Purush hona aasan nahi poem in hindi पुरुष होना आसान नहीं पर कविता
पुरुष और स्त्री में भेद नहीं मालूम पर इतना कहता हूँ ।
जनाब पुरुष होना आसान नहीं होता,
कभी तूफान तो कभी शमशान बन जाता है ।
आधी उम्र जिम्मेदारी समझने में गुजर जाती है।
बाकी जीवन जिम्मेदारी निभाने में गुजर जाती है ।
बचपन से उसे लडके होने का एहसास जताया जाता है ।
रोना भी नसीब नहीं उसे धमकाया जाता है ।
नौकरी की दौड में खुद से कश्मकश करता है।
टूटता कई बार है पर उसे जिम्मेदारी थाम लेती है ।
जवान बेटा घर में रहे तो सब ताने मारते है ।
काम के बोझ समय न दो तो लापरवाह कहलाता है ।
वह हर किसी की तकलीफें समझता है ।
तकलीफें समझता है सबकी खुद जिक्र नहीं करता ।
मां से प्रेम करे तो मां का गुलाम कहलाता है ।
बीबी घुल-मिले तो बीबी का गुलाम कहलाता है ।
बच्चों को डांटने समझाने पर निर्दयी कहलाता है ।
कुछ ना भी कहे तो लापरवाह कहलाता है ।
पत्नी कहे अगर की नौकरी करना आसान है ।
तो सुनिए नौकरी नौकरी नहीं गुलामी होती है ।
कभी न चाहकर भी गलत सहना पढता है ।
हुक्म का इक्का हर पल रहना पडता है ।
घिन आती है तब जब तकलीफ बहुत मिलती है ।
कभी-कभी तो नौकरी छोडने का भी जी करता है ।
मगर फिर से परिवार व जिम्मेदारी धकेल देती है ।
हमसे ही सबकी ख्वाइशें जुडी होती है ।
मगर कोई हमारी ख्वाइशों के बारे में नही पूछता ।
एक एक पैसा कसे जोडता है ये समझो,
अपनी खुशियाँ,तकलीफ,सपनें,स्वास्थ्य सब लुटा देता है ।
अन्दर से कितना भी टूटे फिर भी मुस्कुराना पडता है।
थोडी सी नोक-झोंक पर पत्नी तलाक मांगने लगती है।
पलभर में तोड रिश्ता जीवन पहाड बना देती है ।
पुरूष रोता नहीं तो क्या उसमें दिल नहीं है ।
बिखर न जाए परिवार खुद में ही सहम जाता है।
जिम्मेदारियों के बोझ तले कई अरमान दबा देते है।
जनाब पुरूष होना आसान नहीं होता ।
जनाब पुरुष होना आसान नहीं होता,
कभी तूफान तो कभी शमशान बन जाता है ।
आधी उम्र जिम्मेदारी समझने में गुजर जाती है।
बाकी जीवन जिम्मेदारी निभाने में गुजर जाती है ।
बचपन से उसे लडके होने का एहसास जताया जाता है ।
रोना भी नसीब नहीं उसे धमकाया जाता है ।
नौकरी की दौड में खुद से कश्मकश करता है।
टूटता कई बार है पर उसे जिम्मेदारी थाम लेती है ।
जवान बेटा घर में रहे तो सब ताने मारते है ।
काम के बोझ समय न दो तो लापरवाह कहलाता है ।
वह हर किसी की तकलीफें समझता है ।
तकलीफें समझता है सबकी खुद जिक्र नहीं करता ।
मां से प्रेम करे तो मां का गुलाम कहलाता है ।
बीबी घुल-मिले तो बीबी का गुलाम कहलाता है ।
बच्चों को डांटने समझाने पर निर्दयी कहलाता है ।
कुछ ना भी कहे तो लापरवाह कहलाता है ।
पत्नी कहे अगर की नौकरी करना आसान है ।
तो सुनिए नौकरी नौकरी नहीं गुलामी होती है ।
कभी न चाहकर भी गलत सहना पढता है ।
हुक्म का इक्का हर पल रहना पडता है ।
घिन आती है तब जब तकलीफ बहुत मिलती है ।
कभी-कभी तो नौकरी छोडने का भी जी करता है ।
मगर फिर से परिवार व जिम्मेदारी धकेल देती है ।
हमसे ही सबकी ख्वाइशें जुडी होती है ।
मगर कोई हमारी ख्वाइशों के बारे में नही पूछता ।
एक एक पैसा कसे जोडता है ये समझो,
अपनी खुशियाँ,तकलीफ,सपनें,स्वास्थ्य सब लुटा देता है ।
अन्दर से कितना भी टूटे फिर भी मुस्कुराना पडता है।
थोडी सी नोक-झोंक पर पत्नी तलाक मांगने लगती है।
पलभर में तोड रिश्ता जीवन पहाड बना देती है ।
पुरूष रोता नहीं तो क्या उसमें दिल नहीं है ।
बिखर न जाए परिवार खुद में ही सहम जाता है।
जिम्मेदारियों के बोझ तले कई अरमान दबा देते है।
जनाब पुरूष होना आसान नहीं होता ।
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