Monday 18 May 2020

हल्दी का महत्व एवं हल्दी के फायदे,नुकसान सूपर औषधीय गुणऔर लाभ व रोगों में सहायक, properties and benefits and helpful in diseases

हल्दी का महत्व एवं हल्दी के फायदे,नुकसान सूपर औषधीय गुणऔर लाभ व रोगों में सहायक
Importance of turmeric and benefits of turmeric, disadvantages super medicinal properties and benefits and helpful in diseases
Haldi ke fayade

दोस्तों हल्दी को हिन्दु धर्म मे बहुत ही शुभ और मांगलिक माना गया है, किसी भी शुभ कार्य में हल्दी का प्रयोग बहुत ही जरूरी और शुभ माना जाता है।
इसके साथ-साथ हल्दी में कयी औषधीय गुण भी पाए जाते है हल्दी के प्रयोग से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक संपन्नता आती है। साथ ही हल्दी विष को काटती है और नकारात्मक उर्जा को खत्म करती है।
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ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से हल्दी का महत्व 
हमारे धार्मिक ग्रन्थों मे हल्दी के कई रंग और प्रकार होते हैं। रंगों के कारण ही इसका ग्रहों से संबंध होता है। हल्दी पीले, नारंगी और काले रंग की होती है। पीली हल्दी बृहस्पति ग्रह से संबंध रखती है।

साथ ही नारंगी मंगल से और काली शनि से संबंधित माना गया है। ज्योतिष में बृहस्पति को मजबूत करने के लिए और बृहस्पति सम्बन्धी समस्याओं के निवारण के लिए पीली हल्दी का प्रयोग किया जाता है।

हल्दी का वैज्ञानिक व धार्मिक महत्व एवं फायदे
Scientific and religious importance of turmeric

हल्दी हिन्दू संस्कृति और जीवन के अन्तर्गत हल्दी ( हरिद्रा ) एक सौभाग्य सूचक द्रव्य है । एक ओर तो यह रसोईघर का शृंगार है और दूसरी ओर परिवार के गले का हार भी ।

हल्दी चन्दन के साथ मिलकर एक ओर तो राजतिलक के समय सम्राटों के ललाट की शोभा बनती है और दूसरी ओर देवताओं के मस्तक पर चढ़कर स्वयं पूजनीय बन जाती है । ललाट पर पीयूष ( पीनियल ) ग्रंथि के ठीक सामने हल्दी मिला तिलक लगाने का यही अभिप्राय है कि हल्दी एक ऐसा द्रव्य है जो मनुष्य के ' पीनियल ग्लैण्ड ' या पीयूष ग्रंथि का नियंत्रण कर सकता है । पीयूष ग्रंथि के द्वारा ही मनुष्य अपनी पशुबुद्धि को नियंत्रण में कर सकता है । पशु - प्रवृत्ति पर विजय ही मनुष्य को देवता बना देती है । इस पशुप्रवृत्ति के घटने - बढ़ने से ही बड़े - बड़े साम्राज्य चकनाचूर हो गये , बड़ी - से - बड़ी समस्याएं सदैव के लिये विलीन हो गयीं ।

रावण की पशु प्रवृत्ति ने ही उसके सारे
पाण्डित्य और विद्वता को नष्ट करके सुवर्ण की लंका को सदैव के लिये भस्मसात् कर दिया । भस्मसात करने वाली सत्ता पशु प्रवृत्ति पर विजय करनेवाली वीर शक्ति हनुमान के नाम से विश्व - विदित हुई । पशुवृत्ति के आधिक्य से ही तो दुर्योधन विश्व में कुलघातक एवं राष्ट्रघातक सिद्ध हुआ ।

हमारे आर्य पुरुषों ने जिस मैथुनाचार का उदात्तीकरण एवं नियोजन विवाह संस्कार द्वारा किया , उसी के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले परिवार का भी नियोजन करने का विधान विवाह संस्कार के साथ ही कर दिया था । विवाह के पूर्व लड़के और लड़की दोनों के हाथ में हल्दी की गांठ बांध दी जाती है और ' हल्दी हाथ ' का संस्कार पाणिग्रहण संस्कार से पूर्व कर दिया जाता है ।

हल्दी हाथ ' वाले दिन प्रत्येक माता का धर्म होता है कि वह कन्या के हाथ में हल्दी रखकर यह बता दे कि प्रत्येक मासिक धर्म आरम्भ होने की तिथि से पांच दिन तक हल्दी की केवल एक गांठ पानी में पीसकर नित्य बासी मुंह पी लिया करे ताकि अनैच्छिक संतति की प्राप्ति न हो सके । "

हारिद्रग्रन्थिमेकैकं प्रत्यहं भक्षयेत् । 
यदि रजोधर्म समायुक्त बन्ध्याषड्भिदिनैर्भवेत् । 

हल्दी को पानी में पीसकर ऐपन बनाया जाता है । इस ऐपन को ' हल्दी हाथ ' वाले दिन स्त्रियां अपनी पांचो अंगुलियों तथा हथेली में लगा कर लोगों की पीठ पर थाप लगाती हैं , केवल यह सिद्ध करने के लिये कि परिवार केवल पांच व्यक्तियों का होना चाहिए - तीन बच्चे और दो अपने स्वयं ।

मायके से विदा होते समय लड़की ऐपन की थाली हाथ में ले जाती है । ससुराल में घुसने के पूर्व लज्जा की पुतली नयी वधू सीमित परिवार रखने की स्वीकृति गृह के प्रवेश पर अपनी पांचों अंगुलियों में ऐपन लगाकर अंकित कर देती है । इससे वृद्धजन समझ जाते हैं कि बहू को केवल हल्दी द्वारा परिवार का नियोजन करने की कला ही नहीं ज्ञात है , अपितु सीमित परिवार की स्वीकृति को भी अंकित कर रही है ।

इस स्वीकृति को अंकित करने के बाद ही वह नवागन्तुका लज्जाशीला नारी वधू के रूप में परिवार के अन्दर ग्रहण की जाती है ।
 उसका रूप देवी का होता है - या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता । 
वह श्रद्धा का रूप होती है । यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता । उसकी पूजा होती है । इसलिये नहीं कि वह आधुनिक युग की - सी काम कला की पुतली है , प्रत्युत इसलिये कि वीर प्रसविनी है । उसके अन्दर राम , कृष्ण , वेदव्यास , पाणिनि , जैमिनी , पतंजलि आदि को पैदा करने की क्षमता होती है । पुरुष और प्रकृति की महान शक्तियों को विवाह सूत्र द्वारा बांध देना आर्य पुरुषों के केवल समाज - विज्ञान के परम ज्ञान का ही परिचायक नहीं , अपितु विश्व के महान कल्याण की भावना का भी द्योतक है ।

विवाह सूत्र के साथ हल्दी को भी विवाह के कंगन में बांध देना उनके भैषज्यविज्ञान , ओषधि विज्ञान और शरीर विज्ञान की ही नहीं , उनके तत्वविज्ञान की भी पराकाष्ठा थी । आज का वैज्ञानिक अब तक अपना मस्तिष्क गर्भनिरोध के कृत्रिम औषध की खोज में व्यर्थ लगा रहा है । सरकार भी अरबों रुपये व्यय कर चुकी है , कर रही है , क्योंकि आज की जनता को न तो धर्म में विश्वास है , न विवाह के बन्धन में , और न हाथ में बंधे हुए हल्दी के कंगन में ही । ' हाथ कंगन को आरसी क्या ? ' हल्दी को अपनाइए , परिवार नियोजन को सफल बनाइए । ( आयुर्वेद - विकास से )


हल्दी के प्रभावशाली गुण धर्म 
Effective virtues of turmeric religion

हल्दी कयी लोगों से लडने मे मदत करती है ,शायद मै उतना वयां भी नही कर सकता की हल्दी कितनी गुणकारी है ,कुछ महत्वपूर्ण रोगों के बारे में बता रहा हूं जिसमें हल्दी बहुत ही असरकारक व लाभदायक सिद्ध होती है--
1- कफ                2-  वातशामक  
3- पित्तरेचक         4- पित्तशामक  
5- रुचिवर्धक         5- कटुपौष्टिक  
6- आमपाचक       7- कृमिघ्न  
8- श्लेष्मनिस्सारक  
9- प्रमेहनाशक 
10- सौन्दर्य-प्रसाधक-कुष्ठघ्न 
11- स्तन्य एवं शुक्रशोधक , 
12- बाह्य प्रयोग में शोथहर , 
13- व्रणरोपण , 
14- वृष्य एवं वेदना में उपयोगी है ।

रोगों के अनुसार हल्दी का लाभकारी प्रयोग 
Beneficial use of turmeric according to diseases

1- फुफ्फुसीय दमा में हल्दी चूर्ण 3 माशा घी में भूनकर प्रात : सायं दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करने से विशेष लाभ होता है । यदि ' एलर्जी ' के कारण भी श्वास - कास । तो इसमें हरिद्रा चूर्ण उपर्युक्त विधि से प्रयोग करने से अधिक लाभ होता है । 

2- मुख की सुन्दरता एवं शरीर का रंग निखारने हेतु हल्दी का चूर्ण मक्खन या कडुवे तेल में मिलाकर मलने से त्वचा कोमल होती है एवं मुख की झांई तथा त्वचा के रोग नष्ट होते हैं , इसलिए यह उत्तम कान्तिवर्धक है । 

3- प्रमेह में मूत्र जब गंदला या थोड़ा - थोड़ा और बार - बार होता हो , तब हल्दी और आंवले के चूर्ण से बहुत लाभ होता है । 

4- प्रदर में हल्दी और गूगल किंवा हल्दी और रसोंत देने से लाभ होता है । 

5- व्रणों एवं घावों पर हल्दी का चूर्ण घी के साथ लगाने से या केवल चूर्ण को छिड़कने से व्रण संकुचित होता है और घाव भर जाता है । 

6- मार - चोट एवं अदृश्य ( गुम ) चोट में हल्दी - गुड़ दूध के साथ देने से लाभ होता है । अदृश्य चोट पर हल्दी और चूने का लेप करते हैं । 

7- हाथी पांव ( फाइलेरिया ) में हल्दी और गुड़ गोमूत्र के साथ सेवन करने से लाभ होता है । 

8- सर्पविष में अगद के रूप में हल्दी चूर्ण सर्प से दंशित व्यक्ति को सेवन कराने से लाभ होता है । 

9- शाक एवं दालों में हल्दी का विधान भोजन में रुचि बढ़ाने हेतु , कटु पौष्टिकता , आमपाचन तथा कृमिघ्नता हेतु भारतीय परम्परा में मसालों के रूप में बहुत समय से हैं । 

10- दंत रोग - सरसों के तेल में मिलाकर दांतों पर मलने से दांतों से रक्त और पीप बहना ( पायरिया ) बन्द होता है । 

11- श्वेत कुष्ठ ( फुलबहरी ) में इसके लगातार खाने और लगाने से बहुत लाभ होता है । 

12- नेत्र ज्योति - हल्दी को नींबू के रस में रगड़कर सुर्मा बनायें । इसके लगाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है । 

13- कान्तिवर्धन एवं सौन्दर्यप्रसाधन हेतु इसे दूध में मिलाकर शरीर पर - मलें । 

14- दाद , चंबल , छीप पर पानी या नींबू के रस में घिसकर लगाने से बहुत लाभ होता है । 

15- अर्श , बवासीर के मस्सों पर घीकुआर के रस अथवा पानी में घिसकर लेप करने से मस्सों की जलन , खुजली , सूजन दूर होती है । 

16- ताजा घाव पर सूखी हल्दी लगाने से रक्त का बहना तुरन्त बन्द हो जाता है और घाव भी बहुत शीघ्र भर जाता है ।

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