सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिन्दी में,
Story of complete Ramayana in Hindi

Ramayan
दोस्तों gyansadhna.com रामायण ' महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य है । महर्षि वाल्मीकि ने इस महाकाव्य में प्राचीन भारत की सामाजिक व्यवस्था का काव्यात्मक वर्णन किया है, Story of complete Ramayana in Hindi,और रामकथा के माध्यम से राम और सीता के जीवन का चित्रण अत्यन्त मर्मस्पर्शी एवं ललित शैली में किया है । महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ' रामायण ' महाकाव्य में सात काण्ड , 500 सर्ग तथा 24.000 श्लोक हैं ।
रामायण ' महाकाव्य में सात काण्ड निम्नलिखित हैं ---
Story of complete Ramayana in Hindi
1- बालकाण्ड - Bala Kanda of Ramayan Story in Hindi
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Balkand |
राम-सीता जन्म कथा
इस काण्ड में क्रौञ्चवध की घटना से आरम्भ होकर नारद एवं ब्रह्मा के निर्देश से रामायण रचना के साथ राम के बाल जीवन की घटनाएं प्रकट होने लगती हैं । लम्बे अन्तराल के बाद विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में जाकर और लक्ष्मण ने राक्षसों का वध करके विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की । इसके पश्चात् ऋषि विश्वामित्र के साथ जनक पुर की ओर प्रस्थान करते हैं । अहल्योद्धार के पश्चात जनकपुर में धनुषभंग के अनन्तर वैवाहिक रीति से श्री राम भगवती सीता का पाणिग्रहण करते हैं ।
2- अयोध्याकाण्ड – Ayodhya Kanda of Ramayan Story in Hindi
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Ayodhyakand |
अयोध्या काण्ड ' में अयोध्या के महाराज दशरथ श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं लेकिन राज्याभिषेक के पहले ही दासी मन्थरा के परामर्श से महारानी कैकेयी ने राम के राज्याभिषेक को चौदह वर्ष के वनवास में परिवर्तित कर दिया । परिणामस्वरूप पितृभक्त राम चौदह वर्ष के लिए वन में चले जाते हैं । पुत्रवत्सल महाराज दशरथ पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग देते हैं । वशिष्ठ के परामर्श से राजकुमार भरत को उनके ननिहाल से बुलाया जाता है । वह श्री राम को वन वापस लाने का प्रयास करते हैं लेकिन पितृभक्त श्री राम द्वारा निरूत्तर कर दिए जाने पर श्री राम की चरणपादुका लेकर अयोध्या -इस काण्ड में दण्डकारण्य में विविध वापस आते हैं ।
3- अरण्यकाण्ड -Aranya Kanda of Ramayan Story in Hindi
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Aranykand |
चौदह वर्ष का वनवास
इस काण्ड में दण्डकारण्य में विविध रूपों की घटनाएं घटने लगती है।
राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने कई असुरों का संहार किया और कई पवित्र और अच्छे लोगों से भी वे मिले। दण्डकारण्य में निवास करते हुए विराध राक्षस का वध करते है। वे वन चित्रकूट में एक कुटिया बना कर रहने लगे। एक बार की बात है लंका के असुर राजा रावन की छोटी बहन सूर्पनखा ने राम को देखा और वह मोहित हो गयी।
पञ्चवटी में रावण की बहन सूर्पणखा को नाक कान से हीन कर दिया सूर्पणखा अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए खर एक्पण के समक्ष जाती है । अपनी सेना लेकर श्री राम से युद्ध करने आते हैं लेकिन श्री नामक राक्षसी का वध करते हुए ' लंकिनी ' को परास्त करके लंका में प्रवेश करते हैं । रावण के महल में सीता को न देखकर , सीताविषयक जानकारी प्राप्त करने के लिए विभीषण से मिलते हैं और उनसे विदा लेकर अशोक वाटिका में भगवती सीता का दर्शन शपणखा को नाक कान हो । कर देते हैं । शूर्पणखा अपर राम उन दोनों को उनकी सम्पूर्ण सेना के साथ मृत्यु को समर्पित कर देते हैं । इसके पश्चात् रावण अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए श्री राम की पत्नी सीता का छलपूर्वक हरण कर लेता है । भगवती सीता के मर्मस्पर्शी करूणक्रन्दन एवं रावण के राक्षस सुलभ वचनों के साथ इस काण्ड का अवसान होता है ।
4- किष्किन्धा काण्ड - Kishkindha Kand of Ramayan in Hindi
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Kishkinda kand |
राम और हनुमान का चित्रण
किष्किन्धा काण्ड ' में श्री राम भगवती सीता की खोज करते हुए शबरी के परामर्श के अनुसार पम्पासरोबर की ओर प्रस्थान करते हैं । जहां सुग्रीव अपने हनुमान और कटिपय मन्त्रियों के साथ निवास करता था । सुग्रीव के परामर्श के अनुसार हनुमान श्री राम के समक्ष गुप्त वेश में प्रकट होते हैं । श्री राम के भावों को जानकर उन्हें प्रेमपूर्वक सुग्रीव के पास लाते हैं तथा अग्नि को साक्षी मानकर सुग्रीव और श्री राम की मित्रता कराते हैं । श्री राम बालि का वध करने का वचन देते हैं । सुग्रीव सीता की खोज करने की प्रतिज्ञा करते हैं । राज्याभिषेक के पश्चात् सुग्रीव अपने महल में राजकीय वैभव के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करता है । इधर श्री राम भी पर्वतों की कन्दराओं की शरण लेकर वर्षा ऋतु के चार महीनों को व्यतीत करते हैं । तत्पश्चात् सुग्रीव के आदेशानुसार कपि आदि की सेना सीता की खोज के लिए प्रस्थान करती है ।
5- सुन्दर काण्ड -
Sundar Kanda of Ramayan Story in Hindi
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Sundar kand |
अशोक वाटिका में हनुमान सीता भेंट
सुन्दर काण्ड ' में सीता हरण के दौरान गिद्धराज सम्बाती से प्राप्त सीता - विषयक विवरण के अनुसार हनुमान जी संमुद्र के मध्य वर्तमान लंकापुरी के लिए प्रस्थान करते हैं । मार्ग में सुरसा द्वारा ली गई परीक्षा से उत्तीर्ण होकर ' सिंहिका ' करके , उन्हें श्री राम के संदेश से अवगत कराते हैं ।
रावण के बलाबल की परीक्षा हेतु फलभक्षण के बहाने वे रावण की वाटिका विध्वंस कर डालते हैं । इसी क्रम में रावण - पुत्र अक्षय कुमार की हत्या के अनन्तर मेघनाथ द्वारा ब्रह्मास्त्रबद्ध होकर रावण दरबार में पहुंचकर रावण को सीतापरावर्तन की सलाह देते हैं , लेकिन दुष्ट रावण की योजना के अनुसार पूँछ जलाने के प्रसंग में सम्पूर्ण लंका ही भस्मात् हो जाती है । अन्ततः भगवती सीता से विदा लेकर पहचान स्वरूप चूडामणि के साथ समुद्र को लांघते हुए पुनः श्री राम के पास लौट आते हैं और सीताविषयक तथ्यों से श्री राम को अवगत कराते हैं ।
रावण के बलाबल की परीक्षा हेतु फलभक्षण के बहाने वे रावण की वाटिका का विध्वंस कर डालते हैं । इसी क्रम में रावण पुत्र अक्षय कुमार की हत्या के बाद मेघनाद द्वारा ब्रह्मास्त्राबद्ध होकर रावण दरबार में पहुँचकर रावण की योजना के अनुसार पूंछ जलाने के प्रसंग में सम्पूर्ण लंका ही भस्मात् हो जाती हो अन्ततः भगवती सीता से विदा लेकर पहचानस्वरूप चूडामणि के साथ समुद्र को लाँघते हुए पुनः श्री राम के पास लौट आते हैं और सीताविषयक तथ्यों से श्री राम को अवगत कराते हैं ।
6- युद्धकाण्ड -लंका कांड -- Lanka Kanda Story of Ramayan in Hindi
लंका में श्री राम की वानर सेना --
युद्धकाण्ड ' रामायण का विशालतम काण्ड है । अपने नाम के अनुरूप यह आद्योपान्त युद्धकौशल से ओत प्रोत है । हनुमान जी द्वारा सीता - विषयक समाचार पाकर श्रीराम ' सुग्रीव ' की अध्यक्षता में सम्पूर्ण वानर सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान करते हैं । इसी दौरान रावण द्वारा अपमानपूर्वक निर्वासित विभीषण ' श्री राम ' की शरण में आकर अभयदान की याचना करता है । फलतः श्री राम उसे अभय देते हुए लंका के भावी सम्राट के रूप में तिलक करके सम्मानित करते हैं । लंका - प्रयाण में समुद्र को बाधक मानकर तथा समुद्र की ही परामर्श के ही अनुरूप श्री राम समुद्र की जल राशिपर अत्यन्त विशाल अद्वितीय तथा अपूर्व सेतु का निर्माण करते हैं । समस्त वानर भालुओं की सेना अत्यन्त सहजतापूर्वक समुद्र को पार करके उस पार पहुंचती है ।
