Hindi Poem on Life:कविता ''जब हम अनपढ थे तो गांव में रहते थे ''
बीते लम्हों का हिसाब रखती है जिंदगी ।
कल को बेहतर बनाने में जिंदगी गुजर गयी ।
भविष्य की चिंता देख आज की खुशि छिन गयी ।
कतरे कतरे का हिसाब रखती है जिंदगी ।
जब हम अनपढ़ थे तो तब गांव में रहते थे ।
आज पढे लिखे हैं तो अब तनाव में रहते हैं ।
जब हम निर्धन थे तब सबको सलाम करते थे ।
आज धनवान है तो सभ्यता को खो बैठे हैं ।
कल को बेहतर बनाने में जिंदगी गुजर गयी ।
भविष्य की चिंता देख आज की खुशि छिन गयी ।
कतरे कतरे का हिसाब रखती है जिंदगी ।
जब हम अनपढ़ थे तो तब गांव में रहते थे ।
आज पढे लिखे हैं तो अब तनाव में रहते हैं ।
जब हम निर्धन थे तब सबको सलाम करते थे ।
आज धनवान है तो सभ्यता को खो बैठे हैं ।
जब हम झोपडी में थे तो खुशहाल जिंदगी थी ।
आज महलों में है तो अब अपनें कहीं खो गये ।
जब हम अनपढ़ थे तो तब अंधेरे में रहते थे ।
अब पढे लिखे है तो दुनियां को अंधेरे मे रखते है ।
जब हम पिछडे थे तो तब परिवार में रहते थे ।
आज तकनीकी में है तो अब मजधार में रहते है ।
जब मोबाइल दूर थे तो मां कें आंचल में छिपते थे ।
आज मोबाइल है तो मां का आंचल ही खो गया ।
जब हम अज्ञानी थे तो तब अपनों के लिए जीते थे ।
आज ज्ञानी है तो अब सपनों के लिए जीते है ।
जब परिवार बडे थे तो तब जिंदगी बहुत छोटी लगती थी ।
आज संयुक्त है तो अब जीवन बोझिल लगता है ।
जब हम बांटकर खाते थे तो भूख नहीं लगती थी ।
आज छीनकर खाते है तो अब भूख नहीं मिटती है ।
जब बडों की नसीहत पर चलते तो राह आसान लगती थी
आज खुद के फैसलों ने राह में कितने कांटे बो दिए ।
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