Saturday 5 October 2019

दीपावली क्यों मनायी जाती है और लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय(धार्मिक,पौराणिक,ऐतिहासिक,वैदिक,आध्यात्मिक महत्व)

Happy dipawali

2019

Happy dipawali


दीपावली क्यों मनायी जाती है

दीपावली मे लक्ष्मी प्राप्त करने के आसान उपाए
(धार्मिक,पौराणिक,ऐतिहासिक,वैदिक,आध्यात्मिक महत्व)च

दीपावली  प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथी के दिन मनाया जाता है।
हिन्दुओं का यह पर्व आस्था,धर्म,सौहार्द,दया,प्रेम, समृद्धि तथा परम्परा का त्यौहार माना गया है। जिसे सभी लोग धूम-धाम से मनाते है।
दीपावली का अर्थ है--- दीपों की पंक्ति। इस दिन दीपों से घरों को सजाया जाता है।

दीपावली का पौराणिक महत्व

दीपावली का अपना पौराणिक महत्व है। इसका सम्बन्ध पुराणों मे वर्णित भारतीय समाज के प्राचीन इतिहास से है। इसी दिन काली माता रक्तबीज नामक उस दुष्ट राक्षस का संहार किया था।,जिसके अत्याचार से सम्पूर्ण देव-समाज त्रस्त था। उस दुष्ट राक्षस के संहार के बाद लोगों ने अपने घर मे घी के दीपक जलाए थे। इस मंगलकारी घटना की स्मृति मे ही प्रतिवर्ष यह त्यौहार मनाये जाता है।

 दीवाली का पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख मिलता है जो यह मान्यता है कि पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, वह लौह के रूप मे हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता है। सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं।नचिकेता की कथा जो हमे जीवन मे संघर्ष करने की चुनौती प्दान करता है। और यह हमे  सही- गलत,  ज्ञान-अज्ञान, सच्चा धन- क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में दर्ज़ की गयी है।

दीपावली का ऐतिहासिक महत्व

कहा जाता है‌-----लंका-विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो इसी दिन उनका राज्याभिषेख किया गया था और सम्पूर्ण भारत वर्ष मे इस उपलक्ष्य मे दीपक जलाकर खुशियां मनाई गयी थीं। कुछ लोग दीपावली का प्रारम्भ इसी दिन से मानते है,किन्तु अनेक विद्वानों का मत है कि दीपावली का त्यौहार इससे भी अधिक प्राचीन समय से मनाया जाता रहा है।

दीपावली का आध्यात्मिक महत्त्व

भारतीय जितने भी त्यौहार है वे सभी कुछ न कुछ महत्व जरूर रखते है,वो किसी न किसी उद्येश्य से इस धरती की खुशहाली तथा निर्माण के लिए ही बनाए गए है।
दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।
दीपावली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।

आइए जानते है सभी धर्मो मे दीपावली का त्यौहार कितना महत्व रखता है।

1--हिंदू धर्म

दीपावली धन की देवी लक्ष्मी के सम्मान में मनाई जाती है।
दीपावली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है।

● प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं।अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं।

● कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर करती है और घर को सुख समृद्धि से भर देती है।

जैनधर्म मे दीपावली का महत्व

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।

सिख धर्म मे दीपावली का महत्व

दीपावली अमृत्सर

सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
अतः यह माना गया है कि दीपावली पूरे भारत वर्ष मे ही नही बल्कि भारतीय अनुयायी जहां भी है धूम-धाम से इस पर्व को मनाते है।


दीपावली का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व

दीपावली का पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व तो है ही , इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी महत्व है। माना जाता है कि वर्षा-ऋतु मे उत्पन्न कीडो-मकोडों , जल मे घास-फूस एवं गन्दगी के सडने से उत्पन्न विशैली गैसों तथा घरों मे व्याप्त शीलन को दूर करने की दृष्टि से भी दीपवली के त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योकि इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई कते है और घरों मे रंगाई भी करते है। जिससे उनके घरों मे सुख समृद्धी आती है।
प्राचीन काल मे दीपावली के दिन सरसों के तेल या घी के दीप जलाए जाते थे ।


दीपावली की 5 पौराणिक कथाओं का महत्व 

दीपावली का पर्व वास्तव मे बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए माना जाता है। जीत का आशय लडाई से नही अपितु कि हमने इस दिन से अपने अन्दर की कौन सी बुराई का नाश किया है। वह शत्रु जो हमारे जीवन शैली को डगमगा रहा था उस शत्रु का नास करना। यही है इस पर्व का उद्येश्य। और इसी से सम्बन्धित कुछ पौराणिक कथाएं है।

1 सतयुग की दीपावली -
सर्वप्रथम तो यह दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकटे। इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आरंभ होता है।

2 त्रेतायुग की दीपावली - 
त्रेतायुग भगवान श्रीराम के नाम से अधिक पहचाना जाता है। महाबलशाली राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 वर्ष वनवास में बिताकर राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपमालिकाओं से सजाई गई, हर्ष एवं उत्सव को लोगों ने एक दूसरे के साथ बांटा और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।


