Tuesday 14 April 2020

मां सरस्वती जी की वन्दना, वर्णन, स्तुति, श्लोक, आराधना एवं वसन्त पञ्चमी पूजन।Vasant Panchami

मां सरस्वती जी की वन्दना, वर्णन, स्तुति, श्लोक, आराधना एवं वसन्त पञ्चमी पूजन।
Worship, description, praise, sloka, worship and worship of Vasant Panchami of Mother Saraswati
सरस्वती वंदना 

विद्या की देवी माँ शारदा जिस मस्तिष्क में विराजमान होती है, वह सभी गुणों से सुशोभित हो जाता है, और समस्त संसार में उसकी ख्याती बढती है। सरस्वती को ज्ञान की अधीष्ठात्रि भी कहा गया है, विना ज्ञान के मनुष्य का जीवन किसी काम का नही है। अर्थात सरस्वती की आराधना मन और मस्तिष्क के वेगों को सकारात्मका ऊर्जा प्रदान करके उसका सम्पूर्ण विकास करती है।gyansadhna.com

इसलिए हम लेकर आए है जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए Success mantra का होना बहुत जरुरी है।Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनिसंस्कृत सुभाषितानी के 65- श्र्लोक व अर्थ संस्कृत सुभाषितानी व सूूूक्ति के 40 श्लोकजीवन पर 50 सुविचार 50 संस्कृत सुभाषितानी आदि

सरस्वती मंत जो है सफलता की कुंजी
 Saraswati Mantra which is the key to success
Saraswati mantra

(1)
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, 
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।

अर्थात-हे सबकी कामना पूर्ण करने वाली माता सरस्वती, आपको नमस्कार करता हूँ।
मैं अपनी विद्या ग्रहण करना आरम्भ कर रहा हूँ , मुझे इस कार्य में सिद्धि मिले।

(2)
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थात-वह देवी जो तीनों लोकों का उद्धारबल,विद्या को देने वाली है, करने वाली है,उसको नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार हैं।

ऐसे करें माता सरस्वती की आराधना
This is how to worship Mata Saraswati
मां सरस्वती ऋग्वेद में यह वाग्देवी के रूप में वर्णित हुई हैं । भारतीय वाङ्मय में इनको विद्या , प्रत्यभिज्ञा , मेधा , तर्क शक्ति तथा वाणी की देवी माना गया है । यह काव्य की भी अधिष्ठात्री देवी हैं ।

सरस्वती का ध्यान प्रायः इस मंत्र से किया जाता है । 
“ या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता , 
या वीणावरदण्डमण्डित  करा या श्वेत पद्मासना । 
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता , 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा । । 

अर्थात--
माँ सरस्वती की इस प्रार्थना का अर्थ है - " जो विद्या की देवी सरस्वती कुन्द के फूल , चन्द्रमा , हिम के हार की भाँति श्वेत वर्ण की हैं , सफेद वस्त्र धारण करती हैं , जिनके हाथ में वीणा दण्ड सुशोभित हैं और जो श्वेत कमल पर आसीन हैं , ब्रह्मा , विष्णु और महेश जैसे प्रसिद्ध देवता , जिनकी सदैव वन्दना करते हैं , वही समग्र जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली माँ सरस्वती मेरा पालन करें । "

"शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे । 
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥"

अर्थात-
शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें ।

"सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । 
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥"

अर्थात--
वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीम् ,
वीणा पुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । 
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् , 
वन्दे तां परमेश्वरी भगवतीं बुद्धि प्रदां शारदाम् । । 

अर्थात--
सफेद रंग वाली , सम्पूर्ण जगत में व्याप्त आद्या शक्ति , परब्रह्म के विषय में किये गए चिन्तन के सार को धारण करने वाली , अभयदायिनी , अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाली , हाथों में वीणा , पुस्तक और स्फटिक की माला लिये हुए , पद्मासन पर विराजित , बुद्धि देने वाली , ऐश्वर्य से अलंकृत माँ परमेश्वरी भगवती सरस्वती देवी की मैं वन्दना करता हूँ ।

इस ब्रह्माण्ड को नियंत्रित तथा संचालित करने वाली आद्या शक्ति , अपने दिव्य स्वरूप के अंश और विग्रह द्वारा विभिन्न लोकों में अपने सृष्टि कार्यों को सुव्यवस्थित और सुसमन्वित करती हैं ।

पौराणिक महत्व 
प्राचीन ऋषि - महर्षि अपने अन्त : करण को निर्मल करके ब्रह्म विद्या के रूप में अहर्निश इन्हीं की उपासना करते थे । वर्तमान में महर्षि अरविन्द सरस्वती माता के स्वरूप एव महत्त्व का वर्णन करते हुए लिखते हैं - महासरस्वती माता की कर्म शक्ति और सिद्धि आर सुव्यवस्था में उनकी प्राणशक्ति है । महासरस्वती सब शक्तियों के सार्थक संयोजन तथा
निश्चितार्थ की संप्राप्ति और संपूर्ण के विषय में अव्यर्थ यथायोग्य अनुष्ठान का पर्यवेक्षन करती हैं ।

सभी विद्या , कला और कौशल महासरस्वती के साम्राज्य के अन्तर्गत हैं । सिद्ध कर्मों का अन्तरंग और यथावत ज्ञान , सूक्ष्मबोध और धैर्य , अन्तर्ज्ञानी मन और सचेत हाथ और यथावत गुण - दोष दर्शी दृष्टि की प्रमादरहित सुनिश्चितता , सिद्धकर्मी से सब लक्षण महासरस्वती की प्रकृति में सदा ही अवस्थित रहते हैं और जिन पर वे अनुग्रह करती हैं , उन्हें वे यह सारी सम्पदा प्रदान कर सकती है ।

माता सरस्वती का वाहन हंस है । हंस नीर - क्षीर विवेकी और सात्विक स्वभाव का है । इसका आशय यह है कि सरस्वती की कृपा का अधिकारी वही है जो सात्विक स्वभाव और गुण धर्म वाला हो ।

अन्य कोषों में इन्हें कहा जाता है---
 (भारती , ब्राह्मी , गोर्देवी , वाग्देवी , भाषा , गिरा , शारदा , त्रयीमूर्ति)
 नाम से अभिहित किया गया है । विश्व की विभिन्न भाषाओं , सांकेतिक लिपिपद्धति तथा संकेत चिह्नों में भी मूलतः इन्हीं की चमत्कृत शक्ति सन्निहित है । इसीलिए विश्व के सभी भागों में अनादिकाल से अनेक नाम - रूपों में इनकी उपासना प्रचलित रही है ।

माता सरस्वती की प्रार्थना 
Mata Saraswati's Prayer
Sarswti wandna

Sarswti wandna

माता सरस्वती हमारे लिए जो कुछ आवश्यक है , उसे जुटा देने वाली माता हैं । वे संकटकाल में हमारी सहायता करती हैं । धीर गंभीर मंत्री के समान वे हमें सदैव सद्मार्ग पर चलने के लिए परामर्श देती रहती हैं । वह हमेशा हमें उच्चतर चेतना की ओर प्रेरित करती रहती हैं , जहाँ सूर्य प्रकाश निरन्तर वर्तमान है ।
इसीलिए हम सब उनसे प्रार्थना करते हैं ।
साहस शील हृदय में भर दे , 
जीवन त्याग तपोमय कर दे ,
संयम सत्य स्नेह का वर दे . स्वाभिमान भर दे । 
अम्ब विमल मति दे । 
लव - कुश ध्रुव , प्रहलाद बनें हम,
मानवता का त्रास हरें हम ,
सीता , सावित्री , दुर्गा माँ, 
फिर घर - घर भर दे, 
हे हंस वाहिनी , ज्ञान दायिनी ,
अम्ब विमल मति दे । । 
अम्ब विमल मति दे । । 

विशेष महत्व--
सरस्वती की निरन्तर आराधना करने से अनेक लाभ हैं । इनका वर्णन करते हुए कवि प्रार्थना करते हैं ----
"मोहान्धकार भरिते हृदये मदीये । 
मातः सदैव कुरू वासमुदार भावे , सर्वायाखिलवयव निर्मल सुप्रभाभिः  
' शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् । ।"

अर्थात् - 
हे उदार बुद्धि वाली माँ । मोह रूपी अन्धकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो और अपने सब अंगों की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अन्धकार का शीघ्र नाश करो ।

निष्कर्ष--
सरस्वती की उपासना केवल वैदिक धर्मावलम्बी ही . नहीं करते बल्कि जैन और बौद्ध धर्म वाले भी इनके उपासक हैं । चीन निवासी इन्हें ' नील सरस्वती ' के रूप में और तिब्बत वाले ' वीणा सरस्वती ' के रूप में इनकी पूजा करते हैं । यह देवी अपने उपासकों की अज्ञानता से रक्षा करती हैं । बौद्धों की ' बागीश्वरी ' सिंह वाहिनी कही गयी हैं । जैनों ने भी सरस्वती को विद्या , बुद्धि और विवेक की अधिष्ठात्री देवी माना है । वैदिक विद्वानों ने इन्हें ' वेद महया ' नाम दिया है । जगद् गुरू शंकराचार्य के शारदा पीठ ( जो शृंगेरी पर्वत पर है ) की शारदा ( सरस्वती ) ही अधिष्ठात्री देवी हैं ।

आइए , हम सब मिलकर पुनः हृदय भाव से मां सरस्वती की प्रार्थना करें--

" सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे काम रूपिणी विश्व रूपे विशालाक्षि , विद्यां देहि सरस्वती ।"

वसन्त पञ्चमी का महत्व 
Importance of Vasant Panchami

वसन्त को ऋतुराज भी कहा जाता है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। मन में विचारों की पारंगत होने लगती है।

वसन्त पञ्चमी को सरस्वती का दिन भी माना जाता है।  वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। पूरी धरती हरी भरी दिखती है और चारों तरफ फूल खिलने लगते है।

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