Prernadayak kahani Sangrah-2 संगत का प्रभाव एवं सहनशक्ति की महिमा
Motivational stori in hindi नमस्कार दोस्तों दोस्तों इसमें हम Nayi Disha में Bal katha लेकर आए है, हिन्दी कहानियाँ एक ऐसी विधा जो जीवन को, परिस्थितियों को अपने में लेकर उलझी हुई समझ को, सुलझा देती हैं,प्रेरणादायक हिंदी कहानी संग्रह कथा स्टोरी ज्ञानवर्धक किस्से Hindi Kahani or Story Collection जीवन में नयी दिशा जगा देती है।Inspirational story हिंदी कहानी हमारे व्यक्तित्व को एक दर्पण की भांति हमारे सामने प्रेषित करती हैं; हमे ज्ञान से ओतप्रोत करती है। best Motivational story in hindi कहानियाँ जीवन का दर्पण है,कहानियाँ हमें प्रेरणा देती हैं। Success stori in hindi जिनसे हमें अपने कर्मो का बोध होता हैं, जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति का माध्यम बनता है।Motivational story माना कि कहानियाँ काल्पनिक होती हैं पर कल्पना परिस्थिती के द्वारा ही निर्मित होती हैं, कहीं न कही यह हमें जीवन में बडा संदेश देती है। successful story in hindi पाठको को लुभाने एवं बांधे रखने के लिए कई बार भावों की अतिश्योक्ति की जाती हैं लेकिन अंत सदैव व्यवहारिक होता हैं, यथार्थता से परिपूर्ण होता हैं।Inspirational moral story
आइए हम आपको ऐसी कुछ कहानियाँ दिखाते है जो आपके जीवन को नयी दिशा प्रदान करेगी। और आपकी सफलता का माध्यम बनेगी। best Love story in hindi ऐसी कयी प्रेरणादायक कहानियाँ Motivational story in hindi ज्ञानवर्धक कहानियाँ Inspirational story
3- सहनशक्ति की महिमा
महात्मा सुकरात बहुत बड़े विद्वान और दार्शनिक थे। सारा यूनान उनका आदर करता था। परन्तु उनकी धर्मपत्नी थी क्रोध की साक्षात् मूर्ति । वह हर समय लड़ती थी । मीठा बोलना उसने सीखा नहीं था । प्रतीत होता था चीनी उसने कम खाई, कुनेन ही खाती रही। सुकरात घर पर मौन बैठते तो वह चिल्लाना आरम्भ कर देती - 'हर समय चुप ही बैठे रहते हैं।' वे कोई पुस्तक पढ़ते तो चिल्ला उठती - ' आग लगे इन पुस्तकों को ! इन्हीं के साथ विवाह कर लेना था, मेरे साथ क्यों किया ? '
एक दिन वे आये तो पत्नी ने इसी प्रकार बकना - झकना आरम्भ किया। सुकरात के कुछ विद्यार्थी और भक्त भी उनके साथ थे। उन्होंने इस बात का बहुत बुरा माना, परन्तु सुकरात मौन बैठे रहे। पत्नी ने इन्हें मौन देखा तो उसके क्रोध का पारा और चढ़ गया, वह और भी ऊँची आवाज में बोलने लगी। सुकरात फिर चुपचाप बैठे रहे। पत्नी ने तब क्रोध से पागल होकर मकान के बाहर पड़ा बहा हुआ गन्दा कीचड़ एक बर्तन शीघ्रता से आकर सारा कीचड़ सुकरात के सिर पर डाल दिया। भरा और
तब सुकरात हँसकर बोले- 'देवी, आज तो पुरानी कहावत अशुद्ध हो गई। कहावत है कि गरजने वाले बरसते नहीं। आज देखा जो गरजते हैं। वे बरसते भी हैं।