3 द्वापर युग की दीपावली - 
द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा और दीपावली में दो महत्वपूर्ण आयाम जुड़ गए। पहली घटना कृष्ण के बचपन की है। इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियान्वित कर श्रीकृष्ण ने स्‍थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता।

4  द्वापर युग की दीपावली  -
दूसरी घटना कृष्ण के विवाहोपरांत की है। नरकासुर नामक राक्षस का वध एवं अपनी प्रिया सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने की घटना दीपोत्सव के एक दिन पूर्व अर्थात रूप चतुर्दशी से जुड़ी है। इसी से इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
अमावस्या के तीसरे दिन भाईदूज को इन्हीं श्रीकृष्ण ने अपनी बहिन द्रौपदी के आमंत्रण पर भोजन करना स्वीकार किया था।

5 कलियुग की दीपावली -
वर्तमान कलियुग दीपावली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद के निर्वाण के साथ भी जोड़ता है। भारतीय ज्ञान और मनीषा के दैदीप्यमान अमरदीपों के रूप में स्मरण कर इनके पूर्व त्रिशलानंदन महावीर ने भी तो इसी पर्व को चुना था अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए। जिनकी दिव्य आभा आज भी संसार को आलोकित किए है प्रेम, अहिंसा के लिए प्रसिद्ध मानी जाती है।

दीपावली के इतिहास से जुड़ी यह  15 बातें आपको नहीं पता होगी....

आइए जानते है दीपावली से सम्बन्धित कुछ गूढ बातें जो इस पर्व की लोकप्रियता को बडाता है और आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

1-- भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया था।

2-- त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे तब उनके आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियां मनाई गईं।

 4--  कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंहजी बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे। वहां खुशियां मनाई गयी।


5-- बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। और अपनी भक्ति को इजहार किया।

6-- कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।

7--  500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।

 8-- अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था। जो भारत वर्ष का गौरव बना हुआ है।

9--  जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया था।

 10--  इसी दिन श्रीकृष्ण ने आतताई नरकासुर जैसे दुष्ट का वध किया तब ब्रजवासियों ने अपनी प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की।

 11---  राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए।

12--  मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

13--  पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि  ली थी।
14--  सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था। इसलिए दीप जलाकर खुशियां मनाई गईं।

 15-  ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों (नदी के किनारे) पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे

 दीपावली का व्यावसायिक महत्व

दीपावली के व्यवसायी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह दिन व्यावसायिक वर्ग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी दिन से हर व्यापारी अपना कार्य शुरू करता है। और अपने बही खाता की और सामान की विधी विधान से मां लक्ष्मी की पूजा करते है। इस काल मे वर्षा-ऋतु पूर्णरूप से  समाप्त हो जाती है। यात्रा और व्यावसायिक कार्यों के लिए यह समय उपयुक्त होता है। प्राचीन काल मे किसानों के घर भी धान की फसल कटकर आनी  आरम्भ हो जाती है। उन्हे अपनी कृषि सम्बन्धी आवश्यक सामग्रियों का क्रय इसी समय करना होता है। इन कारणों से प्राचीनकाल मे इसका एक व्यावसायिक महत्व मान्य हो गया था। व्यारी वर्ग इस दिन के लिए बेसब्री से इन्तजार करते है।

दीपावली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के सरल उपाय


दोस्तों आपको जीवन मे कुछ पाना है तो देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना अत्यन्त आवश्क है।ज्योतिष में दीपावली की रात्रि का विशेष महत्व है। इस रात्रि में लक्ष्मीजी भ्रमण करती हैं। अमावस्या जैसी काली रात में असुर शक्तियों पर प्रभु राम की विजय के प्रतीक पर्व पर अनोखे शुभ मुहूर्त होने से इस रात को किए गए कार्यों में सफलता मिलती है और लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। और सबके अन्न-धन भण्डार भर देती है।तो आइए जानते हैं इस दिन कैसे करें लक्ष्मी जी को प्रसन्न।

१--  दीपावली के दिन घर के ईशान कोण मे  सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक अखंड दीपक जलाएं।

२--  कमल गट्टे की माला से रात्रि को 'ॐ कमलायै नमः' इस मंत्र की108 बार या 41 माला का जप करें।

३--  दीपावली के दिन संयम का पालन करके रात्रि में स्वच्छ निर्मल वस्त्र पहनकर महालक्ष्मी स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें।

४-- लक्ष्मी पूजन करके तिजोरी में 5 कमल गट्टे, 1 खड़ी हल्दी, थोड़ा-सा खड़ा धनिया, खड़ी सुपारी, एक सिक्का रखें जो वर्षपर्यंत तक रहे।

५-- दीपावली की रात्रि उपरांत सूर्योदय के पूर्व घर की झाडू लगाकर घर का सारा कचरा बाहर डालें और घर आ रही दरिद्रता को दूर करें। यह कार्य अंधेरे में गुप्त रूप से करें

Tag: dipawali 2019/ दीपावली का महत्व/ dipawali quts in hindi/ क्यों मनायी जाती है दीपावली/  dhanteras/ दीपावली क्यों खास है।/ dipawali visesh/ dhanlaxmi yantr/ dhan warsa kuber



0 comments: