्रकार से नहीं माना । जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया परन्तु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपनी ससुराल चला गया । उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराए । पूछा कि आपका कैसे आना हुआ ? वह कहने लगा कि मैं विदा के लिए आया हूँ । ससुराल वालों ने भी बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र का अस्त है उदय होने पर ले जाना , परन्तु उसने एक न सुनी और स्त्री को ले जाने का आग्रह करता रहा । जब वह किसी प्रकार न माना तब उन्होंने लाचार हो दोनों को विदा कर दिया । थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूट के गिर पड़ा । रथ के बैल का पैर टूट गया और उसकी स्त्री घायल हो गई । जब आगे चले तो रास्ते में डाकू मिले । 

उसके पास जो धन , वस्त्र तथा आभूषण थे वे सब छीन - कहा - नहीं सनातम लाता । लिए । इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना कर जब वे अपने घर पहुँचे तो आते ही सेठ के लड़के को सर्प ने काट लिया , वह मूर्छा खाकर गिर पड़ा । तब उसकी स्त्री विलाप कर रोने लगी । उसे वैद्यों को दिखलाया गया तो वैद्य कहने लगे यह तीन दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा । जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को पता लगा तो उसने धर्म की प्रथा है कि जिस समय शुक्र का अस्त हो तो कोई अपनी स्त्री को परन्तु यह शुक्र के अस्त में स्त्री को विदा करा कर ले आया है इस कारण ये सब विघ्न उपस्थित हुए हैं ।

यदि ये दोनों ससुराल वापिस चले जाएँ और शुक्र के उदय होने पर पुन : आयें तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है । इतना सुनते ही सेठ ने अपने पुत्र और उसकी स्त्री को शीघ्र ही उसकी ससुराल में वापिस पहुँचा दिया । पहुँचते ही सेठ के लड़के की मूर्छा दूर हो गई , और फिर साधारण उपचार से वह सर्प विष से मुक्त हो गया । अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यन्त प्रसन्न हुए और जब शुक्र का उदय हुआ तब बड़े हर्षपूर्वक उन्होंने अपनी पुत्री सहित विदा किया । इसके पश्चात् वह दोनों पति - पत्नी घर आकर आनन्द से रहने लगे ।

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