Monday 18 April 2022

Garud Puran in hindi गरूड पुराण कथा प्रथम अध्याय हिन्दी भावार्थ दुख का कारण एवं दुख निवारण का मार्ग

जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम गरुण पुराण Garuda Purana के प्रथम अध्याय हिन्दी में मे आपको बता रहे है। दोस्तों हिन्दू धर्म के वेद पुराण में गरूड पुराण एक है । गरुण पुराण Garuda Puranam हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला है और इसीलिए मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण की कथा Garud Puran Katha के श्रवण का प्रावधान है। इस पुराण में मनुष्य को पाप कर्मों से बचने का प्रावधान बताया गया है। इस गरुण पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु माने जाते हैं। (भगवान विष्णु तथा गरुड़ के संवाद में गरुड़ पुराण – पापी मनुष्यों की इस लोक तथा परलोक में होने वाली दुर्गति का वर्णन, दश गात्र के पिण्डदान से यातना देह का निर्माण। इसीलिए यह गरूड पुराण हमें सत्कर्मों को करने के लिए प्रेरित करता है। 

Garud Puran in hindi गरूड पुराण कथा प्रथम अध्याय हिन्दी भावार्थ दुख का कारण एवं दुख निवारण का मार्ग 

धर्म ही जिसका सुदृढ़ मूल है , वेद जिसका स्कन्ध है , पुराणरूपी शाखाओं से जो समृद्ध हैं , यज्ञ जिसका पुष्प है और मोक्ष जिसका फल है , ऐसे भगवान् मधुसूदनरूपी पादप- कल्पवृक्ष की जय हो । एक समय शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि विष्णुक्षेत्र नैमिषारण्य में स्वर्ग की प्राप्ति के लिए हजार वर्षवाले ' सत्र ' नामक यज्ञ को करने लगे ।। १-२ ।। एक समय मुनियों ने प्रात : काल में हवन कर , दानादि से युक्त होकर सिंहासन पर बैठे हुए सूतजी से आदरपूर्वक पूछा || ३ || ऋषियों ने कहा- हे सूतजी ! सुख को देनेवाले देवमार्ग को सुना । अब भय को देनेवाले यमलोक मार्ग को भी हम लोग सुनने की इच्छा करते हैं || ४ || संसार के और उससे उत्पन्न हुए क्लेशों को नाश करने का उपाय तथा जीव इस लोक और परलोक में किस प्रकार दु : खादिक भोगते हैं , वह सब हम सुनने की इच्छा करते हैं , आप उन्हें कहने में सक्षम हैं , अत : उसका वर्णन करने की कृपा करें ॥५ ॥

सूतजी ने कहा- हे ऋषियों ! सुनो , यमलोक का मार्ग अत्यन्त कठिन है , परन्तु पुण्यवान् पुरुषों को सुख देनेवाला तथा पापी पुरुषों को दुःख देनेवाला है || ६ || गरुड़ ने इस कथा का विस्तार भगवान् से पूछा था । श्रीविष्णुजी ने जिस प्रकार गरुड़ से कहा , उसी प्रकार तुम्हारे सन्देह को दूर करने के लिए मैं भी कहूँगा ।। ७ ॥ एक समय वैकुण्ठ में भगवान् आनन्द से विराजमान थे , उस समय गरुड़ ने विनयान्वित होकर पूछा || ८ || गरुड़जी ने कहा- हे देव ! अनेक प्रकार के भक्तिमार्ग आपने मुझसे कहे और भक्तजनों की उत्तम गति को भी कहा ॥ ९ ॥ इस समय भयंकर यमलोक मार्ग को सुनने की इच्छा करता हूँ , आपकी भक्ति से विमुख पुरुषों का यमलोक में जाना मैंने सुना है || १० || हे भगवन् ! आपका नाम अति सुगम है , उसके उच्चारण करने में कुछ परिश्रम नहीं होता , सबके मुख में जिह्वा भी है , फिर भी वे नरक में जाते हैं , ऐसे नराधम पुरुषों को बारम्बार धिक्कार है ॥ ११ ॥

इस कारण हे भगवन् ! पापी मनुष्यों की जो गति होती है वह मुझसे कहें और यमलोक मार्ग में जाते हुए वे किस प्रकार दुःखों को प्राप्त करते हैं , वह भी कहिए ? ॥ १२ ॥ श्रीभगवान् ने कहा- हे पक्षीन्द्र ! जिसके सुनते ही भय उत्पन्न होता है , ऐसे यमलोक मार्ग को मैं कहता हूँ , जिस मार्ग से पापी मनुष्य नरक में जाते हैं , वह सुनने में ही बड़ा भयंकर है || १३ || उस नरक में ऐसे - ऐसे मनुष्य जाते हैं , जो पापकर्म में संलग्न हैं तथा दया- धर्म से रहित हैं , दुष्ट पुरुषों के साथी हैं , शास्त्र तथा सत्संगति से हैं।।१४ ] हम बड़े हैं , यह विचार कर ऐसे अभिमानी किसी को नमस्कार भी नहीं करते हैं , पराङ्मुख धन के मद से युक्त हो आसुरी सम्पदा को प्राप्त होते हैं और दैवी सम्पदा से वर्जित रहते हैं || १५ || चित्त के चलने मात्र से विक्षिप्त हैं , मोह- जाल से आच्छादित होकर मात्र कामभोग में संलग्न हैं , ऐसे प्राणी अपवित्र नरक में जाते हैं || १६ || ( जो पुरुष ज्ञानशील हैं , वे परमगति को प्राप्त होते हैं । जो प्राणी पापकर्म में प्रवृत्त हैं , वे तो दुःख से यमयातना को भोगते हैं ।। १७॥ पापी प्राणी को जैसे इस संसार | में दुःख होता है , उसको सुनो – वे मृत्यु को प्राप्तकर किस प्रकार से यमलोक को जाते हैं , उसे सुनो – ।। १८ ।। 

( सुकृत या दुष्कृत भोगकर अर्जित कर्म के कारण वृद्धावस्था में व्याधि उत्पन्न होती है।।१९ ॥ वे व्याधि ( मानसी पीड़ा ) , आधि ( शरीर पीड़ा ) से युक्त हो जीने की इच्छा रखते हैं , उनको सर्प के समान अचानक काल आकर प्राप्त हो जाता है ( जैसे - मेढक पर सर्प दौड़ता है ) || २० || ( अन्तकाल में भी उसे वैराग्य उत्पन्न नहीं होता और जिसका उसने पालन किया था , वे पुत्रादि उसका पालन करने लगते हैं और ऐसी अवस्था में उसे नेत्र से दिखता नहीं , कान से सुनायी नहीं देता , दाँत गिर जाते हैं अत : वह ऐसी अवस्था को प्राप्त हो मरणोन्मुख होते है ॥२१ ॥ अपमानित होकर पुत्रादि से दिये हुए भोजन को कुत्ते की तरह खाता है , रोगयुक्त है , भोजन जो करता है वह पचता नहीं , अल्पाहारी हो जाता है एवं चलने की शक्ति भी कम हो जाती है || २२ || प्राणवायु निकलते समय आँखें उलट जाती हैं , कफ के अधिक होने से नाड़ी सब बन्द - सी हो जाती है , खाँसी और श्वास के समय परिश्रम से कंठ में घर - घुर शब्द होने लगता है ।। ३ ।। उसकी चिंता से बन्धुगण चारों ओर उपस्थित होते हैं , उनके मध्य में सोया हुआ वह व्यक्ति कालपाश के वशीभूत होने से बोल भी नहीं पाता ॥ २४  ॥

यावज्जीवन पर्यन्त कुटुम्बके भरणपोषणमें आसक्तचित्त और अजितेन्द्रिय ऐसा पुरुष मरण समय की वेदना से मूर्छित हो बंधुजन के रुदन करते मृत्यु को प्राप्त होता है || २५ || हे गरुड़ ! उस समय उसमें दिव्यदृष्टि उत्पन्न होती है , अतः सम्पूर्ण जगत् को एकरूप समझता है , किन्तु बोलने की शक्ति नहीं रहती है || २६ || उस समय इन्द्रियाँ नष्ट हो जाती हैं और चैतन्य जड़ रूप हो जाता है । यमराज के दूत के समीप आने पर प्राण निकल जाते हैं || २७ || ( उस समय अपने स्थान से प्राण के चलने पर एक क्षण भी कल्पप्रमाण हो जाता है और सौ बिच्छुओं के डंक मारने से जो वेदना होती है , ऐसी वेदना उस समय उसको होती है ।। ८॥ अनन्तर मुख पर फेन आने लगता है और मुख से लार टपकने लगती है , उस पापी पुरुष के प्राणवायु नीचे के मार्ग से निकलते हैं || २ ९ || उस समय दो यमदूत आते हैं , वे बड़े भयानक व क्रोधयुक्त नेत्रवाले तथा पाशदंड को धारण करनेवाले नग्न अवस्था में ही रहते हैं , दाँत से कट - कट शब्द करते हैं || ३० || कौवे जैसे काले ऊँचे केश हैं , वक्रमुख है , है , ख ही जिनके आयुध हैं , ऐसे यमराज के दूत को देख पापी प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है || ३१ ॥

उस समय शरीर से अंगुष्ठमात्र जीव ' हा हा ' शब्द करता हुआ निकलता है , जिसको यमराज के दूत पकड़ लेते हैं ।। ३२ ॥ यमराज के दूत उस भोगनेवाले शरीर को पकड़कर पाश गले में बाँधकर उसी क्षण यमलोक को ले जाते हैं । जैसे— राजा के पुरुष दण्डनीय प्राणी को पकड़कर ले जाते हैं || ३३ || इस तरह उस पापी को रास्ते में थकने पर भी यमराज के भयभीत करते हैं और उसको नरक के दुःख को बारम्बार सुनाते हैं || ३४ || जल्दी चलो , तुमको यमलोक में ले जाकर पीछे कुंभीपाक आदि नरक में ले जायेंगे , इसलिये आज देर मत करो || ३५ || ऐसे यमदूतों का वचन सुन और बन्धुजन का प्रलाप सुन पापी उच्चस्वर से विलाप करते हैं किन्तु उसको यमदूत ताड़ना ही देते हैं । ३६॥ यमदूत की गर्जना से उसका हृदय विदीर्ण हो जाता है और काँपता हुआ वह मार्ग में चलते कुत्तों के काटने से दुःखी हो अपने किये हुए पापों को याद करते हुए चलता है ॥ ३७ ॥

वह भूख - प्यास से व्याकुल रहता है , मार्ग में दावानल पवन भी तपायमान रहता है और भड़भूजे जैसी गरम बालू वहाँ बिछी रहती है , इस कारण से वे चल भी नहीं पाते हैं , उस पर भी पीठ पर चाबुक की मार पड़ती है , उस समय जीव को तपित हुई बालुका से पूर्ण एवं विश्रामरहित और जलरहित मार्ग पर असमर्थ होते हुए भी अत्यधिक कठिनाई से चलना पड़ता है || ३८ || जगह - जगह श्रांत होकर वह गिर जाता है और मूर्छा आ जाती है , फिर उठ खड़ा होता है , इस प्रकार यमदूत पापी को अंधकाररूप मार्ग से यमलोक ले जाते हैं।।३९ । यमलोक निन्यानबे हजार योजन दूर है , वहाँ पापी मनुष्य को दो - तीन मुहूर्त में ले जाते हैं , तदनन्तर यमदूत उसको भयानक नरकयातना दिखाते हैं।।४० || इससे वहाँ प्राणी यम तथा यम की यातना देखकर मुहूर्तमात्र में ही यमराज की आज्ञा से यमदूतों द्वारा आकाशमार्ग से पुनः अपने घर को आता है || ४१ ॥ घर में आकर स्वशरीर में पुनः प्रवेश करने की इच्छा करता है , परन्तु यमदूत के पाश - बन्धन से , क्षुधा , तृषा आदि से दुःखित हो रोता है || ४२ || हे गरुड़ ! पुत्रादिक जो पिंड और अंत समय में दान देते हैं , उससे भी पापी प्राणी की तृप्ति नहीं होती || ४३ || क्योंकि पापी पुरुषों के पास , श्राद्ध और जलांजलि ठहरती नहीं , इस कारण भूख - प्यास से युक्त होकर प्राणी यमलोक को जाते हैं । ४४ ॥

जिनको पुत्रादि पिण्डदान नहीं देते हैं , वे प्रेतरूप होते हैं और कल्पपर्यन्त निर्जन वन में दुःखी होकर भ्रमण करते हैं । ४५ ॥ करोड़ों कल्प का समय बीतने पर भी कर्म को भोगना ही पड़ता है । प्राणी नरकयातना बिना भोगे मनुष्य शरीर को नहीं प्राप्त होता ।। ४६॥ हे गरुड़ ! इस कारण पुत्र को चाहिए कि वह दस दिन पिण्डदान करे , उस पिण्डदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं ।। ४७ ।। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देनेवाले हैं , तृतीय भाग यमदूत का है तथा चतुर्थभाग प्रेत भक्षण करता है ।। ४८ ।। नव दिन पिण्ड देने से प्रेत का शरीर बनता है , दसवें दिन पिण्डदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है ।। ४ ९ ॥ हे गरुड़ ! शरीर के दग्ध हो जाने के बाद पिण्ड से हस्त प्रमाण का शरीर उत्पन्न होता है , इससे वह मार्ग में शुभाशुभ फलको भोगता है ।। ५० ॥ प्रथम दिन के पिंड से मूर्धा , द्वितीय दिन के पिंड से ग्रीवा और स्कन्ध , तृतीय दिन के पिंड से हृदय , चतुर्थ दिन के पिण्ड से पृष्ठ भाग , पंचम दिन के पिंड से नाभि , षष्ठ और सप्तम दिन के पिंड से क्रमश : कटि और गुह्य , आठवें दिन के पिंड से ऊरु , नवें और दसवें दिन से क्षुधा , तृषा आदि उत्पन्न होती है ।। ५१-५३ ।।

ऐसे पिण्ड देह को धारणकर भूख - प्यास से युक्त प्रेत एकादशाह और द्वादशाह में दिया हुआ भोजन करता है ॥५४ ॥ यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत जैसे पकड़ा हुआ मर्कट अकेला जाता है , उसी प्रकार से वह भूख , प्यास से यमलोक को अकेला ही जाता है ॥५५ ॥ यमलोक के मार्ग का प्रमाण हे गरुड़ ! वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है ॥५६ ॥ उस मार्ग में प्रतिदिन प्रेत दो सौ योजन चलता है , इस प्रकार से सैंतालिस दिन में दिन - रात चलकर यमलोक पहुँचता है । इस प्रकार मार्ग में सोलह * पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।।५७-५८ । इन पुरियों के उल्लंघन करने के बाद आगे यमराजपुरी पड़ती है | ॥ ५ ९ ॥ पापी प्राणी यमपाश में बँधे हुए मार्ग में हाहाकार से रोते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी को जाते हैं । ६० ॥

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