Tuesday 19 May 2020

सूर्य स्नान और सूर्य नमस्कार के फायदे,लाभ विधी और उपाय Benefits, benefits and remedies of sun bath and sun salutations

सूर्य स्नान और सूर्य नमस्कार के फायदे,लाभ विधी और उपाय
Benefits, benefits and remedies of sun bath and sun salutations
Soory ki shakti

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दोस्तों सूर्य स्नान को धूप स्नान भी कहते हैं। और यह शरीर, मन, और आत्मा के लिए बहुत ही लाभदायक है। भारत में तो कम पर विदेशों में यह (सन बाथ) बहुत ज्यादा लोकप्रिय है। थोड़ी देर सुबह की धूप में बैठने से आपको कई सेहत लाभ भी होते हैं। सूर्य की किरणें हमारे नाड़ी तंत्र या स्नायुमंडल का संचालन करके आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती हैं। बेहतर होगा कि आप जब भी इसे करें, तो अधिक से अधिक धूप अपनी रीढ़ की हड्डी तक पहुंचने दें। जानें सूर्य स्नान क्या है, इसे कैसे करते हैं और इसके फायदे क्या-क्या होते हैं।

धार्मिक महत्व 
 नहाने के पश्चात् सूर्य - स्नान किया जाता है । सूर्य की ओर मुख करके सीधे खड़े होकर और छाती को भीतरी वायु से खाली करके धीरे - धीरे बाहरी वायु से पूर्ण कर फुलाओ और श्वास रोको ( प्राणायाम करो ) । ऐसा करते समय अनुभव करो कि सूर्य की किरणों द्वारा तेज हमारे शरीर में प्रविष्ट होकर हमारे फेफड़ों को बलवान बना रहा है और रोगाणुओं को जला रहा है । फिर धीरे - धीरे श्वास छोड़ो । यह विधि तेज धूप में नहीं करनी चाहिए , सूर्योदय के समय 10-15 मिनट तक करनी चाहिए । इस क्रिया से फेफड़े शुद्ध एवं बलवान बनते हैं , आंखों की ज्योति बढ़ती है ।

शास्त्रों में कहा गया है--

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुवर्धनमुत्तमम् ।। 
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । 
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।। 

सूर्य की ये सात किरणें इन लोगों में है बहुत लाभदायक 
सूर्य की सात किरणें हैं । ये निम्नलिखित तथा अन्य भी बहुत से रोगों का नाश करती है --
(1) रक्त किरण       --  कुष्ठ रोग में 
(2) पाटल किरण    --  रक्त-रोग में 
(3) नील किरण      --  मस्तिष्क रोग में 
(4) हरित किरण     --  नेत्र रोग में 
(5) श्याम किरण     -- चर्मरोग में 
(6) पित्त किरण      -- अम्ल पित्त , शीत पित्त , रक्त पित्त                                  पित्तोद्रेक , पित्ताशय के रोग में 
(7) नारंग किरण      -- फुफ्फुस तथा आन्त्र रोग में लाभ करती है ।

सूर्य स्नान-नमस्कार की विधि  Surya Snan ki vidhi

(1) सूर्य-स्नान करते समय सिर को भीगे रुमाल से ढ़क लेना चाहिए।

(2) सूर्य-स्नान का सर्वोत्तम समय सुबह यानी सूर्योदय काल है। उस समय यदि स्नान का सुयोग न मिले तो फिर सूर्यास्त काल। 

(3) कभी भी तेज धूप में न बैठे। इसके लिए प्रातःकाल और सायंकाल की हल्की किरणें ही उत्तम होती हैं।

(4) धूप-स्नान का आरम्भ सावधानी से करें। पहले दिन 15 मिनट स्नान करें। फिर रोज पाँच मिनट बढ़ाते जायं। परन्तु एक घंटे से अधिक नहीं।

(5) जितनी देर स्नान करना हो उसके चार भाग करके पीठ के बल, पेट के बल, दाहिनी करवट और बायीं करवट से धूप लें, जिससे सारे शरीर पर धूप लग सके।

