Sunday 12 January 2020

भारत की तेजस्वी वीरांगनाएं नारियां (Great women Of India)

भारत की तेजस्वी वीरांगनाएं (नारियां)
(Great women Of India)

(संक्षिप्त जीवन परिचय, ज्ञानवर्धक शायरी एवं सुविचार(अनमोल वचन)

( Motivational Sher-O-Shayari And Anmol vachan In Hindi )



1-
किरण देवी-(Great women kiran Devi)
Kirandevi

 यह वीरांगना मेवाड नरेश महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिह की बेटी, एवं पृथ्वीराज ठाकुर की पत्नी थी। सुन्दर यौवन के साथ-साथ बहुत बहादुर एवं योद्धा थी। इसने राक्षस स्वरूप, अहंकारी तथा कामुक एवं व्यभिचारी राजा अकबर को सबक सिखाया। अक्सर वह सुन्दर कन्याओं, औरतों को अपने जाल मे फसाकर कर उनके साथ सम्बन्ध बनाता था। और फिर हवस मिट जाने पर छोड देता था।

स्त्रियों को फसाने के लिए उसने हर साल (नौरोज मेले) का आयोजन कराता था,और उस मेले की खाशियत यह थी कि उसमे सिर्फ महिलाएं ही जा सकती थी। एकबार उसने किरण देवी की सुन्दरता देखकर मोहित हो गया,और उसे बेहोशी की दवा पिलाकर कर घर ले गया। लेकिन उसकी किरण देवीके सामने न चल सकी। अकबर को उसने बन्दी बना दिया ,और किरण ने उसके गले पर तलवार की धार रख दी और और उसे चेतावनी दी कि भविष्य मे अगर गलती की तो तेरा इससे भी बुरा हाल करूंगी।
वह अपने आप को बेबस (लाचार) समझता है,और हां कहता है।
आखिर एक वीरांगना ने अपनी ही नहीं अपनी जैसी कयी महिलाओं की जिन्दगी को उस राक्षस से बचाया और नौरोज मेले को भी हमेशा के लिए प्रतिबन्ध कर दिया नमन है ऐसी नारी को।

  शायरी-Motivational Shayri

● हे नारी वीरता की देवी, तुझसे न कोई फरमान करें।
अगर मिला न सम्मान कभी,तूने ही खुद ही हुंकार भरी।

● धूल चटा दी अकबर को, जब हवस मिटानी उसनी चाही ।
पांव तले रोंदा किरण ने, वीरता वीरांगना ने दिखलाई।

● है न कोई असहाय दुनियां में सभी एक मिट्टी के बने।
जो खुद की शक्ति को भूल चुल चुके उनको न कभी सम्मान मिले।

● नारी मूरत है प्रेम की, प्रेम सिखाना उसको भाता।
गर आये सम्मान मे कमीं तो, सिंहनी रूप दिखा जाए।

सुविचार-Motivational Anmol vachan

● किसी वीरांगनाओं की आत्म कथा को पढकर जीवन का महत्व पता चलता है,की किस तरह उन्होने समाज से कुरीतियां दूर की।

● समाज मे अकबर जैसे कई राक्षस प्रवृति के लोग घूम रहे है,लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर जगह किरण देवी जैसी वीरांगना आकर आपको बचाएगी,बल्कि आपको अपना बचाव खुद ही करना पडेगा।

● कोई भी समाज या देश एकदम पवित्र (स्वच्छ विचारों वाला) नही हो सकता,लेकिन हम अपने विचारों को पवित्र रखकर ही समाज को पूर्ण रूप से पवित्र करने की कोशिस कर सकते है।

● जिस समाज या देश मे नारी कमजोर होती है उसके सभी पक्ष कमजोर हो जाते है, नारी ही समाज की नीव होती है इसे कमजोर मानना या कमजोर करने की कोशिश करना बेवकूफी होगी।

● समाज या धरती पर जब भी अधिक पाप या अत्याचार बढता है तो नारी ही चण्डिका रूप धारण करके राक्षसो का संघार करती है,क्योकिं यह शक्ति पुरूष के अन्दर नही होती है, यह हमने धार्मिक ग्रंथों मे भी सुना होगा।

