Monday 23 May 2022

पढाई के बोझ से तनाव में बच्चे और उठा रहें है ऐसा कदम/ Children under stress due to the burden of studies

दोस्तों आज के समय में पढ़ाई और भविष्य को लेकर कई बच्चे प्रेशर के कारण Stress में आ जाते हैं। मां बाप बच्चों पर प्रेसर डाल रहे है लगातार प्रेशर से उन्हें तनाव भयभीत कर देता है। बच्चे अकेलापन महसूस कर रहें है ऐसी हालात में आप तुरंत ध्यान देकर उसमें सुधार करें। ताकि बच्चा समय से तनाव से बाहर आ सके। आइए आइए जानते है विस्तार से -----gyansadhna.com

पढाई के बोझ से तनाव में बच्चे और उठा रहें है ऐसा कदम/ Children under stress due to the burden of studies

जय श्री कृष्ण दोस्तों आज हम बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर बात करने जा रहे है, बच्चों की शिक्षा जो जीवन में सबसे अहम है।इन्हीं से देश और समाज का विकास जुडा हुआ है।आज के दौर में पढाई और पढाने की प्रक्रिया ही बदल चुकी है। हर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, और अच्छे अंको के साथ-साथ प्रथम आने की उम्मीद लगाए स्कूल भेजता है। आज की शिक्षा केवल अंकों और सर्टिफिकेट पर टिकी हुयी है। अव्वल आने की मांग बच्चों को प्रतियोगिता के जाल में फंसा देती है।जिस कारण अभिभावक अपने बच्चों को अपने सपने से बांध रहे है और उन्हें अंक लाने पर जोर दिया जा रहा है, बच्चे सफल हुए तो वाह-वाह! और असफल हुए तो उसे तनाव में ला देते है। यह सब अभिभावक बच्चे के भविष्य को देखकर नहीं बल्कि आस-पडोस के अव्वल बच्चों को देखकर जोर दे रहे है। gyansadhna.com

बच्चे खुद यह तय नहीं कर पाते कि पढाई अच्छे अंको के लिए करें या माता-पिता को खुश करने के लिये जबकि उनकी अपनी इच्चाएं और कौशल दोनों दबे के दबे रह जाते है और यही तनाव का मुख्य कारण है। इसीलिए बच्चा खेल में भी आनंद नहीं,बल्कि जीत तलाशने लगता है। उसके mind में 100% प्रतिशत का ही गोल घूमता है।जो आजकल के बच्चों से बचपन छीन लेता है, और यही कारण है कि आजकल के बच्चे माता पिता की कद्र नहीं कर पाते क्योंकि उन्होंने बचपन में ही तय कर दिया है कि उसे क्या बनना है। जबकि उस बच्चे की छमता और लगन कुछ और ही होती है। आज बच्चों के तनाव का स्तर (स्ट्रैस लेवेल) इतना बढ़ गया है कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होने लगी है। बच्चे तनाव में आ रहे है और जब उनकी भावनाओं को न घर में कोई समझ पाता है न अन्य जगय है बच्चे भयानक कदम उठाने को मजबूर हो जाते है। 

आइये आपको हम एक ऐसी घटना से रूबरू करवाते है जो आपकी आंखें खोल देगी और आप जान जाएंगे कि आपके बच्चे आपके बारे में क्या सोचते है ---

कोटा में आत्महत्या करने वाली एक छात्रा आखरी शब्द 

कोटा में कृति नाम की लडकी ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि : - 

" मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें ,तथा इस पढाई को नम्बरों से आंकना बंद करें।क्योंकि पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं । कृति ने लिखा है कि वो कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकालकर सुसाईड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को इस भयानक कदम उठाने से नहीं रोक पायी । बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़की जिसके 90+ मार्क्स हो वो सुसाइड भी कर सकती है , लेकिन मैं आपलोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है । अपनी मां के लिए उसने लिखा- " आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं । मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं ताकि आपको खुश रख सकूं । मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं । " कृति अपनी मां को चेतावनी देती है कि- ' इस तरह की चालाकी और मजबूर करनेवाली हरकत 11 वीं क्लास में पढ़नेवाली छोटी बहन से मत करना वो जो बनना चाहती है उसे पूरी आजादी दें ,

