Saturday 5 June 2021

Sanskrit Shubhashitani shloks जीवन सुधारने एवं सफलता दिलाने वाली 10 संस्कृत सुभाषितानी हिन्दी अर्थ सहित

जीवन सुधारने एवं सफलता दिलाने वाली 10 संस्कृत सुभाषितानी हिन्दी अर्थ सहित Sanskrit me Subhashitani 

दोस्तों संस्कृत भाषा भारत ही नहीं  विश्व की प्राचीनतम भाषा होने के साथ ही सभी भाषाओं की जननी है।Sanskrit sloks with meaning in hindi  संस्कृत भाषा में पग-पग पर विश्व कल्याण और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले श्रेष्ठ वाक्यांश समाहित है। snaskrit me Subhashitani व्यक्ति के मार्गदर्शन के लिए तथा सभी पक्षों के विकस के लिए (संस्कृत श्लोक,संस्कृत में सूक्तियां, संस्कृत में सुविचार,सुभाषितानी नीति वचन,अनमोल वचन, महान वाक्य, रोचक तथ्य, मंगलमय सुविचार, बधाई सुविचार, बर्थडे सुविचार) आदि कयी ऐसे महान विचार हमारे ग्रंथों से लिये गये है। अत: इसी प्रकार संस्कृत श्लोक ज्ञानवर्धक और शिक्षा प्रद कथनों को इस "संस्कृत सुभाषितानि" में हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।

सुभाषितानी -१
खल: सर्षपमात्राणि पराच्छिद्राणि पश्यति |
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ||
सुभाषितानी अर्थ -

दुष्ट मनुष्य को दूसरे के भीतर की  बुराइ जितने भी दोष दिखाई देते है, परन्तू अपने अंदर के बिल्वपत्र जैसे बडे दोष नही दिखाई पडते ।

सुभाषितानी -२
एकतः सकला विद्या चातुर्यं पुनरेकतः |
चातुर्येण बिना कृत्य सकला विकला कलाः ||
सुभाषितानी अर्थ -
यदि अनेकों प्रकार की केवल विद्याएं ही किसी व्यक्ति को ज्ञात हों तो फिर उन्हें प्रयुक्त करने के लिए चतुरता की आवश्यकता होती है। यदि विना चतुरता के सभी कलायें व्यवहार में लाई जाती है तो उसका परिणाम और अधूरा ही रहता है।

सुभाषितानी -३
दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तॄतीया गतिर्भवति
सुभाषितानी अर्थ -

धन खर्च होने के तीन मार्ग है ।दान,उपभोग तथा नाश ।
जो व्यक्ति दान नही करता तथा उसका उपभोगभी नही लेता उसका धन नाशवान ही पाता है ।

सुभाषितानी -४
पृथ्वी सगंधा सरसास्तथापः,
स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः |
नभः सशब्दं महता सहैव,
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्
||
सुभाषितानी अर्थ -

हे गंधयुक्त पृथ्वी,  हे रसयुक्त जल, हे स्पर्श युक्त वायु, हे प्रज्वलित तेज, हे शब्दसहित आकाश,हे महत्त्तत्व ये सभी मेरे प्रातः काल को मंगलमय करें। 

सुभाषितानी -५
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा |
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादर ||
सुभाषितानी अर्थ -

शास्त्रों में मूर्खों के पाँच लक्षण बताए हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर यही पतन का कारण है॥

सुभाषितानी -६
पठतो नास्ति मूर्खत्वम् जपतो नास्ति पातकम |
मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ||
सुभाषितानी अर्थ - 
कभी भी पढने वाले को मूर्खत्व नही आता है। जपने वाले को पातक नहीं लगता है। मौन रहने वाले से कलह नही होता है। और जागृत रहने वाले को भय नहीं होता है।

सुभाषितानी -७
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्श |
नै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ||
सुभाषितानी अर्थ -

हमें अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये नाकी उस पर अभिमान करना चाहिए ।

सुभाषितानी -८
न मुक्ताभि र्न माणिक्यैः न वस्त्रै र्न परिच्छदैः |
अलङ्क्रयेत शीलेन केवलेन हि मानवः ||
सुभाषितानी अर्थ - 

इन्सान को शोभा मोता, माणिक, वस्त्र या पहनावे से नहीं होती केवल शील स्वभाव एवं अच्छे आचरण से होती है।

सुभाषितानी -९
मृतं शरीरमुत्सृज्य क्ष्ठलोस्ठ समं क्षितौ |
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनु गच्छति ||
सुभाषितानी अर्थ -
 
व्यक्ति के मरने पर बन्धु बान्धव मृतक शरीर को लकडी व मिट्टी के समान त्याग देते है। उस मृतक को पृथ्वी पर छोडकर,मुँह मोडकर चले जाते है। किन्तु धर्म उस मरे हुए आदमीं के साथ चले जाता है।

सुभाषितानी -१०
एकोऽपि सिंहः सहस्त्रं यूथं मथ्नाति दन्तिनां |
तस्मात्सिंहमिवोदारं आत्मानंवीउक्ष्य संपतेत ||
सुभाषितानी अर्थ -

जिस प्रकार अकेला एक सिंह साथियों के बडे झुण्ड को उत्थल-पुथल कर देता है, वैसा ही एक उदार व्यक्ति भी आत्मज्ञान प्राप्त करने का अवसर पाने पर विभिन्न प्रलोभनों को देखकर सिंह  सिंह के समान।ही उनके ऊपर टूट जाता है और विजयी होता है।

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