2- रानी दुर्गावती- Great women Rani Durgawati
Rani durgawati

भारतीय वीरांगना जिसके युद्ध कौशल से बडे यौद्धा भी भयभीत हो जाते है।
रानी दुर्गावती राजा चन्देल सिंह की पुत्री तथा मण्डला नरेश दलपति सिंह की पत्नी थीं। उसी समय अकबर का बोल-बाला था।  दलपति सिंह बहुत पराक्रमी थे,कभी अकबर की हिम्मत नही थी कि वह दलपति से आक्रमण कर सके, लेकिन दलपति सिंह की मृत्यु के बाद उसने दुर्गावती को एक अबला नारी समझकर कर युद्ध करना चाहा। पती के मृत्यु के बाद शासन की बागडोर दुर्गावती ने ही सम्भाली थी। क्योंकि उसका बेटा नारायण अभी बहुत छोटा था।

अकबर ने कई बार दुर्गावती से युद्ध विराम किया लेकिन उसने रणचण्डी रूप धारण कर लिया था। वह खुद दुर्गा के अवतार मे भूखी शेरनी की तरह दिखने लगी। कभी भी अकबर दुर्गावती से नही जीत पाया। जब दुर्गावती का पुत्र बडा हुआ तो उसने अकबर की सेना की बागडोर सम्भालने वाले आसफखां को बारह साल तक पराजित किया लेकिन एक बार नारायण सैनिकों षे घिर जाता है। लडते लडते वह घायल होकर घोडें से गिर जाता है। दुर्गावती अपने पुत्र को गिरता देख भूखी शेरनी की तरह दोनों हाथों मे तलवार लेकर अकबर सेना का खात्मा करती है। लेकिन भाग्य ने साथ न दिया बांण उसकी आंख में जा लगता है और वह बुरी तरह घायल हो जाती है।

दुर्गावती का संकल्प था कि वह कभी भी अपने दुश्मनों के हाथों नही मरेगी उसनें कमर से कटार निकाली और अपनी छाती मे घोंप देती है। आखिर एक वीरांगना ,एक यौद्धा अपनी प्रजा के लिए जीवन समर्पण कर देती है।


शायरी -
Motivational Shayri

● जब भी कभी नारी को दुश्मन ने धुदकारा है।
सूत समेत जवाब दिया,अपना अधिकार वो पायी है।

● हर नारी दुर्गावती होगी जब, कमजोर उसे तुम मानोगे।
जिस्म का रक्त बहा देगी पर, मान कभी न गिराएगी।

● जब दुर्गावती युद्ध मे निकली, दोनों हाथों मे तलवार रखी ।
सहम गया तब नभ, धरती, सागर, जब दुश्मनों की लाशें बिछी।

● घर का पालन करे नारी, चूल्हा चौका भी करती है।
अगर पती पर आई मुसीबत तो, खुद पती की भूमिका निभाती है नारी।

सुविचार-Motivational Anmol vachan

● अक्सर हम देखते है कि नारी का पती मर जाने के बाद हम उसे कमजोर मान लेते है,लेकिन यह भी सत्य है कि ऐसी परस्थिती मे वह दुर्गा और शेरनी का रूप ले लेती है।

● नारी वह होती है जो हर कार्य को करने की छमता रखती है, इसीलिए जब पती पर कोई विपदा (मुसीबत) आती है तो वह खुद ही परिवार का भार उठा लेती है।

● दुर्गावती की तरह हर मां अपने बच्चों से अत्यधिक प्रेम करती है जब कभी भी वो मुसीबत मे आ जाए तो वह अपना सुख त्यागकर भूखी शेरनी का रूप ले लेती है।

● हर नारी दुर्गा वती की तरह ही होती है और सोचती भी है कि उसके आत्म सम्मान को कभी ठेस न पहुंचे या पर पुरूषों का कभी उसको स्पर्श भो न हो वह खुद के प्राण त्याग देगी पर अपकर्म का भार न सह सकेगी।

3- महारानी पद्मिनी- Great women Mharani padmini
Maharani padmini

महाकवि जायसी द्वारा रचित काव्य पद्मावत इसी कहानी का हिस्सा है। पद्मिनी जो कि रूप की देवी है उसके जैसा सुन्दर यौवन शायद हो किसी अन्य स्त्री का होगा।

