जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम सूर्य अर्घ्य देने के बारे में बात कर रहे है कि, आखिर इसके पीछे क्या रहस्य छिपा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव को सभी ग्रहों में सबसे शक्तिशाली माना गया है।और यह जातक को बल प्रदान करता है,और विशेषकर यह आखों से सम्बन्धित भी माना जाता है, इसलिए इन्हें प्रत्यक्ष देवादि देव भी कहा जाता है। इस आर्टिकल में हम आपको सूर्य अर्घ्य मंत्र, सूर्य अर्घ्य देने की विधि, सूर्य को अर्घ्य क्यों देते है, सूर्य अर्घ्य देने के लाभ व फायदे क्या है, सूर्य अर्घ्य कब देना चाहिए, सूर्य को अर्घ्य किस दिशा में देना चाहिए, सूर्य को अर्घ्य देने से बढती है आंखों की रोशनी आदि जानकारी पढेंगे।
Surya Arghya: सूर्य को अर्घ्य (जल) चढाने के फायदे, बडती है आंखों की रोशनी जानिए अन्य कयी चमत्कार व रहस्य
दोस्तों रविवार के दिन सूर्य की पूजा करना शुभ माना जाता है। मान्यता यह भी है कि रोजाना अर्घ्य देने से जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। इसके अलावा कयी ग्रहों पर भी सूर्य अर्घ्य देने से शुभ प्रभाव पढता है, इससे शनि, मंगल, चन्द्रमा और राहु ग्रह भी जातक पर अच्छा प्रभाव देता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य अर्घ्य का महत्व
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य की किरणें शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को दूर कर निरोग बनाने का कार्य करती हैं। हर रोज अर्घ्य देने से हमारी हड्डियां मजबूत होती है, सूर्य की किरणें हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है। सूर्य देव को आत्मा का कारक माना जाता है। यह हमारे अंदर नये विचारों तथा संरचना का विकास करता है। प्रत्येक सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से भाग्य अच्छा होता है। व्यक्ति के हर कार्य सफल होते है, मेहनत रंग लाती है।
सुबह के समय सूर्य को जल देते समय शरीर पर पढने वाली किरणें हमारी आत्मा और शरीर संतुलित हो जाता है। जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है। और विशेषकर यह हमारे अंदर विटमिन डी बढाता है।
सूर्य को अर्घ्य देना नेत्र ज्योति बडती है /Offering arghya to the sun increases the eye light
प्रातः काल की वेला में सूर्य के प्रतिबिम्ब को तालों तथा नदियों में देखना पश्चिमी देशों में लाभप्रद माना गया है । वहाँ के वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा करने से नेत्रों को मोतियाबिन्द आदि अनेक रोगों से बचाया जा सकता है । भारतीय ग्रन्थों में इसके लिए सूर्य को जल देने का विधान आदिकाल से चलता आ रहा है । इसका क्रम इस प्रकार है- सूर्योदय के थोड़े ही समय के बाद लोटे को जल से भरकर सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएँ । लोटे की स्थिति छाती के बीच में रहनी चाहिए । अब धीरे - धीरे जल की धारा छोड़ना प्रारम्भ करें । लोटे के उभरे किनारे पर दृष्टिपात करने से आप सूर्य के प्रतिबिम्ब को बिन्दुरूप में देखेंगे । उस बिन्दु रूप प्रतिबिम्ब में ध्यानपूर्वक देखने में आपको सप्तवर्ण वलय ( न्यूटन रिंग ) देखने को मिलेंगे ।
सूर्यार्ध्य में साधक , जलपूरित अंजली लेकर सूर्याभिमुख खड़ा होकर जब जल को भूमि पर गिराता है तो नवोदित सूर्य की सीधी पड़ती हुई किरणों से अनुबिद्ध वह जलराशि , मस्तक से लेकर पाँव पर्यन्त साधक के शरीर के समान सूत्र में गिरती हुई , सूर्य किरणों से उत्तप्त रंगों के प्रभाव को ऊपर से नीचे तक समस्त शरीर में प्रवाहित कर देती है । इसलिए शास्त्रानुसार प्रातः पूर्वाभिमुख होकर , उगते हुए सूर्य को सूर्या अर्घ्य देने का विधान है । लोटा एल्युमीनियम , चाँदी आदि चमकदार धातु का न होकर तांबे , पीतल आदि का होने से ही उत्तम रहेगा , उसके उत्तल किनारे पर समवर्ण वलय अधिक स्वच्छ दिखाई देंगे । इस प्रकार तेज वर्धक तथा नेत्रों को लाभान्वित करने वाली शीतल सौम्य रश्मियों को सेवन करने का महर्षियों ने यह एक सरल क्रम प्रदान किया है ।
सूर्य प्रार्थना मंत्र
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्तु दिने-दिने ॥
आयुर्विद्या बलं वीर्यं तेजस् तेषां च जायते ॥
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते ॥
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥
ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती,
नारायणः सरसिजासनसंनिविष्टः ।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी,
हारी हिरण्मयवपुर्धृतशङ्खचक्रः ॥
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