Sunday 31 May 2020

महाभारत की कथा संक्षिप्त परिचय एवं महाभारत का काल-क्रम (समय निर्धारण), Story of Mahabharata in hindi

महाभारत की कथा संक्षिप्त परिचय एवं महाभारत का काल-क्रम (समय निर्धारण)
Story of Mahabharata, Brief Introduction and Period of Mahabharata (Timing)

दोस्तों आज हम gyansadhna.com महाभारत को ' शतसाहस्री संहिता ' कहा जाता है क्योंकि इसमें (100000) एक लाख श्लोक हैं । इस महाकाव्य ( ग्रंथ ) में तत्कालीन समाज एवं राजनीतिक परिस्थितियों का संजीव चित्रण है । संसार की अनेक प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद होना इसकी लोकप्रियता को प्रमाणित करता है ।

महाभारत की कथावस्तु - 
महाभारत 18 पर्वों में विभक्त है । कौरवों पाण्डवों की उत्पत्ति से लेकर पाण्डवों की स्वर्ग प्राप्ति तक की सभी घटनाएं इन्हीं पर्वो में वर्णित हैं । इनके अतिरिक्त अनेक रोचक कथाओं का वर्णन भी महाभारत में मिलता है । आदि पर्व में शकुन्तलोयाख्यान , वन पर्व में मत्स्योपाख्यान , रामौपाख्यान , शिवि उपाख्यान , सावित्री उपाख्यान और नलोपाख्यान । महाकवि कालिदास ने अपने नाटक आभिज्ञानशाकुन्तलम् ' का तथा महाकवि श्री हर्ष ने ' नैषधीमचरित ' का कथानक महाभारत से ही लिया है ।

परिशिष्ट हरिवंश में तीन पर्यों में यादवों की कथा वर्णित है । हरिवंश पर्व में श्री कृष्ण और पूर्वजों का , विष्णुपर्व में श्री कृष्ण की लालाओं का और भविष्य पर्व में कलियुग के प्रभाव का वर्णन है । हरिवंश में 16000 श्लोक हैं । इस प्रकार परिशिष्ट सहित महाभारत में 21 पर्व हैं ।

महाभारत का कथानक अत्यन्त प्राचीन है । ब्राह्मण ग्रंथों में कुरु और पांचालों के कटाहों का निर्देश हुआ है । वहां कुरुक्षेत्र , परीक्षित , धृतराष्ट्र , जनमेजय का भी उल्लेख है । 445 AD के एक शिलालेख में शतसाहसंत्रा संहितायां वेदव्यासर्थक्तम समय वहां महाभारत का प्रचलन हो चुका था । 7 वीं शताब्दी में सुबन्धु तथा वाणभट्ट ने महाभारत का उल्लेख किया है ।

अपिकाव्य ' महाभारत ' के प्रणेता के रूप से महर्षि वेद व्यास को स्वीकार किया जाता है । वेदव्यास जी का मूलनाम ' कृष्णद्वैपायन ' था । क्योंकि इनका वर्ण कृष्ण का तथा ये यमुना के किसी द्वीप में ऋषि पाराशर तथा सत्यवती की सन्तान थे । वेद को यज्ञीय दृष्टि से ऋग , यजु , साम एवं अथर्व , इन चतुर्विध विभागों , या सहिंताओं में विभक्त करने के कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा ---

" वेदव्यास वेदान् यस्मात स तस्मादृ व्यास इति स्मृतः ।। 
महर्षि व्यास ने कौरव - पाण्डव - युद्ध को आधार बनाकर पन्चमवेदाख्य अपनी इस महत्त्वपूर्ण कृति महाभारत में सृपिर विज्ञान , देवों को वंशावली नीति , दर्शन तथा मानव जीवन के परमलक्ष्यभूत् धर्म , अर्थ , काम एवं मोक्ष का अत्यन्त विस्तार , मनोरंजन तथा बोधगम्य शैली में ललित वर्णन किया गया है ।

यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति को समग्ररूप में प्रस्तुत करने में सर्वथा समर्थ है । यही कारण है कि इस ग्रंथ के रचनाकार स्वयं ' व्यासजी ' ने यह घोषणा को है कि धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष संबंधी जो विवेचन यहां किया गया है , वही अन्यत्र भी दिखाई देता है ; लेकिन जो यहां नहीं है , वह कहीं नहीं है --

धर्मे हर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्पभ । 
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित् ।। 
महाभारत के आदिपर्व के एक विवरण के अनुसार , महर्षि व्यास ने अपने तीन वर्षों के सत्त प्रयास से इस अनुपम ग्रंथ महाभारत की रचना की --

त्रिभिर्वषैः सदात्थायी कृष्णद्वैयापनो मुनिः । 
महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमुत्तभम् ।। 
आदिपर्व ।। 56/32 

