Wednesday 16 March 2022

Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी व्रत कथा महात्म विधि विधान व नियम सभी पापों का नाश करती है ये एकादशी

दोस्तों हमारे सनातन धर्म में त्यौहारों और व्रतों का विशेष महत्व है। इसी में से एकादशी व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है एकादशी व्रत साल भर में 24 आती है, इन्हीं में से सर्वश्रेष्ठ तथा पावन एकादशी मानी जाती है ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी इस व्रत में बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है तथा द्वादशी को परायण करके व्रत खोला जाता है। भीषण गर्मी के बीच तप की पराकाष्टा को दर्शाता है यह व्रत। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है।

Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी व्रत कथा महात्म विधि विधान व नियम सभी पापों का नाश करती है ये एकादशी 

दोस्तों ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता और ना ही जल ग्रहण करते है। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है।इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है। यह एकादशी सर्वशक्तिशाली और पतित पावन है तथा जल्दी फल प्रदान करने वाली मानी गयी है।

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की विधि एवं माहात्म्य

भीमसेन बोले - हे महाबुद्धि पितामह ! मेरी बात सुनो । युधिष्ठिर , कुन्ती , द्रौपदी , अर्जुन , नकुल , सहदेव एकादशी को कभी भोजन नहीं करते । वे मुझसे नित्य कहा करते हैं कि हे भीमसेन ! तुम एकादशी को भोजन मत किया करो , मैं उनसे कहता हूँ कि हे तात ! मुझसे भूख सही नहीं जाती । मैं दान करूँगा और विधि पूर्वक केशव का पूजन करूंगा । परन्तु बिना उपवास • किये एकादशी के व्रत का फल कैसे मिले ? भीमसेन का वचन सुनकर व्यासजी बोले - जो तुमको स्वर्ग अत्यन्त प्रिय है और नरक बुरा मालूम होता है तो दोनों पक्ष की एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिये । भीमसेन बोले -- हे महाबुद्धे ! एक बार भोजन करने से भी मुझसे नहीं रहा जाता फिर उपवास कैसे करूँगा । हे महामुने ! वृक नाम का अग्नि सदा मेरे पेट में रहता है । 

जब मैं बहुत सा अन्न खाऊँ तब वह शान्त होता है । हे महामुने ! मैं एक उपवास कर सकता हूं । जिससे स्वर्ग मिल जाय उस एक व्रत को मैं विधिपूर्वक करूंगा • इसलिये निश्चय करके एक व्रत बतलाइये जिससे मेरा कल्याण हो । व्यासजी बोले - हे नराधिप ! तुमने मानव धर्म और वैदिक धर्म सुने । परन्तु कलियुग में उन धर्मों के करने की शक्ति मनुष्यों में नहीं है । सरल उपाय , थोड़े धन और कम परिश्रम से महाफल प्राप्त होने की विधि मैं तुमसे कहता हूँ जो कि सब पुराणों का सार है । जो दोनों पक्ष की एकादशी का व्रत करता है , वह नरक में नहीं जाता । व्यासजी का वचन सुनकर भीमसेन पीपल के पत्ते की तरह काँपने लगे और डरकर बोले -- हे पितामह ! मैं क्या करूँ ? मैं उपवास नहीं कर सकता । इसलिये हे प्रभो ! बहुत फलदायक एक ही व्रत को मुझसे कहिये । व्यासजी बोले कि वृष व मिथुन के सूर्य में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी है उसका यत्न पूर्वक निर्जल उपवास करना चाहिये ।

 स्नान और आचमन में जल का निषेध नहीं है । माशेभर सुवर्ण का दाना जिसमें डूब जाय उतना ही जल आचमन के लिये कहा गया है । वही शरीर को पवित्र करने वाला है । गौ के कान की तरहं हाथ करके माशे भर जल पीना चाहिये । उससे थोड़ा या अधिक जल पीने से मदिरा पान के समान होता है और कुछ न खाय , नहीं तो व्रत भंग हो जाता है । एकादशी, के सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल पान न करे । ऐसा करने से बारहों महीने की एकादशी का फल उसको बिना यत्न के मिल जाता है । फिर द्वादशी को सबेरे निर्मल जल में स्नान करके ब्राह्मणों को जल और सुवर्ण का दान करे । फिर व्रत करने वाला कृत कृत्य होकर ब्राह्मणों सहित भोजन करे । हे भीमसेन ! इस प्रकार व्रत करने से जो पुण्य होता है , उसको सुनो । सालभर में जितनी एकादशी होती हैं , उनका फल इस एकादशी के व्रत करने से मिल जाता है , इसमें सन्देह नहीं है । शंखचक्र गदाधारी कृष्ण भगवान् ने मुझसे कहा है कि सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ । एकादशी को निराहार रहने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है । 

कलियुग में द्रव्य दान से शुद्धि नहीं है , स्मार्त संस्कार से भी सद्गति नहीं होती । इसदुष्ट कलियुग में वैदिक धर्म भी कहाँ है ? हे वायुपुत्र ! बार - बार विशेष क्या कहूँ । दोनों पक्ष की एकादशी में भोजन न करे । ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की एकादशी में जल भी वर्जित है । हे वृकोदर ! इसका व्रत करने से जो फल मिलता . है उसे सुनो । सब तीर्थों से जो पुण्य होता है और सब दान करने से जो फल होता है , हे वृकोदर ! वह फल इस एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है । साल भर में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की जितनी एकादशी हैं , उनका उपवास करने से धन , धान्य , बल , आयु ,पुत्र , आरोग्यता मिलते हैं । वे सब इस एकादशी के व्रत करने से मिल जाते हैं । हे नर व्याघ्र ! मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि इतना व्रत करने से बड़े शरीर वाले भयंकर काले पीले रंग के दण्ड पाशधारी यम के दूत उसके पास नहीं आये । बल्कि पीताम्बर धारी , हाथ में चक्र लिये हुए सुन्दर विष्णु पार्षद उसके पास आते हैं और अन्त समय में उस मनुष्य को विष्णु लोक में ले जाते हैं । इसलिये यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करना चाहिये । फिर जलदान और गोदान करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है । हे जनमेजय ! इसको सुनकर पाण्डवों ने इस व्रत को किया । 

उसी दिन से भीमसेन ने इस निर्जला एकादशी का व्रत किया । तभी से इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी विख्यात हो गया । “ हे अनन्त ! हे देवेश ! मैं आज आपका निर्जल व्रत करूँगा और दूसरे दिन भोजन करूँगा । " ऐसा कहकर सब पापों को दूर करने के लिये इन्द्रियों को वश में करके श्रद्धापूर्वक व्रत को करे । हे राजन् ! जिसने निर्जला एकादशी का विधिपूर्वक उपवास किया है , उसका और धर्म से क्या प्रयोजन है ? व्रत करने वाला विष्णु लोक को जाता है । हे कुरुश्रेष्ठ ! जो एकादशी के दिन सुवर्ण , अन्न , वस्त्र का दान करता है वह सब अक्षय होता है । एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह पाप भोगता है । इस लोक में वह चांडाल होकर मरने के बाद बुरी गति पाता है । जो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत करके दान करेंगे वे परम पद को प्राप्त होंगे । हे कौन्तेय ! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धा और नियम से युक्त स्त्री पुरुषों का जो विशेष कर्तव्य है उसे सुनो । जलशायी भगवान का पूजन करे और गोदान करे अथवा घृत धेनु का दान करे , अनेक तरह के मिष्ठान्न और दक्षिणा देकर ब्राह्मणों को प्रसन्न करे । 

ब्राह्मण के प्रसन्न होने से मोक्ष देने वाले भगवान भी प्रसन्न होते हैं । निर्जला के दिन अन्न , गौ , वस्त्र , शय्या , आसन , कमंडल , छत्र , पादत्राण इनका सुपात्र को दान देते हैं , वे सोने के विमानों में बैठकर स्वर्ग को जाते हैं । जो कोई भक्ति से इस कथा को सुनते अथवा कहते हैं , वे दोनों निःसन्देह स्वर्ग को जाते हैं । " मैं केशव भगवान को प्रसन्न करने के लिये आचमन के सिवा एकादशी के व्रत में दूसरा जल ग्रहण नहीं करूँगा ” इस प्रकार नियम करना चाहिये । द्वादशी के दिन गन्ध , पुष्प , जल और दीपक से देवताओं के ईश्वर वामनजी का पूजन करना चाहिये । 

विधि पूर्वक पूजन करके विनयपूर्वक कहे -- " हे देवताओं के ईश्वर ! हे इन्द्रियों के ईश्वर ! हे संसार समुद्र से पार करने वाले ! जल से भरे हुए कलश के दान करने से मुझको परम गति दीजिये । " ऐसा कहकर ब्राह्मणों के लिये शक्ति के अनुसार कलश देने चाहिये । इस प्रकार जो पवित्र और पापों को दूर करने वाली इस एकादशी का व्रत करता है वह सब पापों से छूट कर परम पद को प्राप्त होता है ।

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