Friday 29 September 2023

Pitrdosh Shanti StotramIn Hindi ॥ पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित ॥

Pitrdosh Shanti StotramIn Hindi ॥ पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित ॥

अर्चितानाममूर्तानां पितॄनां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषम्॥१॥
हिन्दी अर्थ- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ ।

इंद्रादिनां च नेतारो दक्षमारिचयोस्तथा ।
सप्तर्षिणां तत्न्येषां तं नमस्यामि कामदान ॥२॥
हिंदी अर्थ - जो इंद्र आदि देवता, दक्ष, मारीच, सप्तर्षि और देवताओं के भी नेता हैं, उनकी कामना करने वाले उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूं।

मन्वादीनां च नेताराः सूर्यचन्द्रमसोस्तथा।
तान नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युधावपि ॥३॥
हिंदी अर्थ - जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमाओं के भी नायक हैं, उन सभी पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायव्यगज्ञानोर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः॥४॥
हिंदी अर्थ - नक्षत्र, चिह्न, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।

देवर्षीणां जनितॄश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षयस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृतांजलिः॥५॥
हिन्दी अर्थ - जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

प्रजापतेः कस्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः॥६॥
हिन्दी अर्थ - प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्राह्मणे योगचक्षुशे ॥७॥
हिन्दी अर्थ - सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भु ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ ।

सोमधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतमहम् ॥८॥
हिन्दी अर्थ - चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी ४ पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ ।

अग्रिरूपांस्तथैवन्यान नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीशोममयं विश्वं यत् एतदशेषतः ॥९॥
हिन्दी अर्थ - अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है ।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तयः।
जगत्स्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ॥१०॥
हिन्दी अर्थ - जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरों को मैं एकाग्रचित्त प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितृ मुझपर प्रसन्न हों।

॥ इति पितृ स्त्रोत समाप्त।।

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