(6) सूर्य-स्नान करते समय शरीर पर कम से कम वस्त्र रखें ताकी सूर्य किरणों का पूरा लाभ शरीर को प्राप्त हो सके ।

(7) खुले स्थान में, जहाँ जोर की हवा न आती हो सूर्य-स्नान करें ।

(8) भोजन करने के एक घंटे पहले और दो घंटे बाद तक सूर्यस्नान न करें।

वेदों में सूर्य की किरणों से चिकित्सा व उपचार--
हमारे शास्त्रों में सूर्य को ऊर्जा को स्त्रोत माना गया है और यह कयी
 रोगों को भी दूर करता है सूर्य न हो तो जीवन जीना सम्भव नही है।

 (1) श्लोक 
उद्यन्नादित्यः क्रिमीन् हन्तु निम्रोचन हन्तु रश्मिभिः ।
ये अन्त : क्रिमयो गवि ।। 
( अथवे , काण्ड 2 , सूक्त 32 ) 

अर्थात - उदित हुआ सूर्य का तेज संक्रामक रोगाणुओं का नाश करे और अस्त होता हुआ सूर्य भी , जो पृथ्वी व शरीर के भीतर रोगजनक क्रिमि हैं , इस प्रकार प्रात : और सायं की तिरछी पड़ती हुई किरणों में कीटाणु विनाशक और आरोग्यदायक महान दिव्य शक्ति होती है ।

(2) श्लोक 
अनु सूर्यमुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते । 
गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परिदध्मसि ।। 
( अथर्व . काण्ड 1 , सूक्त 22 ) 

अर्थात् - तेरे हृदय का चमकना ( धड़कना ) और तेरे शरीर में व्याप्त ह वर्ण सूर्य के उदय होने के साथ ही उठ जाये या नष्ट हो जाये । सूर्य अपनी लाल रंग की किरणों से तुझे वश में करे व चारों ओर घेर ले ।

(3) श्लोक 
परित्वा रोहितैर्वर्णैर्दीर्घायुत्वाय दध्मसि । 
यथायमरपा असदथो अहरितो भूवत् ।। 
( अथर्व . , काण्ड 1 , सूक्त 22 )

 अर्थात् - हे पाण्डुरोग - पीड़ित पुरुष ! दीर्घ आयु प्राप्त कराने के लिए तुझे चारों ओर से सूर्य अपनी लाल - लाल किरणों से घेर ले जिससे यह तू रोगी पाप - फलस्वरूप रोग से रहित हो जाये और जिससे तू हारिद्र व पाण्डु रोग से भी मुक्त हो जाय ।

(4) श्लोक 
 रोहिनीर्ववत्याः गोवो या उत रोहिणीः । 
रूपंरूपं वयोवयस्ताभिष्ट्वा परिदध्मसि ।। 
( अथर्व . , काण्ड 1 , सूक्त 22 ) 

अर्थात् [ -ऊपर रोहण करती हुई सूर्य की लाल रंग की जो किरणें हैं , वे अपनी विशेष कान्तिवर्धक और आयुवर्धक गुणों से तुझको चारों ओर से घेर लें । इन वेद - मंत्रों का सारांश यह है कि प्रात : कालीन सूर्य की लाल किरणें पाण्डु रोग , कफमेदज हृदय रोग और संक्रामक रोगों को दूर करती हैं तथा विशेष कान्तिवर्धक और आयुवर्धक होती हैं ।

सूर्य की प्रातः काल की किरणों से लाभ उठाने के लिये हमारे देश में सूर्य - नमस्कार की और सूर्य को जल देने की पुरानी प्रथा चली हुई है । सूर्य नमस्कार से बढ़कर कोई व्यायाम नहीं और सूर्य को अर्घ्य देना सर्वव्याधिविनाशक है । सूर्य को जल देने से आंखों के सब रोग नष्ट होते हैं तथा ज्योति बढ़ती है । जल से भरे हुए लोटे को दोनों हाथों में पकड़कर सिर के ऊपर ले जाकर पानी की धारा सूर्य की ओर डालें और उस धारा में से सूर्य को देखें । यही कार्य धीरे - धीरे कम - से - कम दो मिनट करें ।


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