पद्मिनी सिंहल देश (श्रीलंका) के चौहेन राजा हमीर की पुत्री तथा महाराणा भीमसिंह की पत्नी थी। अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के प्रेम मे चूर हो गया था। उसे पाने के लिए हर प्रास कर रहा था। कई बार महाराण भीमसिंह से युद्ध भी किया लेकिन नारी वह शक्ति है जिसे एक बार स्वामी के रूप मे ग्रहण करती है,फिर अन्य पुरूष का खयाल भी अपने मन मे नही ला सकती। और अलाउद्दीन तो उसे पाने की बात कर रहा था।

एक बार महाराणा भीमसिंह युद्ध मे घायल हो जाता है। और उसे अलाउद्दीन कैद कर लेता है। पद्मिनी को संदेश भेज दिया जाता है कि उसका पती उसके कब्जे मे है अतः वह उसकी रानी बनने का प्रस्ताव स्वीकार करे। पद्मिनी गुस्से से आग बबूला हो जाती है, लेकिन युद्ध करके पती को नही बचाया जा सकता अतः वह कूटनीती चलती है।

पद्मिनी अलाउद्दीन का प्रस्ताव स्वीर करती है और कहती है कि उसके साथ उसकी सौ दासियां भी आयेगी। जो कि सभी दासियां उसी की तरह रूपवती है। पद्मिनी अलाउद्दीन के महल मे पहुंचती है और कहती है कि वह आखिरी बार महाराणा भीमसिंह से मिलना चाहती है। जैसे ही वह महाराणा के पास पहुंचती है तो देखा जाता है कि पद्मिनी और दासियों के वेश मे महाराणा के यौद्धा सकपका और और अन्य यौद्धा भी थे अलाउद्दीन से युद्ध हो जाता है और यह युद्ध छः महीनों तक चलता रहता है। अलाउद्दीन के सभी सैनिक मर जाते है किन्तु उसकी पद्मिनी को पाने की चाहत नही छूटती है। युद्ध और भी विशाल हो जाता है।

पद्मिनी सहित अन्य कई स्त्रियां यह स्वीकार कर लेती है कि पराए पुरूष के हाथों मे जाने से अच्छा है ,मौत के आघोष मे चले जाना। पद्मिनो सहित कई स्त्रियां अपने आपको अग्नि के हवाले कर देती है। अलाउद्दीन की सभी इच्छाएं मिट्टी मे मिल जाती है।

शायरी-Motivational Shayri

● रूप का भवंर नारी से है, कुरूप हृदय भी नारी से है ।
कई राज घराने मिट चुके जब, नारी ने है कूटनीति चली ।

● पुरूष के अभिमान को न, नारी कभी जीतने दिया।
खुद मिट गयी इस दुनियां से, परन्तु उसकी आशा न पूरी होने दी।

● चले चाल नारी अगर तो, चाल वह उसकी आखिरी होगी ।
लूट के सारा जहां उसका, पर उसको न लुटा पाओगे कभी।

सुविचार-Motivational Anmol vachan

● नारी वह शक्ति है जिसे अगर कोई बुरे मन से छुए तो या तो राख बन जाएगा या खाक मे मिल जाएगा।

● नारी किस रूप मे बदला ले ले यह कोई अनुमान नही लगा सकता। बडे-बडे यौद्धा भी उसके प्रेम जाल मे फंसकर उसकी कूटनीती को समझ पाता है।

● नारी जिसको अपनी पती मान लेती है वही उसकी शान होती है और फिर किसी पर पुरूष को उस दृष्टि से नही देखती है,और अगर कोई उसके अस्तित्व को लांघने की या भंग करने की कोशिश करता है तो वह खुद को मिटा देगी परन्तु किसी दूसरे के हाथ मे नही जाएगी।

● नारी जो एकबार सोचती है उसे पूरा करना उसक् लक्ष्य बन जाता है,जब तक वह पूरा न हो उसे बेचैनी हो उठती है।

● पुरूष का पर नारी के प्रति हर युग का यही नजरिया रहा है कि वह उसे पाने की चाहत रखता है।  लेकिन हर वीर नारियों ने ही उन्हे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वह कोई वस्तु नही है,वह एक आग है जिसे छूने से आदमी भस्म हो जाता है।


4- झांसी की रानी लक्ष्मीबाईGreat women laxmibay
Rani laxmibay

रानी लक्ष्मी बाई के बारे मे तो लग-भग सभी जानते है। जिनका (1857) अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध मे अहम योगदान रहा है। उनकी वीरता व साहस के सामने कोई न टिक पाया।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म (1835) कांशी मे हुआ। बचपन का नाम मनुबाई था। चार साल की ऊम्र मे ही माता भागीरथी बाई का देहांत हो गया। ब्रह्मावर्त में उसका लालन-पालन हुआ। पिता (मोरोपन्त) प्यार से उसे छवीली कहाकहा करते थे। राजशाही परिवार की न होने के बावजूद भी उसने धुन्धूपन्त के साथ मिलकर जंगल मे घुडसवारी,व्यूह रचना ,तलवार बाजी सीखी। क्योंकि उस समय केवल राकुमारियां यह सब सीख पाती थी। लेकिन लक्ष्मीबाई की कुशाग्र बुद्धि के सभी कायल थे।

लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हुआ था। झांसी आने पर लोग मनु को झांसी की रानी नाम से पुकारने लगे। लक्ष्मीबाई बहुत तेजस्विनी तथा पति परायण धर्म की थी। दया व करूणा की वह मानो सागर थी।
1852 मे लक्ष्मीबाई को एक तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लेकिन भाग्यवश वह तीन माह से अधिक जीवित न रह सका। अंततः गंगाधर और लक्ष्मीबाई ने एक पांच साल का पुत्र दामोदर राव को गोद ले लिया । भाग्य ने फिर लक्ष्मीबाई के साथ अन्होनी घटित की और गंगाधर राव की अंग्रेजों की कूटनीति से मृत्यु हो गयी।

उस समय समाज मे लक्ष्मीबाई के प्रति कई विरोधा-भास होने लगे उसे कुण्ठा आदी कई शब्दो से पुकारने लगे और अंग्रेजों को भी यकीन हो चला था कि अब झांसी पर उनका अधिकार हो सकेगा।

1854 में अंग्रेजों ने झांसी को अपने राज्य मे सामिल कर दिया। लेकिन लक्ष्मीबाई कहां चुप बैठने वाली थी। उसने अंग्रेजों से युद्ध किया और 1857 को झांसी पर फिर से अधिकारशकर लिया।अंग्रेजों ने फिर से कई बार उससे युद्ध किया किन्तु उसका यह मानना था की झांसी मेरी है और इसे वापस लाकर ही दम लूंगी।

1858 को रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर के किले मे थी। किले के च्रों ओर से अंग्रेजो ने उसे घेर लिया। महासंग्राम वाला युद्ध चलता रहा। लक्ष्मीबाई दुश्मनों को धूल चटाती रही ,लेकिन अंग्रेज भी भागने का नाम नही ले रहे थे।  सैनिक कम होते ही अंग्रेजों ने भागना उचित समझा लेकिन लक्ष्मीबाई का अब विक्राल रूप तेज हो चुका था। वह अंग्रेजो का पीछा करती रही, और उनको खदीडती रही, लेकिन दुर्भाग्यवश भाग्य ने फिर साथ न दिया और लक्ष्मीबाई का घोडा नया था और घोडा ठिठक जाता है,अंग्रेज उसे घेर लेते है। एक अंग्रेज ने पीछे से वार करके उसका आधा सिर काट लेता है,और दूसरा लक्ष्मीबाई के सीने पर तलवार से वार करता है,और उसकी गर्दन भी उडा लेते है। लेकिन लक्ष्मीबाई का साहस सर विहीन होने के बाद भी रहा उसने उस अंग्रेज के भी दो टुकडे कर दिए।

आज भी हम उस वीरांगना की वीर गाथांए गाते है जिसने मर्दाना रूप अपनाकर झांसी के लोगों को स्वतन्त्रता दिलाई।


शायरी-Motivational Shayri

● दुश्मन के वार मे कहां वो दम जो, भारतीय नारी को हिला सके।
अपना अशल रूप दिखाने पर, कई झांसी की रानी पैदा होगी।

● लोग खिल्लियां उडाते रहे, कई अपवादों को सहती थी वो।
विजय मिली जिससे झांसी को, उसको नतमस्तक करते न थके।

● लुटा दो सर्वश्व दूसरों पर, खुद मिट भो जाओ तो कुठ गम नही।
मिटना ना पाएं शान भारत मां, यही लक्ष्मीबाई का नारा था।

