संस्कृत के 10 सुप्रसिद्ध संस्कृत सुभाषितानी सुविचार व अनमोल वचन (अर्थ सहित) Sanskrit Subhashitani with Hindi Meaning
नमस्कार दोस्तों Gyansadhna में आपका स्वागत है आज हम विद्या सुभाषित संस्कृत सुभाषित
संस्कृत में सुभाषितानी हिन्दी अर्थ सहित संस्कृत सुभाषित Subhashita with Meaning अर्थ सहित सलंगन किये है। सुभाषित अक्सर हमारे किसी न किसी कार्यक्रम में उच्चारण होता रहता है। सुभाषित संघ के कार्यकर्मों में अक्सर इस्तेमाल किये जाते है Sanskrit men Subhashitani
सबसे अच्छी प्रेरणादायक 25 संस्कृत श्लोक सुभाषितानी,सुविचार व अनमोल वचन हिन्दी अर्थ सहित? Best Inspirational 25 Sanskrit Shlok Subhashitani, Suvichar and Priceless Words with Hindi Meaning
Sanskrit men Subhashitani
श्लोक 1- गुरुशुश्रूषया विद्या पुष्क्लेन धनेन वा।
ओआर विद्याया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते ॥
अर्थात - गुरुकी सेवा करने से या भरपूर धन देने से विद्या प्राप्त कर सकते है, अथवा एक विद्या का दसरी विद्या के साथ विनिमय कर सकते है. ब्रह्मविद्या प्राप्त करने का चौथा कोई रास्ता उपलब्ध नहीं है ।
श्लोक 2- यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकेन कर्मणा ।
परापवादससेभ्यो गां चरन्तीं निवारय ॥
अर्थात - यदी किसी एक काम से आपको जग को वश करना है तो परनिन्दारूपी धान के खेत में चरनेवाली जिव्हारूपी गाय को वहाँ से हकाल दो अर्थात दुसरे की निन्दा कभी न करो। संस्कृत मे गौ: शब्द के अनेक अर्थ है। सुभाषितकार गौ के दो अर्थ इन्द्रिय जिव्हेन्द्रिय तथा गाय लेकर शब्द का सुन्दर उपयोग किया है।
श्लोक 3- यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महोदधौ ।
सहबद्ध च व्यपेयातां तद्वद् भूतसमागमः ॥
अर्थात - जैसे लकडी के दो टुकडे विशाल सागर में मिलते है तथा एक ही लहर से अलग हो जाते है उसी तरह दो क्ति कुछ क्षणों के लिए सहवास में आते है फिर कालचक्र की गती से अलग हो जाते है ।
श्लोक 4- यदि सन्ति गुणाः पुंसां विकसन्त्येव ते
स्वयम् न हि कस्तुरिकामोदः शपथेन विभाव्यते
अर्थात - मनुष्यके गुण अपने आप फैलते है, बताने नही पडते । जिसतरह, कस्तूरी का गंध सिद्ध नही करना पडता ।
श्लोक 5- न व्याधिर्न विषं नापत तथा नाधिश्च
भूतले खेदय स्वशरीरस्थं मौख्यमेकम् यथा नृणाम्
अर्थात - इस जगत स्वयंकी मर्खताही सब दःखोंकी जड होति है। कोई व्याधि, विष, कोई आपत्ति तथा मानसिक व्याधि से उतना दुःख नही होता।
श्लोक 6- असूयैकपदं मृत्युः अतिवादः श्रियो वधः ।
अशुश्रुषा त्वरा श्लाघा विद्याः शत्रुवस्त्रयः ॥
अर्थात - विद्यार्थी के संबंध में द्वेश यह मृत्यु के समान है। अनावश्यक बाते करने से धन का नाश होता है। सेवा करने की मनोवृत्ती का आभाव, जल्दबाजी तथा स्वयं की प्राशंसा स्वयं करना यह तीन बाते विद्या ग्रहण करने के शत्रू है ।
श्लोक 7- वने राणे शत्रुजलाग्नि में |
रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि ||
अर्थात - जब हम जंगल के मध्य में, या फिर रणक्षेत्र के मध्य में, या फिर जल में, या फिर अग्नि में फस जाते है, तब अपने भूतकाल के अच्छे कर्म ही हम को बचाते है।
श्लोक 8- न वध्यन्ते ह्यविश्वस्ता बलिभिर्दर्बला अपि
विश्वस्तास्त्वेव वध्यन्ते बलिनो दुर्बलैरपि
अर्थात - दुर्बल मनुष्य विश्वसनीय न होने पर भी बलवान मनुष्य उसे मारता नही है। बलवान पुरुष विश्वसनीय होने पर भी दुर्बल मनुष्य उसे मारता ही है।
श्लोक 9- असूयैकपदं मृत्युः अतिवादः श्रियो वधः ।
` अशुश्रुषा त्वरा श्लाघा विद्याः शत्रुवस्त्रयः ॥
अर्थात - विद्यार्थी के संबंध में द्वेश यह मृत्यु के समान है । अनावश्यक बाते करने से धन का नाश होता है । सेवा करने की मनोवृत्ती का आभाव, जल्दबाजी तथा स्वयं की प्राशंसा स्वयं करना यह तीन बाते विद्या ग्रहण करने के शत्रू है।
श्लोक 10- क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जनः किं करिष्यति ।
अतॄणे पतितो वन्हिः स्वयमेवोपशाम्यति ॥
अर्थात - क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में हो, उसे दुर्जन क्या कर सकता है ? अग्नि, जब किसी जगह पर गिरता है जहाँ घास न हो, अपने आप बुझ जाता है।
} 50 संस्कृत सुभाषितानी सुविचार व अनमोल वचन
} शास्त्रों के 65 संस्कृत सुभाषितानी संस्कृत सुविचार
} मनुस्मृति के 31 महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद सूक्तियां
} 22 संस्कृत सुभाषितानी सुविचार एवं अनमोल वचन
} जीवन पर 50 सर्वोच्च विचार व अनमोल वचन
} 51 महत्वपूर्ण अंग्रेजी शिक्षाप्रद सूक्तियां
} संस्कृत में 40 शिक्षाप्रद सूक्तियां अर्थ सहित
0 comments: