Berojgari Poem in hindi बेरोजगारी पर कविता, हूँ बेरोजगार मुझे रोजगार चाहिए?
हूँ बेरोजगार मै मुझे रोजगार चाहिए,
साहब तसल्ली नहीँ मुझे हकदार चाहिए।
सूख गया है कुआँ पलकों का,
किताबों पर किश्मत उकेरते हुए।
मंजिल न मिली मुझ सिरफिरे को,
डिग्रियों के बोझ तले ।
सपनों की हत्या मै हर दिन किया करता हूँ,
देकर उम्मीदों का तमाचा तुम हमें भगा देते हो।
हूँ बेरोजगार-------------------------------------।।
जेब और पेट की नीलामी लगी है बाजार में,
खुद की नजरों में अब तो खुद ही गिर रहा हूँ।
डूबती नैय्या में मुझे पतवार चाहिए,
मजबूर हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।
हूँ बेरोजगार--------------------------------------।।
हुनर कम नहीं है इस वीरान चमन में,
बदल देंगें नक्शा भारत का जरा विश्वास तो कीजिए।
बिकने वालों ने न समझा की वो क्या बेच आए,
साहब ओ तो गलती से अपना ईमान बेच आए।
हूँ बेरोजगार--------------------------------------।।
गुनहागार हूँ मै इशकदर जिंदगी का,
नोटों की वेश्यावृत्ति में शर्मसार हो रहा हूँ।
दिन-रात मेहनत मै इसकदर करता हूँ।
मानों कल ही सपनों को पंख लगने वाले हों ।
झुक आए है कंधे पिता के जिम्मेदारियों तले,
क्योंकि हिम्मत नहीं है मुझमें अगुवाई करने की।
हूँ बेरोजगार-----------------------------------।।
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