अभिभावकों से विनम्र निवेदन --

दोस्तों आजकल के बच्चे 21वीं शदी मेंपढ रहे है उनके अंदर छमता और कौशल अथाह भरा हुआ है, प्लीज अपने बच्चों में प्रतिस्पर्धा का बीज मत बोइयी पडोसी के बच्चे से तुलना मत कीजिए ये नहीं कि फलां का बेटा डाॅक्टर बन गया तो तू भी बन वो बच्चे है कोई मशीन नहीं है। उन्हें सीखने के मौके दीजिए। अगर बच्चे का कौशल Develop हो पाएगा तो वह अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी क्षेत्र में Carrier बना पायेगा अन्यथा आपका पैसा भी बर्बाद होगा और बच्चे से भी हाथ धोना पड सकता है।उसे freedom होने दें उसके विकास को अवरुद्ध न करें बल्कि उसे बचपन ये यह शिक्षा दें कि उसे जो बनना है वह अभी से उसकी तैयारी करें।  अपनी इच्छा या सपनें बच्चों पर मत थोपिए।

आज की शिक्षा का गिरता स्तर --

बच्चों में डिप्रेशन लाने के लिए शिक्षण संस्थान भी अहम भूमिका निभा रहे है। अपने संस्थान का नाम हो इसीलिए बच्चों को जोर दिया जाता है अच्छे अंक लाने के लिए। जबकि शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य ही कुछ और है जो कुछ ही विद्यालयों में देखने को मिलता है। जैसे विद्या भारती के शिक्षण संस्थान या गुरूकुल आधारित शिक्षा प्रणाली।  शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है पारीवारिक रिश्तों का महत्व शिखाना,सहयोग करने की भावना सिखाना,असफलताओं तथा समस्याओं से लडना सिखाना, मानवता का पाठ सिखाना, महापुरुषों का चित्रण सिखाना, इस धरती और भारत माता की उपयोगिता सिखाना।

लेकिन अफसोस तो यह है कि यह केवल कल्पना मे रह गयी है, स्कूल केवल दुकानों का रूल अदा कर रहे है, जहाँ प्रोडक्ट बिकते और तैयार होते है,देश का भविष्य नही। इसका मुख्य कारण है अशिक्षा और सर्टिफिकेट शिक्षा।

ऐसे में अगर परिवार वाले भी बच्चों का सही मार्गदर्शन नहीं कर पाएंगे तो फिर अंधों की फौज तैया होगी रशियन जैसे हालात होंगे के बंदूक के दम पर अफसर और नेता चुने जाएंगे। फिर होगा मानवता का सरेआम कत्ल,भावनाओं का दफन होगा,प्रेम और करुणा सरे बाजार बिकेगी।

दोस्तों बच्चों का हृदय बहुत कोमल होता है वे कच्चे घडे के समान माने जाते है और आपको केवल कुम्हार का काम करके उन्हें सही दिशा देनी है। बच्चों के साथ खिलवाड़ ना करें उन पर सपनें न थोपें उनके सपनों के लिए परीश्रम कीजिए। ऐसी स्थिति में जो बच्चे कमजोर होते है वो आत्महत्या कर देते है और जो थोडा हिम्मत वाले होते है वो नशे की ओर बढ रहे है । जिसका सपना आपने शायद कभी न देखा होगा।ऐसी स्थिति में में बच्चों से प्रेम से बातें करें उनका हाॅसला बढाने का प्रयास करें।  

This is the author's own opinion, if you have got hurt even at the slightest, please forgive me as your younger brother, your own brother Arun Semwal (Thank you)

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