Saturday 28 October 2023

Uttrakhand Playan पहाड़ की पीडा पर गढवाली कविता "बौडी आवा उत्तराखंड "

 Uttrakhand Playan पहाड़ की पीडा पर गढवाली कविता "बौडी आवा उत्तराखंड "

बडि पीडा होन्दी मां यखुली पराण तैं ।
रोई रोई सूखी जान्दु आंख्यों कु पाणी ।
जब दूर कोई जान्दु बौढीक तैं फिर नी आन्दु ।
न जाणी क्या रै कसर मेरी यकुली मायादार ।

एक बीसी जवानी ह्वै बितिगि सुखि का दिन ।
राज-पाट सुख का खातिर बसी गैं बिराणा मुलुक ।
बारि-त्यबरि खंड्वार ह्वैगे उलख्यारा टुपक्याणा छा ।
कै तैं सुणौं मैं विपदा माया अपडा ही बिराणा छा ।

पुश्तैनी घर-बार छोडी देवता पितर खुदेण छा ।
निर्भागी निर्दयी बणिकी केक यकुली छोडिगैन ।
बाटा पोंगडा गौं गुठ्यार त्वै खुजणु तू बौडी जा ।
उत्तराखंडी भै-भैण्यों रीति-रिवाज ना भुल्या ।

धरती कू स्वर्ग यखि छा ठंडु पाणी ठंडी बयार ।
देवता औणक तर्सदा तुम तै किले ह्वै यूँ निसार ।
चारों धाम चारों वेद चारों युग मा यखि उद्धार ।
चार दिन माया खातिर किलै छोडी घर-संसार ।

घसेरी का गीत बण मां जिकुडी तीस बुझौंदि थै ।
गौर-प्वंगडा सभी छुटीगे अब कख वु रीत रै ।
बोली-भाषा सभि भुलीगी पहाड कू अपमान ह्वै ।
सदनि रै खुदि का दिन तू कभि त घर बौडीक ऐ ।

शर्माणु छा नयु जमानु अपणी बोली बताण तैं ।
नी कसूर यों नई पीढ़ी कु जब दाना ही बेईमान छैं ।
नी सयेन्दु अपमान पहाड कु जल्दी बौडी आवा दौं ।
तुम्हारी औण की खुद मां कखि पराण न छोड़ी दों ।

बडि पीडा होन्दी मां यखुली पराण तैं ।
रोई रोई सूखी जान्दु आंख्यों कु पाणी ।

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