Sunday 27 October 2019

क्या कहता है वास्तु शास्त्र ? उसका हमारे जीवन पर होगा कैसा प्रभाव ? कैसा शुभ रहेगा घर का वास्तुशास्त्र ? कौन सी दिशा और क्या शुभ होगा आपके लिए ? जानिए दिशाओं का सही ज्ञान

क्या कहता है वास्तु शास्त्र ?

उसका हमारे जीवन पर होगा कैसा प्रभाव ?कैसा शुभ रहेगा घर का वास्तुशास्त्र ?


Vastu Shastra in hindi

कौन सी दिशा और क्या शुभ होगा आपके लिए ?
जानिए दिशाओं का सही ज्ञान 

Vastu shastra
वास्तुशास्त्र का महत्व
हमारे वैदिक काल मे वास्तु शास्त्र का बडा महत्व था। लोग दिशा तथा वस्तुओं की उपयोगिता की समझ अधिक होती थी। तभी वे लोग कभी परेशानी से नही गुजरते थे। उन्हे मालूम होता था कि कौन सा देवता किस दिशा मे प्रभुत्व करता है। और उसकी शक्ती क्या है।वे उसी दिशा मे वह सामान स्थापित करते थे। जिसके बाद उन्हे कोई भय नही सताता था।

vastu Shastra  आधुनिक युग में घर के निमार्ण के समय बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । माना जाता है। की यदि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनवाया जाए ।तो ये हमे दुःख , दरिद्रता बीमारियों आदि से दूर रखता है । और घर में हमेशा खुशिया बनी रहती है । चलिए दोस्तों पहले बात करते है वास्तु होता क्या है ।

वास्तु का शाब्दिक अर्थ होता है। विद्यमान अर्थात जो हर जगह निवास करे । निवास करने वाली स्थान को बनाने और सवारने के लिए बनाये गए स्थान को ही विज्ञानं को ही वास्तुशास्त्र कहा गया है । वास्तु शास्त्र के सिद्धांत 8 दिशाओं और पांच महाभूतों आकाश , धरती,वायु,जल ,अग्नि आदि । इन सब के मेल से एक ऐसी निवास स्थान बनता है । जिससे वह सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है । अगर साधारण भाषा में वास्तु को समझा जाए । तो जब मनुष्य के रहने के स्थान पर किसी तत्व में कमी आती है तो उसका जीवन कष्टकारी हो जाता है ।

vastu Shastra  in hindi  ये सुनिचित करता है की आपका घर 8 दिशाओं और पांचो तत्वों से मिलकर बना हो । ताकि आपके जीवन में कोई कमी ना आये । किसी भी घर के निर्माण के लिए वास्तु शास्त्र में अलग अलग नियम बताये गए है । अगर आप उन नियमो के अनुसार घर बनवाते हो तो आपको कभी भी दुःख , कष्ट नहीं होगा ।

वास्तु शास्त्र वह विज्ञान है कि जिसका ज्ञान हमे सुख,शान्ति, वैभव,समृद्धि और खुशी दिलाने मे सहायता करते है।किसी जगह का महत्व वहा स्थापित देवता के अनुसार ही तय करता है , और उसी देवता की समस्त शक्तियां वहां पर विचरण करती है। उस स्थान पर वही सामान स्थापित करना चाहिए यानी अगर आप उस स्थापना पर कोई और सामान रखते है तो आपके घर परिवार पर उस ऊर्जा का प्रभाव नही पडेगा बल्की गलत प्रभाव भी आ सकता है।


पृथ्वी के समस्त पदार्थ पञचत्व से बना हुआ है - यानि पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु, आकाश और यही शक्तियां हमारे चारों तरफ विचरण करती है जो हमारे मष्तिष्क को शान्ति प्रदान करती है।
भूमी ,गगन ,वायु , अग्नि, और जल ये सभी पंचमहाभूतों के कारक माने जाते है। अगर इनका संतुलन बिगड गया तो अनर्थ होने मे देरी नही लगती है।  इन्ही पंचमहाभूतों से सामानजस्य स्थापित करना ही वास्तु शास्त्र कहलाता है।


यही वास्तु शास्त्र की क्रिया है जो मनुष्य को सही दिशा का चयन करा करके सभी भूतों का सामानजस्य बिठाकर घर की नीव रखवाता है जिससे उसके जीवन मे कभी कोई असहनीय क्रिया नही घटित होती है।और यह भी सत्य है की घर की खुशी और समृद्धि भी वास्तु मे ही छुपी रहती है। लोग भले ही इस बात को न माने लेकिन जब उसे तकलीफ होती है तो तब उसे हकीकत मालूम होती है इसलिए पहले ही अच्छे वास्तु सहित घर का निर्माण करे।

वास्तु शास्त्र का संक्षिप्त परिचय
प्राचीन काल से ही जीव जगत के रहने वसने के स्थान के कारण धरती को वसुधा अर्थात् वसने का स्थान कहा कहा गया। मानव मात्र ही नहीं अपितु नाना विधि जीव जन्तु तरह-तरह के स्थानों को अपने अनुकूल बनाने का अथक प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं। किन्तु इस प्रक्रिया मे मानवीय चेतना व ज्ञान धीरे-धीरे अनुभवों के सहारे प्रखर होता रहा है। जिससे मानव अपने बौद्धिक कुशाग्रता के कारण आज अपने आवासीय परिसर को अधिक सुगम व उपयोगी बनाने में सफल हुआ। यद्यपि भोजन, वस्त्र और आवास प्रत्येक व्यक्ति की बहुत ही महती आवश्यकता है। जिसके बिना उसके जीवन का निर्वाहन होना असम्भव सा है। वैसे पौराणिक कथानक के अनुसार राजा पृथु द्वारा पृथ्वी को समतल करने की प्रक्रिया को अपनाते हुए उसे रहने के अधिक अनुकूल बनाया गया था। खुले आकाश के नीचे गृहस्थ जीवन के सुखों को भोगना असम्भव सा है। आवासीय जरूरतों को पूर्ण करने के उद्देश्य से वास्तु शास्तु का उदय हुआ। वैदिक ग्रथों में ऋग्वेद ऐसा प्रथम ग्रंथ है जिसमें धार्मिक व आवासीय वास्तु की रचना का वर्णन मिलता है। यद्यपि पूर्व वैदिक काल में वास्तु का उपयोग विशेष रूप से यज्ञ वेदियों की रचना व यज्ञशाला के निर्माण आदि में होता रहा है, किन्तु धीरे-धीरे इसका उपयोग देव प्रतिमाओं सहित देवालयों के निर्माण व भवन निर्माण में होने लगा। यद्यपि वास्तु शास्त्र के क्रमिक विकास का क्रम अप्राप्त सा प्रतीत होता है। वैदिक ग्रंथों में वास्तु का अर्थ- भवन निर्माण व भू से है। जिसका अर्थ रहना व निवास स्थान है। अथर्ववेद का उपवेद स्थापत्य ही आगे चलकर वास्तु या शिल्प शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

  वास्तविक दिशा ज्ञान 

वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं का अधिक महत्व बताया गया है।
क्योंकि दिशाओं मे ही सारे रहस्य व शक्तियां छुपी हुई है। जो हमारे चारों ओर विचरण करती रहती है। जिससे न हम छेड़खानी करने सकते है, और न ही उसके प्रभाव को रोक सकते है।

घर बनाना मनुष्य का अहम सपना होता है।एक ऐसा घर जहां ओ अपना जीवन खुशी से व्यक्ति कर सके। उस घर को बनाने के पीछे छुपी होती है उसकी आशायें  , सपने तथा उम्मीदे विवाह अपने परिवार को वो तमाम खुशिया देना चाहता है। जो उसने अपने जीवन मे कभी प्राप्त न की हो। लेकिन सब कुछ मनुष्य के हाथ मे नही होता है।

इसीलिए घर बनाते समय दिशाओं का ज्ञान होना आवश्यक होता है। अक्सर हम घर तो बना देते है परन्तु ये पता नही होता कि किस दिशा मे कौन सी चीज होनी चाहिए।हम आपको दिशायें तथा उसका महत्व बतायेंगे।

वास्तु शास्त्र के अनुसार  8 दिशायें बताई गयी है , जिनका अपना अलग-अलग महत्व होता है।

       (1) पूर्व दिशा
पूर्व दिशा को पहचानना आशान है , यानी जहां से सूर्य उदय होता है। इस दिशा के देवता इन्द्र है। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा को प्रदान करने वाली होती है। इसी दिशा मे घर का मुख्य द्वार होना चाहिए। जहां से घर मे खुशियां घर मे प्रवेश करती है।
        (2) पश्चिम दिशा
इस दिशा को पहचानना आशान है, यानी जिस दिशा मे सूर्य अस्त होता है। इस दिशा का स्वामी वरूण देव माने जाते है।इस दिशा मे शीशा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। तथा सीढ़ी भी इसी दिशा मे होना चाहिए।


        (3) उत्तर दिशा
वास्तु शास्त्र की माने तो यह दिशा महत्व पूर्ण है क्योंकि इस दिशा के देवता कुबेर माने जाते है।इस दिशा मे नगद धन रखना शुभ माना जाता है।


        (4) दक्षिण दिशा
वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा भी शुभ मानी जाती है, इस दिशा मे मुख्यतः यम द्वार यानी यमराज की दिशा मानी जाती है। इस दिशा मे भारी सामान रखना चाहिए और पितरों की तस्वीर भी इसी दिशा मे लगायी जाती है।


      (5) उत्तर-पूर्व दिशा  (ईशान कोण)
यह दिशा उत्तर -पूर्व के बीच वाली मानी जाती है। यह दिशा देवताओं के लिए शुभ मानी जाती है, इस दिशा मे घर का मन्दिर स्थापित करना चाहिए, इस दिशा मे सभी दैवीय शक्तियां प्रवेश करती है। यही दिशा संध्या पूजा का होना चाहिए।


      (6) दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण)
दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच की दिशा को  आग्नेय कोण माना जाता है। इस दिशा के देवता अग्नि देव माने गये है। जो ऊर्जा को प्रदान करती है , इसीलिए इस दिशा मे रसोई घर होना शुभ माना जाता है।


        (7) दक्षिण -पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण)
दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच की दिशा को नैऋत्य कोण माना जाता है। इस दिशा का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करते है। यानी इस दिशा मे खाली जमीन रखना शुभ माना जाता है।


        (8) उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण)
उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच की दिशा को वायव्य कोण माना जाता है। इस दिशा के देवता वायु देव माने जाते है ।इस वजह से इस दिशा मे खिडकी रोशनदान  आदी रखना शुभ माना जाता है ।

कैसा  शुभ रहेगा घर का  वास्तु
वास्तु शास्त्र से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी---

"प्‍लॉट खरीदते समय उस पर खड़े अनुभव करें। यदि‍ आपको सकारात्‍मक अनुभूति‍ हो तो ही वह प्‍लॉट खरीदें अन्‍यथा न खरीदें।"

●"अगर आप बना हुआ मकान खरीद रहें हैं तो पता लगा लें कि‍ वहाँ पहले रह चुका परि‍वार खुशहाल परि‍वार है या नहीं। क्या पता हो उनकी कोई मजबूरी हो जो आपके लिए मुसीबत  बन जाए।"

●"जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था वाले भवन न खरीदें,क्योकि दरिद्रता वास्तु देखकर भी आती है।"

●"मकान या प्‍लॉट को खरीदने से पहले जान लें कि‍ वहाँ की भूमि‍ उपजाऊ है या नहीं। क्योकि अनुपजाऊ भूमि‍ पर भवन बनाना वास्‍तु शास्‍त्र में उचि‍त नहीं माना जाता है,वह जीवन को भी बंजर बना देता है।"

● "घर को जीवन माना जाता है इसीलिए प्लाट के एकदम लगे हुए, नजदीक मंदिर, मस्जिद, चौराह, पीपल, वटवृक्ष, सचिव और धूर्त का निवास हमेशा कष्टप्रद होता है। यहां कभी पैसा खर्च न करें ।

 ● "पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा प्लॉट सूर्यवेधी होता है जो कि शुभ होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा प्लॉट चंद्र भेदी होता है जो ज्यादा शुभ होता है ओर धन वृद्धि करने वाला होता है।"

● "घर मे वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं। और यह भी शुभ माना जाता है ।"

● "भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो। यह भी वास्तुशास्त्र के अन्दर आता है।"

● "घर को मंदिर जैसा माना गया है ,और वहां देवता निवास करते है। इसलिए व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें। घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें। अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें। घर को साफ-सुथरा रखे।"

● "भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए। शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं।"


● "घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता है। और घर के सदस्यों मे सकारात्मक ऊर्जा का विकास होताहै।"

● " घर मे सीढियों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योकि यह सफलताओं का प्रतीक माना गया है। इसलिए भवन में सीढियों पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती है। सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए। सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय कदापि नही होना चाहिए यह बहुत अशुभ माना जाता है। सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहॉ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।"


● " घर मे शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए। मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें। सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती है। शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे। उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें। "

● " घर की दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में सड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें।"

● " घर का मुख्य दरवाजा ही शुभ माना जाता है  द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढ़िया हैं। दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें, पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।"

● "घर मे सबसे उत्तम कार्य यह होगा कि सम्भव हो तो घर के बीच में चौक (बरामदा ) अवश्य छोड़े एवं उसे बिल्कूल साफ-स्वच्छ रखें। इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। और खुशियों मे बढोतरी होती है।"


● " घर के कमरों में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए कॉच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए। ये सब अशान्ति को न्योता देते है जो कि घर के वास्तु के लिए शुभ नही माना जाता है। "


● "घर के मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। इससे घर मे सकारात्मक ऊर्जा तथा मंगल कामना मे वृद्धि होती है।"


● "रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए। गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए। रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए। रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे। रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए। झूठें बर्तन रसोई में न रखे।"

घर मे खुशहाली लाने के लिए करें इन वास्तु नियमों का पालन
वास्तुशास्त्र सही दिशा सही राह
अकसर वही व्यक्ति अपने जीवन मे परेशान रहता है जो बिना सोचे समझे कदम उठाता है। क्योकि घर (भवन) एक दिन के लिए नही बल्कि आजीवन के लिए होता है,इसीलिए जीवन को सही राह पर ले जाने के लिए वास्तु निर्मित घर का ही निर्माण करना चाहिए ताकी आपके हर प्रयास सफल हो सके।
कुछ महत्वपूर्ण वास्तु नियम जिसका पर्योग करके आप अपने घर को मन्दिर बना सकते है।

(1) धरती (भूखण्ड) मे दक्षिण दिशा और पश्चिम दिशा हमेशा ऊंचे और भारी होने चाहिए तभी कार्य शुभ होंगे।

(2) अगर घर मे बोरिंग या ट्यूबेल लगानी है तो वास्तुशास्त्र के अनुसार इसके लिए ईशान या उत्तर दिशा सबसे उत्तम रहेगी।

(3) घर मे अगर शयनकक्ष बच्चों का या फिर किसी भी सदस्य का चयन कर रहे हैं,तो इसके लिए दक्षिण या पश्चिम दिशा सबसे उत्तम रहेगी।

(4)  घर मे बैठक यानी अतिथी(स्वागत कक्ष) का अगर निर्माण कर रहे है तो इसके लिए वायव्य कोण सबसे उत्तम सिद्ध रहेगा।

(5) घर मे बच्चो की पढाई के लिए कक्ष ईशान कोण मे सबसे शुभ माना जाता है,यह दिशा बच्चों की यादाश्त मे वृद्धि करता है।

(6) घर मे पूजा का स्थान सबसे उत्तम ईशान कोण माना जाता है,या फिर उत्तर दिशा इन दिशा मे थोडी सी भक्ति भी अपनी शक्ति दिखा देती है।

(7) घर मे रसोईघर हमेशा आग्नेय कोण मे होना चाहिए क्योकि यह अग्नि का प्रतिबिम्ब माना गया है,जो कि यह दिशा सबसे उत्तम माई जाती है।

(8) घर मे शौचालय हमेशा नैऋत्य कोण मे होना चाहिए यह दिशा घर मे खुशहाली को बरकत देती है।

(9) घर के वास्तु को सुधारने के लिए हमेशा घर मे ताजा फल व फूल रखे जिससे घर मे सकारात्मकता आती है। बासी फल एवं फूल फेंक देना चाहिए,क्योकि यह नकारात्मकता को न्यौता देता है।

(10) अपने घर मे कभी भी बन्द पडी हुयी घडियां न रखे क्योकि यह घर मे नकारात्मकता उत्पन्न करती है। इन्हे तुरन्त हटा दें,या चालू कर दें।

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1 comment:

  1. Ek vastu ka sholok hai jo sampurna vastu shastra ko darsata hai. Kya aapke paas wo Sanskrit ka vastu sholok hai .agar hai to kripaya reply kare

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