Saturday 16 July 2022

Meri Pahchan सबसे जुदा है अपनी अदा पर कविता

 Meri Pahchan सबसे जुदा है अपनी अदा पर कविता
Meri Pahchan

सबसे जुदा है अपनी अदा,
मैं हूं अपने अल्फाजों पर फिदा ।
मन में है प्रेम का अपार भण्डार भरा,
चिंतित रहता हूँ करने को नया सृजन ।
उडान भरती है उम्मीदें हर पल मेरी,
लेके इस धरा का अमृत एहसास लिए ।
जिद्दी मगर शान्त और स्वाभिमानी हूँ मैं,
संस्कार व संस्कृति की पूरी किताब हूँ मैं ।
सरस्वती का उपासक हूँ वाणी में तेज है,
हुनर के बल पर बाकी सब निस्तेज है ।
करता नहीं हूं मैं कभी खुद पर गुरूर,
मैं रहता हरपल कल्पनाओं में मगरूर ।
लफ्जों को मैं देता हूँ कविताओं का रूप, 
सम्मान ही नहीं अपमान को भी करता हूँ मंजूर ।
देता हूँ तवज्जू धरा के हर प्राणी को मैं,
थोड़ा शख्त मगर खुली किताब हूँ मैं ।
कहते है लोग तुम क्यों हो शान्त इतने,
चेहरे पर मुस्कान का दामन लिए फिरते हो ।
आदत नहीं है मुझे नकाब पहनने की,
मैं हरपल समुन्दर में पतवार लिए फिरता हूँ ।
मिल जाये सफर में कोई  जख्म खाए हुए,
उसमें अपनी कविताओं उम्मीद जगाए फिरता हूँ। 
सबसे जुदा है अपनी अदा,
मैं हूं अपने अल्फाजों पर फिदा ।।

 

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