Tuesday, 25 July 2023

Prernadayak kahani Sangrah-1 नम्र बनो कठोर नहीं और सहनशीलता का जादू

Prernadayak kahani Sangrah-1 नम्र बनो कठोर नहीं और सहनशीलता का जादू

Motivational stori in hindi नमस्कार दोस्तों दोस्तों इसमें हम Nayi Disha में Bal katha लेकर आए है, हिन्दी कहानियाँ  एक ऐसी विधा जो जीवन को, परिस्थितियों को अपने में लेकर उलझी हुई समझ को, सुलझा देती हैं,प्रेरणादायक हिंदी कहानी संग्रह कथा स्टोरी ज्ञानवर्धक किस्से Hindi Kahani or Story Collection जीवन में नयी दिशा जगा देती है।Inspirational story हिंदी कहानी हमारे व्यक्तित्व को एक दर्पण की भांति हमारे सामने प्रेषित करती हैं; हमे ज्ञान से ओतप्रोत करती है। best Motivational story in hindi कहानियाँ जीवन का दर्पण है,कहानियाँ हमें प्रेरणा देती हैं। Success stori in hindi जिनसे हमें अपने कर्मो का बोध होता हैं, जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति का माध्यम बनता है।Motivational story माना कि कहानियाँ काल्पनिक होती हैं पर कल्पना परिस्थिती के द्वारा ही निर्मित होती हैं, कहीं न कही यह हमें जीवन में बडा संदेश देती है। successful story in hindi पाठको को लुभाने एवं बांधे रखने के लिए कई बार भावों की अतिश्योक्ति की जाती हैं लेकिन अंत सदैव व्यवहारिक होता हैं, यथार्थता से परिपूर्ण होता हैं।Inspirational moral story
आइए हम आपको ऐसी कुछ कहानियाँ दिखाते है जो आपके जीवन  को नयी दिशा प्रदान करेगी। और आपकी सफलता का माध्यम बनेगी। best Love story in hindi  ऐसी कयी प्रेरणादायक कहानियाँ Motivational story in hindi ज्ञानवर्धक कहानियाँ Inspirational story

1-नम्र बनो, कठोर नहीं

एक चीनी सन्त बहुत बूढ़े हो गए। उन्होंने देखा कि अन्तिम समय निकट आ गया है, तो अपने सभी भक्तों और शिष्यों को अपने पास बुलाया। प्रत्येक से वे बोले- 'तनिक मेरे मुँह के अन्दर तो देखो भाई कितने दाँत हैं?'
प्रत्येक शिष्य ने मुँह के भीतर देखा, प्रत्येक ने कहा- ' दाँत तो कई वर्ष से समाप्त हो चुके हैं महाराज ! एक भी दाँत नहीं है । ' सन्त ने कहा - 'जिह्वा तो विद्यमान है ? '
सबने कहा 'जी हाँ । '
सन्त ने कहा 'यह बात कैसे हुई ? जिह्वा तो जन्म - समय भी विद्यमान थी। दाँत उससे बहुत पीछे आए। पीछे आने वाले को पीछे जाना चाहिये था । ये दाँत पहले कैसे चले गये। ' -
शिष्यों ने कहा - 'हम तो इसका कारण समझ नहीं पाते ।'
तब सन्त ने धीमी आवाज में कहा-' यही बतलाने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया है। देखो ! यह वाणी अब तक विद्यमान है, यह इसलिए कि इसमें कठोरता नहीं और ये दाँत पीछे आकर पहले समाप्त हो गए तो इसलिए कि ये बहुत कठोर थे। इन्हें अपनी कठोरता पर अभिमान था । यह कठोरता ही इनकी समाप्ति का कारण बनी। इसलिए मेरे बच्चों ! यदि देर तक जीना चाहते हो तो नम्र बनो, कठोर न बनो ! '

2-सहनशीलता का जादू

महर्षि दयानन्द ठहरे थे फर्रुखाबाद में गंगा तट पर । उनसे थोड़ी ही दूर एक और झोपड़ी में दूसरा साधु भी ठहरा हुआ था। प्रतिदिन वह दयानन्द की कुटिया के पास आकर उन्हें गालियाँ देता रहता। उसे दयानन्द सुनते और मुस्करा देते। कोई भी उत्तर नहीं देते थे। कई बार उनके भक्तों ने कहा ‘महाराज! आपकी आज्ञा हो तो इस दुष्ट साधु को सीधा कद दें।'
महाराज सदा कहते- 'नहीं, वह स्वयं ही सीधा हो जायेगा। '

एक दिन किसी सज्जन ने फलों का एक बहुत बड़ा टोकरा महर्षि के पास भेजा। महर्षि ने टोकरे से बहुत अच्छे-अच्छे फल निकाले, उन्हें एक कपड़े में बाँधा और एक व्यक्ति से बोले - ' ये फल उस साधु को दे आओ,जो उस परली कुटिया में रहता है, जो प्रतिदिन यहाँ आकर कृपा करता है।'
उस व्यक्ति ने कहा - ' परन्तु वह तो आपको गालियाँ देता है ? 

महर्षि बोले- 'हाँ, उसी को दे आओ। '

वह सज्जन फल लेकर उस साधु के पास गये। जाकर बोले- 'साधु बाबा ! ये फल स्वामी दयानन्द ने आपके लिए दिये हैं। '

साधु ने दयानन्द का नाम सुनते ही कहा- 'अरे! यह प्रात:काल किसका नाम ले लिया तूने? पता नहीं, आज भोजन भी मिलेगा या नहीं। चला जा यहाँ से मेरे लिए नहीं, किसी दूसरे के लिए भेजे होंगे। मैं तो प्रतिदिन उसे गालियाँ देता हूँ। '

उस व्यक्ति ने महर्षि के पास आकर यही बात कही। महर्षि बोले- 'नहीं, तुम फिर उसके पास जाओ। उसे कहो कि आप प्रतिदिन जो अमृतवर्षा करते हो, उसमें आपकी पर्याप्त शक्ति लगती है। ये फल इसीलिए भेजे हैं कि उन्हें खाइये, इनका रस पीजिये, जिससे आपकी शक्ति बनी रहे और आपकी अमृत वर्षा में कमी न आ जाये। '

उस व्यक्ति ने साधु के पास जाकर वही बात कह दी - ' सन्त जी महाराज! ये फल स्वामी दयानन्द ने आप ही के लिए भेजे हैं और कहा है आप प्रतिदिन जो अमृत वर्षा उन पर करते हैं, उसमें आपकी पर्याप्त शक्ति व्यय होती है। इन फलों का प्रयोग कीजिये, जिससे आपकी शक्ति बनी रहे और आपकी अमृत वर्षा में न्यूनता न आये । '

साधु ने यह सुना तो घड़ों पानी उस पर पड़ गया। वह निकला अपनी कुटिया से, दौड़ता हुआ पहुँचा महर्षि के पास, उनके चरणों में गिर पड़ा, बोला ‘महाराज ! मुझे क्षमा करो। मैंने आपको मनुष्य समझा था, आप तो देवता हैं। '

यह है सहनशीलता का जादू ! जिसमें यह सहनशीलता उत्पन्न हो जाती है, उसके जीवन में एक अनोखी मिठास, एक अद्भुत सन्तोष और एक विचित्र प्रकाश आ जाता है।

0 comments: