Monday 25 April 2022

Best Woman Poem in hindi नारी की विवशता पर कविता शायरी, आसान नहीं एक औरत होना

जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम आपको नारी की विवशता पर एक कविता शेयर कर रहे है,क्योंकि एक शिक्षित नारी अपने परिवार के साथ सामाज और देश का भी उद्धार करती है। यह पोस्ट  लिखने का यही मकसद है कि समाज में नारी को कमज़ोर नही समझना चाहिए अपने मन षे पुराने खयालात निकल देने चाहिए और साथ ही साथ बेटी हो या महिला नारी के साथ दुष्कर्म, गलत व्यवहार तथा अपशब्द नही करना चाहिए। Nari Quotes in Hindi, Nari Shakti Quotes in Hindi, Nari Samman Poem in Hindi, Strong Confident Woman Quotes in Hindi, Treat a Girl With Respect Shayari in Hindi, Women’s Day Quotes in Hindi, नारी कोट्स, नारी शायरी इन हिंदी, नारी शक्ति कोट्स इन हिंदी, नारी सम्मान कोट्स इन हिंदी, महिलाओं पर अनमोल विचार, अच्छी लाईनें

Nari jeewan

Best Woman Poem in hindi नारी की विवशता पर कविता शायरी, आसान नहीं एक औरत होना

देख विषमता तेरी मेरी 
मैं क्यूँ इतना अभिशाप बनी ।
हुयी पैदा जब बेटी घर में तो बापू उससे रूठ पढे ।
रूठ पढे रिश्ते नाते जब चलना मैने सीखा था ।
बचपन से ही सीख गयी मैं मुझको कितना चलना है ।
रश्मे कस्मे वादों की सीमा रेखा जीवन में तान गये ।
अपनी हर खुशियों को दबाए बचपन जख्मों में बीत गया ।
शिक्षा का अधिकार छीनकर उंगलियाँ मुझपर उठने लगी ।
नहीं मिला सम्मान कहीं जब अपना ही घर जेल लगा ।
बडी हुयी मै तब जब मेरी जवानी ने उफान भरा ।
शहर गली के मनचलों से बचना फिर अगला इम्तहान हुआ ।
अश्लील गन्दे शब्दों को सुनकर मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया ।
जागीर समझते हर कोई मुझको न बेटी बोलना कबूल था ।
हुयी दाखिला स्कूल में जब तो अपने को छिपाए रहती थी ।
किन्तु काॅलेज का सफर तो अब और भयानक लगता था।
अश्लीलता की सीमाएं लांघकर मैं खुद से कश्मकश करने लगी ।
सुनने को मजबूर हो गयी हरकोई मुझे ही दोषी समझता है ।
हुयी देर अगर किसी कारणवश घर में  कोहराम मचलता था ।
देख विषमता मेरी उस ईश्वर को भी दुख ने तब घेर लिया ।
जब बाप की उम्र के होते हुए भी मुझको घूरते फिरते है ।
सहमी रहती हूँ उस समाज जहाँ नारी को देवी कहते है ।
इस झूठी शान शौकत ने मेरी अस्मिता को झकझोर दिया ।
दिल में खौफ सताए रहता है कब कौन सी घटना घट जाए ।
आया समय आखिरी जब पिता  बोझ समझकर विदा किया ।
फिर से इक और इम्तहान ने जिंदगी में आहिस्ता से दस्तक दी ।
नजर भरगयी पयी की जब तब प्यार वफा सब छूट गया ।
एक दूसरे का दुर्व्यवहार और दहेज के ताने सहती हूं ।
अब महज सामान बन गयी अपनों के सपने बुनती हूँ ।
बच्चे पती परिवार की सेवा में खुद का सुख मैं भूल गयी ।
आया पढाव आखिरी तब अपना ना कोई साथी रहा ।
राह नापती खुद को बचाती वृद्धाश्रम में पलती हूँ ।
उड गया पंछी मेरे आंचल फिर से मन मेरा उदास हुआ ।
यही विषमता मेरी है ना समझ सके ना समझोगे ।


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