● करो न खुद की परवाह तुम, मिट जाएंगे एक दिन सब।
जन्म लिया इन्शान का अगर तो, दूसरे के गमों को मिटाते चलो ।

● हूं भारत मां की नारी मै, हर फरमान मेरा यह होगा ।
जो मिटा न सका इसके दुश्मनों को, उसको मिटाकर ही दम लूंगी मै।

सुविचार- Motivational Anmol vachan

● रानी लक्ष्मी बाई से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जिस परिस्थिती से वह गुजरी है ,अगर वह उसी का दामन पकडे रहती तो उसी युग मे उसका नाम भी मिट जाता।

● लक्ष्मीबाई का मानना था कि अगर आप अपने आप को कमजोर माने हो तो हवाएं भी तुम्हारा साथ नही देगी। उसी दुख को हथियार बनाकर आप हवाओं का रूख भी मोड सकती हो।

● लक्ष्मीबाई के जैसा अगर परिस्थिती कैसी भी हो अगर आपने तुरन्त उसके बारे मे कुछ सोचा नही और उसी के मुताबित कार्य न किया तो आप उस परिस्थिती मे उलझते जाओगे।

● संकट एक तंफान की तरह होता है जब आता है तो भारी से भारी वस्तुओं को भी हिला देता है। उसी प्रकार अगर आप समस्याओं से हार गये हो तो कभी उभर नही पाओगे।

● अपने आप को कमजोर मानना ही सबसे बडी कजोरी होती है। वे सभी वीरांगनाएं भी ऐसा ही सोचती तो आज उन्हे कोई न पहचानता।

5- माता सीता-Great women seeta mata
Mata seeta

इस सती सावित्रि को  कौन नही जानता है; नारी का एक ऐसा स्वरूप जिसनेसभी धर्मो की सीमाओं को पार कर दिया। पती के आदर्शों को मानने वाली आज हर कोई इसके गुणों की पूजा करता है। पतीपरायण,ममता स्वरूप, करूणामयी आदी कई नामों से विख्या सीता का चरित्र चित्रण कर पाना मै अपने आप को इसके योग्य नही समझता हूं।

रावण का आतंक अत्यधिक बड चुका था। वह अपने आपको को भगवान मानने लगा था। और यह सत्य है कि जब मनुष्य अपने आपको भगवान समझने लगे समझों उसका पतन का समय निकट  होता है। रावण ने भी कार्य किया। उसकी बुद्धी भी विपरी जाने लगी उसका लोभ इस कदर बड गया कि उसने जंगल मे तपस्या कर रहे साधुओं से भी कर वसूलना शुरू कर दिया। लेकिन साधुओं के पास भी कुछ नही था। तो साधुओं ने एक घडे मे अपना रक्त जमा करने लगे जब घडा भर गया तो उसे रावण के साने भेजा गया। रावण ने समझ चुका था कि साधुओं के तम मे शक्ति होती है कहीं मेरा अनहित न हो। इस डर के कारण वह घडा सैनिकों को दिया और कहा कि इसे कहीं लेजाकर गाड लिया जाए।

आदेश अनुसार सैनिकों ने मिथिला की धरती मे उसे गाढ लिया। मिथिला नरेश जनक को बारिश न होने के कारण चिन्ता सता रही थी।  ऋषियों के मार्गदर्शन से हवन-यज्ञ करने को कहा गया। और जनक को ही आदेश दिया गया कि वह अपनी पत्नि के साथ मिलकर हल जोतें। जैसे राजा जनक हल जोतते है वह किसी भारी वस्तु पर अटक जाता है। पता चलने पर मालूम होता है कि। वहां एक बडा घडा है जिसमे  एक सुन्दर बालिका थी। निसन्तान जनक की खुशी का ठिकाना न रहा।  खेत से प्राप्त होने कारण उसका नाम सीता रखा गया।

सीता के गुणों के कारण उसका विवाह दसरथ पुत्र श्रीराम से होता है विवाह सम्पन होने के बाद सीता अपने स्वामी को ईस्वर का साक्षी मान कर पती परायण होती है। कैकेई द्वारा राम को वनागमन की आज्ञा दी जाती है। सीता और लक्ष्मण भी साथ जाते है 14 वर्षों का वनवास काट पाना सम्भव न था लेकिन  पति परमेश्वर के कष्टमय समय मे साथ न देना पत्नि धर्म नही है।राम तो स्वयं भगवान थे वे सारी लीला जानते थे। फिर भी मानव को प्रेरणा देना ही उनका कर्तव्य था। सीता का हरण होता है। वह कयी दिनों तक लंका मे रहती है। आखिर राम को सीता का पता लग पाता है। रावण से युद्ध होता है।
 रावण मारा जाता है और राम-सीता 14 वर्ष बाद अयोध्या वापस आते है। धीरे-धीरे सब सही हो गया किन्तु राम ने किसी अयोध्या वासी के मुख से सुना कि वह अपनी पत्नी को कह रहा था कि मै राम नही जो 11 वर्ष बाहर रही सीता को फिर से अपने साथ रख ले। राम को यह शब्द तो छोटे लगे किन्तु शब्दों ने मन को भेद लिया ।

यहीं से फिर सीता की दुख भरी कहानी शुरू होती है।सीता गर्भवती होते हुए भी लोक लाज के भय से राम ने सीता को वनवास भेज दिया। सीता बार-बार यह कहती रही कि मै पवित्र हूं फिर भी राम उनकी एक भी नहीं सुनते और सीता को त्या देते है। त्याग एक ऐसा शब्द जिसे महिला कभी स्वीकार नही कर सकती। भले ही राम ने त्याग दिया हो किन्तु सीता ने उन्हे नही त्यागा वह हमेशा राम को अपने पवित्र मन मे बिठाए रखा।

हाए सीता के साथ यह क्या घटित हो रहा है, पहले 14 वर्ष का वनवास और फिर दुवारा वनवास यह परीक्षा क्या नारी को ही देनी पडती है। क्या यह समाज पुरूष प्रधान समाज है। सीता जंगल मे ही लव-कुश को जन्म देती है जो बहुत ज्ञानी व प्राक्रमी बनते है। सीता अनेकों कष्टो से जूझ कर जब अयोध्या आती है तो फिर से उसे एक और परीक्षा से गुजरना पडता है।  यानी अग्नि परीक्षा सीता को देनी पडती है।

सीता अपने जीवन से ओझल हो जाती है और धरती माता को पुकार लगाती है कि अगर मै पवित्र हूं मुझे अपनी गोद मे जगह देदे धरती फट जाती है और सीता उस मे समा जाती है।

सुविचार- Motivational Anmol vachan

● नारी ने हमेशा से ही संघर्ष किया है लेकिन पुरूष समाज ने कभी उसके महत्व को जानने का प्रयास नही किया। जबकी वह देवी का स्वरूप मानी जाती है।

● सीता जैसी नारो जिसने जीवन मे कष्ट ही भोगे है,पती के द्वारा ठुकराए जाने पर भी वह उस पती को ही अपना परमेश्वर मानती थी। यानी समय कोई भी हो आपको अपने स्वभाव मे परिवर्तन नही करना चाहिए।

● जिस नारी मे सीता का स्वूप वसता है वह मनुष्य होते हुए भी पूजने योग्य होती है। और अपने कर्मों से ही पूजी जाती है।

● महिला का कमजोर समझना या उस पर अपवाद उठाना मनुष्य की सबसे बडी भूल होती है,क्योंकि उसका संकल्प बडा अटूट होता है।

● दूसरों के द्वारा सुनी गयी बात पर यकीन करके अपने प्राण स्वरूप पर शक करना मृत्यु के समान होता है।

● कोई भी नारी यह नही चाहती की उस पर कोई लांछन योग लगे,लेकिन मनुष्य उसे इस तरह मजबूर कर देता है कि उसे अपनी सत्यता के लिए प्राण न्यौछावर हो करना पडता है।

शायरीMotivational Shayri

● हर नारी सीता होती है, हर के मन बसता राम ।
संकट आजाए गर खुद पर, कर देती है प्राणों का बलिदान।

● मिटा न सका कोई गौरव, इस भारत मां की नारी का ।
मिटे वो खुद जो कहते, यह नारी नही सम्मान की ।

● जितना खींचोगे रस्सी को,दम वह भी आखिर तोड ही देगी ।
प्रेम से सींचना सीखों, वह रस को भर देगी।

● जहां सत्य है कष्ट वहीं है, पश्चाताप न होगा खुदपर उसको।
देख समय की रेखा जब, आखिर सत्य ही जीतेगा।


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