Hindi Grammar Part-3 Varnmala वर्णनमाला विचार स्वर वर्ण की परिभाषा प्रकार अर्थ व भेद
वर्ण - भाषा का रूप वाक्यों से बनता है। वाक्य सार्थक पदों (शब्दों) से बनते हैं और शब्दों की संरचना वर्णों के संयोग से होती है। अतः यह स्पष्ट है कि वर्ण भाषा की सबसे छोटे इकाई है। पारिभाषिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि-
परिभाषा-Definition
"वर्ण भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि है, जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। जैसे- अ, आ, क, च, स, न् आदि
👉वर्ण शब्द का प्रयोग ध्वनि और ध्वनि चिह्न दोनों के लिए होता है।
👉वर्णमाला-वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Alphabets) कहते हैं।
वर्णों के भेद-differences of characters
वर्णों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा कता है--1- स्वर वर्ण
2- व्यञ्जन वर्ण
1- स्वर वर्ण
स्वर वर्ण मुख्यतः 11 होते है-
(अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ)
स्वर वर्णों का उच्चरण बिना रुके लगातार होता है। ऊपर के किसी वर्ण का उच्चारण लगातार किया जा सकता है सिर्फ 'ऋ' वर्ण को छोड़कर, क्योंकि ॠ का लगातार उच्चारण करने पर 'इ' स्वर आ जाता है ।
स्वर वर्णों के भेद
1- उच्चारण के आधार पर स्वरों के भेदउच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर स्वर वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है-
(क) मूल या हस्व स्वर - अ, इ, उ और ऋ (उच्चारण में कम समय)
(ख) दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, और औ (उच्चारण में अधिक समय)
(ग) संयुक्त स्वर - ए, ऐ, ओ, औ
(इनको संयुक्त या संध्य स्वर कहा जाता है; क्योंकि ये दो भिन्न स्वरों के संयोग या संधि के कारण बने हैं।)
2- जाति के आधार पर स्वर वर्णों के भेद-
उच्चारण के अनुसार स्वर वर्णों को दो भागों में रखा गया है-(क) सजातीय/सवर्ण स्वर : इसमें सिर्फ मात्रा का अंतर होता है। ये ह्रस्व और दीर्घ के जोड़ेवाले होते हैं।
जैसे— अ-आ, इ-ई, उ—ऊ
(ख) विजातीय/असवर्ण स्वर : ये दो भिन्न उच्चारण स्थानवाले होते हैं।
3- उच्चारण स्थान के अनुसार स्वरों के भेद-
1- अनुनासिक स्वर - जिन स्वरों के ऊपर चंद्रबिन्दु (ँ ) लगा है और उन्हें नाक से बोला जा रहा है। अनुनासिक(अनु+नासिक) अनु पीछे या बाद अर्थात् जिन वर्णों को बाद में नाक से बोला जाए, उन्हें अनुनासिक कहा जाता है। चंद्रबिन्दु वाली ध्वनि को वर्ण के साथ उच्चारित करते हैं आँख,ऊँट,उँगली बोलते समय चंद्रबिन्दु की ध्वनि अपने स्वर के साथ ही उच्चारित हो रही है। चिह्न को चंद्रबिन्दु / चंद्रानुस्वार भी कहते हैं।2- सानुस्वार - ( स +अनुस्वार )" शिरोरेखा के ऊपर लगने वाले बिन्दु को अनुस्वार और जिस वर्ण पर लगता है,उसे संस्वर अर्थात् अनुस्वार सहित बोला जाता है, किन्तु अनुस्वार/ बिन्दु की ध्वनि स्वतंत्र सुनाई पड़ती है,अनुनासिक के समान साथ में नहीं। ऊपर दिए गए शब्दों अंग, इंद्र आदि शब्दों के उच्चारण से यह बात ज्ञात होती है।
3- निरनुनासिक - खण्ड करने (नि: + अनु + नासिक) अर्थात् जिसे अनुनासिक के समान नाक से नहीं बोलते। क्रमांक 3. में दिए गए शब्द अभी, आज, इधर आदि से प्रकट है।
4- ओष्ठाकृति के आधार पर स्वरों के भेद-
1- वृत्ताकार स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोल हो जाते हैं, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं।जैसे-उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
2- अवृत्ताकार स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोलाकार न होकर फैले रहते हैं, उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहते हैं।
जैसे- अ, आ, इ, ई, ए, ऐ।
5- मुखाकृति के आधार पर स्वरों के भेद-
1- अग्र स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग सक्रिय रहता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं।जैसे- अ, इ, ई, ए, ऐ ।
2- पश्च स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पिछला भाग सक्रिय रहता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं।
जैसे - आ, उ, ऊ, ओ, औ, आँ।
3- संवृत स्वर - संवृत का अर्थ है - कम खुलना। जिन स्वरों के उच्चारण में मुँह कम खुले, उन्हें संवृत स्वर कहते हैं।
जैसे- ई, ऊ
4- अर्द्ध संवृत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में मुख संवृत से थोड़ा ज्यादा खुलता है, उन्हें अर्द्ध संवृत स्वर कहते हैं।
जैसे-ए, ओ।
5- विवृत स्वर - विवृत का अर्थ है - अधिक खुला हुआ। जिस स्वर के उच्चारण में मुख बहुत अधिक खुलता है, उसे विवृत स्वर कहते हैं। जैसे-आ
6- अयोग्यवाह
स्वर व व्यञ्जन के अतिरिक्त दो और ध्वनि होती है।जिनका मेल न स्वरों के साथ होता है न व्यञ्जनों के साथ इसीलिए वे अनुस्वार और विसर्ग का रूप लेते है,
जैसे - अं, अः
जैसे— अ- इ, उ—ओ आदि ।
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