Tuesday 24 October 2023

बापू मुझे बेटी नहीं होना......? Beti ka sangharsh bhara jeewan in hindi

बापू मुझे बेटी नहीं होना......? Beti ka sangharsh bhara jeewan in hindi

नमस्कार दोस्तों भारत वर्ष में भले ही नवरात्रि में कन्याओं के चरण धोकर उनको पूजा जाता या घरर में कोई भी शुभ कार्य हो तो कन्या पूजी जाती है। लेकिन यह केवल विडम्बना है फिर भी कोई लडकी होना नहीं चाहता है। जबकि माता-पिता परिवार में सबसे जादा प्या अपनी बेटी को ही करते है फिर भी समाज में ये द्वंद्व भाव क्यों जागृत हो जाता है। इसका मुख्य कारण है आज का समाज पिता के हृदय में बेटी के भविष्य की चिंता।  क्योंकि आज के समाज में दिखावे की संस्कृति हावी हो चुकी है, सभी लोग नारे तो लगाते है किन्तु बेटी होना कोई नहीं चाहता है। भारत ही नहीं सभी देशों में सुरक्षा की बात हो या कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की सिर्फ कानून बनाने से ही यह नहीं रोकेगा। बुराई कानून से नहीं लोगों के नजरिए से बदलता है। गंदगी समाज में नहीं बल्कि लोगों के हृदय में है लड़कियों को लेकर समाज का नजरिया जब तक नहीं बदलता, तब तक कुछ नहीं होगा।  इस मौके पर उन्होंने कहा कि सिर्फ कन्या पूजन या नारी को देवी की उपमा देना ही काफी नहीं और ना ही इससे लैंगिक हिंसा को समाप्त किया जा सकता है। भले ही समाज ने लडकियों को बराबरी का दर्जा दे दिया हो ।

 भले ही लडकियां अशिक्षित नहीं है तो फिर आज भी भारत में अनाथालयों लडकियों से क्यों भरे हुए है? क्यों आज भी गैरकानूनी तरीके से भ्रूण हत्या के केस बड रहे है? फिर क्यों आज भी भारत में लडकियों का अनुपात कम है? क्यों आज भी भारत में लडकियां सडकों पर भीख मांगती नजर आती है? क्यों आज भी कचहरी में दहेज उतपीडन के लाखों केस दबे है? क्यों आज भी हम बेटे को मंहगे स्कूल और बेटी को छोटे स्कूल में पडाते है? क्यों आज भी हम बेटे की हर ख्वाहिश पूरी करते है और बेटी की ख्वाहिश के बारे में दस बार सोचते है? क्यों आज भी हम बेटे की भविष्य की रणनीति तो बनाते है परन्तु बेटी की चिंता केवर शादी तक ही सीमित रह जाती है?

इन सभी सवालों के लिए जुलुस तो निकालेंगे किन्तु खुद में परिवर्तन नहीं  जलाएंगे हर को दूसरे को बदलते हुए देखना चाहता है किन्तु खुद बदलने का प्रयास नहीं करता ।

आज स्थिति कुछ ऐसी बन चुकी है कि जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है तो उनके घर वाले बहुत कम खुश होते हैं,चेहरे पर मायूशी के भाव छा जाते है, उन्हें लगता है कि एक लड़की बहुत परेशानी देती है, खर्चा भी बहुत होता हैं।