मन्त्रियों के परामर्श से श्री राम'अगंद ' को दूत के रूप में रावण के पास सन्धिवार्ता हेतु भेजते हैं ; लेकिन दुराग्रही रावण के हठ के कारण यह सन्धिवार्ता निष्फल साबित होती है । अन्ततः दोनों पक्षों युद्ध प्रारम्भ हो जाता है और कुम्भकरण , अहिरावण , मेघनाद , नशन्तक इत्यादि रावण के विश्वविजयी योद्धा क्रमशः परास्त होते हुए वीरगति को प्राप्त होते हैं । युद्ध का अवसान राम - रावण युद्ध से होता है । अनेक अहोरात्रपर्यन्त अपनी दिव्यादित्य शक्तियों से युद्ध कौशल प्रदर्शित करते हुए अन्ततः रावण भी श्री राम के वाणों से आहत होकर यमलोक को प्रस्थान करता है ।
लंकानरेश विभीषण ससम्मान भगवती सीता को श्री राम के पास लिवा लाते हैं और श्री राम सीताग्नि परीक्षा के बाद पुष्पकविमान पर आरूढ़ होकर वानर - भालुओं के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं । अयोध्या की पावन भूमि पर पहुंचकर श्री राम भरतादिक से मिलते हैं और गुरु वाशिष्ठ अयोध्या के सिंहासन पर सम्राट के रूप में श्री राम का राज्याभिषेक करते हैं ।
7- उत्तरकाण्ड - Uttar Kanda of Ramayan in Hindi
उत्तरकाण्ड में श्रीराम के राजदरबार में महर्षि अगस्त्य का आगमन होता है । श्री राम उनका यथोचित सम्मान करते हैं । श्री रामादि के द्वारा जिज्ञासा प्रकट किए जाने पर महर्षि ' अगस्त्य ' रावण आदि राक्षसों के जन्म , उनके पराक्रम ; हनुमानजी का जन्म , इन्द्र द्वारा वज्र प्रहार तथा सभी देवताओं द्वारा हनुमानजी को वर प्रदान की घटना का सविस्तर उल्लेख करते हैं । इस काण्ड के अन्त में दुर्मुख नामक गुप्तघर से प्राप्त सीता विषयक लोकापवाद को सुनकर खिन्न मन वाले ' श्री राम ' सीता निर्वासन का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं और लक्ष्मण द्वारा सुनियोजित ढंग से आप्रसन्नप्रसवा भगवती सीता का वन - वीथिका में निर्वासन करते हैं । वहीं ऋषि वाल्मीकि के आश्रम से सीता को दो पुत्ररत्नों की प्राप्ति होती है , जिन्हें महर्षि वाल्मीकि ' लव ' और ' कुश ' की संज्ञा से अभिहित करते हैं । समय के सापेक्ष श्री राम ' शम्बूकबध ' के अनन्तर अश्वमेघ यज्ञ का अयोजन करते हैं और लव तथा कुश का वाल्मीकि द्वारा परिचय पाकर अश्वमेघ की पूर्णाहुति के बाद लव कुश का राज्याभिषेक करके स्वयं परलोकगमन करते हैं ।
लव-कुश कांड - Luv Kush Kanda Ramayan Story in Hindi
लव-कुश का जन्म
वही माता सीता दो पुत्रों को जन्म देती हैं जिनका नाम लव और कुश दिया गया। लव और कुश ने महर्षी वाल्मीकि से पूर्ण रामायण का ज्ञान लिया। वे दोनों बालक पराक्रमी और ज्ञानी थे।
अश्वमेध यज्ञ --
श्री राम ने चक्रवर्ती सम्राट बनने और अपने पापों से मुक्त होने के लिए अस्वमेध यज्ञ किया। यह यज्ञ करने का सुझाव उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने दिया था। इस यज्ञ में एक घोड़े को स्वछन्द रूप से छोड़ा जाता था। वह घोडा जितना ज्यादा क्षेत्र तक जाता था उसे राज्ये में सम्मिलित कर दिया जाता था। इस यज्ञ को पत्नी के बिना नहीं हो सकता था इसलिए श्री राम ने माता सीता का स्वर्ण मूर्ति भी बनवाया था।
जब श्री राम का घोडा स्वछन्द रूप से छोड़ा गया तब वह भी एक राज्य से दुसरे राज्य में गया। जब वह घोडा महर्षि वाल्मीकि के अस्राम के पास पहुंचा तो लव कुश ने उसकी सुन्दरता देखकर उसे पकड़ लिया। जब राम को पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा परन्तु लव-कुश से युद्ध में सब हार गए। जब राम वहां पहुंचे तो उन्होंने उन बालकों से पुछा की वह किसके पुत्र हैं। तब लव-कुश ने माता-सीता का नाम लिया।
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