Monday 6 January 2020

संस्कार माला, मानव विकास में संस्कारों का महत्व, (Importance of Sacrament in Human Development) (हमारे संस्कार, अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं)

संस्कार माला

मानव विकास में संस्कारों का महत्व

(Importance of Sacrament in Human Development) (हमारे संस्कार, अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं)


"व्यक्तित्व निर्माण के लिए संस्कार (Sacrament) वह पूंजी है जो उसका भविष्य (Future) निर्धारित करता है, और इसकी सर्वप्रथम पाठशाला घर से सुरू होती है,और उसके सर्वप्रथम गुरू माता-पिता होते है।,,

संस्कार का अर्थ ( Sacrament Meaning)

सम्' उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु से 'घञ्' प्रत्य करने पर 'संस्कार' शब्द बनता है। पूर्वाचार्यों ने संस्कार शब्द का विभिन्न अर्थों में उपयोग किया है।
सम्-- सम् उपसर्ग को मिलकर बना है ,जिसका अर्थ होता है,(सम्यक) अर्थात् सही ढंग से, अच्छी तरह या समान रूप से।
कार - अर्थात् कार्य करना,गतिशील रहना।

अर्थात-- जो व्यक्ति समान रूप से कार्य करता है,जो अपने कर्तव्य के अनुसार कार्य करता होजो कभी अपने कार्य से बोझिल अथवा जी न चुराता हो या जिसने अपने धर्म के अनुसार ही आचरण किया हो। वही संस्कार (Sacrament)  कहा जाता है,और जब व्यक्ति या बालक के अन्दर संस्कार प्रवेश करते है। तभी उसका (सामाजिक,सांस्कृतिक, आध्यात्मिक,चारित्रिक) विकास (Development) हो पाता है।अर्थात सदगुणों को गुणा करना अर्थात् बढाना एवं दोषों का भागफल अर्थात् दोषों को घटाना । संस्कार करना अर्थात् अच्छी आदतें लगाना एवं बुरी आदतें निकाल कर फेंकना।अच्छी संगति करना बच्चों मे अच्छे संस्कार पैदा करना अर्थात् उन्हे जन्म से ही अच्छी बातें सिखाना जैसे ‘मां-पिताजी को प्रतिदिन नमस्कार करना चाहिए, किसी अपने से बडे की निंदा नही करनी चाहिए, इत्यादि सिखाना; परंतु वह भी कैसे सिखाना चाहिए यह समझने योग्य है । मात्र तत्त्वज्ञान कहकर नहीं, कि आपने उन्हे उपदेश दे दिया या आपने उनसे सीख वाली कथाएं कहदी,या चॉकलेट, आईस्क्रीम का लालच दिखाकर संस्कार दे दिया नहीं, अपितु हमत्वपूर्ण यह है कि आपने कौन सी कृति अपनाई जो आजीवन बच्चों मे संस्कार (Sacrament) स्थापित हो सके।

बच्चे ही आपका तथा समाज का भविष्य (Future) होता है। अगर आप बच्चों (Childs) पर कोई चीज थोपेंगे तो वह चार दिन करेंगे । पांचवे दिन कहेगा”मैं नही करूंगा’’। उसे नमस्कार करने से होनेवाले लाभों  के बारे में तत्त्वज्ञान बतायें और खुद उसके सामने वैसा ही व्यवहार(Behaviour) करें,उसके अन्दर पहले विश्वास जगाएं एक नही अपनी आजीवन पद्वती अच्छे आचरण की बना दें तभी आपकी सन्तान भी संस्कारी हो पायेगा। अन्यथा आपके थोपने से कुछ नही होगा। क्योंकि बच्चे का प्रथम गुरू माता-पिता (Father-mother) ही होता है और संस्कार (Sacrament) स्कूल से नही घर से उत्पन्न होते है,घर मे ऐसा परिवेश बनाये कि नकारात्मक( Negative) भाव न आ सके। बालक (Childs)का दिमाग गलत रास्ते पर तब जाता है जब वह अपने घर मे वह क्रिया होते देखता है। आप जैसा करेंगे,आप जैसा सोचेंगे वैसा ही आपका बच्चा बन जाएगा। बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर(Hom) ही होता है

परिभाषा--(Defination

1] एक संस्कारवान बालक ही समाज,देश,तथा मनुष्य के सभी पक्षों का विकास कर पाता है।

2] संस्कार ही यह तय करते है कि उसका व्यक्तित्व विकास कितना प्रभाव शाली है। और समाज तथा देश मे इसकी क्या भूमिका है।

3] व्यक्तित्व विकास तथा राष्ट्रोत्थान के लिए संस्कारवान होना आवश्यक है, तभी मानव मूल्य स्थापित हो सकेगा।

संस्कारों का महत्व---(Sarament Of Importance)

दोस्तों हमे अधिक्तर सुन्दर वस्तुएं ही पसंद आती है खराब चीजों को हम देखना तक पसंद नही करते है, समाज (Socil) की भी वही मांग रहती है , कि जो व्यक्ति संस्कारी होता है वह हर जगह पूजा जाता है,और सभी के दिलों पर राज करता है।और परिवार (Famle) तथा माता-पिता भी यही सोचते है कि उसकी संतान संस्कारी हो।

(Human) मनुष्य ही संसार की एक ऐसी रचना है जो  सब कुछ बदल सकता है,व्यक्ति और समाज(Socil की उन्नति के लिए गुणों को अतिआवश्यक माना गया है। जिसके पास जितने अच्छे गुण होंगे वही श्रेष्ठ माना जाएगा। हम चाहे किसी भी श्रेष्ठ व्यक्ति का उदाहरण क्यो न ले चाहे राम हो स्वामी विवेकानन्द (The Leader of vivekanand) हो या अन्य कोई भी महापुरूष उन सभी के गुणों से ही वे श्रेष्ठ माने गये है। एक गुणवान,संस्कारी (Sacrament) व्यक्ति ही समाज को बदलने की छमता रखता है।

मनुष्य जीवन में संस्कारों (Sacrament) का बड़ा महत्व है। संसार में किसी भी इंसान का आचार व व्यवहार देखकर ही उसके परिवार के संस्कारों का अनुमान (Guees) लगाया जा सकता है। यह हमारे आंतरिक गुणों को भी प्रदर्यशित करता है कि हमारे अन्दर अच्छे विचार है या उससे विपरीत (Opposite) है।  बच्चे का जीवन व मन भी कच्चे घडे की भांति होता है। जो चित्र या कलाकारी आप उसपर करेंगे वही आजीवन रहेगा और वह कभी मिटेगा भी नही।जब बच्चा छोटा होता है तभी से उसमें अच्छे संस्कार(Sacrament) भरे जा सकते हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों मे भी कहा गया है कि बच्चों के कोरे मन में केवल संस्कारों के भाव ही भरें। बचपन में संस्कार देने से बच्चा आगे जाकर अच्छा इंसान बनता है तथा देश के काम आता है।

 अगर महापुरुषों (gret parson) का सानिध्य तथा माता--पिता का आशीर्वाद ( हमारे साथ रहेगा तो हम पतन की ओर अग्रसर न होकर उन्नति (progres) के पथ पर चलते रहेंगे। आपका बच्चा एक योद्धा के रूप मे उभरकर सामने आएगा। शास्त्रों मे कहा गया है, कि जिस राष्ट्र में नारी व गाय का अपमान होगा तो वह राष्ट्र कभी भी उन्नति नहीं कर सकता है। और आज के परिवेश में कोई सच्चा मित्र (best frand) नहीं है मित्रता के मायने बदल गए है। आज मित्रता केवल स्वार्थों का प्रारूप बन गई है। अपने बच्चे को अच्छा परिवेस दीजिए वही आपकी सच्ची पूंजी है।

व्यक्तित्व विकास के (5) प्रमुख आयाम----

1- तप
2- दम (ताकत,छमता)
3- स्वाध्याय
4- परनिन्दा भयावह
5- जीवनमूल्य

 1》तप

दोस्तों तप का अर्थ है किसी कार्य के प्रति समर्पित हो जाना। हमे जो कार्य दिया गया है। या जिस कार्य को हम जिस अवस्था मे कर रहे है,उसके लिए सुखों का त्याग करना। क्योंकि जहां सुख होता है,सफलता भी सुस्त पढ जाती है। बच्पन मे या विद्यार्थी जीवन मे सुख की चाह रखने से प्रतिष्ठा हासिल नही हो सकती। उसके लिए (कठिन परीश्रम, संयमी, मितव्ययी होना परम आवश्यक है।

जिस प्रकार सोने से स्वतः ही आभूषण नही बनाए जा सकते है,आभूषण बनाने के लिए उसे बहुत तपाना पढता है,और जितना अधिक तपाते है,उतनी ही अधिक कीमत उस आभूषण की होती है। बिना तपे उसमे निखार नही आता है। उसी प्रकार जितने भी बडे बडे (ऋषि,मुनी,महापुष,) हुए है उनमे कोई ईश्वरीय शक्ति नही थी,उनहोने अपने आप को तपाया है,कठिन संघर्ष मे अपने जीवन को ढाला है,सुखों का त्याग किया है। संसार की तमाम वस्तुओं को नश्वर माना है और ज्ञान को ही श्रेष्ठ माना है तभी वे श्रेष्ठ माने गये।

शास्त्रों मे एक युक्ति है कि---"रे मन चन्दन सम घिसता जा, सज्जन-मन को शीतल करता जा।,,

चन्दन स्वतः ही शीतलता नही देता उसकी कीमत तब अधिक बढ जाती है जब उसी घिसा जाता है,उसको कष्टों से जूझना पढता है।
व्यक्तित्व विकास के लिए , मानव के मष्तिष्क विकास के लिए , बालक के सर्वांगीण विकास के लिए उसे घिसना ही पढेगा।

समाज मे उसी की प्रतिष्ठा व मान-सम्मान होता है जो खुद घिसकर दूसरों का जीवन संवारता है,अन्यथा इसतने बडे संस्सार मे उसे कोई नही पहचानता है। उसके जन्म का अर्थ सिर्फ उपभोग्य वस्तुओं का उपभोग करना रह जाता है।
हमने कभी यह सुना होगा कि एक साधु (600-700) सालों से तप कर रहा है हम दंग रह जाते है वह साधू उपभोग्य वस्तुओं से तथा सांसारिक सुखों से ऊपर उठकर के अपने लक्ष्य को ही फोकस करता है। उसका लक्ष्य धन कमाना नही बल्कि उस परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है ,जो सभी के अन्दर विध्यमान है। वह अपनी इन्द्रियों को अपने वश मे रखता। भूख प्यास भी उसके तप को भंग नही कर सकता ।

इसीलिए चाहे  जो भी कर्म कर रहे हो,चाहे हम किसी भी अवस्था मे हो अगर ( तप,तपस्या, त्याग ,बलिदान ) नही किया तो आपका जीवन पशुसमान बन जाएगा। जिसका एक ही ध्येय होता है पेट भरना। लेकिन हम मानव है और सबसे श्रेष्ठ है,उस श्रेष्ठता को प्राप्त करने के लिए तप बहुत जरूरी है।

2》दम (हिम्मत)

अक्सर हम लोगों से यह सुनते रहते है कि दम है तो ऐसा करके दिखा। यानी कहने का तात्पर्य है कि क्या इस कार्य को करने की तेरे अन्दर क्षमता है, क्या इस का को पूर्ण कर पाएगा। यही होता है दम ।

कुछ कर गुजरने का हाॅसला जो अपने मन मे पालते है वे यही कहते है कि जब तक मै इस कार्य मे सफलता हासिल न कर दूं चैन से नही बैठूंगा। दिन रात मेहनत करूंगा और हार नही मानूंगा बल्कि हराकर आऊंगा। यही हाॅसला उसे सफलता दिलाता है। उसका उत्साह (दम) उसे बार-बार अन्दर से प्रेरित करता है कि उठ और प्रयास कर सफलता तेरे कदमों को चूमेगी। जो यह हाॅसला नही रख सकता,जो अपने आप को सन्तुष्ट नही कर सकता वह जीवन मे हमेसा हारता ही है।
उदाहरण के लिए आर्मी के जवान जब सीमा पर युद्ध के लिए तैया रहते है, सामने दुश्मन यानी मौत खडी है,डर लगना स्वाभाविक है,क्योकि वह भी इन्शान ही होते है। उनके भी घर परिवार होते है लेकिन वह उस समय सब कुछ भुला लेता है उसका लक्ष्य उसे हिम्मत ,ताकत, दम देता है कि तू एक योद्धा है,और तुझे दुश्मन से लडना है।

तो दोस्तों वही दम उसकी सफलता का कारण बनता है। कहने का मतलब है कि जो भी हम कर रहै है, पढाई हो या कोई नौकरी हो जब तक अपने अन्दर के दम रूपी शेर को नही जगाया सफलता हासिल कर पाना सम्भव नही होगा।खासकर जब हम किसी परीक्षा का हिस्सा बनने जा रहे हो तोउस समय जरूरत है अपने अन्दर के शेर को जगाने की,जब आप जीन मे हार जाओ तब जरूरत है उस शेर को जगाने की।
इसलिए अपनी हृदय की आवाज पर भरोसा कीजिए और अपने अन्दर दम (हिम्मत) पैदा कीजिए।


3》स्वाध्याय (swadyay)

 स्वाध्याय का होना परम आवश्यक क्यों है? प्राचीन काल मे अध्ययन समाप्ती के बाद शिष्य अपने गुरू के द्वारा कही बात का मनन करते थे,क्यों स्वाध्याय करने से ज्ञान अमर आजीवन बन जाता है,रटा हुआ ज्ञान कुछ पल का ही होता है। हो सके वह तुम्हे अंक अच्छे दिला दे लेकिन प्रतिष्ठा और ज्ञान नही दिला सकता उसके लिए मनन करना आवश्यक है।
आपने थ्री ईडियट फिल्म मे अमीरखान को देखा होगा वह कभी चीजों को रटता नही है,और नाही लिखता है वह चीजों को समझने की कोशिश करता है। और वही यूनिवर्सिटी मे टाॅप करता है। यही फर्क है स्वाध्याय और रटने मे। किसी भी कार्य मे स्वाध्याय नही है तो आपने उसकार्य की सीखा है समझा नही।
उदाहरण के तौर पर हम देखते है कि जब कोई राजा युद्ध करता है तो वह एकदम से युद्ध नही करता है वह बहुत पहले से ही रणनीतियां बनाता है।
इसीलिए जीवन मे स्वाध्याय का होना अति आवश्यक है।

4》परनिन्दा भयावह है

एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि---'मनुष्य को दूसरे की आंख का तिल तो दिखाई देता है परन्तु अपनी आंख का ताड नही दिखता,,।
कहने का मतलब है कि लोगों को दूसरे की निन्दा करने मे सन्तोष मिलता है लेकिन अपनी निन्दा सुन नही सकता।ले ही वह मुह के सामने उसकी तारीफ क्यों न करे लेकिन पीठ पीछे कहीं न कहीं उसकी निन्दा ही करता है। और यह उसके चारित्रिक विकास के लिए खतर्नाक साबित होता है।

कबीरदास जी का एक प्रसिद्ध दोहा है----
"बुरा जो देखन मै चला, बुरा न दीखा कोय ।
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।

यानी सारी बुराईयां हमारे भीतर है हम अहंकार से भरे हुए है,तभी तो हमे सभी मे वही दिख रहा है। पहले अपनी बुराई का खत्म कीजिए सभी आपको अच्छे दिखने लगेंगे। और यह सब अच्छे संकारो से ही सम्भव है, आप जितना स्वच्छ मन रखेंगे उतना ही स्वच्छ यह संसार दिखने लगेगा। आप संसार को नही बदल सकते,नाही किसी की भावना को बदल सकते है बदल सकते हो तो अपने आप को संसार स्वतः ही बदल जाएगा।

5》जीवन मूल्य

दोस्तों बहुत गहराई वाला शब्द है यह अगर हम किसी भी महापुरूष के जीवन का अध्ययन करें तो पता चलता है कि उनका जीवन कितना उत्कृष्ट है। हमारे मन से एक ही आवाज निकलती है कि जीवन है तो उनका है। क्या हम ऐसा जीवन नही जी सकते आखिर वो भी एक मानव ही है। क्या वो सभी क्षमताएं हम अपने अन्दर स्थापित नही कर सकते। क्या जो उन्होने सोचा है वह हम नही सोच सकते। लेकिन जीवन के मूल्य को समझना आशान नही है,उससे पहले उन सभी आयामों को अपने जीवन मे उकेरना पढेगा तभी जाकर जीवन का महत्व मालूम हो सकेगा। अन्यथा भीड भरी इस दुनियां मे आकर भीड मे ही खो जाओगे।

उन्नतिशील व्यक्ति एवं राट्र की कुछ कसौटियां है। उन पर जो खरे उतरे वे ही तर गये, जीवन की परीक्षा मे वे पास हुए । जिन्हे आवश्यक गुणांक मिल न सके वे फिसल गये, फेल हो गये। मानवीय जीवन को  मूल्यवाद बनाने की क्षमता जिन गुणों मे होती है,उन्हे जीवन-मूल्य कहा जाता है। ये मूल्य शाश्वत होते है। मानवता के साथ वे निर्माण हुए है और यदि उनका कभी अन्त होने वाला हो तो उनके साथ मानवता भी समाप्त हो जाती है। इसीलिए जीवन के मूल्य को समझना अति आवश्यक है तभी सब कुछ प्राप्त हो सकेगा।

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