सुकरात हँसते रहे, परन्तु उनका एक विद्यार्थी क्रोध में आ गया। उस विद्यार्थी ने चिल्लाकर कहा - ' यह स्त्री तो चुड़ैल है आपके योग्य नहीं। '
सुकरात बोले 'नहीं ये मेरे ही योग्य है। यह ठोकर लगा लगाकर देखती रहती है कि सुकरात कच्चा है या पक्का । इसके बार-बार ठोकर लगाने से मुझे पता तो लगता रहता है कि मेरे अन्दर सहनशक्ति है या नहीं। पत्नी ने ये शब्द सुने तो झट उनके चरणों में गिर पड़ी। रोती हुई बोली- 'आप तो देवता हैं। मैंने आपको पहचाना नहीं । '
यह है तप की महिमा ! तप और सहनशीलता से अन्ततोगत्वा मनुष्य विजय प्राप्त होती है। बुरे व्यक्ति भी अपना स्वभाव बदल देते हैं। इसीलिए हमें अपने कर्मों को सुधारकर अच्छी राह पर चलना चाहिए।
4-सत्संग का प्रभाव
थोड़ी देर की अच्छी संगत भी क्या परिणाम उत्पन्न करती है, यह अमर शहीद आर्य मुसाफिर पण्डित लेखराम जी के जीवन से ज्ञात होता है। आर्य समाज के ये महान विद्वान नेता ग्राम-ग्राम में घूमकर प्रचार कर रहे थे। एक ग्राम में पहुँचे तो उस प्रदेश का डाकू मुगला भी उनके व्याख्यान को सुनने के लिए आ गया। इसके कई साथी भी दूसरे लोगों के साथ बैठ गये। ग्राम के लोगों ने जब मुगला को देखा और पहचाना तो उनके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। एक-एक करके वे उठने लगे। पण्डित लेखराम जी व्याख्यान दे रहे थे। लोग उठकर जा रहे थे। उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह क्या हो रहा है। धीरे-धीरे सभी लोग चले गये। केवल मुगला और उनके साथी रह गये। पंडित लेखरामजी भाषण देते रहे। वे कर्म के संबंध में बोल रहे थे और बता रहे थे कि : अश्वमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
व्याख्यान समाप्त हुआ तो मुगला ने पण्डित लेखराम जी के पास जाकर कहा-' आप कौन हैं?"
पण्डित जी ने कहा- 'मैं लेखराम हूँ। '
डाकू ने कहा-'मैं एकान्त में आपसे कुछ बातें पूछना चाहता हूँ। क्या आपसे मिल सकता हूँ?'
लेखराम जी ने कहा- ' अवश्य मिल सकते हो। मैं आर्य समाज में ठहरा हुआ हूँ, वहीं आ जाना। '
रात्रि के समय मुगला और उसके साथी समाज के मकान में जा पहुँचे। ग्रामवालों ने समझा कि आपत्ति आ गई है। ये लोग बेचारे पण्डित जी को लूटने आये हैं, परन्तु मुगला ने हाथ जोड़कर पण्डित जी से कहा—'आप तो कह रहे थे कि प्रत्येक कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है, तो क्या यह ठीक है?'
पण्डित जी ने कहा- ' शत-प्रतिशत ठीक है । '
मुगला बोला- 'क्या प्रत्येक कर्म का फल भोगना पड़ेगा ? क्या बचने का कोई उपाय नहीं ?
पण्डित जी ने कहा- 'कोई नहीं । '
मुगला ने कहा - ' तो फिर क्या बनेगा? मैं तो कई वर्षों से डाके डाल रहा हूँ।'
पण्डित जी ने कहा- 'आज से छोड़ दो। कल आर्यसमाज में आओ मैं तुम्हें यज्ञोपवीत दूँगा । इसके पश्चात् धर्म के मार्ग पर चलो।'
मुगला और उसके साथी दूसरे दिन आर्यसमाज में पहुँच गये। सबका जीवन बदल गया। यह होता है सत्संग का प्रभाव !
0 comments: