Monday 4 May 2020

तुलसी का महत्व,फायदे-लाभ व तुलसी के अमूल्य गुण जो हरे सभी रोगो को,importance of Tulsi

तुलसी का महत्व,फायदे-लाभ व तुलसी के अमूल्य गुण जो हरे सभी रोगो को
The importance of Tulsi, the benefits and benefits and the invaluable qualities of Tulsi, which all green diseases
Tulsi ke fayade

भारतीय शास्त्रों में तुलसी को बहुत ही गुणकारी व उपयोगी माना गया है। यह एक औषधीय पौधा है,और इसको देवि यानी माता का स्वरूप भी माना जाता है। इसकी पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है,जो देखने में शोभनीय लगती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। यह बहुत ही पवित्र व आस्था का प्रतीक माना जाता है,  पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।

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तुलसी के महत्वपूर्ण अनेकों महत्व लाभ व विशेषताएँ 
Many important benefits and characteristics of Tulsi

"अकाल मृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम् " । 
यह है वह श्लोक , जिसको मन्दिर का पुजारी तुलसीदल मिला हुआ चरणामृत देने से पहले उच्चारित करता है । तुलसी को अकालमृत्यु - हरण करनेवाली और सम्पूर्ण रोगों को दूर करनेवाली कहा गया है ।

श्लोक-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी । 
आधि व्याधि हरिनित्यं तुलसित्वं नमोऽस्तुते । । 
अर्थ - हे तुलसी ! आप सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ानेवाली हैं , सदा आधि - व्याधि को मिटाती हैं , आपको नमस्कार है ।

श्लोक-
तुलसी गन्धमादाय यत्र गछन्ति मारुतः । 
दिशादिशश्च पूतास्युर्भुतग्रामश्चतुर्विधः । । 
अर्थ - तुलसी की गंध लेकर वायु जहाँ - कहीं पहुँचती है , उस दिशा में रहनेवाले प्राणी तथा स्थान सभी पवित्र हो जाते हैं ।

श्लोक--
त्रिकालं विनतापुत्र प्राशर्य तुलसी यदि । 
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रिणं शतं बिना । । 
अर्थ - हे विनता - पुत्र ! प्रातः , मध्याह्न तथा सायंकाल जो तीनों संध्याओं में तुलसी का सेवन करता है , उसकी काया वैसी ही शुद्ध हो जाती है जैसा कि सैकड़ों चान्द्रायण व्रतों से होती है ।

श्लोक-
तुलसीकाननं राजन् गृहे यस्यावतिष्ठति । 
तद्गृहं तीर्थरूपं तु नायान्ति यमकिंकरा : । । 
अर्थ - हे राजन ! जिस घर में तुलसी का वन होता है , वह घर तीर्थ रूप _ _ होता है , वहाँ यम के दूत नहीं आते ।

श्लोक--
रोपणात् पालनात् सेकात् दर्शनास्पर्शनानणाम । 
तुलसी दह्यते पापं वाङ्ममन: कायसञ्चितम् । । 
अर्थ - तुलसी लगाने से , पालने से , सींचने से , दर्शन करने से , स्पर्श करने से मनुष्यों के मन , वचन और काया से संचित किये हुए पाप जल जाते हैं ।


तुलसी के फायदे, व प्रभावशाली गुण।
तुलसी अनेकों रोगों में सहायक।
Benefits, and impressive qualities of Tulsi.
 Tulsi is helpful in many diseases.

