Relationships are weakening in Indian culture?क्यों रिश्ते लुप्त हो रहे है?| भारतीय संस्कृति में रिश्तों की डोर कमजोर हो रही है?
नमस्कार दोस्तों आज का युग बहुत परिवर्तित हो गया है।और साथ में बदल गये है हम सनातन धर्म के अनुयायियों का अस्तित्व। जी हां हम सनातनी लोगों तथा सम्पूर्ण भारत के लोगों की नींव रिश्तों को माना गया है,जो धीरे-धीरे लुप्त होने के कागार पर है।रिश्ते हमें जीना सिखाती है? रिश्ते आपसी प्रेम को बढाते है? ,रिश्ते सुख दुख को सांझा करते है? रिश्ते हर दर्द की दवा होती है। लेकिन भारतीय परम्परा से यह रिश्तों का प्रेम अब समाप्ति की ओर है।कुछ रिश्ते आने वाले 20 वर्षों में भारतीयों के घरों से हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे ।जैसे भाई , भाभी , देवर , देवरानी , जेठ , जेठानी , काका , काकी सहित अनेक रिश्ते भारतीयों के घरों से समाप्त हो जाएंगे।और समाप्त हो जाएंगी वो भाईचारा और सद्भाव, तथा सहयोग की भावना।क्योकिं अब लोगों ने सोच लिया है कि एक ही सच्चा सही है।सिर्फ ढाई तीन लोगों के परिवार बचेंगे, ऐसे में न हिम्मत देने वाला बड़ा भाई होगा?, न तेज तर्राट छोटा भाई होगा?, न घर मे भाभी होगी?, न कोई छोटा देवर होगा?, बहु भी अकेली होगी?, न उसकी कोई देवरानी होगी न जेठानी?और न होगा कोई दुख को बांटने वाला?न होगा कोई अपना कहलाने वाला?, कुल मिलाकर इस एक बच्चा फैशन और सिर्फ मैं मैं की मूर्खता के कारण हम अपने धर्म, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति से खिलवाड़ कर रहे है।
भारतीय धर्म में रिश्तों की अहमियता
हमारी पहचान है रिश्तों की मजबूत डोर,जो आज कमजोर होती दिख रही है।आज सभी को सोचने की जरूरत है हम अपने सुख के लिए अपनी संस्कृति से सौदा नही कर सकते। लेकिन आज हमारा धर्म खतरे में है। क्योंकि धर्म का तात्पर्य कर्मकाण्ड से नहीं है। कि मै नित्य पूजा-पाठ, नमाज, तिलक, टोपी, घंटे-घड़ियाल, आरती-कीर्तन धर्म करता हूँ। धर्म है परोपकार, सेवा, सहयोग, आपसी सद्भाव,रिश्तों की पवित्रता,आपसी प्रेम, दूसरों की करुणा,रिश्तों की गरिमा, समाज के हितार्थ कार्य करना, अपने गाँव सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करना, मोहल्ले के हितार्थ कार्य करना, राष्ट्र व नागरिकों के हितार्थ कार्य करना , दूसरों को खुशी बाँटना, और यह सब करते हुए, स्वयं को प्रसन्न व स्वस्थ रखने के समस्त उपाय करना,इस धरती कीरक्षा करना, अपने सामर्थ्यानुसार उपलब्ध भोगों का उपभोग करना, नाचना, गाना…उत्सव मनाना ये सब धर्म हैं। हम भारतीयों की अंतरात्मा में अनेकों सद्भावना और प्रेम छुपा हुआ है जो अनेकों रूपों में बाहर आ रहा है।
भारतीयों तथा हिन्दुओं के लिए यह सर्वथा वर्जित है।
हम भारतीय कभी भी दूसरों को दुखी नहीं देख सकते और ना ही दूसरों के लिए गलत भावना रखते है। न कभी दूसरों को कष्ट देना, दूसरों की सम्पत्ति छीनना, दूसरों पर अत्याचार करना, दूसरों के सुख में बाधा डालना, दूसरों के प्रेम में विष घोलना, समाज में सांप्रदायिक वैमनस्यता पैदा करना, निहत्थे, निर्दोषों की हत्याएं करना, गाली-गलौज करना, अशिष्टता से बात करना….ये सब अधर्म हैं।हमारी संस्कृति तो विश्व को सीख देने वाली रही है। विश्व गुरू के नाम से हमारा भारत प्रसिद्ध रहा है।फिर भी हमारी संस्कृति को खतरा मंडराने लगा है।
भारतीय व हिन्दुओं के परिवार खत्म होते जा रहे हैं।
कुछ पल के सुख ने सब कुछ लुटा दिया,आज दो भाई वाले परिवार भी अब आखरी स्टेज पर हैं । अब राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न सीता उर्मिला मांडवी जैसे भरे पूरे परिवार असम्भव हो चले हैं । पहले कच्चे घरो में भी बड़े परिवार रह लेते थे अब बड़े बंगलो में भी ढाई तीन लोग रहने का फैशन चल पड़ा है । मन दुखी होता है सोचकर , हम हिन्दुओ को ईमानदारी से इस दिशा में सोचना चाहिए । इस चुनौती पूर्ण सदी में हम एक बच्चे को कहा कहा अड़ा पाएंगे और उसमें हिम्मत कौन भरेगा बिना भाइयों के कंधे पर हाथ रखे । हिंदुओं की घटती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है ! हिंदुओं को अपना ट्रेंड परिवर्तन करना होगा बच्चों की शादी की उम्र 20 से 24 तक निश्चित करें कामयाब बनाने के चक्कर में 30 से 35 तक खींच रहे हैं इतने में एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है।कामयाबी अपनी संस्कृति को खत्म करके नहीं मिलती। बल्कि अपनी संस्कृति का उत्थान करने से मिलती है। लेकिन यह भी सत्य है जो अपनी संस्कृति व अपनी माँ का न हुआ वह किसी का नहीँ हो सकता।
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