भारतीय साहित्य का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ' भगवतगीता ' महाभारत का ही एक अंश है । इसके अतिरिक्त --
1- विष्णु सहसनाम 
2- अनुगीता 
3- भीष्मस्तवराज 
4- गजेन्द्रमोक्ष 

आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण ग्रंथ यहीं से उद्धृत किए गए हैं । भगवतगीता के साथ सम्मिलित रूप में इन्हीं पाँचों ग्रंथों को ' पन्चरत्न ' के नाम से जाना जाता है । अपने अनुपम एवं अद्वितीय गुणों के कारण ही संस्कृत - वाड़मय में ' महाभारत ' पन्चमवेद नामक उपनाम से विख्यात हो प्राचीन भारतीय राजनीति का ललित वर्णन करने वाली ' विदुरनीति ' महाभारत का ही एक अंश है । इस प्रकार ऐतिहासिक , धार्मिक , राजनीतिक , आदि अनेक दृष्टियों से महाभारत ' एक गौरवपूर्ण ग्रंथ है ।

महाभारत का क्रम (काल-निर्धारण) --
Order of Mahabharata (Periodic) -
वर्तमान समय में संस्करणों के अनुसार ' महाभारत ' एक लाख अथवा उससे भी अधिक श्लोक - परिमाण वाला है । यही कारण है कि इसे ' शतसाहस्री - संहिता ' भी कहते हैं । गुप्तकालीन शिलालेखों में अनेकशः ' शतसाहस्री संहिता ' का उल्लेख हुआ है । शोध परिमाणों के आधार पर महाभारत का वर्तमान स्वरूप तीन क्रमिक चरणों में उपलब्ध हुआ है ।

प्रथम चरण में वेदव्यास जी ने जो कौरवों तथा पाण्डवों की कथा के रूप में ग्रंथ लिखा , उसका नाम जय था जिसे स्वयं वेद व्यास जी ने इतिहास कहकर संबोधित किया है --

जगो नामेतिहासोज्सं श्रीत व्यो विजिगोषणा ।
महाभारत । आदिपर्व ( 62/22 

 महाभारत के मंगलश्लोक पाठ में नारायण , नर और सरस्वती को नमस्कार करके ' जय ' नामक ग्रंथ के पाठ का विधान किया गया है --
नारायणं नमस्कृत्य नरञ्चैव नरोत्तमम् । 
देवी सरस्वती वदे तवो जयमुदीरयेत् ।। 
महाभारत । मगलश्लोकपाठ ।।

ऐसा प्रतीत होता कि यह ' जय ' ही महाभारत का मूलरूप है । कौरवों पर पाण्डवों की विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रंथ का जय नामकरण किया गया ; जो सर्वथा सार्थक ही है । प्रो . मैक्डोनल के अनुसार ' जय ' में कुल 8800 श्लोक थे ; जबकि महाभारत में यह संख्या कूटश्लोकों के रूप में स्वीकार की गई है --
अष्यैश्लोकसहस्राणि अष्टौ श्लोक शतानि च । 
अहं वेदं शुको वोसे संजयें वोत्ति वा न वा ।। 

इसी ग्रंथ का विकसित रूप भारत के नाम से जाना जाता है । सर्पदंश के कारण अर्जुन के पौत्र परीक्षित की मृत्यु के अनन्तर वदले की भावना से परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सुप्रसिद्ध ' सर्पसत्र ' का आयोजन किया । इस अवसर पर महाराज जनमेजय ने महर्षि व्यास के समक्ष कौरवों और पाण्डवों के युद्ध का वर्णन सुनने की जिज्ञासा प्रकट की ।

इस अवसर पर महर्षि व्यास ने अपने शिष्य वैशम्पायन को ' जय ' महाकाव्य को सुनाने का आदेश दिया । महाराज जनमेजय ने इस जयाख्य महाकाव्य के श्रवण - क्रम में विभिन्न स्थलों पर विविध प्रश्नों को उपस्थित किया और वैशम्पायन ने अपेक्षित उत्तर के द्वारा उनकी जिज्ञासा को शांत किया । इस प्रकार संबद्ध प्रश्नों के उत्तरों को मिलाने पर ' जय ' का कलेवर अपेक्षाकृत बहुत विस्तृत हो गया और इसका नाम ' भारत ' पड़ा । भारत नामक इस ग्रंथ में उपाख्यानों के न होने पर भी कुल 24000 श्लोक थे जिसे ' चतुर्विशति साहस्री ' कहा गया --
चतुर्बिशतिसाहस्रीं चक्रे भारतसांहेताम् । 
उपाख्यानैर्विय ताबद् भारतें प्रोच्यते बुधैः ।।

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