तुलसी को अत्यधिक गुणकारी माना गया है, तथा यह सर्वरोग हरने वाली भी मानी गयी है। और इसका प्रयोग हर मौसम में किया जा सकता है। तुलसी अनेकों लोगों मे असरकारक है,  जो निम्न प्रकार से है--

विशेष लाभदायक-
तलसी हदय के लिये हितकर , उष्ण , दाह तथा पित्तकारक ; अग्निदीपक होती है । कुष्ठ , मूत्रकृच्छ , रक्तविकार , कृमिविकार , श्वास , विष , पसली की पोहा , कफ और वायु के रोगों को दूर करने वाली है ।

1-  विषम ज्वर ( मलेरिया ) में --
20 पत्ते तुलसी के और 5 काली मिर्चा की चाय बनाकर या ठण्डाई की भांति रगड़कर दिन में तीन - चार बार पियें ।

2- ठण्ड और पसली की पीड़ा में -
ठण्ड लग जाने या पसली की पीडा में 20 पत्तों का रस मधु में मिलाकर दिन में दो - तीन बार दें ।

3- खाँसी में -
आधा चम्मच तुलसी का रस और उतना ही अदरक का रस मिलाकर प्रयोग करें ।

4- पेट में कीड़े हों तो - 
तुलसी और पुदीने के 10 10 पते गुड़ में मिलाकर लेने से लाभ होता है ।

5- बच्चों के यकृत ( जिगर ) विकार में --
तुलसी के 10 पत्तों का रस और उतना हो गवारपाठे का रस मिलाकर दिन में दो बार पिलायें ।

6- मधुमेह में -
तुलसी के सूखे पते आधा माशा और गुड़मार बूटी के सूखे पत्ते । माशा मिलाकर दिन में चार बार पानी से लें ।

7- दाद , खाज , में --
 विभिन्न चर्म रोग तुलसी के पत्तों का रस नींबू के रस में मिलाकर लगाने से ठीक होते हैं ।

8- सर्प दंश में --
सांप के काटने पर तुलसी की जद पीसकर काटे स्थान पर लेप करने से और केले के तने का रस पिलाने से लाभ होता है ।

9- नपुंसकता में --
तुलसी के बीज का चूर्ण एक ग्राम ( माशा ) मक्खन या दूध के साथ प्रात : सायं सेवन करें ।

10- लू लगने पर --
25 पत्तों को रगडकर , चीनी मिलाकर , शर्बत बनाकर पीने से निश्चित लाभ होता है।

11- कान की पीड़ा - 
कान में तुलसी के रस की दो बूंदे डालने से कान की पीड़ा बन्द होती है ।

12- संक्रामक रोगों में--
इन रोगो को रोकने के लिये तथा उनका प्रभाव नष्ट करने के लिये तुलसी के पत्तों का उपयोग , खिलाने के रूप में किया जाता है । यह जन्तुघ्न तथा कृमिहर प्रभाव दिखाने में पूर्ण है । महामारी , हैजा आदि के दिनों में इसका प्रयोग यदि प्रात : काल 10 - 15 पत्ते खाकर किया जाय तो रोग पैदा नहीं होता ।

13- वायु , कफ और विष में --
 इन समस्त रोगों में इसका प्रयोग निश्चित होकर करना चाहिए ।

14-  हृदय-पीड़ा या दौरा पड़ने पर--
 एक चम्मच तुलसी का रस देने से आश्चर्यजनक लाभ होता है ।

15- उल्टी ( वमन ) आने पर - 
तुलसी के एक चम्मच रस में आधा ग्राम छोटी इलायची का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन शान्त होता है ।

16- वायु रोगों में - 
तुलसी के पत्ते 6 ग्राम , अश्वगंध 4 ग्राम , भंगरा 6 ग्राम , सोंठ , काली मिर्च , पीपल एक - एक ग्राम , मालकंगनी 2 ग्राम लेकर चूर्ण करें । प्रातः - सायं 3 ग्राम गर्म जल या शहद से लें ।

17- मुख - कान्ति में - 
तुलसी के पत्तों का रस मुख पर लगाने से लाभ होता है ।

18- स्नायु ( नाहरू ) रोग में - 
तुलसी की जड़ पानी में घिसकर नाहरू के मुँह और सूजन पर लेप करें तो थोड़ी देर में 2 - 3 इंच लम्बा नाहरू बाहर निकल आयेगा । बाहर निकले नाहरू को बाँधकर फिर उसी प्रकार लेप करें । 2 - 3 दिन में सारा नाहरू बाहर निकल आयेगा । सूजन दूर होगी ।
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