Tuesday, 29 August 2023

गुरू की महिमा पर संस्कृत/हिन्दी कविता Kavita on Teachers day in hindi,Sanskrit poem

गुरू की महिमा पर संस्कृत/हिन्दी  कविता  Kavita on Teachers day in hindi,Sanskrit poem

दोस्तों आज हम शिक्षक पर संस्कृत श्लोकों एवं संस्कृत हिन्दी कविता लेकर आए है Poem on Teacher in Hindi Sanskrit – इस पोस्ट में शिक्षकों के सम्मान में कुछ बेहतरीन Sanskrit shlok & Sanskrit kavita यहाँ दी गई हैं, यह शिक्षक पर कविता आप शिक्षक दिवस पर भी अपने शिक्षक को Teachers Day Poem in Hindi समर्पित कर सकते हैं, शिक्षक का राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं छात्रों का उज्जवल भविष्य और उत्तम चरित्र निर्माण में शिक्षक की अहम भूमिका होती हैं, Poem on Teacher in Hindi,Poem on Teacher in Hindi Sanskrit, Teachers Day Poem in Hindi, शिक्षक पर कविता, Hindi Poem on Teacher Student Relationship, Hindi Poems Teachers Day,Sanskrit shloks in hindi

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरू शिव है, गुरु ब्रह्मा, गुरु ही है बिष्णु ।
दूजा पूजूं न मैं धरा पर, तुम ही हो मेरे ईश्वर ।।
 
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥
धर्म से है जिनका रिश्ता, धर्माचरण करते सदा ।
शास्त्रों का रस सार जिनमें, उन गुरुओं को प्रणाम है ।।
 
नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ।
गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत्॥
गुरु से नीचा हो नित्य आसन भाव में सम्मान हो ।
चरणों का आशीष लेकर, लक्ष्य पर तब ध्यान हो।
 
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्॥
धन-ऐश्वर्य-सुख-शान्ति रुतबा मिलता कहाँ जग में कहीं ।
गुरु बिना है असम्भव ये ,गुरु कृपा से सब मिले ।।
 
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
सूचना प्रदाता गुरु है,न्याय पंथ दिखाते है ।
अंधकार को दूर करके, ज्ञान दीप जलाते है ।।
 
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥
गु-कार से तिमिर समझो, रु-कार से तेज हो ।
अंधकार को दूर करे जो, उन गुरु को प्रणाम है ।।
 
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम्।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता॥
निपुणता,शील,पांडित्य,संक्रांति, अनुशीलन ।
सचेतत्व,प्रसन्नता ये सात गुण के होते ।।
 
गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते।
कर्णौ तत्र विधातव्यो गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः॥
जहाँ गुरु की निंदा होती,वहां विरोध करे सदा ।
सामर्थ्य गर ना हो इसमें तो इन्द्रियों को बंद रखो ।।
 
विनय फलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुत ज्ञानम्।
ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रव निरोधः॥
विनय का फल सेवा समझो,गुरुसेवा फल ज्ञान हो ।
ज्ञान का फल विरक्ति समझो,विरक्ति का फल मोक्ष हो ।।

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