जब लड़कियां स्कूल जाने लगती हैं तो उनके माता-पिता हमेशा उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। उसके साथ कहीं बुरा न हो यही भाव आते रहते है और हम सभी को यह बात उसके बचपन से ही उसपर लागू करने लगते है लड़की को बहुप्रतिभाशाली होना चाहिए उसे खाना बनाना आना चाहिए, घर का सारा काम करना आना चाहिए उसे बडों के साथ कैसे उठना बैठना चाहिए, परिवार वालों की सेवा कैसी करनी है आदि बातों पर बचपन में ही जोर दिया जाता है। वर्तमान समय की तो एक और मांग हो गयी है कि उसे मेहनत से पढ़ाई भी करनी होगी और अच्छी नौकरी भी करनी होगी वरना उसके माता-पिता उसकी शादी बडे घर में नहीं करवा पनाएंगे। और जैसे तैसे बेटी का विवाह हो जाए पिता के सर से मानों बडा बोझ उतर जाता है,गंगा नहाने जैसा आभास हो जाता है। और अगर यही बर्ताव अगर बेटों के साथ किया जाए तो समाज की सारी बुराइयाँ समाप्त हो जाए।

लड़कियों को अपने जीवन में ऐसे अपमान का सामना करना पड़ता है जिसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते।वो हर पल हर क्षण अपनी इच्छाओं खुशियों की हत्याएं करती रहती है। और कई लोग ऐसी बातें कहते हैं जो सीधे दिल को ठेस पहुंचाती हैं लेकिन वह समझ लेती है कि मै लडकी हूं मुझे सब सहना है। वह अपना आंतरिक दुख किसी से नहीं कहती है।

हर बार लडकियों को इन चीजों का सामना करना पड़ता है. मैं पूछता हूं क्यों? क्या लडकी इंसान नहीं हैं? क्या इनके अंदर भावनाएं नहीं हैं। क्या भारत लडकियों का होना अपराध से बढकर है।

जबकि बेटी होने से घर की दिशाएं खुल जाती है। उस परिवार के पूर्व जन्मों का सारा पाप मिट जाता है। बेटी गाय का स्वरूप मानी जाती है इसीलिए उसमें करूणा,दया, प्रेम, सौहार्द,  स्नेह, ममता, सहयोगी भावना, समर्पण की भावना, शक्ति का स्वरूप, अनुराग, रचना, अभिव्यक्ति, तीर्थ, धाम और न जाने कितनी ही दिव्य शक्तियों का समाहार है। बेटी कभी माता पिता के लिए बोझ नहीं होती है।

जिस पुरूष समाज के राज में स्त्री  दुखी है उस घर और समाज में कभी खुशी नही आ सकती। जो स्त्री को नहीं समझ सकता वह न तो भारतीय संस्कृति को समझ सकता और ना ही धर्म शास्त्रों, ग्रन्थों और वेदों को नहीं समझ सकता । आज समाज में कुरीतियों का मुख्य कारण यही है स्त्री की अवहेलना।

आखिरी शब्दों में बेटी के भाव में लिख रहा हूँ 

जाने वो कौन सा दौर था जब ईश्वर ने मुझको प्रतिरूप दिया ।
उनकी कोरी कल्पना ने धरती को बेटी अमूल्य उपहार दिया ।
हो सके उद्धार धरा का तुझसे ऐसी शोच को ठाना था।
सारे नियम ,धर्म, त्याग, बलिदान मुझको उपहार मिला ।
हर परीक्षा, तप,परेशानियों से बेटी तुझको गुजरना होगा ।
प्रेम का बीज उत्पन्न करके तुजे अपनों से लडना होगा ।
हो तेरा तिरस्कार जहाँ वो तीनो लोकों न टिक पायेगा ।
तेरा मन खिन्न हुआ तो कोई भी देव न मना पायेगा ।
तू ईश्वर की कोरी कल्पना उसको है अभिमान बेटी पर ।
तेरा दर्द क्या समझेगा मानव जिसमें है अभिमान भरा ।
तू देवी है तू ही शक्ति तुझसे ही है संसार बचा । 
तू है तो अस्तित्व धरा का अमर रहे बलिदान तेरा ।
काल पर भी अधिकार है तेरा ज्वाला तेरे हृदय मे है।
तू शान्ति का प्रतिबिंब भी है तू काली का रूप भी है।
अमर रहे स्वाभिमान तेरा न जग समझा न समझेगा । 
अपने अंकुर बोते जा ये ही है बलिदान तेरा।

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